
पुराणों में सात नदियो को प्रमुख माना गया है जिनमें नर्मदा भी एक है। जिस प्रकार गंगोत्री, यमुनोत्री गंगा-यमुना का उद्गम स्थल है, उसी प्रकार अमरकंटक नर्मदा का उद्गम स्थल है। जिस स्थान से नर्मदा निकलती है उसे कोटि तीर्थ कहते हैं। हिन्दू धर्म में इसका विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार सरस्वती का जल पांच दिनों में, यमुना का जल सात दिनों में और गंगा का जल तत्काल पवित्र करता है | परन्तु नर्मदा के जल के दर्शन मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कोटितीर्थ पर भगवान शिव, व्यास, भृगु, कपिल आदि ने तपस्या की थी।
अमरकंटक की चोटी पर कई पुराने मंदिर हैं। इन मंदिरों के घेरे में एक कुंड है जिससे नर्मदा नदी का प्रारंभ होता है। यही कुंड कोटि तीर्थ कहलाता है। इसी को विशेष तीर्थ की संज्ञा प्राप्त है। यहां पर एक नर्मदा मंदिर भी है। यहां कपिलधारा तथा दुग्धधारा नामक दो प्रपात भी मोहक हैं और एक कबीर चौंतरा है। संत कबीर भी यहां कुछ समय तक रहे थे।
कई श्रद्धालु अमरकंटक से शुरुआत कर नर्मदा के मुहाने तक की परिक्रमा करते हैं। नर्मदा कुंड के घेरे के मंदिरों में अमरकटकेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है। यहीं से कुछ दूर शोणभद्र नदी का उद्गम स्थल है |
[जाने चित्रकूट धाम मन्दिर दर्शन]
अमरकटक मेकल पर्वत पर स्थित है। अमरकंटक मध्य प्रदेश राज्य के जिला खण्डवा में स्थित है। यह तीर्थ इटारसी से 96 कि.मी. तथा जबलपुर से 224 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
कपिलधारा नर्मदा का सर्वप्रथम प्रपात है। लगभग 100 फुट ऊंचा यह प्रपात बरसात के दिनों को छोड़कर दो धाराओं में बंटा रहता है। प्रपात के नीचे कुंड में जाने के लिए एक घुमावदार रास्ता है। प्रपात के नीचे नर्मदा की धारा की शक्ति की सहन करने के लिए स्नानार्थियों की भीड़ लगी रहती है। जिस धारा में कम शक्ति हो उसके नीचे लोग अधिक खड़े होते हैं। ऊबड़-खाबड़ और फिसलन भरे रास्ते के बाद भी श्रद्धालु नर्मदा के पापनाशक पुण्यप्रदायी रूप से खिचें चले आते हैं। कपिल धारा के बाद कम ऊंचा और अधिक फैला दूसरा प्रपात दुग्धधारा है। इसका रास्ता अपेक्षाकृत ठीक है। यात्री दुग्धधारा में भी उसी श्रद्धा व विश्वास के साथ स्नान करते हैं।