
अमिताभ चौधुरी का जीवन परिचय Amitabh Choudhary Ki Jeevani In Hindi
नाम : अमिताभ चौधुरी
जन्म : 11 नवम्बर, 1927
जन्मस्थान : कलकत्ता
पिता का नाम : शिशिर चौधुरी
माँ : प्रीतिरानी चौधुरी
उपलब्धियां : 1961 का मैग्सेसे पुरस्कार
नैतिकता और ईमानदारी का मूल्य समझने वाले पत्रकार अमिताभ चौधुरी, पत्रकारिता के नए दौर में काम कर रहे थे | इन्होंने बांग्ला प्रेस में काम करते हुए यह सिद्धान्त अपनाया था कि चाहे वह राजनेता हो या अधिकारी, जनसेवा का भाव उसमें निष्ठा से बना रहना चाहिए | बांग्ला के दैनिक समाचार पत्र ‘जुगांतर‘ के सहायक सम्पादक पद से शुरू होकर वह जहाँ कहीं भी पहुंचे, उन्होने अपना यह सिद्धांत बराबर बनाए रखा और इसके जरिए वह नागरिक तथा समुदाय के हित में खोजी पत्रकार की भूमिका निभाते रहे | अमिताभ चौधुरी की इस कर्तव्यनिष्ठा के लिए इन्हें 1961 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।
अमिताभ चौधुरी का जीवन परिचय Amitabh Choudhary ka Jeevan Parichay
अमिताभ का जन्म 11 नवम्बर 1927 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता शिशिर चौधुरी की मृत्यु तभी हो गई थी, जब अमिताभ केवल चार माह के थे । उनका पालन-पोषण उनकी माँ प्रीतिरानी चौधुरी ने किया ।
अमिताभ चौधुरी की शिक्षा चन्द्रनाथ हाईस्कूल कलकत्ता से शुरू हुई तथा 1944 में इन्होंने नेत्रोकोना, मेमन सिंह (पूर्वी बंगाल) के दत्ता हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की ।
मैट्रिक के बाद अमिताभ की पढ़ाई कलकत्ता के ए.एम.कालेज, सेंट जेवियर्स कालेज तथा आशुतोष कॉलेज में हुई, जहाँ से इन्होंने 1948 में अंग्रेजी में (ऑनर्स) इकानामिक्स तथा गणित के साथ ग्रेजुएशन की डिग्री ली ।
वर्ष 1959 में इनका विवाह अपने समय की जानीमानी चित्रकार नेपा से हुआ ।
कॉलेज से निकलते ही अमिताभ को बंगाल के प्रभावशाली दैनिक ‘जुगांतर’ में काम मिल गया । ‘जुगांतर’ कलकत्ता के प्रसिद्ध समाचार प्रकाशन अमृत बाजार पत्रिका का सहयोगी अखबार था और उस समय उसकी बहत्तर हजार प्रतियाँ हर रोज बिकती थीं । जुगांतर में काम करते हुए अमिताभ चौधुरी ने 1952 में माडर्न इण्डियन लैंग्वेजेज में एम.ए. की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त कर ली | इस बीच उनका लेखन मानवीय त्रासदी के बहुत से पक्षों को उठाते हुए प्रकाशित होता रहा । भारत की आजादी के बाद देश के विभाजन और उससे उत्पन्न विस्थापन की दर्दनाक स्थिति से अमिताभ बहुत द्रवित हुए और उन्होंने इसे लेकर अपनी नई दृष्टि तथा शैली में बहुत कुछ लिखा, जिसे बांग्ला प्रेस ने सम्मान से प्रकाशित किया ।
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1956 में अमिताभ ‘जुगांतर’ के सहायक सम्पादक बना दिए गए । वह इस पद पर काम करने वाले, किसी भी अखबार के सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे । इसके पहले इन्हें संसदीय मामलों की रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई । इस काम में अमिताभ ने जटिल संसदीय प्रसंगों को भी सरल तथा लोकप्रिय ढंग से प्रस्तुत किया | इसकी बहुत प्रशंसा की गई तथा उनके बहुत से पत्रकार साथियों ने उसे अपना लिया ।
सहायक सम्पादक बनने के बाद अमिताभ चौधुरी ने अपना एक नया सप्ताहिक स्तम्भ शुरू किया जिसका नाम उन्होंने ‘नेपथ्य दर्शन’ दिया । जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, इस स्तम्भ में वह पर्दे के पीछे का परिदृश्य उजागर करने का काम करते थे | उन्होंने इसकी संरचना में खुद को श्री निरपेक्ष का नाम दिया, जिसका अर्थ है, जो किसी एक पक्ष का पोषक नहीं है । इस स्तम्भ के माध्यम से अमिताभ ने एक से एक भेद देने वाली खोजी पत्रकारिता का उदाहरण प्रस्तुत किया । इस स्तम्भ के लिए अमिताभ ने जुगांतर के स्वामियों के सामने यह बात रखी कि वह उसके लिए कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं लेंगे, लेकिन उन्हें इसके लिए विषय को चुनने की तथा प्रस्तुत करने की पूरी स्वतन्त्रता दी जाय । उन्होंने न सिर्फ यह शर्त स्वीकार की बल्कि इस स्तम्भ के कारण दूसरे विरोधों का सामना बिना झुके, अमिताभ को पूरी तरह बचाते हुए किया । अमिताभ चौधुरी के इस स्तम्भ की ताकत का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आसाम में अल्पसंख्यक बांग्ला भाषी लोगों को लेकर हुए दंगों के समय, इस विषय पर चल रही, संसदीय बहस में अमिताभ का आलेख, जो इसी सन्दर्भ में लिखा गया था, महत्त्वपूर्ण माना जाते हुए विभिन्न भाषाओं में अनूदित कराकर संसद में वितरित कराया गया था और इसे एक संसदीय जाँच कमेटी की रिपोर्ट जैसी मान्यता देते हुए प्रशासनिक रूप से स्वीकार किया गया था ।
इसी तरह अमिताभ की 1957 में दामोदर वैली कारपोरेशन के कु-प्रशासन पर दी गई रिपोर्ट ने संसद में प्रश्न खड़ा कर दिया था और प्रधानमन्त्री ने इस पर जाँच के आदेश जारी किए थे । जाँच की रिपोर्ट में अमिताभ द्वारा उठाए गए प्रश्नों की सत्यता सामने आई थी, जिसके कारण न केवल सम्बन्धित नियमों में परिवर्तन किया गया था, बल्कि वहाँ के चेयरमैन को रिटायर करते हुए बोर्ड के पुनर्गठन के आदेश पारित हुए थे ।
अमिताभ के दृष्टिकोण में आम आदमी के दुख-दर्द का बड़ा स्थान था और उनकी पत्रकारिता इस पर विशेष ध्यान देती थी । एक बार एक लोकोमोटिव ट्रेन के फायरमैन की गर्मी के कारण मौत हो गई थी । उसकी पत्नी और उसका छोटा बच्चा किसी मुआवजे का हकदार इसलिए नहीं था क्योंकि चार साल की नौकरी के बावजूद वह स्थायी कर्मचारी नहीं था । इस पर अमिताभ की पैनी और तथ्यपरक रिपोर्ट ने रेलवे के जनरल मैनेजर को मजबूर कर दिया था कि उसके परिवार को मुआवजा दिया जाए और उसकी पत्नी को रेलवे में कोई उपयुक्त नौकरी मिले ।
ऐसा ही एक मामला एक एक्साइज इंस्पेक्टर के साथ भी था । वह एक अवैध शराब की फैक्टरी पर छापा मारते समय जान से हाथ धो बैठा था । इस पर भी श्री निरपेक्ष यानी अमिताभ के हस्तक्षेप से उस इंस्पेक्टर की पत्नी के लिए पेंशन की व्यवस्था की गई तथा उसके बच्चों के लिए शिक्षा भत्ता दिया गया । इस तरह ‘नेपथ्य दर्शन’ के माध्यम से अमिताभ चौधुरी ने, न केवल मामले उजागर किए, बल्कि बेहद बारीकी से मामलों का अध्ययन करके उनके पक्ष में सभी सबूत दस्तावेज जुटाए और उन्हें व्यवस्था के सामने रखा । इस क्रम में अमिताभ ने ढाई सौ से ज्यादा मामले उठाए, जिनमें सरकारी तन्त्र की उच्च स्तरीय मशीनरी में भ्रष्टाचार तथा अराजकता का पर्दाफाश हुआ और सम्बन्धित अधिकारियों को अपने किए का परिणाम भुगतना पड़ा ।
इसके साथ ही अमिताभ के इस स्तम्भ ने जनहित के बहुत से प्रसंगों में बहस का माहौल बनाया और सामाजिक मामलों में भी सार्थक हल निकाला गया ।
ऐसे बहुत से दृष्टांत सामने रखे जा सकते हैं, जो अमिताभ चौधुरी का न्याय तथा जनहित के प्रति आग्रह सामने लाते हैं । इस सन्दर्भ में अमिताभ अपने अनुभव का निचोड़ बताते हैं ।
वह कहते हैं कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि पत्रकार को खबर देते समय तटस्थ रहना चाहिए । उनका मानना है कि पत्रकार को समूचे मामले में किसी न किसी का पक्षधर बनकर उसकी पैरवी में पूरे जुनून से खड़े होना चाहिए । सच्चा पत्रकार हमेशा सत्य के पक्ष में उसकी ताकत बनकर खड़ा होता है लेकिन यह भी जरूरी है, कि सच की तह तक पहुँचने के दौर में वह खुद को तटस्थ बनाकर रखे और किसी पूर्वाग्रह से खुद को बचाता चले । वह अपनी पक्षधरता पूरा सच जानने के बाद तय करे वरना वह पूरा सच कभी भी सामने नहीं ला पाएगा |
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अमिताभ चौधुरी को 1958 में अमेरिकन प्रेस इंस्टिट्यूट द्वारा आयोजित एशियन जर्नलिस्ट्स के सेमीनार में भाग लेने का मौका भी मिला । अमिताभ इन्टरनैशनल प्रेस इंस्टिट्यूट द्वारा आयोजित दो एशियाई सेमीनारों में प्रशिक्षक के तौर पर भी आमन्त्रित किए गए, यह सेमिनार दिल्ली में नवम्बर 1960 को तथा लाहौर में मार्च 1961 में आयोजित किए गए थे । इन सेमीनारों में अमिताभ चौधुरी दुवारा प्रस्तुत खोजी पत्रकारिता पर आलेख पढे गए तथा उनपर विचार-विमर्श किया गया । भारत तथा पाकिस्तान के भागीदारों में से बहुतों ने इनके तौर-तरीकों को अपने काम में अपनाया । इन आलेखों में चौधुरी के पत्रकारिता के अनुभवों का निचोड़ था, जो उनके काम तथा उसके समाज से रिश्तों को सामने लाता था |
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