
अर्पुथम जौकिन का जीवन परिचय (Arputham Joaquin Biography In Hindi Language)
तमिलनाडु के एस अर्पुथम की आठवीं सन्तान के रूप में जौकिन का जन्म 15 सितम्बर 1946 को कोलार गोल्ड फील्ड के अरुदयापुरम में हुआ था | जौकिन के माता-पिता कैथोलिक विचारधारा को मानने वाले थे | जौकिन की जिन्दगी बेहद उतार-चढ़ाव से शुरू हुई थी और उनका अधिकांश जीवन मुंबई की झुग्गी बस्तियों के सुधार और वहाँ के वासियों की समस्याओं से और उनके अधिकारों के संघर्ष में बीता | गाँधीवादी विचारों से प्रेरित जौकिन ने अपने आन्दोलनों से झुग्गी बस्ती में बसने वाले लोगों के जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन कर दिखाए और उनके इसी संकल्प के लिए उन्हें वर्ष 2000 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |
अर्पुथम जौकिन का जीवन परिचय (Arputham Joaquin Biography In Hindi)
जिस समय जौकिन का जन्म हुआ उनके पिता कोलार गोल्ड फील्ड में फोरमैन के रूप में काम कर रहे थे, साथ ही उन्हें पंचायत का प्रेसिडेंट भी नियुक्त किया गया था । उनका यह ओहदा उस समय बेहद रुतबे वाला था । उस समय के मुख्यमन्त्री कामराज से उनके सम्बन्ध थे, इस नाते उनका राजनैतिक प्रभाव भी था । ऐसे में इण्डियन कैथोलिक के पादरियों द्वारा संचालित कोलार गोल्ड फील्ड स्कूल में पढ़ते समय जौकिन दाएँ-बाएँ दो अर्दली लेकर स्कूल जाते थे । हालाँकि स्कूल उनके उनके घर के एकदम पास में ही था, फिर भी बस्ता, पानी की बोतल आदि लेकर चलते अर्दली जौकिन के पिता की शान के प्रतीक थे । जौकिन की शिक्षा अभी सातवीं कक्षा तक ही पहुँची थी, कि भाग्य ने पलटा खाया ।
कोलार गोल्ड फील्ड में आने के बाद जौकिन के पिता की जमीन दूसरों के पास लीज पर थी । शराबखोरी तथा ताकत के नशे में चूर जौकिन के पिता के साथ लोगों ने धोखा किया और उनकी सारी सम्पत्ति उनके हाथ से निकल गई । उस घटना से जौकिन की जिन्दगी एकदम बदहाली में बदल गई । बेहद गरीबी की हालत में इतने बड़े परिवार का पालन-पोषण एकदम कठिन हो गया । उनके मन में अपने पिता के लिए भी रोष पनपने लगा । परिवार की पृष्ठभूमि में वह धार्मिक वृत्ति के तो रहे लेकिन कैथोलिक परम्परा में उसका विश्वास गहरा नहीं हुआ । एक दिन इसी परिस्थिति में जौकिन ने घोषणा की कि वह अपने पिता के परिवार का हिस्सा नहीं बने रहना चाहते । उस समय उनकी उम्र मुश्किल से सोलह वर्ष की थी । वह सिर्फ सातवीं क्लास तक पढ़े थे । उन्होंने घर से दस रुपए चुराए और बिना टिकट गाड़ी में बैठकर बंगलौर आ गए ।
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बंगलौर में जौकिन के मामा का घर था । वहाँ पहुँचकर इन्होंने कुछ छोटे-मोटे काम किए और एक सस्ते से स्कूल में बढ़ईगीरी का काम सीख लिया । जौकिन के मामा का बढ़ईगीरी का अच्छा काम चल रहा था । जौकिन वहाँ अप्रेंटिस लग गए लेकिन जल्दी ही उन्हें लगा कि उनको दूसरे कारीगरों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है । जौकिन ने पहले मामा का घर छोड़ा और फिर वह काम भी छोड़ा दिया । कुछ दिन इधर-उधर दूसरे छोटे-मोटे काम किए और करीब दो बरस बंगलौर रह कर वह 1963 में मुम्बई आ गए । मन खुर्द जनता कॉलोनी में उन्होंने डेरा जमाया, यह एक अवैध झुग्गी बस्ती थी । यहाँ उन्होंने बढ़ईगीरी तथा दूसरे छोटे-मोटे काम किए । वहाँ के दूसरे छोकरे लोगों के साथ मिलकर बैण्ड पार्टी बनाई, जो डालडे के डब्बों और ढपली से गा-बजा कर कुछ कमाई करते थे ।
वहीं जौकिन ने झुग्गी वालों के अनपढ़ बच्चों के लिए एक स्कूल जैसा ठिकाना बनाया और उन्हें, खुद टीचर बनकर पढ़ाने लगे । उसमें कुछ दूसरे लोग भी पढ़ाने के लिए आगे आए और इस तरह जौकिन वहाँ की जिन्दगी में और वहाँ के लोगों में घुलने-मिलने लगे । उन्होंने खुद भी गरीबी के दिन देखे थे और देख रहे थे । उनकी पेंट में पीछे से छेद थे, जिसे वह कमीज को हाथ से नीचे खींचकर ढकने का प्रयत्न करते रहते थे ।
मन खुर्द जनता कॉलोनी एक उपेक्षित और गन्दी बस्ती थी । उस इलाके की सफाई की ओर किसी का ध्यान नहीं था । न व्यवस्था, न वहाँ के रहने वाले इस ओर सोचते थे । ऐसे में जौकिन ने साथ के लड़कों को इकट्ठा करके उन्हें साथ लिया और सबने मिलकर कॉलोनी का कूड़ा करकट उठाकर बाम्बे म्यूनिसिपल कारपोरेशन के आगे जमा कर दिया । अगले दिन BMC के लोग जौकिन के पास उसे पकड़ने आए । जौकिन ने हठपूर्वक कहा कि हम अपनी कॉलोनी की सफाई खुद कर लेंगे लेकिन BMC को कूड़ा उठाने आना चाहिए । जौकिन के हठ के आगे BMC को झुकना पड़ा और यहीं से जौकिन के मन में इस बस्ती के लिए कुछ करने का विचार आया ।
वर्ष 1969 में जौकिन ने मुम्बई स्लम डवैलर्स फेडरेशन का गठन किया और यह निर्णय लिया कि वह इस संस्था का रजिस्ट्रेशन वगैरह नहीं कराएँगे, बस काम करेंगे ।
1974 में यह मुम्बई स्लम ड्वैलर्स फेडरेशन विकसित होकर नेशनल स्लम ड्वैलर्स फेडरेशन (NSDF) बन गई । जौकिन के इस अभियान में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ 1970 में आया, जब एटौमिक एनर्जी कमीशन के हित में जनता कॉलोनी को उजाड़कर विस्थापित करने की योजना बनी । जौकिन ने इसका विरोध किया और वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए । जहाँ से उन्हें स्टे आर्डर मिला लेकिन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी एटोमिक एनर्जी कमीशन के पक्ष में रुचि रखती थी ।
इस पर 1975 में जौकिन इन्दिरा गाँधी से मिलने दिल्ली आए लेकिन जब उनत्तीस दिन इन्तजार के बाद भी उनसे मुलाकात नहीं हो पाई तो वह अपने साथियों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए । एक लम्बे संघर्ष के बाद उनको बहुत से सांसदों तथा सत्तारूढ़ दल की सहानुभूति मिली लेकिन इन्दिरा गाँधी ने कॉलोनी उजाड़ने पर अपनी सहमति दे दी । इस पर जौकिन ने विरोध स्वरूप लाल अक्षरों में लिखे पर्चे बाँटे । वह एटोमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन से भी मिले । लेकिन उन्होंने यही कहा कि कल सुबह उस कॉलोनी का उजड़ना भगवान भी नहीं रोक सकता । यह जौकिन का साहस भरा कदम था कि उन्होंने सुबह साढ़े चार बजे तक कोर्ट से स्टे आर्डर लाकर चेयरमैन को थमा दिया । इस सिद्धान्त वाली लड़ाई को जौकिन हार गए । सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला नहीं सुनाया । जौकिन गिरफ्तार कर लिए गए । आशंका बनी कि वह जान से मार दिए जाएंगे । इस पर बी.बी.सी. ने पूरे संसार में इस काण्ड की घोषणा की और यह बताया कि जौकिन की जान खतरे में है ।
अपुर्थम जौकिन ने यही ठीक समझा कि वह भारत से कुछ समय के लिए निकल जाएँ । 1976 में वह फिलीपींस चले गए । फिलीपींस में जौकिन ने मनीला में टौण्डो फोर शेयर एरिया में झुग्गी प्रबन्धन की ट्रेनिंग ली । उन्होंने फिलीपींस इक्यूमीनिकल काउंसिल फॉर कम्युनिटी आर्गेनाइजेशन से भी जानकारी जुटाई और पूरी तरह सीख-समझकर 1978 में वह फिर भारत लौटे । वह सीख चुके थे कि विरोध की नीति हठ से नहीं निभाई जा सकती है । फिलीपींस से लौटने के बाद 1980 के दशक में जौकिन के स्लम सुधार कार्यक्रम का विस्तार हुआ और NSDF की साझेदारी ‘सोसायटी फॉर द प्रोमोशन ऑफ एरिया रिसोर्स सेंटर-‘SPARC’ तथा ‘महिला मिलन’ संस्थाओं से हुई । 1984 के आस-पास, NSDF के साथ बहुत से दूसरे NGOs का साथ जुड़ गया । जिससे जौकिन में गहरे विश्वास का संचार हुआ ।
1994 में जौकिन ने अपना काम पूना में भी शुरू कर दिया, जहाँ राजेन्द्र नगर कॉलोनी के सामने भी इसी तरह उजाड़ हो जाने का खतरा मण्डरा रहा था ।
1973 में, सत्ताइस वर्ष की उम्र में जौकिन का विवाह हुआ । उनका वैवाहिक जीवन उनके लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी के बाद ही अपना स्थान रखता था । उनकी पत्नी नाताल डी सूजा, असन्तोष के बावजूद उनका साथ देती थीं । उन्होंने वह समय भी देखा था जब उन्हें जौकिन के काम के लिए अपनी साड़ी बेचनी पड़ी थी । जौकिन ने भी अपना टाइपराइटर उसी दौर में गिरवी रखा था । इसके बावजूद वह कभी लालच में नहीं पड़े । उन्होंने आवास की सुविधा को ठुकराया, राजनैतिक क्षेत्र में उतरने के प्रस्ताव को ठुकराया और कभी डिगे नहीं । कमजोर वह बस एक बार हुए, जब बम्बई मामले के पहले उन्होंने बंगलौर में आत्महत्या की कोशिश की जो सफल नहीं हुई ।
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जौकिन ने एक लम्बा संघर्षमय जीवन जिया । इस दौरान उनके प्रयास से स्लम क्षेत्र में बहुत सुधार हुए, हालाँकि पूरी तरह वांछित रूप में नहीं पहुँचा है । फिर भी इस दिशा में जौकिन देश-विदेश के लोगों का ध्यान आकर्षित कर सके हैं । लोगों में स्वयं काम करने की वृत्ति जगा सके हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात है ।
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