
अरुण शौरी का जीवन परिचय (Arun Shourie Biography In Hindi Language)
नाम : अरुण शौरी
पिता का नाम : हरिदेव शौरी
माता का नाम :
जन्म : 2 नवम्बर 1941
जन्मस्थान : जालंधर (पंजाब)
उपलब्धियां : रमन मैग्सेसे (1982) ‘पद्मभूषण’ (1990) |
पत्रकारिता, कला और साहित्य के माध्यम से समाज की स्थिति को उजागर करने का कदम बहुत साहस और निर्भीकता की माँग करता है क्योंकि अक्सर यह काम व्यवस्था पर चोट करता हुआ सामने आता है और ऐसा कदम उठाने वालों को प्राय: बहुत कुछ गँवाना पड़ता है किंतु इन कामों में लगे हुए लोग सब कुछ सहने को तैयार रहते है | अरुण शौरी भी इसी श्रेणी के व्यक्ति है | समाज में फैले भ्रष्टाचार विषमता और अन्याय के प्रति उन्होने पत्रकार के रूप में लगातार आवाज उठाई और न्याय के पक्ष में अपनी बात रखते रहे | इसके लिए उन्हें बहुत कुछ खोना भी पड़ा लेकिन उनका सब के प्रति आग्रह बना रहा | अरुण शौरी की इस कल्याणकारी पत्रकारिता के लिए उन्हें वर्ष 1982 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |
अरुण शौरी का जीवन परिचय (Arun Shourie Ka Jeevan Parichay In Hindi)
अरुण शौरी का जन्म जालंधर (पंजाब) में 2 नवम्बर 1941 को हुआ था । उनके पिता हरिदेव शौरी एक उच्च सरकारी अधिकारी थे । अपने पिता की वह पहली सन्तान हैं । उनकी एक बहिन नलिनी तथा एक भाई दीपक है ।
अरुण शौरी की स्कूली शिक्षा मॉडर्न स्कूल, नई दिल्ली से शुरू हुई । स्कूल के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में प्रवेश लिया और 1961 में अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री ली । वहीं से एम.ए. इकोनॉमिक्स का पहला साल पूरा करने के बाद इत्तेफाक से दिल्ली में ही उनकी भेंट साइराकस यूनिवर्सिटी न्यूयार्क के मैक्सवैल स्कूल ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के डीन से हुई और उन्हें संस्थान की पूरी फैलोशिप मिल गई । अरुण शौरी ने न्यूयार्क के उसी संस्थान से एम.ए. अर्थशास्त्र पूरा किया तथा 1966 में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।
1966 में ही अरुण शौरी ने वर्ल्ड बैंक के ‘यंग प्रोफेशनल प्रोग्राम’ के तहत इन्टरव्यू दिया और भारत आ गए । भारत आकर इन्होंने टाटा ग्रुप ऑफ इण्डस्ट्रीज में काम शुरू ही किया था कि तीन महीने बाद ही इन्हें वर्ल्ड बैंक से नियुक्ति के आदेश मिल गए और इन्हें वाशिंगटन में पोस्टिंग दी गई । वाशिंगटन जाने के पहले ही 12 फरवरी 1967 को इनका विवाह अनीता से हुआ और उसके बाद वह पत्नी को साथ लेकर वाशिंगटन रवाना हो गए । उनका वहाँ कार्यकाल पाँच वर्ष का तय किया गया था ।
1972 से 1974 तक अरुण शौरी को होमी भाभा फैलोशिप मिली, साथ ही इन्हें भारतीय योजना आयोग में कंसल्टेंट का काम भी मिल गया । योजना आयोग में काम करते हुए अरुण शौरी को बहुत कुछ देखने-जानने का मौका मिला । मानवाधिकारों का उल्लंघन तथा संविधान की अवमानना के बहुत से मामलों ने अरुण शौरी के भीतर का पत्रकार जगाया और उन्होंने अपना पहला राजनैतिक लेख लिखा ‘ऑन कीपिंग साइलेंट’ जो 1975 में छपा । इस लेख में उन्होंने आपात् काल की स्थिति की भविष्यवाणी की थी ।
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1974 में इस फैलोशिप की समाप्ति पर अरुण शौरी फिर वर्ल्ड बैंक लौटे और ‘पॉलिसी प्लानिंग एण्ड प्रोग्राम रिव्यू डिपार्टमेंट’ में लग गए । यह विभाग पाकिस्तान के महबूबुल हक सम्भाल रहे थे और अरुण शौरी के मन में उनके लिए बड़ा सम्मान था । तभी अकस्मात उन्हें इण्डियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस (ICSSR) से उनके डायरेक्टर डॉ. जे.पी. नाइक का संदेश मिला कि वह भारत लौट कर किसी अनुकूल विषय पर शोध प्रस्ताव लिखें । अरुण शौरी ने ‘महात्मा गाँधी के दर्शन और भारतीय आन्दोलन परम्परा और वर्तमान स्थिति’ विषय चुना । उनका प्रस्ताव स्वीकार हो गया तथा उन्हें तीन वर्ष की फैलोशिप मिल गई । मार्च 1977 से 1978 तक अरुण शौरी ने हिन्दू धर्म ग्रन्धों का अध्ययन किया तथा साथ ही साथ जयप्रकाश नारायण के जन आन्दोलन से जुड़ गए । इस दौरान इन्होंने दस राजनैतिक लेख लिखे जिन के मुख्य विषय राजनैतिक शक्तियों, भ्रष्टाचार तथा लोकतन्त्र की अवमानना जैसे विषय थे । यह आलेख सेमिनार, मेनस्ट्रीम, इण्डिया टुडे सहित डेकन हेराल्ड तथा इण्डियन एक्सप्रेस में छपे । वर्ष 1978 में इनका पुनर्प्रकाशन हुआ । इनके साथ अरुण शौरी के चार और आलेख भी छपे, जो उनकी किताब ‘सिप्टम्स ऑफ फासिज्म’ (फासीवाद के लक्षण) में तथा ‘वाशिंगटन एसेज’ में छप चुके थे ।
1978 में अरुण शौरी नवनिर्वाचित जनता सरकार द्वारा प्रेस कमीशन ऑफ इण्डिया के लिए चुने गए और इन्हें भारतीय प्रेस की स्थिति पर लिखने के लिए अधिकृत किया गया । अरुण शौरी ने वहां अगस्त 1978 तक काम किया और अपनी पाण्डुलिपि ‘हिन्दुइज्म’ प्रकाशक को सौंप दी । 1 जनवरी 1979 को अरुण शौरी इण्डियन एक्सप्रेस के इक्जीक्यूटिव एडीटर (कार्यकारी सम्पादक) नियुक्त हो गए ।
इण्डियन एक्सप्रेस में अरुण शौरी की पत्रकारिता का रुख शुरू से ही असहमति का रहा । 1981 में इन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री अब्दुल रहमान अंतुले के काण्ड का पर्दाफाश किया । जिसमें अंतुले पर आरोप था कि उन्होंने राज्य के कारोबारों से कमाई गई निधि में से लाखों डालर अवैध रूप से एक निजी ट्रस्ट के खाते में डलवा दिए थे । वह निजी ट्रस्ट इन्दिरा गाँधी के नाम पर चल रहा था । इस काण्ड के प्रकाश में आने पर मुख्यमन्त्री अंतुले को इस्तीफा देना पड़ा था । यह एकदम पहला अवसर था जब अखबार की रिपोर्टिंग पर सरकार का कोई बहुत महत्त्वपूर्ण और ऊँचे ओहदे का व्यक्ति निष्कासित किया गया था । अरुण शौरी के इस कदम के बाद इण्डियन एक्सप्रेस का बम्बई कार्यालय श्रमिक विवादों से भर गया । अंतुले ने वहाँ के कामगारों को उकसा कर हड़ताल करा दी, कि वह कामगार न्यूनतम मजदूरी से दुगने वेतन की माँग करें । इसी के साथ सरकार का दमन चक्र इण्डियन एक्सप्रेस पर टूट पड़ा और अलग-अलग संस्थाओं ने इण्डियन एक्सप्रेस पर बहुत से कारणों से मुकदमे दायर कर दिए | वर्ष 1982 में इण्डियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका ने, सरकार के दबाव में आकर अरुण शौरी को नौकरी से अलग कर दिया ।
1982 से 1986 तक अरुण शौरी ने स्वतन्त्र लेखक के रूप में बहुत से अखबारों तथा पत्रिकाओं में लेख लिखे । साथ ही वह ‘पीपुल यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज’ के जनरल सेक्रेटरी हो गए । वर्ष 1986 में टाइम्स ऑफ इण्डिया ने उन्हें इक्जीक्यूटिव एडिटर बनाकर बुला लिया, लेकिन वहाँ यह बहुत ज्यादा दिन नहीं रहे, क्योंकि 1987 में रामनाथ गोयनका ने अरुण शौरी को इण्डियन एक्सप्रेस वापस बुला लिया । उस दौरान अरुण शौरी ने राजीव गाँधी के खिलाफ बोफोर्स तोपो की खरीद में दलाली खाने का मामला जोरों से उठाया जिसमें समूचे मीडिया परिवार ने अरुण शौरी तथा इण्डियन एक्सप्रेस का साथ दिया | राजीव गाँधी उस समय देश के प्रधानमन्त्री थे । इस बीच इण्डियन एक्सप्रेस समूह पर सरकार ने 300 मुकदमे डाल दिए । उनको बैंकों से मिलने वाला ऋण रोक दिया गया । फिर भी अरुण शौरी ने अपना अभियान जारी रखा । लेकिन 1990 में अरुण शौरी को इण्डियन एक्सप्रेस की संपादकीय नीति के चलते असहमति के कारण अपना इस्तीफा देना पड़ा । उनकी यह असहमति मण्डल कमीशन लागू करने के विरोध में थी जो तत्कालीन प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा लागू किया जा रहा था । इण्डियन एक्सप्रेस से अलग होकर अरुण शौरी ने अपना समय तथा अपनी ऊर्जा विभिन्न अखबारों, पत्रिकाओं तथा पुस्तकों के लिए लिखने में लगाई जो देश भर में प्रकाशित हुए ।
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अरुण शौरी के जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ आकस्मिक रूप से भी घटीं । 1965 में अरुण शौरी न्यूयार्क से भारत आए ताकि वह अपनी थीसिस के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी जुटा सकें । उनकी थीसिस ‘ए लोकेशन ऑफ फारेन एक्सचेंज इन इण्डिया’ था । इसके लिए वह अपने थीसिस प्रोफेसर से मिले । थीसिस प्रोफेसर ने अप्रत्यक्ष रूप से अरुण शौरी का नाम वर्ल्ड बैंक में नौकरी के लिए प्रस्तावित कर दिया । इधर वर्ल्ड बैंक के एक इन्टरव्यू बोर्ड के सदस्य की थीसिस का भी यही विषय था । अरुण अपनी थीसिस पहले ही जमा कर चुके थे । जब उस बोर्ड के सदस्य ने पाया कि अरुण शौरी की थीसिस में वह जानकारी है, जो वह स्वयं भी अपनी थीसिस में नहीं दे पाए हैं, तो उन्हें अचंभा हुआ और अरुण शौरी का चयन हो गया । अरुण इसे एक सुखद संयोग मानते हैं ।
अरुण शौरी के जीवन का एक दुखद पक्ष भी है । 1974 में जब ICSSR की फैलोशिप पाकर अरुण शौरी को स्वदेश लौटना था, तब उनकी पत्नी ने समय से पहले पुत्र को जन्म दिया और डॉक्टरों ने बताया कि वह बेटा विक्रमादित्य दिमागी आघात का शिकार हो गया है, जिसे असाध्य रोग सेरिब्र्ल पैलिसी कहा जाता है । ऐसे में अरुण शौरी और उनकी पत्नी अनीता को यह ठीक नहीं लगा कि वह बेहतर इलाज वाले देश को छोड्कर फैलोशिप के लिए भारत चले जाएँ । उस समय बच्चे का इलाज डॉ. चार्ल्स कर रहे थे । उन्होंने कहा कि भारत में बच्चा अपने दादी-दादा तथा अन्य परिजनों के बीच बेहतर रूप से पल सकेगा तो अरुण दम्पति मन मार कर भारत लौटे ।
अरुण शौरी 1999 से लेकर अब तक तीन बार राज्य सभा के सदस्य रहे । वर्ष 1990 में उन्हें जर्नलिस्ट ऑफ द इयर का सम्मान मिला और उसी वर्ष वह पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किए गए ।
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