अरुणा रॉय का जीवन परिचय Aruna Roy Biography In Hindi Language In Short

Aruna Roy Biography In Hindi

अरुणा रॉय का जीवन परिचय (Aruna Roy Biography In Hindi Language  In Short)

Aruna Roy Biography In Hindi

नाम : अरुणा रॉय
जन्म : 26 मई 1946
जन्मस्थान : चेन्नई
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (2000)

अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जो सबसे ज्यादा मजबूर हथियार खोजा गया वह है सूचना | अरुणा रॉय ने सूचना पाने और समझने की ताकत को समझा और अन्याय तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया उन्होने पाया कि देश की गरीब और अनपढ़ जनता ही अन्याय तथा शोषण की सबसे ज्यादा शिकार है । इसलिए अरुणा ने मजदूर किसान शक्ति सगंठन (MKSS) की स्थापना की और अपना अभियान शुरू कर दिया । इस सगंठन का उद्देश्य गाँव के मजदूरों और किसानों को जागरूक करके उन्हें सगंठित करना था ताकि उन्हें जोड़कर उनके पक्ष में मोर्चा खोला जाए | अरुणा रॉय के इस सरोकार तथा सूझ के लिए उन्हें वर्ष 2000 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |

अरुणा रॉय का जीवन परिचय (Aruna Roy Biography In Hindi)

अरुणा रॉय का जन्म 26 मई 1946 को चेन्नई में हुआ था । वह एक परिश्रमी तथा मेधावी छात्र की तरह देश की प्रशासनिक सेवा (IAS) परीक्षा पास करके 1968 में प्रशासनिक सेवा में लग गई थीं । एक नव नियुक्त अधिकारी के रूप में अरुणा को देश के गाँवों को देखने-जानने का मौका मिला और उनके सामने बदहाल तथा उपेक्षित गाँवों की दर्दनाक तस्वीर आई । वह इस दशा से द्रवित हुईं । उन्हें समय के साथ यह भी एहसास हुआ कि वह एक ओहदेदार अधिकारी के रूप में न तो देश के भ्रष्ट तन्त्र को भेद सकती हैं, न उसमें कोई बदलाव ला सकती हैं । यह जानकर उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की नौकरी छोड़ दी । इस बीच उन्होंने इस सेवा में सात साल का अनुभव जुटाया था जिसमें उन्होंने बहुत कुछ देखा था ।

IAS की नौकरी छोड्‌कर अरुणा ने राजस्थान तिलोनिया में सोशल वर्क एण्ड रिसर्च सेन्टर के लिए काम करना शुरू कर दिया । यह संस्था SWRC अरुणा के पति संजित बंकर राय द्वारा स्थापित संस्था थी ।

इस संस्था SWRC में अरुणा ने 1983 तक काम किया । उसके बाद उनका उनके पति से अलगाव हो गया ।

वहाँ से अरुणा 1987 में राजस्थान के राजसमन्द जिले के गाँव देवडूंगरी आ गईं । उनके साथ उनके साथी शंकर सिंह तथा निखिल डे भी आए । इन दोनों की मदद से अरुणा ने 1990 में मजदूर किसान शक्ति संगठन MKSS स्थापित किया । यह संस्थान गैर-राजनैतिक जन-संगठन के रूप में खड़ा किया गया तथा यह मजदूर तथा गाँव के किसानों के लिए काम करने लगा ।

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राजस्थान में भंवरी देवी का बलात्कार अरुणा के लिए दिल हिला देने वाली घटना बनकर सामने आई । यह 1992 का वर्ष था । अरुणा रॉय ने बीस स्त्री तथा मानव अधिकार संगठनों का एक जनसमूह तैयार किया । जयपुर में एक बहुत बड़ा प्रदर्शन किया गया जिसमें अरुणा ने नारा दिया, ‘इज्जत गई किसकी बलात्कारियों की’ यह नारा अरुणा रॉय की साथिनों ने तैयार किया था । यह एक अभूतपूर्व प्रदर्शन था । इस मामले में दिए गए विशाखा जजमेंट को ऐतिहासिक मानते हुए यौन शोषण के खिलाफ एक युद्ध कहा गया ।

अपने संस्थान मजदूर किसान शक्ति संगठन MKSS ने बहुत से नए उदाहरण प्रस्तुत किए । इस संगठन ने बाहरी स्रोतों से कोई वित्तीय सहायता स्वीकार नहीं की और खुद को पुराने जमे जमाए NGOs की गिरफ्त से बचा ले गई । अरुणा और उनके साथी गरीब किसान मजदूरों के साथ उनके गाँव में उन्हीं जैसा खान-पान और रहन-सहन अपनाते हुए बस गए । और उन्होंने खुद को वहाँ के स्थानीय ताकतवर गुटों के खिलाफ खुद को जमा लिया था ।

अरुणा रॉय ने पारम्परिक तरीकों को अपनाते हुए इस बात के लिए दबाव बनाया कि काम पर रखे गए स्थानीय लोगों को कानूनी तौर पर तय की गई न्यूनतम मजदूरी दी जाए । इसके लिए मजदूर किसान शक्ति संगठन के लोग धरने परने पर बैठे और उन्होंने भूख हड़ताल की । इस संगठन ने एक भू माफिया को अपने दबाव के आगे मजबूर कर दिया कि वह हड़पी हुई जमीन को उसके गरीब दावेदार को लौटा दे ।

इस संगठन का एक अनुभव तो बहुत उत्तेजक रहा । इसने खुले मैदान में लोगों के बीच राज्य विकास के प्रोजेक्ट्स की हकीकत और उसकी कागजी रिपोर्ट, उजागर की जिससे व्यवस्था बेनकाब हो गई । इस खुले मंच की कार्यवाही में पता चला कि :

स्कूल के भवन तथा स्वास्थ्य क्लीनिक बनाने पर पैसा खर्च हुआ दिखाया गया, जबकि इनका कभी निर्माण भी नहीं हुआ था ।

कुओं, नहरों तथा सड़कों की मरम्मत पर पैसे का खर्च दिखवाया गया, जब कि उन सबकी हालत जस की तस बदतर बनी देखी जा सकती थी ।

बाढ़ और अकाल के लिए राहत कार्य सचमुच कभी हुए ही नहीं. .बहुतेरे ऐसे मजदूरों को वेतन देना कागजों में दिखाया गया, जिन्हें मरे बरसों बीत चुके थे । इस तरह राजस्थान में जितने भी विकास के कार्य पूरे किए गए बताए गए, उनमें से एक भी असलियत में नहीं किया गया था ।

अरुणा रॉय ने लोगों को यह समझाया कि सूचना कामयाबी की सबसे पहली जरूरत है । बिल वाउचर, कर्मचारियों के नामों की सूची, इस सबको देखने का जनता को हक है । मजदूर, किसान शक्ति संगठन के नेताओं ने समझाया कि जनता के लोग किया गया काम, जो बताया जा रहा है, उसकी जाँच करें और इस तरह अरुणा रॉय का यह कदम इस अभियान की ओर था कि सरकार के कामकाज में पारदर्शिता हो और जनता अपने पैसे तथा अपने काम के रेकार्ड को देख-परख सके ।

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अरुणा रॉय के इस अभियान के बावजूद अधिकारी लोग अपने रेकॉर्ड का खुलासा करने को नापसन्द करते थे और यह एक प्रतिरोध का मुद्दा था । आखिर अरुणा रॉय तथा MKSS ने राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक के बाद एक प्रदर्शन तथा रैलियाँ निकालनी शुरू की और राज्य सरकार को इसके लिए बाध्य किया कि वह विकास फण्ड के रेकॉर्ड का जनता के बीच खुलासा करें । इस तिरपन दिन चलने वाली प्रतिरोध कार्यवाही ने, धीरे-धीरे राष्ट्रव्यापी समर्थन पाना शुरू कर दिया । देश भर के जाने-माने विचारक, राजनैतिक सुधारक तथा मीडिया इसमें अरुणा रॉय के साथ आ जुड़ा और अन्तत: राजस्थान के साथ-साथ तीन अन्य राज्यों में सूचना के अधिकार का कानून पास हो गया ।

अरुणा रॉय ने मजदूरों और किसानों को जागरूक करके उन्हें सचेत बनाया । उन्हें सूचना के महत्त्व की जानकारी दी तथा उदाहरण देकर उन्हें यह एहसास दिलाया कि सूचना उनका अधिकार है और यही उनके सुधार की कुंजी भी है । अरुणा रॉय को इसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मैग्सेसे पुरस्कार मिला था । अरुणा रॉय ने उस पुरस्कार राशि को एक ट्रस्ट में रख कर उसका उपयोग भी लोकतान्त्रिक संघर्षों के लिए सुरक्षित रख दिया ।

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