
बी.जी. वर्गीज का जीवन परिचय B.G. Verghese Ka Jeevan Parichay
नाम : बी.जी. वर्गीज
जन्म : 21 जून 1927
जन्मस्थान : म्यांमार (बर्मा)
मृत्यु : 30 दिसम्बर 2014
उपलब्धियां : मैग्सेसे (1975) |
देश के आर्थिक-सामाजिक विकास के सन्दर्भ में पत्रकारिता अगर केवल सामने नजर आ रहे परिणाम को अपनी रिपोर्ट में दर्ज करती है और उन कारणों और तथ्यों को नजरअन्दाज कर देती है, जिनसे गुजर कर विकास का क्रम आगे बढ़ता है, तब वह अपने दायित्व से चूकती है । बी.जी. वर्गीज ने अपने लम्बे अनुभव से पत्रकार के रूप में अपनी प्रत्येक रिपोर्ट को समूचे तथ्यों के साथ पकड़कर पूरे विलेषण के साथ पेश किया, जिससे जनता के सामने हमेशा पूरा सच आया और जनता उस स्थिति का सच्चा आकलन कर सकी । बी.जी. वर्गीज की इस सूझबूझ-भरी पत्रकारिता, साहित्य एवं रचनात्मक संवाद कला के लिए उन्हें 1975 को मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।
बी.जी. वर्गीज का जीवन परिचय B.G. Verghese Ka Jeevan Parichay
वर्गीज का जन्म 21 जून 1927 को म्यांमार (बर्मा) में हुआ था । वह अपने पिता की तीसरी सन्तान थे । उनके पिता इण्डियन मेडिकल सर्विस में एक ऑफिसर थे तथा अपनी सेवा में डायरेक्टर जनरल के पद तक पहुँचे थे । उनकी माँ अन्ना परिवार में अनुशासन की डोर सम्भाल कर चलने वाली महिला थीं ।
वर्गीज का जन्म भले ही बर्मा में हुआ लेकिन उनका अधिकांश समय पूर्वी तथा उत्तरी भारत में बीता । उनकी पढ़ाई दून स्कूल, देहरादून से शुरू हुई । वह स्कूल के एक मेधावी छात्र थे, तथा उनके स्कूल छोड़ने के बहुत बाद तक भी उनका उदाहरण बतौर आदर्श, अध्यापकों द्वारा दिया जाता रहा था । दून स्कूल से हाई स्कूल पास करने के बाद वर्गीज दिल्ली में सेन्ट स्टीफेंस कॉलेज में आए, जहाँ से उन्होंने इकॉनामिक्स में बी.ए. की डिग्री 1948 में प्राप्त की । इस डिग्री के साथ वर्गीज ने इकॉनामिक्स बी.ए. की डिग्री कैंब्रिज इंग्लैण्ड के ट्रिनटी कॉलेज से भी प्राप्त की ।
वर्गीज का पत्रकारिता में आना बहुत आकस्मिक रूप से हुआ । वह संयुक्त राष्ट्रसंघ में या इन्टरनैशनल लेबर आर्गनाइजेशन में काम करना चाहते थे लेकिन वहाँ इंग्लैण्ड में टाइम्स ऑफ इण्डिया को एक सहायक सम्पादक की जरूरत थी । इसके लिए वर्गीज चुन लिए गए और टाइम्स ऑफ इण्डिया ने इन्हें ग्लासगो हेरल्ड तथा लन्दन टाइम्स क्रॉनिकल में प्रशिक्षण दिलवाया । प्रशिक्षण पूरा करके वर्गीज भारत लौटे और उन्होंने टाइम्स ऑफ इण्डिया में पद संभाल लिया । वर्गीज टाइम्स ऑफ इण्डिया में सत्रह वर्ष तक रहे और इन्होंने दिल्ली में लम्बे समय तक मुख्य संवाददाता की जिम्मेदारी निभाई ।
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पत्रकारिता में वर्गीज का रुझान उन्नतिशील पत्रकारिता की ओर ज्यादा रहा । उन्हें लगता था कि पत्रकारिता केवल रिपोर्टिंग भर नहीं है । वह चाहते थे कि पत्रकारिता के जरिए वह आम आदमी की जिन्दगी में बेहतरी की राह खोलने का काम करें । उन्हें यह बात बहुत अखरती थी कि समाज में एकदम नीचे के स्तर के लोगों के अधिकारों और उसके मुकाबले उच्च स्तरीय लोगों के अधिकारों के बीच बहुत ज्यादा अन्तर है । वर्गीज का सरोकार निर्धन तबके के स्त्री पुरुष तथा बच्चों पर ज्यादा रहता था ।
वर्गीज ने यह भी देखा कि शहरी आबादी और गाँव वालों के बीच गहरी संवादहीनता की स्थिति है । इसी तरह अमीर तथा गरीब के बीच भी कोई जुड़ाव नहीं है । अखबार प्राय: सम्पन्न व संभ्रात वर्ग की बात करते हैं, उन्हें ही केन्द्र में रखते हैं । वर्गीज ने इस तथ्य की ओर टाइम्स ऑफ इण्डिया तथा हिन्दुस्तान टाइम्स के जरिए शहरी लोगों का ध्यान आकर्षित किया कि यदि दोषपूर्ण कृषि नीति के कारण गाँव का किसान प्रभावित होता है, तो उसका असर शहरी लोगों तथा बाजार तक भी पड़ता है और उद्योग भी इसके दुष्प्रभाव से बच नहीं सकते । वर्गीज ने इस बात का खुलासा किया कि गेहूँ या धान की उपज की बात करना, सिंचाई की बात करना, खाद तथा कीटनाशक दवाई की बात करना दरअसल अन्ततः विदेशी मुद्रा की बात करना है क्योंकि इस सबका सम्बन्ध अर्थव्यवस्था से है । इसलिए इस सबके सन्दर्भ में भी सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण टेस्नालॉजी है, इसलिए हर क्षेत्र में टेस्नालॉजी के विकास की बात की जानी चाहिए ।
वर्गीज ने अपनी पत्रकारिता में यह भी मुद्दा बनाया कि विकास की योजना घोषित होने के बाद, उसके पूरा होने में बहुत लम्बा समय लग जाता है । इसका परिणाम यह होता है कि योजना का उतना लाभ जनता तक नहीं पहुँचता, जितना सोचकर योजना घोषित की गई थी । इसे योजनाओं की असफलता ही कहा जाना चाहिए, न कि सफलता, भले ही वह पूरी हो गई हो ।
1958 में वर्गीज ने देशभर का आठ हजार मील का दौरा किया और चालीस दिनों तक जितने हो सके उतने विकास प्रोजेक्ट्स का दौरा किया । वर्गीज के ये अनुभव और उनकी सार्थक व्याख्या उनकी किताब ‘जर्नी थ्रू इण्डिया’ में प्रकाशित हुई । पुस्तक रूप में आने के पहले इनका प्रकाशन टाइम्स ऑफ इण्डिया में क्रमश: होता रहा था 1964 में वर्गीज ने भारत की चौथी पंचवर्षीय योजना की गहरी व्याख्या अपने आलेख ‘द सुप्रीम टास्क’ में की, जो बाद में (1965 में) एक पुस्तक के रूप में छपी । पुस्तक का नाम था, ‘डिजाइन फार टुमौरो’ । इस पुस्तक में वर्गीज ने विकास की समीक्षा बहुत गहरे उतरकर की थी । उन्होंने स्थितियों में आए सुधार का हवाला देते हुए तथ्यपरक आंकड़े सामने रखे जो पिछले पन्द्रह सालों के सापेक्ष विकास को व्यक्त करते थे । औसतन जीवन वर्ष बड़े । जो पहले केवल 32 थे वह बढ्कर 42 हो गए । यह स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार प्रसार से सम्भव हो पाया । स्कूलों में भर्ती का स्तर, जो 1951 में 240 लाख था, वह 1953 में उठकर 600 लाख बच्चों तक हो गया । इसी तरह यूनिवर्सिटी में दाखिले की गिनती भी दुगनी हुई । लेकिन अपनी बात में वर्गीज ने यह भी कहा कि देश की पचास प्रतिशत आबादी, अभी भी निर्वाह की, कठिन स्थिति से भी नीचे का जीवन जी रही है । वर्गीज ने यहीं अपनी एक नई व्याख्या सामने रखी । उन्होंने कहा कि गरीबी की रेखा की बात समाज सापेक्ष है, इसलिए ऊपर-नीचे होती रहती है । निर्वाह के न्यूनतम स्तर का पैमाना विकास को सही ढंग से माप कर रखता है ।
वर्गीज ने यह भी अपनी पत्रकारिता के जरिए स्थापित किया कि किसी भी योजना की सफलता जनसंख्या के नियन्त्रण पर निर्भर करती है, अर्थात् परिवार नियोजन इसका सबसे पहला लक्ष्य है ।
इस तरह पारदर्शिता, सन्तुलन तथा गहरी खोज को वर्गीज ने पत्रकारिता का साधन बनाया और इसके जरिए विकास तथा टेस्नालॉजी की जरूरत पर बल देते रहे ।
1966 में बी.जी. वर्गीज ने टाइम्स ऑफ इण्डिया छोड्कर इन्दिरा गाँधी की सरकार में प्रधानमन्त्री के सूचना सलाहकार का पद संभाला । इस पद पर वह तीन वर्ष रहे और इन्हें रोटरी क्लब बम्बई द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ पत्रकार’ का सम्मान दिया गया । इस दौरान वर्गीज ने दूसरे महत्त्वपूर्ण कामों के साथ-साथ इन्दिरा गाँधी के भाषण लेखन का काम संभाला और उनकी अधिकांश यात्राओं में उनके साथ रहे ।
1968 में वर्गीज सरकारी पद छोड्कर फिर पत्रकारिता में लौटे और हिन्दुस्तान टाइम्स में सम्पादक बन गए । आते ही वर्गीज ने एक पाक्षिक कॉलम शुरू किया जो एक ठेठ हिन्दुस्तानी गाँव छतारा पर केन्द्रित रहा । छतारा दिल्ली से 30 किलोमीटर दूर हरियाणा में स्थित था । वर्गीज के इस कॉलम ‘अवर विलेज छतारा’ का उद्देश्य संभ्रांत शहरी लोगों को गाँव के जीवन से परिचित कराना था । वर्गीज को पत्रकारिता के बल पर इस कॉलम ने विकास की राह पर इण्डियन एग्रीकल्चर रिसर्च की स्थापना की तथा ऑल इण्डिया इन्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस की नींव रखी गई । टेलीविजन पर ‘कृषि दर्शन’ कार्यक्रम दिखाया जाने लगा । अपने दायित्व और पत्रकारिता के बीच, 1952 में वर्गीज का विवाह जमीला बर्कतुल्ला से हुआ, जो कि उर्दू के बहुत बड़े स्कॉलर की पुत्री थीं तथा बाद में उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था । उनके दो पुत्र विजय 1956 में तथा राहुल 1960 में जन्मे थे ।
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वर्गीज के साथी उनकी तीन प्रमुख अच्छाइयों के लिए उनकी प्रशंसा करते हें । पहली- ईमानदारी, दूसरी- लगनभरी पत्रकारिता तथा तीसरी उनकी आशावादी प्रवृत्ति । इन तीनों गुणों से युक्त वर्गीज एक महान व्यक्ति सिद्ध होते हैं ।
30 दिसम्बर 2014 को वह स्वर्ग सिधार गए |
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