बानो जहाँगीर कोयाजी का जीवन परिचय Banoo Jehangir Coyaji Biography In Hindi

Banoo Jehangir Coyaji Biography In Hindi

बानो जहाँगीर कोयाजी का जीवन परिचय (Banoo Jehangir Coyaji Biography In Hindi Language)

Banoo Jehangir Coyaji Biography In Hindi

नाम : बानो जहाँगीर कोयाजी
पिता का नाम : पेस्टनजी कपाडिया
जन्म : 7 सितम्बर 1917
जन्मस्थान : मुम्बई
मृत्यु : 15 जुलाई 2004
उपलब्धियां : पद्‌मभूषण (1989), रमन मैग्सेसे (1993)

महाराष्ट्र के पारसी परिवार की बानो जहाँगीर कोयाजी चिकित्सा के क्षेत्र में बतौर डाक्टर आईं, लेकिन उनका रुझान ग्रामीण निर्धन स्त्रियों के स्वास्थ्य की ओर ज्यादा होता गया । यह स्त्रियाँ गरीब तो थीं ही, साथ ही उनमें अशिक्षा के कारण स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी नहीं थी | बानो जहाँगीर ने यह भी देखा कि सामाजिक तौर पर परिवार में उनका स्थान बहुत सम्मानजनक नहीं है | ऐसे में बतौर डाक्टर बानो का ध्यान केवल स्त्रियों के स्वास्थ्य पर नहीं गया बल्कि इन्होंने पुणे के अपने कार्य क्षेत्र के अस्पताल को माध्यम बना कर अपना व्यापक योगदान इस दिशा में दिया कि महाराष्ट्र की ग्रामीण स्त्रियों तथा उनके परिवारों के जीवन में सुधार आये | बानो जहाँगीर कोयाजी के इस सामाजिक सरोकार तथा उनकी दक्षता के लिए उन्हें 1993 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |

बानो जहाँगीर कोयाजी का जीवन परिचय (Banoo Jehangir Coyaji Biography In Hindi)

बानो का जन्म मुम्बई में 7 सितम्बर 1917 को हुआ था और वह अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थीं । बानो का पारसी परिवार बम्बई में रह रहा था । बानो के पिता पेस्टनजी कपाडिया एक सिविल इन्जीनियर तथा वास्तु विशेषज्ञ थे । सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के कारण इनका पालन पोषण बहुत अच्छी तरह हुआ था । पढ़ाई के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें उनके ननिहाल भेज दिया, जो पूना में था । इसका कारण उनकी यह आशँका थी कि एकमात्र सन्तान होने के कारण तथा अकेला बच्चा होने के कारण बम्बई में बानो का विकास ढंग से नहीं हो पाएगा । बानो का ननिहाल भरा-पूरा परिवार था, बानो की शिक्षा बहुत सुचारू रूप से चली । मुम्बई से इनके माता-पिता भी इनसे मिलने प्राय: आते रहते थे ।

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पूना में बानो की पढ़ाई कान्वेन्ट ऑफ जीसस मेरी में हुई । इस कान्वेन्ट में बानो नौ वर्ष तक पड़ी और अपने कैम्ब्रिज सर्टिफिकेट तक वह हमेशा कक्षा में प्रथम ही आती रही । शायद ही कुछ गिने-चुने मौके हों जब वह प्रथम न आई हों । कान्वेन्ट में पढ़ते हुए बानो ने संगीत में रुचि ली । नृत्य किया । नाना के घर में प्यानो था । संगीत के संस्कार बानो को पिता से मिले थे । बानो इस बात को अपनी स्मृतियों में संजोती रहीं, कि राष्ट्रवादी होने के बावजूद जब 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आए तब उनके पिता ने उनके सम्मान में एक संगीत रचकर उन्हें सुनाया था ।

बानो ने अपना कैम्ब्रिज पाँच विशेष योग्यताओं (डिस्टिंकशन) के साथ पास करने के बाद डाक्टर बनने का फैसला किया और 1933 में उन्होंने बम्बई के सेन्ट जेवियर्स कालेज में प्री-मेडिकल में प्रवेश लिया । उनकी मेडिकल डिग्री भी बम्बई में ग्रान्ट मेडिकल कालेज से पूरी हुई । वर्ष 1940 में उन्होंने अपनी एम.डी. डिग्री भी वहीं से हासिल की ।

एक बार वर्ष 1935 में, छुट्टियाँ बिताने के लिए वह महाबलेश्वर में थीं । यह पहाड़ी स्थान दक्षिण में स्थित है । यहाँ उनकी भेंट जहाँगीर कोयाजी से हुई । वह हाल में ही अमेरिका की पुर्द यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग पढ़कर लौटे थे । वह बानो की एक अंतरंग टीचर के छोटे भाई थे । बानो ने जहाँगीर कोयाजी को ‘ब्वायलर का मिस्त्री’ कहना शुरू किया । उनकी आपसी अंतरंगता बढ़ती गई और उनकी मित्रता पाँच वर्ष चली । उसके बाद अपनी मेडिकल की डिग्री पूरी करने के बाद 24 फरवरी 1941 को बानो का विवाह जहाँगीर कोयाजी से सम्पन्न हुआ ।

शादी के तुरन्त बाद बानो ने ग्रान्ट मेडिकल कालेज में ही, डा. शिरोडकर के निर्देशन में ‘स्त्रीरोग तथा प्रसूति’ में अपनी रेजिडेंसी (हाउस जॉब) पूरी की । उसी दौरान 7 अगस्त 1942 को उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया । उनका बेटा कुरुस, भी अपने माँ-बाप की एकमात्र सन्तान रहा ।

1943 में बानो तथा उनके पति जहाँगीर ने अपना घर पूना में बना लिया और उनका परिवार वहां आ गया | जहाँगीर का काम भी पुन इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी में था । पूना पहुँचकर बानो ने ‘स्त्री रोग तथा प्रसूति’ में अपनी प्रैक्टिस करने के बजाय डा. इडुल्जी कोयाजी के साथ बतौर सामान्य डाक्टर काम करना चुना । वह निरन्तर यही कहती रहीं कि मैं केवल प्रकृति तक सीमित डाक्टर नहीं हूँ मुझे सामान्य डाक्टर की तरह काम करना ज्यादा अच्छा लगता है ।

एक दिन अचानक उन्हें उनके पति जहाँगीर ने सुझाया कि वह कल से ही किंग एंडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल (KEM) में काम करना शुरू करें । पूछने पर पता चला कि उस अस्पताल के चेयरमैन सरदार मुदलियार ने खुद बानो को आमन्त्रित किया है । उन्हें एक कुशल डाक्टर की तत्काल जरूरत है । इस सुझाव को मान कर 14 मई 1944 को बानो ने इस KEM में डाक्टर का पद भार सम्भाल लिया ।

यह KEM अस्पताल 1912 में पूना के प्रख्यात व्यक्ति की स्मृति में शुरू किया गया था, जिनकी मृत्यु उसी वर्ष हुई थी । यह एक निजी सहायतार्थ चिकित्सालय था जो, छोटी पूँजी तथा अनुदान पर चल रहा था । जब बानो ने इस अस्पताल में कदम रखा था, तब इसमें मात्र चालीस बिस्तर थे । वहाँ पटेल नामक डॉक्टर था, जो कि छुट्टी पर चला गया था और ऐसे में बानो को वहाँ तत्काल चार्ज सम्भालना पड़ा था ।

बानो ने पाया कि भले ही वह अस्पताल KEM मूलत: स्त्रियों की प्रसूति के लिए था, लेकिन वहाँ सभी तरह की बीमार स्त्रियाँ आती थीं । ज्यादातर स्त्रियाँ गरीब हिन्दू घरों से आती थीं और तभी अस्पताल पहुँचती थीं, जब स्थितियाँ बरदाश्त के बाहर हो जाती थीं । बैलगाड़ी पर लदी कष्ट से बेहाल स्त्री मरीज किसी भी तकलीफ को लेकर वहाँ आ खड़ी होती थीं । वहाँ बानो के साथ एक महिला डॉक्टर तथा तीन नर्सें और थीं, जो सारा डॉक्टरी काम सम्भालती थीं । काम सम्भालने के लिए कभी-कभी उन्हें अठारह घंटे की ड्‌यूटी पड़ जाती थी, लेकिन उसे सम्भालना होता था ।

जब बानो और जहाँगीर का परिवार पूना आया, बानो की नानी-नाना की मृत्यु हो चुकी थी तथा उनका बड़ा सा घर जिसमें बानो का बचपन बीता था, वह बिक चुका था । इस स्थिति में बानो का परिवार अस्पताल की ऊपरी मंजिल पर बने एक अपार्टमैंट में चला गया । यह स्थिति बानो के लिए सुविधाजनक थी । वह बेटे का भी ध्यान कर लेती थीं तथा लम्बे समय तक अस्पताल में भी बनी रह सकती थीं । जहाँगीर की कम्पनी भी पास में ही सड़क के पार थी, इस दृष्टि से भी यह व्यवस्था सबके लिए बहुत अनुकूल थी हालाँकि इसने बानो को अस्पताल में ज्यादा समय देने के कारण थकाना शुरू कर दिया था ।

बानो को बचपन से ही राष्ट्रीय भावना के संस्कार मिले थे । उनका लगाव गाँधी जी के प्रति भी था । एक प्रसंग वह बहुत आत्मीयता से याद करती थीं । एक बार छुट्टियों में वह बलसार के समुद्र तट से लगे एक परिवार के घर में थीं तभी बानो ने तथा उनकी ममेरी बहनों ने गाँधी जी को सागर तट पर टहलते हुए देखा । उस समय बानो बच्ची ही थीं । उस दौर में गाँधी जी हरिजनों के लिए चँदा इकट्ठा कर रहे थे । गाँधी जी को देख कर बानो तथा उसकी बहनें भाग कर उनके पास पहुँच गईं । गाँधी जी ने पूछा :

”तुम लोग कहीं से आई हो ?”

इन्होंने इशारा करके अपना घर दिखाया । इस पर गाँधी जी ने प्रश्न किया ।  ”तब तो तुम लोग बड़े अमीर हो…”

”हाँ,” बानो ने स्वीकार किया ।

‘तो जाओ और तुम सब हरिजन फण्ड के लिए सौ-सौ रुपये लेकर आओ…” यह सुनकर बानो अपनी बहनों के साथ भागकर गईं और अपने मामा-मामी के पीछे पड़ गईं कि, हरिजन फण्ड के लिए चन्दा दो-अगले दिन ही बानो ने उनसे सौ रुपये लेकर चन्दा दिया और बहुत खुश हुई ।

जब देश आजाद हुआ तो बानो तथा जहाँगीर ने यूनियन जैक का झण्डा उतरते तथा तिरंगा फहराते देखा । बानो याद करती थीं, कि वह आसानी से भावुक नहीं होती लेकिन तिरंगा फहराता देखकर वह और उनके पति दोनों खुशी से इतने विहल हुए कि उनके आँसू बह निकले ।

वर्ष 1960 के दशक तक बानो ने KEM में निष्ठापूर्वक काम किया लेकिन तभी उन्हें इस बात का एहसास होने लगा कि इस तरह से केवल रोज का काम निपटाने से बात नहीं बनेगी । इन्होंने KEM का विस्तार गाँवों की ओर करने की योजना प्रस्तावित की । इस दिशा में उन्हें प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जे.पी. नायक से प्रेरणा भी मिली और दिशानिर्देश भी । बानो की नजर वाडू ब्लाक की ओर गई, जहाँ तीस हजार गाँव वाले बसे हुए थे । यह हिस्सा सूखे की चपेट में भी रहता था । बानो ने स्वास्थ्य सचिव से आग्रह किया कि ब्लाक की प्राइमरी हेल्थ इकाई उनके हवाले कर दी जाए और वह उसकी व्यवस्था सम्भाले । 1972 में KEM में छोटा क्लीनिक वाडू में स्थापित कर दिया, जहाँ प्रसूति तथा परिवार नियोजन कार्यक्रमों को ऊपर रखते हुए व्यवस्था की गई ।

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बानो ने परिवार नियोजन कार्यक्रमों की जरूरत को गहराई से समझा । इसे गाँव की अनपढ़ स्त्रियों का सबसे बड़ा कष्ट का कारण माना कि उन्हें कई-कई बार बच्चे जनने पड़ते हैं और उनका पालन-पोषण उनकी गरीबी को और कठिन बना देता है ।

बानो परिवार नियोजन की पक्षधर भी थीं और विशेषज्ञ भी बनीं लेकिन उन्होंने आपात्‌काल में इन्दिरा गाँधी के इसे चलाए जाने के ढंग पर असहमति जताई । इस को लेकर इन्दिरा गाँधी ने उन्हें बात करने के लिए आमन्त्रित किया । और बानो ने इस बारे में अपना दृष्टिकोण उनके सामने रखा ।

वर्ष 1989 में बानो को पद्‌मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया । 15 जुलाई 2004 को बानो जहाँगीर कोयाजी स्वर्ग सिधार गईं ।

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