भारतेन्दु हरिश्चन्द्र Biography of Bhartendu Harishchandra in Hindi

Biography of Bhartendu Harishchandra in Hindi Language In Short

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र Biography of Bhartendu Harishchandra in Hindi Language In Short

Biography of Bhartendu Harishchandra in Hindi Language In Short

नाम- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जन्म- 9 सितम्बर 1850
जन्म स्थान- वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता का नाम- गोपाल चंद्र
कार्यक्षेत्र- साहित्यकार
भाषा- हिंदी
काल- आधुनिक काल
मृत्यु- 6 जनवरी 1883
मृत्यु स्थान- वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

जीवन परिचय

भारतेन्दु बापू हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य के खड़ी बोली गद्य के ऐसे महान विभूति कहे जा सकते हैं | जिन्होंने रीतिकाल के पंख में फंसी हिंदी साहित्य सरिता को आधुनिकता की नवीन भूमि पर प्रवाहित कर नव युग का सूत्रपात किया |

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह माने जाते हैं | हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार के रूप में माने जाते थे | इनका उपनाम हरिश्चन्द्र था, बाद में इन्हें भारतेन्दु की उपाधि से नवाजा गया | जिससे इनका नाम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हो गया |

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में विख्यात हैं | भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, हिंदी में नाटक का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है |

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितंबर सन 1850 इ० को उत्तर प्रदेश वाराणसी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था | इनके पिता गोपाल चन्द्र एक उत्कृष्ट कवि थे | जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र 5 वर्ष के थे तो उनकी माता और जब 10 वर्ष के हुए तो इनके पिता का देहांत हो गया जिससे ये माता-पिता के सुख से वंचित हो गए | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, उर्दू और पंजाबी भाषाएं स्वाध्याय से सीखी | बाद में इन्होंने क्वींस कॉलेज में प्रवेश लिया, परंतु वहां पर इनका मन नहीं लगा | भारतेन्दु जी ने अंग्रेजी शिक्षा की दीक्षा राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द के घर जाकर ग्रहण करते थे | इन्हें काव्य प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी | ये जब 5 वर्ष के थे तो इन्होंने एक दोहे की रचना की और अपने पिता को सुनाया जिससे उनके पिता ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवि होने का आशीर्वाद दिया|

“लै ब्यौढ़ा ढ़ाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान |
वाणासुर की सैन को हनन लगे श्रीराम” ||

इन्होंने केवल 35 वर्ष की अवस्था में अनेक रचनाएं की जो किसी अन्य के लिए लगभग नामुमकिन सा है | अत्यधिक धन खर्च करने से भारतेन्दु जी के ऊपर ऋण हो गया और चिंताओं से ग्रसित हो गये | सन 1883 ई० में 35 वर्ष की अल्पायु में इनकी मृत्यु हो गयी |

साहित्यिक परिचय

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इस विशेष योगदान के कारण ही 1857 ई० से 1900 ई० तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है |

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 18 वर्ष की अवस्था में 1868 में ‘कवि वचन सुधा’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया और संन 1873 में ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ का सम्पादन किया और उसके आठ अंक निकलने के पश्चात इसका नाम ‘हरिशचंद्र चंद्रिका’ हो गया |

कृतियां

मौलिक नाटक- वैदेही हिंसा हिंसा न भवति (1873), सत्य हरिश्चन्द्र (1817), श्रीचंद्रावली (1876), विषस्य निषमौषधम (1876), भारत दुर्दशा (1880), नीलदेवी (1881), अंधेरी नगरी (1881) |

काव्य कृतियां- भक्त सर्वस्व, प्रेम मालिका (1871), प्रेम माधुरी (1875), प्रेम तरंग (1877), प्रेम प्रलाप (1877), होली (1879), मधुमुकुल (1881), प्रेम फुलवारी (1883), सुमनांजलि, फूलों का गुच्छा (1882), कृष्ण चरित्र (1883) |

निबंध संग्रह – भारतेन्दु ग्रंथावली में संकलित है | सुलोचना, मदालसा, लीलावती, परिहास वंचक, दिल्ली दरबार दर्पण |

यात्रा वृत्तान्त – सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा |

जीवनी – सूरदास, जयदेव, महात्मा मोहम्मद |

इतिहास- अग्रवालों की उत्पत्ति, महाराष्ट्र देश का इतिहास तथा कश्मीर कुसुम |

भाषा शैली- भावात्मक शैली, व्यंगात्मक शैली, उद्द्धोन शैली, अलंकार शैली |

रस- इन्होंने अपने साहित्य में श्रृंगार वह हास्य रस का उत्कृष्ट प्रयोग किया है |

छन्द- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने अपने काव्य में चौपाई, रोला, सोरठा, सवैया आदि छन्दों का प्रयोग किया है | अलंकार- इन्होंने अपने काव्य में अनुप्रास अलंकार, उपमा अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, रूपक अलंकार और सन्देह अलंकारों का प्रयोग किए हैं |

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