
मास्टर चंदगीराम का जीवन परिचय (Biography Of Master Chandgi Ram In Hindi Language)
नाम : मास्टर चंदगीराम
जन्म : 9 नवंबर, 1937
जन्मस्थान : सिसाई (हिसार) हरियाणा
मास्टर चंदगीराम ’60’ व ‘70’ के दशक में कुश्ती के अत्यन्त लोकप्रिय खिलाड़ी रहे | उन्हें अनेकों उपाधियों से विभूषित किया गया | ‘हिन्द केसरी’, ‘भारत केसरी’ ‘भारत भीम’, ‘रुस्तमे हिन्द’, ‘महाभारत केसरी’, जैसी उपाधियां उन्हें प्रदान की गईं । इसी कारण वह 1969 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ के लिए सभी निर्णायकों की पहली पसन्द थे | फिर 1971 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया ।
मास्टर चंदगीराम का जीवन परिचय (Biography Of Master Chandgi Ram In Hindi)
मास्टर चंदगीराम भारत के 60 व 70 के दशक के सर्वश्रेष्ठ कुश्ती खिलाड़ियों मे से एक रहे । इसी कारण देश-भर में उनके अनेकों प्रशंसक रहे । उनका शारीरिक सौष्ठव अति उत्तम रहा । वह ऊँचे कद के कसाव वाले शरीर के खिलाड़ी थे । वह अपनी बुद्धिमत्ता और हंसी-मजाक के लिए भी जाने जाते रहे । वह अपने प्रतिद्वन्दी के ऊपर अपनी ट्रिकपूर्ण पकड़ के लिए भी लोकप्रिय रहे ।
मास्टर चंदगीराम ने मैट्रिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आर्ट और क्राफ्ट मे डिप्लोमा किया । थोड़े समय के लिए वह भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में सिपाही भी रहे । इसके पश्चात् उन्होंने एक स्कूल में कला अध्यापक की नौकरी ले ली । स्कूल अध्यापक होने के कारण ही उनके नाम के साथ ‘मास्टर’ शब्द जुड़ गया और वह मास्टर चंदगीराम नाम से ही पहचाने जाने लगे । उनके व्यक्तित्व में उनकी पगड़ी ने और भी अधिक निखार ला दिया था ।
चंदगीराम का कुश्ती खिलाड़ी के रूप में कैरियर थोड़ा देर से शुरू हुआ । वह जब कुश्ती के क्षेत्र में आए तब वह 21 वर्ष के थे । जब उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, तब वह अचानक प्रसिद्धि पा गए । उन्होंने 1961 में अजमेर में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, फिर 1962 में जालंधर में वह राष्ट्रीय चैंपियन बने । इस बीच 1962 में उन्हें दिल्ली में ‘हिन्द केसरी’ का खिताब भी दिया गया । इसके पश्चात् चंदगीराम ने 1968 में रोहतक में तथा 1972 में इंदौर में राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीतीं । 1968 तथा 1969 में उन्होंने दिल्ली में आयोजित ‘भारत केसरी’ खिताब जीता । 1969 तथा 1970 में चंदगीराम ने लखनऊ का ‘भारत भीम’ खिताब जीत लिया ।
1969 में उन्हें ‘रुस्तमे हिन्द’ की उपाधि से सम्मानित किया गया । उनका सर्वाधिक प्रशंसनीय प्रदर्शन 1970 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिला । 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में चंदगीराम ने 100 किलो वर्ग में भाग लिया और ईरान के विश्व चैंपियन अंबानी अबुल फजल को हरा कर स्वर्ण पदक जीत लिया । इसके दो वर्ष पश्चात् जर्मनी के म्यूनिख में हुए 1972 के ओलंपिक खेलों में चंदगीराम ने भारत का प्रतिनिधित्व किया ।
चंदगीराम ने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में अपना नाम खूब कमाया । इसी कारण उनके प्रदर्शनों में खूब भीड़ इकट्ठी होती थी । उनके तेवर जो उन्होंने ‘हिन्द केसरी’ खिताब के लिए राजस्थान के मेहरदीन के विरुद्ध प्रदर्शित किए, अत्यंत प्रशंसनीय रहे और लोगों ने उनके प्रदर्शन की खूब सराहना की ।
चंदगीराम ने हरियाणा राज्य के अतिरिक्त खेल निदेशक का कार्य भी किया । उन्होंने दो फिल्मों में अभिनय भी किया जिनमें उन्होंने वीर घटोत्कच और टार्जन की भूमिकाएं निभाईं । उन्होंने कुश्ती से अपना नाता बाद तक भी नहीं तोड़ा क्योंकि इसी कुश्ती के खेल से उन्हें नाम व प्रसिद्धि मिली थी ।
चंदगीराम ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अखाड़ा खोल लिया जहां कुश्ती के नए खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी जाती है । चंदगीराम ने कुश्ती पर एक पुस्तक भी लिखी है-भारतीय कुश्ती के दांव-पेंच ।
उपलब्धियां :
चंदगीराम देश के अति लोकप्रिय कुश्ती खिलाड़ी रहे |
उन्होंने ‘हिन्द केसरी’, ‘भारत केसरी’ ‘भारत भीम’, ‘रुस्तमे हिन्द’, ‘महाभारत केसरी’ जैसे ख़िताब जीत कर प्रसिद्धि पाई |
1969 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया |
उन्होंने 1961 (अजमेर), 1962 (जालंधर), 1968 (रोहतक), 1972 (इंदौर) में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती |
चंदगीराम ने 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में विश्व चैंपियन ईरान के अंबानी फजल को हरा कर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता |
उन्हें 1971 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया |
वह हरियाणा राज्य के अतिरिक्त खेल निदेशक के पद पर कार्यरत रहे |
उन्होंने ‘भारतीय कुश्ती के दांव-पेंच’ नामक पुस्तक लिखी है |
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