
बोधगया दर्शनीय स्थल का इतिहास और यात्रा Bodh Gaya Temple History in Hindi
यह वही स्थान है जहां 531 ई० पू० कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ की बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ और वे इसके बाद सारे विश्व ने भगवान बुद्ध के नाम से जाने गए | यहा से ज्ञान प्राप्त करके उन्होंने अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी | अभी भी यहाँ जो वृक्ष है, कहा जाता है कि मूल बोधि व्रक्ष का ही अंग है | इस वृक्ष के चारों और एक चबूतरा है जिसे वज्रासन कहते हैं।
महाबोधि मन्दिर (Bodh Gaya Temple) में भगवान बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में एक सुन्दर विशालकाय मूर्ति स्थापित है| कहते हैं भगवान बुद्ध यहां सात सप्ताह तक रहे। देश-विदेश से आए हजारों | बौद्ध अनुयायियों की हमेशा यहाँ भीड़ सी लगी रहती है। वे बोधिवृक्ष पर पवित्र धागों को बांधते हैं और मिट्टी के दीपक और अगरबती जलाते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार दीपक जलाने से व्यक्ति के पाप दूर होते हैं और इतना ही नहीं उसकी मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है। बोधि मन्दिर के आसपास तिब्बती, चीनी, जापानी, बर्मी व थाई बौद्ध मठ है | पूजा के अतिरिक्त श्रद्धालु के लिए ठहरने की भी पर्याप्त व्यवस्था है | बोध गया विश्व में बौध्द अनुयायों का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थान है |
[काशी (बनारस) के घाट मन्दिर का इतिहास और यात्रा]
बोधगया बिहार के गया शहर से केवल 12 किलोमीटर की दूरी पर है (Bodh Gaya is about 12Km from Gaya City. However, they are now one) | महाबोधि बिहार के अन्दर 100 बौद्ध स्तूप है | इस बौद्ध विहार का वैभवपूर्ण इतिहास रहा है। बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद सम्राट अशोक ने इस बौद्ध विहार की यात्रा की थी | उसने यहाँ एक बौद्ध विहार की स्थापना भी की थी | बाद में यहां एक मन्दिर बनाया गया। समय-समय पर इस मन्दिर का जीणोद्धार होता रहा। सन् 1860 में जब महान पुरातत्वशास्त्री कनिंगघम ने इस स्थान को खोजा, तब इस मन्दिर का निचला हिस्सा पूरी तरह ध्वस्त हो चुका था। तब इस मन्दिर की मरम्मत की गई और काफी परिश्रम के बाद इसे पुरानी अवस्था में लाया गया।
प्रत्येक वर्ष सदियों से यहाँ 10 दिनों तक शान्ति प्रार्थना पर्व मनाया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु मन की शान्ति के लिए यहां आते हैं। कालचक्र पर्व के दिनों में तो यहां देशी-विदेशी पर्यटकों की बहुत भीड़ हो जाती है।
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