Celery (Ajwain) Ki Kheti Kaise Kare – अजवाइन की खेती कैसे करें

Celery Ki Kheti Kaise Kare

Celery (Ajwain) Ki Kheti Kaise Kare अजवाइन की उन्नत खेती कैसे करें

यह सब्जी भी अन्य सब्जियों की तरह होटलों, रेस्टोरेन्टों तथा एम्बेसियों में प्रयोग की जाती है । इसके डंठल अधिक परिपक्व न होकर मुलायम ही कच्चे या पकाकर सूप में सुगंध के लिये अधिक प्रयोग किये जाते है। इसका प्रयोग दवाओं में भी किया जाता है । इसकी पत्तियों से ही पहले ही जड़ के पास से 12-15 सेमी. लम्बे डंठलों को ही प्रयोग किया जाता है । इन डंठलों में रेशा नहीं बनना चाहिए । यह भी स्वास्थ्य के लिये पोषक तत्व युक्त सब्जी है जो बाजार में 125-150 रुपये प्रति किलो मिलती है । जिसको बड़े होटलों में अधिक प्रयोग किया जाता है । इसका प्रयोग फिलेवर (Flaver) के लिये अधिक किया जाता है ।

Celery Ki Kheti Kaise Kare

अजवाइन की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Celery Kheti)

इस सब्जी के लिये खुला हुआ खेत जहां धूप अधिक हो तथा भूमि की किस्म हल्की दोमट से हल्की चिकनी मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है तथा मिट्‌टी का पी.एच. मान 6.5-9.0 के बीच का ही उपयुक्त रहता है ।

यह ठण्डी जलवायु का पौधा है जो शरद ऋतु में उगाया जाता है । लेकिन वर्षाकाल में भी कुछ वृद्धि करता है । आर्द्रता वाली जलवायु को भी पसन्द करता है । तापमान 30 डी०सेग्रेड पर भी अच्छी वृद्धि करता है ।

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अजवाइन की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी (Ajwain Ki Unnat Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)

खेत को भली-भांति घास, ढेले, रहित करके साफ करना चाहिए । जमीन की 3-4 जुताई करके फसल लगाने लायक तैयार किया जाता है । ध्यान रहे कि खेत में सूखी घास, खरपतवार तथा अन्य पिछली फसल के अभिशेष न रह पायें । इस प्रकार से खेत की मिट्‌टी बारीक करके पौधे लगाने हेतु तैयार करना चाहिए ।

अजवाइन की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Celery)

सैलरी की किस्में निम्न हैं जो अधिकतर उगायी जाती हैं-

1. गोल्डेन सेल्फ ब्लानचिंग (Golden Self Blanching)- इसके डंठल मोटे व लम्बे होते हैं । पत्तियां चौड़ी होती हैं । पत्तियों के डंठल सुगन्ध वाले होते हैं ।

2. यूटाह (Yutah)- यह भी उपरोक्त किस्म से मिलती-जुलती है । जो कुछ ठन्डे स्थानों में लम्बे समय तक उगाई जाती है ।

3. स्टैंडर्ड-बियरर (Standard Bearer)- इस किस्म के पौधों के डंठल लम्बे, पत्तियां कुछ चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं । पौधे का तना या डंठल वृद्धि करने से अधिक मोटा नहीं होता ।

4. जाइंट-पास्कल (Joint-Paskal)- यह किस्म भी गहरे हरे रंग के पौधों वाली होती है । पत्तियां छोटी होती हैं ।

बीज की मात्रा (Seeds Rate)

इसका बीज हल्का, छोटा होता है! लेकिन औसतन बीज 250-300 ग्राम प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है ।

पौध तैयार करना (Preparation of Seedling)

सर्वप्रथम बीज को सम्भवत: 24 घंटे भिगोकर बोयें । जिससे सभी बीज अंकुरित हो जाये । पौधशाला में जब यह बीज बोयें तो 1 मी. चौड़ी तथा 3 मी. लम्बी कुछ उठी हुई क्यारी तैयार करके बीज में थोड़ी मिट्‌टी या खाद (गोबर) को मिलाकर पंक्तियों में लगातार बीज बोयें इन पंक्तियों की आपस की दूरी 5-6 सेमी. तथा बीज 1-2 मि.मी. पर डालकर बोयें तथा बोने के पश्चात् बारीक पत्ती की खाद से पंक्तियों को ढके तथा पानी द्वारा हल्की सिंचाई करें । जब पौध 30-40 दिन बाद 8-10 सेमी. ऊंची हो जाये तो रोपाई करें । अर्थात् तैयार खेत में आवश्यकतानुसार पौधों को लगायें ।

बीज बोने का समय (Seeds Sowing Time)

बीज की बुवाई पौधशाला में अगेती करें जिससे तापमान उचित मिलने पर सभी बीज अंकुरित हो सकें । उचित बुवाई का समय मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर के अन्त का मौसम रहता है । पौध तैयार होने पर रोपाई का समय अक्टूबर-नवम्बर उत्तम रहता है तथा पहाड़ी क्षेत्रों में बीज मध्य अप्रैल-मई तथा रोपाई का समय मई-जून उत्तम रहता है ।

खाद एवं उर्वरकों की मात्रा (Quantity of Manure Fertilizers)

अन्य फसलों की तरह सैलेरी की फसल हेतु खाद व उर्वरकों की मात्रा की आवश्यकता होती है ।

सड़ी गोबर की खाद- 10-12 टन प्रति हैक्टर,

नत्रजन की मात्रा- 80 किलो प्रति हैक्टर,

फास्फोरस की मात्रा- 60-70 किलो प्रति हैक्टर,

पोटाश की मांत्रा- 50-60 किलो प्रति हैक्टर आदि मात्रा की आवश्यकता होती है । नत्रजन की 1/2 (आधी) मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में भली-भांति मिला देना चाहिए | जिससे पौध रोपने तक खाद व उर्वरक मिल सकें तथा शेष नत्रजन की मात्रा को दो बार में खड़ी फसल में छिड़क कर, टोप-ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए । जिससे पौधे स्वस्थ व अधिक वृद्धि करें ।

पौधे रोपने की दूरी (Distance of Transplantation)

रोपाई के लिये पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी. रखें । दूरी किस्म के आधार पर रखनी चाहिए जिससे पौधों की निकाई-गुड़ाई आसानी से की जा सके ।

सिंचाई (Irrigation)

सर्वप्रथम सिंचाई रोपाई के तुरन्त बाद करें । ध्यान रहे कि पहली सिंचाई हल्की करें जिससे पौधे उखड़ने या गलने न पायें तथा अन्य सिंचाई शरद ऋतु की फसल होने से 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए ।

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निकाई-गुड़ाई (Hoeing)

इस फसल की भी सिंचाई के बाद घास व अन्य जंगली पौधे होने पर निकाई-गुड़ाई द्वारा फसल से निकाल देना चाहिए । इस प्रकार से खरपतवार-नियन्त्रण भी हो जाते हैं तथा दबी हुई मिट्‌टी वायु संचार के लिये उत्तम हो जाती है तथा पौधे अधिक वृद्धि करते हैं ।

कटाई (Harvesting)

सैलेरी की कटाई पौधों को पूर्ण विकसित हो जाने पर तथा 30-40 सेमी. ऊंचे होने पर जब सुगन्ध आने लगे तो कटाई करनी चाहिए । मुख्यत: फरवरी-मार्च व अप्रैल में तैयार हो जाती है ।

उपज (Yield)

सैलेरी के डंठल प्रति पौधा 500-600 ग्रा. तथा 400-500 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होता है ।

कीट एवं बीमारी (Insect & Diseases)

कीट कम लगते हैं लेकिन कभी-कभी एफिड केटर-पिलर लगते हैं जिसके नियन्त्रण हेतु रोगोर, थायोडान का 1% घोल का स्प्रे करें ।

बीमारी अधिकतर पाउड्री मिल्डयू का प्रभाव होता है जिसका प्रभाव अप्रैल में वर्षा होने का कारण होता है । नियन्त्रण हेतु फफूंदीनाशक दवा बेवस्टीन या डाइथेन एम-45 1 ग्राम / लि. का स्प्रे करना चाहिए ।

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