Chichinda (Snake Gourd) Ki Kheti Kaise Kare – चिचिन्डा की खेती

Chichinda (Snake Gourd) Ki Kheti Kaise Kare

Chichinda (Snake Gourd) Ki Kheti Kaise Kare – चिचिन्डा की उन्नत खेती कैसे करें

चिचिन्डा की खेती हमारे देश में काफी दिनों से की जाती है । इस फसल को अधिकतर उत्तरी व दक्षिण भारत में उगाया जाता है । वर्षा ऋतु में यह छोटे-छोटे बगीचों में तथा गृह वाटिकाओं में पैदा किया जाता है । भारत के उत्तरी राज्यों में व्यवसायिक खेती वर्षा के मौसम में की जाती है । फसल के फल अधिकतर हरा रंग लिये होते हैं । इस फसल के फलों के प्रयोग से शरीर को पोषक-तत्वों की प्राप्ति होती है । फलों को हरे रंग के ही भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है । छोटे-छोटे फल अधिक स्वादिष्ट होते हैं |

Chichinda (Snake Gourd) Ki Kheti Kaise Kare

फलों के सेवन से अनेक प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं, जैसे- कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, खनिज, कार्बोहाइड्रेटस तथा विटामिन ‘ए’ प्राप्त होते हैं ।

चिचिन्डा की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु  (Soil and Climate For Snake Gourd Kheti)

यह फसल अधिकतर खरीफ मौसम में उगायी जाती है । चिचिन्डा के लिये गर्मतर व आर्द्रता वाली जलवायु सबसे अच्छी होती है । ठण्डी जलवायु उचित नहीं होती । कम तापमान होने से फल अधिक नहीं लगते इसलिए अधिक उत्पादन के लिये 30 डी०से०ग्रेड से 35 डी०से०ग्रेड तापमान अच्छा रहता है ।

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चिचिन्डा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Chichinda Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)

यह फसल भी अन्य फसलों की तरह सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है । अम्लीय तथा कंकरीली भूमि इस फसल के लिये ठीक नहीं होती ।

बलुई दोमट मिट्‌टी सर्वोत्तम मानी जाती है । इस भूमि में सफल उत्पादन किया जा सकता है । वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण जल-निकास के उचित प्रबन्ध वाली भूमि ठीक होती है । भूमि का पी. एच. मान 6.0 से 6.5 के बीच का सबसे अच्छा होता है ।

चिचिन्डा की फसल की तैयारी के लिये भूमि को ठीक प्रकार से जोत कर तैयार करना चाहिए । 3-4 जुताई बलुई दोमट भूमि के लिये पर्याप्त होती हैं । खेत की ठीक प्रकार से मिट्‌टी तैयार करनी चाहिए । मिट्‌टी को भली-भांति भुरभुरी कर लेनी चाहिए तथा मिट्‌टी भुरभुरी व ढेले रहित होने पर खेत में मेड़-बंदी करके क्यारियां बना लेनी चाहिए ।

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग (Use of Manure and Fertilizers)

चिचिन्डा की फसल के लिए लगभग सभी खादों की आवश्यकता पड़ती है । गोबर की बनी हुई खाद 18-20 ट्रौली, यूरिया 500 कि.ग्रा. तथा सुपर फास्फेट 60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से डालना चाहिए । यूरिया की आधी मात्रा को पहली सिंचाई से 1-2 दिन पहले खेत में छिड़क देना चाहिए । यदि हो सके तो खेत में पत्तियों की खाद व राख की मात्रा को भी फसल में डालने की सिफारिश की जाती है । बगीचे में यूरिया 200 ग्राम व सुपर फास्फेट 250 ग्राम देना चाहिए ।

चिचिन्डा की उन्नतशील जातियां (Improved Varieties of Chichinda)

चिचिन्डा की कोई उन्नतिशील जाति नहीं है । लेकिन कुछ कोयम्बटूर तथा पूना की अच्छी किस्म है । ये दो प्रकार की हैं-

(1) हस्की हरी सफेद धारियों वाले फल

(2) गहरी हरी पीली-सी धारियों वाले फल

इन जातियों के फल अलग-अलग लम्बाई के होते हैं जो 50 से 100 सेमी. के लम्बे फल होते हैं । फूलों का रंग अधिकतर सफेद होता है ।

बुवाई का समय, ढंग एवं दूरी (Methods Sowing, Time and Distance)

इस फसल का बुवाई का समय जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है । यह खरीफ की फसल है जो वर्षा ऋतु के मौसम में फसल बोई जाती है ।

बुवाई के 50 दिनों के बाद फल मिलने तैयार हो जाते हैं । जायद की फसल में भी उगाया जा सकता है । जहां पर बाढ़ आदि का भय रहता है । बुवाई खेत में कतारों में अधिकतर बोई जाती है । हाथों द्वारा मजदूरों की सहायता से थामरों में बोते हैं । एक में 3-4 बीज लगाने चाहिए ।

कतार से कतार की दूरी 120 सेमी. तथा थामरे से थामरे की दूरी 90 सेमी. रखनी चाहिए । थामरों में बीज की गहराई 3-4 सेमी. रखनी चाहिए ।

बीज की मात्रा (Seeds Rate)

बीज की मात्रा 6-7 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से डालना चाहिए । बीजों का अंकुरण अच्छा होना चाहिए । जो कि बुवाई के 6-7 दिनों के बाद उग आना चाहिए । बगीचों में भी बाउण्डरी के साथ उगाया जा सकता है । एक थामरे में 2-3 बीज बोना चाहिए । 8-10 वर्ग मी. के लिए 15-20 ग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है ।

सिंचाई एवं खरपतवार-नियन्त्रण (Irrigation and Weeds Control)

यह फसल वर्षा-ऋतु में पैदा की जाती है जिसकी जून-जुलाई में अधिकतर बुवाई की जाती है । शुरू में नमी अनुसार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । 8-10 दिन के अन्तर से सिंचाई करनी चाहिए । बाद में वर्षा न होने पर पानी देते रहना चाहिए । सिंचाई के 3-4 दिन के पश्चात् एक निराई करनी चाहिए जिसमें फसल के अतिरिक्त अन्य सभी घास आदि को उखाड़ देना चाहिए ।

सहारा देना (Supporting) – फसल को बड़ा होने पर किसी बाउण्डरी का सहारा देकर, तारों की बाउण्डरी अथवा छड़ी लगाकर पौधों की बेलों को ऊपर चढ़ा देना चाहिए । जिससे फूल वृद्धि व फल अधिक लग सकें ।

फलों को तोड़ना (Plucking) – जब फल 50-80 सेमी. लम्बे हो जायें तो इनको तेज चाकू से बेल से सावधानी से तोड़ लेना चाहिए । यह तुड़ाई एक हफ्ते में दो बार करनी चाहिए या फलों के ऊपर निर्भर करता है कि कितनी बार तोड़ना उचित होगा । फलों को अधिक परिपभ्य नहीं होने देना चाहिए । कच्चे व मुलायम फलों का बाजार-मूल्य अधिक मिलता है ।

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उपज (Yield)

इस फसल की पैदावार वर्षा ऋतु में अधिक होती है । ठीक देखभाल के बाद औसतन उपज 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाती है ।

कीट-पतंगे एवं रोग व नियन्त्रण (Insect, Diseases and Control)

चिचिन्डा की फसल पर कीट व रोग अन्य कुकरविटस की तरह ही अधिकतर लगते हैं तथा इन कीट व रोगों का निवारण भी ठीक उसी प्रकार से करना चाहिए जिस प्रकार से अन्य कुकरविटस फसलों का किया जाता है ।

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