चित्रकूट धाम मन्दिर दर्शन Chitrakoot Dham Mandir Karvi Hindi Me
त्रेता युग में भगवान राम की कथा के साथ चित्रकूट का महत्व जुड़ा है। यह तीर्थ मंदाकिनी के किनारे स्थित है। मदाकिनी विन्ध्यांचल पर्वत के बीच से होकर बहती है। मन्दाकिनी की पयस्विनी भी कहते है| चित्रकूट के पाँच-छ: मील के क्षेत्र में बहुत से धार्मिक महत्व के स्थान फैले है | यह एक बहुत बड़ा कस्बा है | मुख्य बस्ती सीतापुर है | उसी को चित्रकूट कहते हैं |
चित्रकूट जाने के लिए रेलवे स्टेशन या कर्वी पर उतरना पड़ता है | दोनों से चित्रकूट एक सामान दूरी पर है | कर्वी से यहाँ जाने में ज्यादा आसानी होती है | यहाँ से मोटर-बसे, घोड़े-तागें मिल जाते है|
चित्रकूट के गौरव का मुख्य कारण यह है कि वनवास में भगवान राम, सीता, तथा लक्ष्मण ने अधिकाश समय यहीं पर बिताया था| यहाँ वे लगभग बारह बर्ष रहे थे| यहाँ भील,कोल, किरात जनजतियाओ ने उनकी सेवा की। राम के वनवास के साथ-साथ चित्रकूट में राम-भरत मिलन का इतिहास भी है। चित्रकूट के साथ महाकवि तुलसीदास का भी एक प्रसंग जुड़ा है। तुलसीदास राम के दर्शनों के लिए बड़े उत्सुक थे। उन्हें एक दिन स्वप्न आया कि राम उन्हें चित्रकूट में दर्शन देंगे। अत: वह दर्शनों के लिए और भी व्यग्र हो उठे। एक दिन वह मंदाकिनी नदी के तट पर बैठे चन्दन घिस रहे थे, तभी भगवान राम वहां उनसे चंदन लगवाने आए। इसी प्रसंग को लेकर मंदाकिनी नदी के किनारे तुलसी मंदिर बना है।
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चित्रकूट में कोटतीर्थ, कामदगिरि पर्वत, देवांगना, हनुमंगड़ी, सीता रसोई, रावण प्रयाग घाट जैसे अनेक स्थल धार्मिक महत्व के हैं। कहते हैं कि कोटतीर्थ में देवताओं ने भगवान राम के दर्शन किए थे। देवांगना में देव कन्या ने तपस्या की थी। कामदगिरि पर्वत (Kamadgiri parvat) में राम ने कुटी का निर्माण किया था। इस पर्वत में अनेकों मंदिर हैं जिसमें रामजी का स्थान, तुलसी स्थान, भरत मिलाप स्थान, भरत व लक्ष्मण मंदिर (Laxman Mandir) प्रसिद्ध हैं। हनुमानगढ़ी में हनुमान जी का मंदिर (Hanuman Ji Ka Mandir) है। सीता रसोई (Sita Rasoi) के बारे में यह मान्यता है कि यहां सीता जी खाना पकाती थीं। सीता रसोई से हनुमान द्वार का रास्ता है। यहां हनुमान जी की मूर्ति है। इस स्थान पर लंगूर बहुत हैं। ये यात्रियों से खाने-पीने की चीजें हाथ पकड़कर ले लेते हैं। लेकिन वे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुचाते। यहां के लाल मुंह के बन्दर बहुत शरारती होते हैं। मन्दाकिनी के द्वारों के पार रावण घाट है। यहां त्रिवेणी की कल्पना की जाती है। किसी जमाने में यहां तीन जल धाराएं मिलती थीं।
मन्दाकिनी नदी (Mandakini River) में अमावस्या के दिन स्नान करने का अत्यधिक शुभ फल माना जाता है। कहते हैं कि राम, लक्ष्मण व सीता ने यहां स्नान किया था। रामनवमी को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। खूब चहल-पहल रहती है। घाटों पर भीड़ हो जाती है। पूरा चित्रकूट राम के प्रसंगों से भरा पड़ा है। रावण घाट के प्रांगण से बाहर मध्य प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। थोड़ी दूर आगे मध्य प्रदेश वन विभाग का विश्रामालय है और उससे कुछ आगे प्रसिद्ध राम मंदिर है। इसके ठीक सामने प्रमोद वन का क्षेत्र शुरू होता है। प्रमोद वन में स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर विख्यात है। प्रमोद वन में श्रीराम व सीता जी प्रेमालाप करते थे। यहां एक जानकी कुंड भी है। कहते हैं यहां सीता जी स्नान करती थीं।
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Chitrakoot dham tourist place : रामचंद्रजी के वनवास के बाद महाभारत काल में पाण्डव चित्रकूट में रहे थे। इसके बाद महाराज हर्ष के समय का इतिहास चित्रकूट के बारे में बताता है। चित्रकूट महाराज हर्ष के शासन का एक अंग था और उन्होंने यहां शासन किया था। हर्ष के बाद बुन्देलों ने यहां शासन किया। उसके बाद मुगल काल में अब्दुल हमीद नाम के सरदार ने यहां हुकूमत की। उस समय धार्मिक यात्रियों को काफी परेशानी हुई। बाद में छत्रसाल और अब्दुल हमीद में युद्ध हुआ और अब्दुल हमीद पराजित हुआ।
चित्रकूट का संबंध पन्ना राज्य से भी कई सौ वर्षों तक रहा। तब राज्य की और से घाटों की देखभाल होती थी। कामदगिरि पर्वत के चारों ओर पत्थरों से बनाया गया रास्ता जिसे कामदगिरि परिक्रमा कहते हैं, महाराज छत्रसाल की धर्मपत्नी महारानी चंद्रकुंवरि ने अपने पति के मरने के बाद बनवाया था। यह लगभग 1752 ई. की बात है।
जिस समय चित्रकूट पर पन्ना राज्य का शासन था इसे जयसिंहपुर कहते थे। बाद में पन्ना के राजा अमान सिंह ने जयसिंहपुर को चित्रकूट के महन्त चरनदास को दान दे दिया। दान के मिल जाने के उपरान्त महन्त चरनदास ने इस क्षेत्र को सीता जी के नाम पर सीतापुर नाम दिया। उस समय से आज तक यह सीतापुर के नाम से ही जाना जाता है।
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चित्रकूट राम के प्रेम तथा भक्ति का स्मरण कराने वाला प्राचीन तीर्थ है। यहां भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण यादें ताजा हैं। उत्तर भारत में पूर्णिमा को गंगा स्नान के समान ही यहां मंदाकिनी में अमावस्या के दिन स्नान करना शुभ माना जाता है।
रामनवमी के दिन यहां विशाल मेला लगता है (chitrakoot dham darshan)। दीपावली के बाद यहां का मौसम काफी सुहावना हो जाता है। यात्रीगण यहां घूम-फिरकर पर्यटन के साथ-साथ राम भक्ति का प्रसाद भी बटोर सकते हैं।