
Chukandar (Beetroot) ki kheti Kaise Kare – चुकन्दर की खेती कैसे करें
चुकन्दर भी जड़ वाली सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है । इसकी जड़ों को सब्जी व सलाद के रूप में अधिक प्रयोग करते हैं । एक परिवार के लिए भी गार्डन में उगाना विशेष महत्त्व रखता है । जड़ों का आकार शलजम जैसा होता है । लेंकिन रंग अलग ही स्पेशल होता है । रंग को गहरा लाल कह सकते हैं ।
चुकन्दर का सेवन कच्चा सलाद व जूस में विशेष स्थान रखते हैं । इसके अतिरिक्त चीनी-उद्योग में भी प्रयोग करते हैं । चुकन्दर के प्रयोग से कुछ महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं, जैसे- प्रोटीन, कैल्शियम, आजीलिक एसिड, फास्फोरस तथा कार्बोहाइड्रेटस आदि ।
चुकन्दर की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate For Chukandar Kheti)
चुकन्दर की फसल को लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है । लेकिन सर्वोत्तम भूमि बलुई दोमट या दोमट मानी जाती है । कंकरीली व पथरीली मिट्टी में वृद्धि ठीक नहीं होती । भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच का होना चाहिए ।
सर्दी की फसल होने के कारण जलवायु ठन्डी उपयुक्त रहती है । लेकिन कुछ गर्म मौसम में भी उगाया जा सकता है । जाड़ों की फसल में ‘सुगर’ की मात्रा अधिक बनती है । तापमान 8-10 डी० से० ग्रेड हो या नीचे हो तो जड़ों का आकार बढ़ता है तथा जड़ बाजार के लिए उचित होती है ।
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चुकन्दर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Chukandar Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
इस फसल की तैयारी उचित ढंग से करनी चाहिए यदि भूमि रेतीली है तो 2-3 जुताई करें तथा कुछ भारी हो तो पहली जुताई मिट्टी पलटने वालें हल से करें तथा अन्य 3-4 जुताई करके पाटा चलायें और मिट्टी को बिकुल भुरभुरी कर लें जिससे जड़ों की वृद्धि ठीक हो सके । तत्पश्चात् छोटी-छोटी क्यारियां बनायें ।
बगीचों में 3-4 गहरी जुताई-खुदाई करें । घास-घूस को बाहर निकालें तथा छोटी-छोटी क्यारियां बनायें । मिटटी को बारीक कर लें ।
चुकन्दर की उन्नतशील किस्में (Improved Varieties of Chukandar)
चुकन्दर की दो मुख्य किस्में है जिन्हें उगाने की सिफारिश की जाती है-
- डेटरोडिट डार्क रेड (Detrpdot Dark Red)- यह किस्म 80-90 दिन में तैयार हो जाती हैं तथा पत्तियां कुछ गहरालाल रंग (Dark Red) लिये हरी होती हैं । जड़ें चिकनी, गोलाकार व गहरी लाल रंग की होती हैं तथा गूदे में हल्के लाल रंग की धारियां व गूदा रवेदार मीठा होता है |
- क्रिमसोन ग्लोब (Krimson Glob)- यह किस्म भी अधिकतर बोते हैं । जड़ें चपटे आकार की छोटी होती है । पत्तियां गहरी लाली लिये हुए हरे रंग वाली होती हैं । जड़ें ग्लूबलर होती है । गूदा गहरे लाल रंग का होता है तथा धारियों वाला होता है ।
बीज की मात्रा एवं बुवाई का समय व ढंग (Seed Rate and Sowing Time and Method)
चुकन्दर के उत्तम सफल उत्पादन के लिए बीज का चुनाव मुख्य है । बीज का उत्तम होना आवश्यक है । साधारणत: बीज की मात्रा 6-8 किलो प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है । बीज की मात्रा, बुवाई का ढंग, समय व किस्म पर भी निर्भर करता है ।
बुवाई खेत तैयारी के बाद सारे खेत में एक साथ न बोकर 10-15 दिन के अन्तर से बोयें जिससे जड़ें लम्बे समय तक मिलती रहें । जाड़े की फसल होने के कारण बोने का समय अक्टूबर से नवम्बर तक होता है । बीज की छोटी क्यारियां बनायें तथा कतारों में लगायें । इन कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी. रखें जिससे बड़ी जड़ें आपस में मिल न सकें । बीज की गहराई अधिक न लेकर 1-5-2 सेमी. रखें जिससे अंकुरण में परेशानी न आये । गहरा बीज गल, सड़ जाता है ।
बगीचों के लिये बीज 20-25 ग्राम 8-10 मी. क्षेत्र के लिए काफी होता है । यदि गमलों में लगाना हो तो 2-3 बीज बोयें तथा उपरोक्त समय पर बोयें । कतारों की दूरी 25-30 सेमी. व पौधों की दूरी 8-10 सेमी. रखें ।
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग (Use of Manure and Fertilizers)
जड़ों की फसल होने से देशी खाद या कम्पोस्ट खाद की मात्रा भूमि की किस्म के ऊपर निर्भर करती है । बलुई दोमट भूमि के लिये 15-20 ट्रौली खाद (एक ट्रौली में एक टन खाद) प्रति हैक्टर खेत तैयार करते समय दें । यदि भूमि रेतीली है तो हरी खाद के रूप में भी दें जिससे खेत में ह्यूमस व पोषक तत्वों की प्राप्ति हो जाये । रासायनिक खाद या उर्वरकों की मात्रा, जैसे-नत्रजन 60-70 किलो, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाश 80 किलो प्रति हैक्टर के लिये पर्याप्त होता है । नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई से 15-20 दिन पूर्व मिट्टी में मिलायें तथा शेष नत्रजन को बोने के बाद 20-25 दिन व 40-45 दिन के बाद दो बार में छिड़कने की सिफारिश की जाती है । इस प्रकार से जड़ों का विकास ठीक होता है ।
बगीचों के लिये तीनों उर्वरकों की मात्रा 350 ग्राम (प्रत्येक-यूरिया, डी.ए.पी. व म्यूरेट ऑफ पोटाश) को 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में डालें । यूरिया की मात्रा को देना पौधे बड़े होने के बाद 2-3 बार में छिड़कें । गमलों में तीनों उर्वरकों की 3-4 चम्मच मिट्टी के मिश्रण में मिलायें तथा यूरिया को पौधे कमजोर होने पर 1-2 चम्मच दें तथा 5-6 चम्मच प्रति गमला सड़ी गोबर की खाद बोने से पहले ही मिट्टी में मिला लें ।
सिंचाई (Irrigation)
बुवाई के बाद फसल की सिंचाई 10-15 दिन के बाद पहली सिंचाई करें । यदि पलेवा करके बुवाई की है तो नमी के अनुसार पानी लगायें । ध्यान रहे कि पहली सिंचाई हल्की करें । शरद-ऋतु की फसल होने से 12-15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते रहें अर्थात् खेत में नमी बनी रहे । यदि गर्मी हो तो 8-10 दिन के अन्तर से पानी देते रहें ।
बगीचों व गमलों के लिये सिंचाई का विशेष ध्यान रखें । पहला पानी हल्का हो तथा अन्य पानी नमी के अनुसार 8-10 दिन के बाद देते रहे । गमलों में पानी 2-3 दिन के अन्तर से दें । कोशिश करें कि पानी शाम के समय दें जिससे मिट्टी कम सूखेगी और पौधों की अधिक वृद्धि होगी ।
खरपतवारों का नियन्त्रण (Weeds Control)
चुकन्दर की फसल में रबी-फसल वाले खरपतवार अधिक पैदा होते हैं । नियन्त्रण के लिये सबसे उत्तम है कि सिंचाई के 3-4 दिन बाद निकाई-गुड़ाई कर दें जिससे घास, वथूआ आदि निकल जायेंगे तथा फसल की जड़ें अधिक वृद्धि कर सकेंगी अर्थात् उपज अधिक मिलेगी ।
बगीचों व गमलों की 1-2 गुड़ाई आरम्भ में ही करें जिससे पौधों को क्षति न पहुंचे और घास को बाहर निकाल सकें । पौधों की गुड़ाई करने से जड़ें बड़ी मिलती हैं ।
रोगों से चुकन्दर के पौधों की सुरक्षा कैसे करें (Rogon Se Chukandar Ke Paudhon Ki Suraksha Kaise Kare)
पौधों पर कुछ कीटों (Insects) का आक्रमण होता है । जैसे- पत्ती काटने वाला कीड़ा, वीटिल । नियन्त्रण के लिये अगेती फसल बोयें तथा मेटास्सिटाक्स या मैलाथियान का .2% (दो ग्राम दवा एक लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें ।
बीमारी भी दो हैं- 1. पत्तियों का धब्बा एवं 2. रुट-रोट का रोग ।
- पत्तियों का धब्बा- इस रोग में पत्तियों पर धब्बे जैसे हो जाते हैं । बाद में गोल छेद बनकर पत्ती गल जाती है । नियन्त्रण के लिये फंजीसाइड, जैसे- डाइथेन एम-45 या बेवस्टिन के .1% घोल का छिड़काव 15-20 दिन के अन्तर पर करने से आक्रमण रुक जाता है ।
- रुट-रोग का रोग- यह रोग जड़ों को लगता है जिससे जड़ें खराब होती हैं । नियन्त्रण के लिए फसल-चक्र अपनायें । प्याज, मटर बोयें तथा बीजों को मकर्यूरिक क्लोराइड के 1% के घोल से 15 मिनट तक उपचारित करें । अन्य रोग अवरोधी फसलों को साथ बोयें ।
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खुदाई (Digging)
खुदाई बड़ी व मीठी जड़ों की करें तथा बाजार की मांग के हिसाब से करते रहे । खुदाई खुरपी या पावड़े से करें तथा जड़ें कट न पायें । खोदने से पहले हल्की सिंचाई करें जिससे आसानी से खुद सकें तथा ग्रेडिंग करके बाजार भेजें जिससे मूल्य अधिक मिल सके ।
उपज (Yield)
चुकन्दर की औसतन 30-40 क्विंटल प्रति हैक्टर जड़ों की प्राप्ति हो जाती है ।
बगीचों में 20-25 किलो जड़ें 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र प्राप्त हो जाती हैं जिनका कि समय-समय पर जूस, सलाद व सब्जी में प्रयोग करते रहते हैं ।
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अगर पलेवा नहीं किया है तो बोवनि के बाद सिधे
पानी देना उचित है कि नहीं