दिब्येन्दु बरुआ का जीवन परिचय Dibyendu Barua Biography In Hindi

Dibyendu Barua Biography In Hindi

दिब्येन्दु बरुआ का जीवन परिचय (Dibyendu Barua Biography In Hindi Language)

Dibyendu Barua Biography In Hindi

नाम : दिब्येन्दु बरुआ
जन्म : 27 अक्टूबर, 1966
जन्मस्थान : कोलकाता

दिब्येन्दु बरुआ भारत में शतरंज के दूसरे ग्रैंड मास्टर हैं | उन्होंने तीन बार राष्ट्रीय ख़िताब जीता है | वह बचपन से ही एक प्रतिभावान खिलाड़ी थे, हालांकि बड़े होने पर वह उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं के सके जैसे कि उम्मीद की जाती थी |

दिब्येन्दु बरुआ का जीवन परिचय (Dibyendu Barua Biography In Hindi)

विश्वनाथन आनंद के बाद भारत के दूसरे ग्रैंडमास्टर दिब्येन्दु बरुआ हैं । उन्होंने 1982 में विश्व के नम्बर दो ग्रैंड मास्टर विक्टोर कोर्चोई को लंदन में हरा कर इन्टरनेशनल मास्टर का खिताब जीता था ।

1978 में मात्र 12 वर्ष की आयु में दिब्येन्दु ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और वह भारत के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने जिसने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया हो । शतरंज के क्षेत्र में हर ओर चर्चा होने लगी कि एक नई शतरंज प्रतिभा ने जन्म लिया है ।

1982 में बरुआ जब 16 वर्ष के थे तब उन्होंने उस समय के विश्व के नंबर दो ग्रैंड मास्टर विक्टोर कोर्चोई को लंदन में हरा दिया और इंटरनेशनल मास्टर्स का खिताब जीत लिया । 1983 में दिब्येन्दु ने पहली बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब जीता ।

उनकी शतरंज में शुरुआत बेहद अच्छी रहने के बावजूद उनका कैरियर उतनी अच्छी उड़ान नहीं भर सका जैसा कि उनसे उम्मीद की जाने लगी थी । इन्टरनेशनल मास्टर बनने के नौ वर्षों के लंबे अंतराल के पश्चात् बरुआ 1991 में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीत सके ।

ग्रैंड मास्टर बनने के पश्चात् धन की कमी तथा सही तैयारियों के अभाव के कारण बरुआ आशातीत सफलता नहीं प्राप्त कर सके जैसी सफलता भारत के विश्वनाथन आनंद को मिली थी ।

दिब्येन्दु बरुआ तीन बार भारत के राष्ट्रीय चैंपियन बने । अंतिम बार वह 2001 में राष्ट्रीय चैंपियन बने जब उन्होंने अनेक युवा खिलाड़ियों से कठिन मुकाबला किया ।

उपलब्धियां :

दिब्येन्दु बरुआ भारत के द्वितीय ग्रैंड मास्टर बने |

1978 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने पर दिब्येन्दु 12 वर्ष की आयु के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने जिसने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया |

बचपन में दिब्येन्दु  ‘चाइल्ड प्राडिजी’ (प्रतिभाशाली बालक) के रूप मे पहचाने जाने लगे थे ।

1983 में वह राष्ट्रीय चैंपियन बने ।

1991 में उन्होंने ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल किया ।

दिब्येन्दु ने तीन बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती ।

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