डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध Essay On Dr Rajendra Prasad In Hindi

Dr Rajendra Prasad Essay In Hindi

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर निबंध Dr Rajendra Prasad Essay In Hindi Language

Dr Rajendra Prasad Essay In Hindi

15 अगस्त 1947 को भारत जब स्वतन्त्र हुआ तो गांधी जी ने भारतीय प्रजातंत्र की विशेषता बताते हुए कहा था कि यहां एक किसान भी भारत का राष्ट्रपति बन सकता है | गांधी जी की यह बात बहुत शीघ्र ही सच साबित हुई जब 26 जनवरी 1950 को ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की प्रतिमूर्ति एंव बिहार के किसानों का नेतृत्व करने वाले एक महान व्यक्ति को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया | वह महान व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि बिहार के गौरव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे, जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में गांधी जी का साथ देने के लिए अपनी चलती हुई वकालत को तिलांजलि दी दी |

राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार प्रान्त के सीवान जिले में जीरादेई नामक गाँव में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ था | उनके पिता श्री महादेव सहाय एक विद्वान व्यक्ति थे एंव माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं | उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई | राजेन्द्र बाबू अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे | उन्होंने 5 वर्ष की आयु में एक मौलवी साहब से फारसी पढ़ना शुरू किया, उसके बाद वे छपरा के जिला स्कूल में पढ़ने गए | जिला स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पटना के टी.के. घोष अकादमी में पढ़ने के लिए गए |

1920 ई. में 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बाद राजेन्द्र प्रसाद ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया | इसके बाद कानून में कैरियर की शुरुआत करने के लिए उन्होंने बैचलर ऑफ लॉ की पढ़ाई पूरी की | उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान भी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | यद्यपि स्नातक स्तरीय परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही वे राजनीति में सक्रिय हो चुके थे, किंतु राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और 1915 ई. में स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक (एल.एल.एम.) की परीक्षा उत्तीर्ण की | उसके बाद उन्होंने लॉ में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की |

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कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में वकालत प्रारंभ कर दी | अपने सद्व्यवहार एंव कुशलता के कारण उन्होंने वकालत में खूब नाम कमाया और एक प्रसिद्ध वकील बनकर उभरे | उसी दौरान 1917 ई. में जब चम्पारण के किसानों को न्याय दिलाने के लिए गांधी जी बिहार आए तो डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का उनसे मिलना हुआ | गांधीजी की कर्मठता, लगन, कार्य-शैली एंव साहस से वे अत्यधिक प्रभावित हुए | इसके बाद बिहार में सत्याग्रह का नेतृत्व राजेन्द्र प्रसाद ने ही किया | उन्होंने बिहार की जनता के समक्ष गांधी जी का संदेश इस तरह प्रस्तुत किया कि लोग उन्हें ‘बिहार का गांधी’ ही कहने लगे |

1920 ई. में गांधी जी ने जब असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया, तो उनके आह्वान पर राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़ दी और स्वाधीनता संग्राम में कूद गए | इसके बाद गांधी जी द्वारा छेड़े गए हर आंदोलन में वे उनके साथ नजर आने लगे | उन्होंने नेशनल कॉलेज एंव बिहार विद्यापीठ की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई | गांधी जी को उनके आंदोलनों में सहयोग देने के कारण कई बार उन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ी | 1922 ई. में गांधी जी ने जब सविनय अवज्ञा आंदोलन को चौरी-चौरा कांड के बाद स्थगित करने की घोषणा की तब उनके अधिकतर नेताओं ने आलोचना की, किन्तु उस समय भी राजेन्द्र बाबू ने उनका साथ दिया | 1930 ई. में जब गांधी जी ने नमक सत्याग्रह प्रारंभ किया, तो राजेन्द्र प्रसाद ने पटना में एक तालाब पर अपने साथियों के साथ नमक बनाकर सरकार के ‘नमक पर कर’ नमक कानून का विरोध किया | इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया |

1934 ई. में जब बिहार में भूकंप आया तो राजेन्द्र प्रसाद ने भूकंप राहत कार्य का संचालन किया | अक्टूबर 1934 में वे बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तथा 1939 ई. में सुभाष चन्द्र बोस के अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र देने के बाद वे कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए गए | 1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन में भी राजेन्द्र प्रसाद की भूमिका सराहनीय थी | 1946 ई. में जब अंतरिम सरकार बनी तब उनके नेतृत्व क्षमता एंव गुणों को देखते हुए उन्हें खाद्य एवं कृषि मंत्री बनाया गया | इस वर्ष जब भारत का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया, तो उन्हें इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया |

26 जनवरी 1950 को जब भारत गणतंत्र बना तो वे भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनाए गए | 1952 ई. में नई सरकार के गठन के बाद विश्व वे पुनः इस पद के लिए निर्वाचित हुए | 1957 ई. में भी राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें विजयश्री हासिल हुई | राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने कई देशों की यात्राएं भी कीं | लगातार दो कार्यकाल पूरा करने वाले वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं | वे 14 मई 1962 तक देश के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे | इसके बाद अस्वस्थता की वजह से वे अपने पद से अवकाश प्राप्त कर पटना के सदाकत आश्रम में रहने चले गए | इसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया |

राजेन्द्र प्रसाद आजीवन गांधी जी के विचारों का पालन करते रहें, किंतु जब 1962 ई. में चीन ने भारत पर आक्रमण किया, तो अस्वस्थ होते हुए भी वे जनता का स्वाभिमान जगाने को उतावले हो गए और रोग-शैया छोड़कर पटना के गांधी मैदान में ओजस्वी भाषण देते हुए उन्होंने कहा, “अहिंसा हो या हिंसा, चीनी आक्रमण का सामना हमें करना है |” इससे उनकी देशभक्ति की अनन्य भावना का पता चलता है |

उन्होंने कई पुस्तकों की रचना भी की, जिनमें ‘आत्मकथा’, ‘चंपारण का सत्याग्रह’, ‘इंडिया डिवाइडेड’, ‘महात्मा गांधी एंड बिहार’ इत्यादि प्रमुख हैं | इसके अतिरिक्त आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों एंव पत्रिकाओं के लिए कई लेख भी लिखे | वे राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास एंव प्रसार के लिए सदा प्रयत्नशील रहे | इस कार्य के लिए वे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साथ आजीवन जुड़े रहे |

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राष्ट्रपति भवन के वैभवपूर्ण वातावरण में रहते हुए भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी सादगी एंव पवित्रता को कभी भंग नहीं होने दिया | 28 फरवरी 1963 को राजेन्द्र प्रसाद ने पटना के सदाकत आश्रम में अपनी अंतिम सांस ली | वे आज हमारे बीच भले ही उपस्थित न हों पर कृतज्ञ राष्ट्र उनके योगदान को कभी भूल नहीं सकता | उनके निधन से राष्ट्र ने एक महान सपूत को खो दिया | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति थे | उनका जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है |

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