एकादशी व्रत कथा विधि Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi

ekadashi vrat katha udyapan vidhi in hindi

जो विशेष स्थान नदियों में गंगा जी का है, व्रतों में वही स्थान एकादशी व्रत का है । इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं ।

पूजा की विधि (Ekadashi Vrat Pooja Vidhi ) : एकादशी का व्रत पूर्ण दशमी की शाम से द्वादशी की सुबह तक निर्जला, निराहार रह कर या फलाहार से पूरा होता है ।

वर्षभर में 20 एकादशी : महीने में एकादशी होती हैं, लेकिन पुरुषोत्तम मास की 2 एकादशियों को मिला कर कुल 26 एकादशी होती हैं । इन एकादशियों के नाम इस प्रकार हैं-

1. उत्पन्ना एकादशी: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के शरीर से एक तेजस्विनी कन्या के रूप में महादेवी एकादशी का प्रादुर्भाव होने से इसको उत्पन्ना एकादशी कहते हैं । इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करके नैवेद्य में केवल फल चढ़ाएं । फलों का ही भोजन करें ।

2.मोक्षदा एकादशी: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदायक माना गया है । भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश इस तिथि को दिए थे । मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती भी मनायी जाती है । इस दिन कृष्ण के दामोदर रूप की पूजा होती है । इस व्रत का विधान भी उत्पन्ना एकादशी के समान ही है ।

3. सफला एकादशी: पौष मास की इस एकादशी को भगवान विष्णु के अच्युत रूप नारायण की पूजा होती है । पूजा में भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की मूर्ति रख सकते हैं । इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है, इसलिए इस एकादशी का नाम सफला एकादशी है ।

4. पुत्रदा एकादशी: पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति, उनकी रक्षा और प्रगति के लिए करते हैं । इस दिन सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है ।

5. षटतिला एकादशी: माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं | इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है | इस दिन काले तिल के दां का विशेष महत्त्व है | शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल – जल से स्नान, तिल जलपान और तिलों के पकवान की विशेष महत्ता है | विधिपूर्वक व्रत करने वाले को रोगों से मुक्ति मिलती है और सुखों में वृद्धि होती है |

6. जया एकादशी: सर्व सिद्धि प्रदायक माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जाया एकादशी है | इस व्रत में भगवान कृष्ण के केशव रूप की पूजा की जाती है | अनेक जन्मों के पाप नष्ट होते व सभी सुख प्राप्त होते हैं |

7. विजया एकादशी : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है । श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्ति की कामना से यह व्रत किया था । सभी दुख दूर करके कार्यों में विजय और सफलता देने वाली इस विजया एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है ।

8. आमलकी एकादशी : होलिका दहन के 4 दिन पूर्व फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम आमलकी एकादशी है । आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान की पूजा करने, आंवले खाने व दान करने का विशिष्ट महत्व है ।

9. पापमोचनी एकादशी: चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी का व्रत जन्म-जन्मांतरों के पापों को दूर करता है । समृद्धि, सुख व मोक्ष दिलानेवाली इस एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा का विधान है ।

10. कामदा एकादशी: नवरात्रों के बाद आनेवाली चैत्र के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा यानी कामनाओं को पूरा करने वाली कहा गया है । इस दिन भगवान कृष्ण के वासुदेव रूप का पूजन होता है । इस दिन गरीबों को दान देने का विशेष महत्व है ।

11. वरूथनी एकादशी: वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सौभाग्य प्रदायिनी वरूथनी एकादशी कहा जाता है । इस दिन कृष्ण के मधुसूदन रूप की पूजा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है ।

12. मोहनी एकादशी: वैशाख के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी को राम के पुरुषोत्तम रूप की पूजा करते हैं । भगवान की प्रतिमा को स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं, ऊंचे आसन पर बैठाएं, आरती उतार कर मीठे फलों से भोग लगाएं । प्रसाद बांट कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं । दान – दक्षिणा दें । रात में कीर्तन करें । इससे पाप से छुटकारा मिलता है ।

13. अपरा एकादशी : ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं । इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है ।

14. निर्जला एकादशी : ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी का व्रत वर्षभर की एकादशियों के व्रत के बराबर है । इस निर्जला व्रत में अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें । लोग मिट्‌टी के घड़े-सुराहियां, पंखे आदि दान करते व शरबत के प्याऊ भी लगाते हैं ।

15. योगिनी एकादशी : आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान नारायण के लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा करें और दान आदि दें । इसे करने से पापों का नाश होता है । सभी सुख प्राप्त होते हैं ।

16. हरिशयनी एकादशी : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को पद्‌मा, देवशयनी या देवसोनी एकादशी भी कहते हैं । इस दिन से श्री विष्णु चार मास तक क्षीर-सागर में शयन करते हैं । इन दिनों शुभ कार्य नहीं होते । इस व्रत में भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराके आसन पर आसीन कर शंख, चक्र, गदा, पदम व पीले दुपट्‌टे से सजाते हैं । धूप, दीप, फूल चढ़ा कर आरती करते है । पान-सुपारी चढ़ा कर मंत्रों से स्तुति की जाती है । इससे पाप नष्ट व सुख प्राप्ति होती है ।

17. पवित्रा एकादशी : श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को पवित्रा या कामिका एकादशी कहते हैं । भगवान श्रीधर की पूजा होती है । सभी कामनाएं पूरी करनेवाला यह व्रत पाप से मुक्ति दिलाता है ।

18. पुत्रदा एकादशी : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है । इस दिन भगवान जनार्दन की पूजा की जाती है । इस व्रत से कामनाएं पूरी होती हैं । संतान प्राप्ति होती है ।

19. अजा एकादशी : भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी के व्रत में विष्णु भगवान के उपेन्द्र रूप की पूजा होती है । यह व्रत कष्टों को नष्ट करके समृद्धि देता है । व्रत और पूजा अन्य एकादशियों की तरह होती है ।

20. परिवर्तिनी या वामन एकादशी : भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को शयन के मध्य भगवान करवट बदलते हैं । इसलिए यह परिवर्तिनी एकादशी है । इस दिन भगवान के वामन अवतार की पूजा होती है । यह पूजा पापों को नष्ट करती है ।

21. इंदिरा एकादशी : आश्विन के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी के व्रत को करनेवाले की 7 पीढ़ियों तक के पितर तर जाते हैं । व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है । इसमें भगवान सालिग्राम की पूजा होती है । पूजा व प्रसाद में तुलसी की पत्तियां अनिवार्य रूप से चढ़ाते हैं ।

22. पापांकुशा एकादशी: आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को पद्मनाभ भगवान विष्णु की पूजा करके ब्राह्मणों को दाल-दक्षिणा दें ।धर्मशाला, प्याऊ जैसे कामों के लिए यह एकादशी बेहतरीन मुहूर्त है ।

23. रमा एकादशी : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को कृष्ण जी के केशव रूप की पूजा की जाती है । इससे वैभव और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

24. हरिप्रबोधिनी एकादशी : दीवाली के बाद कार्तिक शुक्ला एकादशी को देवोत्थान या देवठान होता है । इस दिन सारे घर को लीप-पोत कर साफ करते हैं । आगन में रंगोली बनाते हैं । आँगन के बीचोबीच या फिर एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर पूड़ी, पकवान, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, मौसमी फल और गन्ना उस स्थान पर रख कर एक परात से ढक दिया जाता है । रात में परिवार के सभी सदस्य, देवताओं की भगवान विष्णु सहित पूजा और भजन कीर्तन करते हैं | साथ ही घंटी बजा कहते हैं –

‘उठो देवा बैठो देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा |’

कुछ लोग देवोत्थान के दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं | जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं है, वह तुलसी का विवाह करके कन्या दान का पुण्य प्राप्त करते हैं, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है |

25. पद्मिनी एकादशी : पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मिनी एकादशी कहलाती है | इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है | अधिकमास की दोनों एकादशियों में दान का महत्व है |

26. परमा (हरिबल्लभ) एकादशी : पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा या हरिवल्लभ एकादशी कहते हैं | इस दिन नरोत्तम भगवान विष्णु की पूजा से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है

एकादशी व्रतोद्धापन Ekadashi Vrat Udyapan Vidhi In Hindi

अनेक वर्षों तक एकादशियों का व्रत करने के बाद इनका उद्यापन किया जाता है | बिना उद्यापन किए कोई भी व्रत सिद्ध नहीं होता | उद्धापन पंडित की देखरेख में पति-पत्नी दोनों मिलकर करें | इसमें भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा और हवन किया जाता है | पूजा स्थान को सुंदर ढंग से सजाया जाता है | पवित्रीकरण शांतिपाठ आदि के बाद गणेश पूजन किया जाता है | पूजा में तांबे के कलश में चावल भरकर रखने का विधान है | अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अलावा भगवान कृष्ण, श्री राम, अग्नि, इंद्र, प्रजापति, विश्वदेवों, ब्रह्माजी आदि का भी ध्यान आह्वान किया जाता है | मंत्रों के उच्चारण के साथ एक-एक करके भगवान को सभी सेवाएं और वस्तु में अर्पित की जाती है | पूजा और हवन में कितनी वस्तुओं का और कितनी मात्रा में प्रयोग किया जाए यह पूरी तरह से श्रद्धा और सामर्थ पर निर्भर करता है | इसके बाद पंडित व ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दक्षिणा दे |

आरती श्री बद्री नारायण जी की

श्री पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम् |

निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम |

श्री वेद ब्रह्म करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

शक्ति गौरी गणेश शारद नारददिक उच्चरम |

जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम् |

सिद्ध मुनिजन करत जय-जय श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

यक्ष किन्नर करत वंदन ज्ञान गुणहि प्रकाशितम् |

नित्यकमला चवंर करती श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

हिम शिखर की अतुल शोभा शिखर अति शोभावरम |

धर्म राज करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

श्री बद्रीनाथ के पंच रत्न को पाठ पाप विनाशनम |

कोटि तीर्थ भवेत पुण्यं श्री बद्रीनाथ विश्वंभरम |

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