ईला रमेश भट्ट का जीवन परिचय Ela Ramesh Bhatt Ki Biography In Hindi

Ela Ramesh Bhatt Ki Biography

ईला रमेश भट्ट का जीवन परिचय Ela Ramesh Bhatt Ki Jeevan Parichay In Hindi

Ela Ramesh Bhatt Ki Biography

नाम : ईला रमेश भट्ट
जन्म : 7 सितम्बर 1933
जन्मस्थान : अहमदाबाद
माँ का नाम : वनलीला व्यास
पिता का नाम : सुमन्त भट्ट
उपलब्धियां : रमन मैग्सेसे 1977, 1984 में ‘राइट लिवलीहुड’ अवार्ड, 1985 में पद्मश्री, 1986 में पद्मभूषण, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा 2001 में ऑनरेरी डाक्टरेट की डिग्री |

ईला रमेश भट्ट ने वकील के तौर पर अपना काम शुरू किया लेकिन उनका लक्ष्य स्त्रियों की आत्मनिर्भरता की ओर विकसित हुआ । वह एक गाँधीवादी महिला थीं और उन्हांने स्त्रियों की स्थिति को संवेदनापूर्वक समझाया था । इस दिशा में उन्हें कामकाजी स्त्रियों की हताशा का पूरा एहसास था | उन्होने शुरू से ही स्त्रियों की आत्मनिर्भरता की दिशा में उनके लिए स्व-रोजगार का रास्ता सुझाया और उस ओर काम करने में लग गईं | उन्होंने अपनी संस्था ‘सेल्फ इम्प्लाएड वुमन एसोसियेशन’ (SEWA) इसी अभिप्राय से शुरू की थी कि वह स्वरोजगार में लगी महिलाओं को पर्याप्त परामर्श और सहायता दे सकें | उन्होंने अहमदाबाद में  ‘टेक्सटाइल लेबर एसोसियेशन का क़ानूनी गतिविधियों का विभाग भी काम करने के लिए इसी लिए चुना था ताकि वह अपने लक्ष्य में सफल हो सकें । ईला रमेश भट्ट की इसी प्रतिबद्धता तथा उसकी सफलता के लिए वर्ष 1977 का मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया ।

ईला रमेश भट्ट का जीवन परिचय Ela Ramesh Bhatt Ki Jeevan Parichay In Hindi

ईला का जन्म 7 सितम्बर 1933 को अहमदाबाद में हुआ था । उनके पिता सुमन्त भट्ट एक सफल वकील थे तथा उनकी माँ वनलीला व्यास भी स्त्री आन्दोलन की एक सक्रिय कार्यकर्ता थीं । ईला की प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा सूरत में सार्वजनिक गर्ल्स हाई स्कूल में हुई, जहाँ वह 1940 से 1948 तक पढ़ीं । आर्ट्स में ग्रेजुएशन की डिग्री उन्होंने 1952 में एम.टी.वी. कॉलेज सूरत से ली । उसके बाद उन्होंने सर एल.ए. शाह लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ से वह लॉ की डिग्री के साथ हिन्दू लॉ में स्वर्ण पदक लेकर 1954 में निकली ।

ईला रमेश भट्ट ने कुछ समय के लिए श्रीमती लक्ष्मीबाई दामोदर ठाकरे वुमन यूनिवर्सिटी बम्बई में अंग्रेजी पढ़ाई लेकिन 1955 में वह अहमदाबाद की ‘टेक्सटाइल लेबर एसोसियेशन’ के लॉ डिपार्टमेंट में आ गईं ।

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टेक्सटाइल लेबर एसोसियेशन में काम करते हुए 1968 में ईला को महिला प्रभाग (वुमन विंग) का इन्चार्ज बना दिया गया और इसी सिलसिले में ईला इजराईल गईं । वहाँ इन्होंने तीन महीने बिताए । इस दौरान वह एफ्रो एशियन इन्टीट्यूट ऑफ लेबर एण्ड को-आपरेटिव इन तेल-अबीब में प्रशिक्षण लेती रहीं । वर्ष 1971 में उन्होंने ‘लेबर एण्ड को-आपरेटिव पर अन्तरराष्ट्रीय डिप्लोमा लिया । वुमन विंग में काम करते हुए ईला को यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि बहुत सी टेक्सटाइल में काम करने वाले कर्मचारियों के परिवार की स्त्रियाँ परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए दूसरी जगहों पर काम करती हैं । साथ ही उन्हें यह जानकारी भी मिली कि संवैधानिक नियम केवल औद्योगिक कर्मचारियों के हित में बनाए गए हैं । और स्वरोजगार में लगी हुई स्त्रियों के लिए इसकी सुविधा नहीं है । ईला भट्ट ने प्रयासपूर्वक स्वरोजगार में लगी इन स्त्रियों को टेक्सटाइल, लेबर एसोसियेशन (TLA) की वुमन विंग की यूनियन में सदस्यता स्वीकृत कराई । उनके इस काम में TLA के प्रेसिडेंट अरविन्द बुच का बड़ा सहयोग रहा । स्वरोजगार में लगीं स्त्रियों की यूनियन के प्रेसिडेंट अरविन्द बुच बने तथा ईला भट्ट ने इसकी जनरल सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सम्भाली ।

ईला भट्ट ने 1979 में ईस्थर ओक्लो और मिशैला वाल्श के साथ मिलकर वुमन वर्ल्ड बैंकिग की स्थापना की और 1980 से 1988 तक उसकी अध्यक्ष रहीं । स्वरोजगार में लगी स्त्रियों की क्या स्थिति है, इस बारे में ईला भट्ट ने गहरा अध्ययन किया और पाया कि उनकी दशा दयनीय है । केवल अहमदाबाद में सत्तर के दशक में ईला ने इनकी गिनती सत्रह लाख आंकी थी । ये स्त्रियाँ ठेला गाड़ी खींचती हैं, पुराने उतारे हुए कपड़े बेचती हैं, बर्तनों पर हथौड़ी चलाती हैं फिर भी इनकी आमदनी प्रतिदिन बहुत थोड़ी होती है । इनमें से अधिकांश स्त्रियाँ झुग्गी बस्तियों में रहती हैं तथा अनपढ़ हैं । नब्बे प्रतिशत से ऊपर ऐसी विवाहित स्त्रियाँ हैं, जिनकी शादी दस से बारह वर्ष की उम्र में हो गई होती है । सब विवाहित स्त्रियाँ औसतन चार बच्चों की माँ हैं और उन्हें अपने साथ काम पर से जाने के लिए मजबूर हैं । उन्हें अपने बच्चों को सड़क के किनारे सारा दिन छोड़े रहना पड़ता है । लगभग सभी स्त्रियाँ कर्ज में डूबी हुई हैं । इनकी गिनती हालाँकि फैक्टरियों में लगे नियमित कर्मचारियों से भी ज्यादा है, फिर भी जन-गणना तक में इनकी उपेक्षा की जाती है । आर्थिक दबाव तो इन पर है ही, इनके हित भी असुरक्षित हैं । पुलिस और इंसपेक्टर जैसे लोग इनके लिए कठिनाई बने रहते हैं ।

ईला भट्ट ने अपनी को-आपरेटिव (SEWA) के जरिए स्वरोजगार में लगी स्त्रियों को आर्थिक दबाव से राहत का एक रास्ता सुझाया । TLA की यूनियन में स्वरोजगार में लगी स्त्रियों की गिनती हो जाने से इनके हितों की रक्षा व्यवस्थित रूप से होने लगी तथा इनमें आत्मविश्वास का संचार हुआ ।

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1956 में ईला भट्ट का विवाह रमेश भट्ट से हुआ जो गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद में प्राध्यापक थे ।

अपने इन कार्यों के लिए ईला रमेश भट्ट को 1984 में स्वीडिश पार्लियामेंट द्वारा दिया जाने वाला ‘राइट लिवलीहुड’ अवार्ड मिला 1985 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री दी गई । अगले ही वर्ष 1986 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान मिला । हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने जून 2001 में इन्हें ऑनरेरी डाक्टरेट की डिग्री प्रदान की ।

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