स्वदेश प्रेम पर निबंध Essay On Country Love In Hindi Language
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं |
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ||”
मैथिलीशरण गुप्त की इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि देश-प्रेम के अभाव में मनुष्य जीवित प्राणी नहीं बल्कि पत्थर के ही समान कहा जाएगा | हम जिस देश या समाज में जन्म लेते हैं, उसकी उन्नति में समुचित सहयोग देना हमारा परम कर्त्तव्य बनता है | स्वदेश के प्रति यही कर्त्तव्य-भावना इसके प्रति प्रेम अर्थात स्वदेश-प्रेम या देश-भक्ति का मूल स्रोत है |
कोई भी देश साधारण एवं निष्प्राण भूमि का केवल ऐसा टुकड़ा नहीं होता, जिसे मानचित्र द्वारा दर्शाया जाता है | देश का निर्माण उसकी सीमाओं से नहीं बल्कि उसमें रहने वाले लोगों एवं उनके सांस्कृतिक पहलुओं से होता है | लोग अपनी पृथक संस्कृतिक पहचान एंव अपने जीवन-मूल्यों को बनाए रखने के लिए ही अपने देश की सीमाओं से बंधकर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं | यही कारण है कि देश-प्रेम की भावना देश की उन्नति का परिचायक होती है |
स्वदेश-प्रेम यद्यपि मन की एक भावना है तथापि इसकी अभिव्यक्ति हमारे क्रिया-कलापों से हो जाती है | देश-प्रेम से ओत-प्रोत व्यक्ति सदा अपने देश के प्रति कर्त्तव्यों के पालन हेतु न केवल तत्पर रहता है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटता | सच्चा देशभक्त आवश्यकता पड़ने पर अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पित कर देता है |
स्वतन्त्रता पूर्व के हमारे देश का इतिहास देशभक्तों की वीरतापूर्ण गाथाओं से भरा है | देश की आजादी के लिए सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे युवा क्रांतिकारियों के बलिदानों को भला कौन भुला सकता है |
किसी भी देश के सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिक स्वदेश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हों | मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले लोगों से न केवल देश का विकास अवरुद्ध होता है, बल्कि इसकी आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है, क्योंकि ऐसे लोग पैसों के लिए अपना ईमान ही नहीं, देश बेचने से भी संकोच नहीं करते | कुछ स्वार्थी नेता भी चुनाव जीतने के लिए क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद, इत्यादि को बढ़ावा देते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता एंव अखंडता की भावना को ठेस पहुंचती है तथा देश में वैमनस्य एवं अशांति के वातावरण का निर्माण हो जाता है | हमें ऐसे नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है, जो देश-प्रेम का ढोंग रचते हैं | वास्तव में उनका मकसद देश के हितों को चोट पहुंचाना होता है |
वास्तव में देश-प्रेम की भावना मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ भावना है | इसके सामने किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्व नहीं होता | यह एक ऐसा पवित्र व सात्विक भाव है, जो मनुष्य को निरंतर त्याग की प्रेरणा देता है | इसीलिए कहा गया है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं | मानव की हार्दिक अभिलाषा रहती है कि जिस देश में उसका जन्म हुआ, जहां के अन्न-जल से उसके शरीर का पोषण हुआ एंव जहां के लोगों ने उसे अपना प्रेम एंव सहयोग देकर उसके व्यक्तित्व को निखारा, उसके प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन वह सदा करता रहे | यही कारण है कि मनुष्य जहां रहता है, अनेक कठिनाइयों के बावजूद उसके प्रति उसका मोह कभी खत्म नहीं होता |
देश-प्रेम को किसी विशेष क्षेत्र एंव सीमा में नहीं बांधा जा सकता | हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो, वही देश-प्रेम की सीमा में आता है | अपने प्रजातंत्रात्मक देश में, हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ईमानदार एंव देशभक्त जनप्रतिनिधि का चयन कर देश को जाति, संप्रदाय तथा प्रांतीयता की राजनीति से मुफ्त कर इसके विकास में सहयोग कर सकते हैं | जाति-प्रथा, दहेज-प्रथा, अंधविश्वास, छुआछूत इत्यादि कुरीतियां देश के विकास में बाधक हैं | हम इन्हें दूर करने में अपना योगदान कर देश-सेवा का फल प्राप्त कर सकते हैं | अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़कर हम अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं | हम समय पर टैक्स का भुगतान कर देश की प्रगति में सहायक हो सकते हैं | इस तरह, किसान, मजदूर, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, चिकित्सक, सैनिक और अन्य सभी पेशेवर लोगों के साथ-साथ देश के हर नागरिक द्वारा अपने कर्त्तव्यों का समुचित रुप से पालन करना ही सच्ची देशभक्ति है |
नागरिकों में देश-प्रेम का अभाव राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्र की आंतरिक शांति तथा सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है | यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे | इस प्रकार अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा एंव राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना तब ही संभव है जब हम देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करेंगे |
यह हमारा कर्त्तव्य है कि सब कुछ न्योछावर कर के भी हम देश के विकास में सहयोग दें, ताकि अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहा हमारा देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे | अंततः हम कह सकते हैं कि देश सर्वोपरि है, अतः इसके मान-सम्मान की रक्षा हर कीमत पर करना देशवासियों का परम कर्त्तव्य है |