यदि मैं भारत का शिक्षा मंत्री होता Essay On If I Were The Education Minister Of India In Hindi Language
अपने विद्यालय में ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर आयोजित भव्य समारोह में मैं एक शिक्षा मंत्री के तौर पर भाषण दे रहा था | इस भाषण में मैं भारत की प्रगति के लिए वर्तमान शिक्षा-प्रणाली एवं शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन की बातें कर रहा था | अभी मेरी बातें पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक किसी ने मुझे आवाज दी और मेरी नींद टूट गई | नींद टूटने के साथ ही मेरा खूबसूरत स्वप्न भी अधूरा रह गया, लेकिन नींद से जागने के बाद मैं सोचने लगा कि ‘यदि मैं वास्तव में कभी शिक्षा मंत्री बन सका तो स्वप्न में शिक्षा में सुधार के संदर्भ में व्यक्त अपनी बातों को अवश्य पूरा करने की कोशिश करूंगा |’
अब शिक्षा के पर्याय के रूप में ‘मानव संसाधन विकास’ पद का प्रयोग किया जाता है तथा शिक्षा मंत्री को अब मानव संसाधन विकास मंत्री कहा जाता है | यदि मैं शिक्षा मंत्री अर्थात मानव संसाधन विकास मंत्री, होता तो निम्नलिखित कार्यो को पूरा करने की यथासंभव कोशिश करता-
वर्तमान शिक्षा प्रणाली एंव इसके उद्देश्यों में परिवर्तन– समाज एंव देश के हित के लिए शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण अवश्यक होता है | चूंकि समाज एंव देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं, इसलिए शिक्षा प्रणाली एवं इसके उद्देश्यों में भी समय के अनुसार परिवर्तन आवश्यक है | उदाहरण के लिए, प्राचीन काल में शिक्षा के उद्देश्य चरित्र-निर्माण, व्यक्तित्व विकास, संस्कृति का संरक्षण, समाजिक कर्तव्यों का विकास इत्यादि थे, किन्तु वर्तमान काल में मनुष्य के विकास के लिए इन उद्देश्यों के अतिरिक्त व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा पर जोर दिया जाना आवश्यक है | वर्तमान समय में कंप्यूटर की शिक्षा के बिना मनुष्य को लगभग अशिक्षित ही माना जाता है, क्योंकि अब दैनिक जीवन में कंप्यूटर का प्रयोग बढ़ा है, इसलिए मैं शिक्षा मंत्री के रूप में वर्तमान सैद्धान्तिक शिक्षा पर जोर देने वाली शिक्षा के स्थान पर व्यवहारिक शिक्षा को महत्व देने वाली व्यावसायिक एंव तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था करवाता | इसके साथ ही शिक्षा में कंप्यूटर के प्रयोग को बढ़ावा भी देता |
प्रौढ़ शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था– प्रौढ़ शिक्षा का तात्पर्य उन प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान करना है, जिन्होंने विद्यालय में किसी प्रकार की शिक्षा प्राप्त नहीं की है | प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य लोग प्रायः लिखने-पढ़ने एवं गणित का सामान्य ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित समझते हैं | किन्तु, इन मूल उद्देश्यों के साथ-साथ प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास करना भी है, ताकि वह अपने सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक अधिकारों एवं कर्तव्यों को समझ सके | प्रौढ़ शिक्षा के इन महत्त्वों को देखते हुए मैं इसकी समुचित व्यवस्था करवाता |
स्त्री शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था– किसी भी देश की प्रगति तब तक नहीं हो सकती जब तक वहां की नारियों की प्रगति न हो | प्राचीन काल में भारत में नारियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध थे | किन्तु, विदेशी आक्रमणों एवं अन्य कारणों से नारियों को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित किया जाने लगा एवं समाज में पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा जैसी कुप्रथाएं व्याप्त हो गई | स्त्रियों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध नहीं होने का कुप्रभाव समाज पर भी पड़ा | इसलिए समाज के वास्तविक विकास के लिए स्वतंत्रता के बाद स्त्री शिक्षा की आवश्यकता महसूस की गई | स्वतंत्रता के 70 से अधिक वर्षों के बाद भी भारत में स्त्री साक्षरता दर में उचित वृद्धि नहीं हुई है | इसलिए मैं स्त्री शिक्षा पर विशेष जोर देता |
दूरस्थ शिक्षा का प्रचार–प्रसार– कम आय, अधिक आयु या शिक्षण संस्थान से दूरी जैसे कारणों से पूर्णकालिक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित लोगों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने, अपना कैरियर सुधारने की इच्छा रखने वाले शिक्षित व्यक्तियों को उचित एवं प्रभावी शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाने तथा रोजगार में लगे व्यक्तियों को उनकी रुचियों एवं उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा उपलब्ध कराकर उनकी आर्थिक प्रोन्नति के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए मैं एक शिक्षा मंत्री के रूप में दूरस्थ शिक्षा का प्रचार-प्रसार करता |
शिक्षा को समाजिक विकास का साधन बनाना– शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है | इसलिए शिक्षा का उपयोग सामाजिक विकास के साधन के रुप में मुख्यतया किया जाता है | यह राष्ट्रीय एकता एवं विकास को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है | इसके द्वारा सामाजिक कुशलता का विकास होता है | यह समाज को कुशल कार्यकर्ताओं की पूर्ति करता है | यह समाज की सभ्यता एंव संस्कृति का संरक्षण, पोषण एवं उसका प्रसार करता है | यह समाज के लिए योग्य नागरिकों का निर्माण करता है | इस तरह सामाजिक सुधार एवं उसकी उन्नति में शिक्षा सहायक होती है | मैं एक शिक्षा मंत्री के रूप में इस दिशा में यथोचित प्रयास करता |
शिक्षा को आर्थिक विकास का साधन बनाना– आधुनिक युग में मानव के संसाधन के रुप में विकास में शिक्षा की भूमिका प्रमुख होती है | उचित शिक्षा के अभाव में मनुष्य कार्यकुशल नहीं बन सकता | कार्यकुशलता के बिना व्यवसायिक एवं आर्थिक सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती | इस तरह शिक्षा द्वारा मनुष्य का आर्थिक एवं व्यवसायिक विकास होता है | मैं एक शिक्षा मंत्री के रूप में शिक्षा को आर्थिक विकास का साधन बनाता |
शिक्षा को राष्ट्रीय विकास का साधन बनाना– लगभग एक हजार वर्षों की परतंत्रता के बाद अनेक संघर्षों व बलिदानों के फलस्वरुप हमें स्वाधीनता प्राप्त हुई | स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद हमारी एकता सुदृढ़ तो हुई, परंतु हम देख रहे हैं कि संप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने पूरे देश को जकड़ रखा है | ये सभी समस्याएं हमारी राष्ट्रीय एकता में बाधक हैं | धर्मनिरपेक्षता की भावना का विकास कर संप्रदायिकता दूर करने, सामाजिक सौहार्द के द्वारा जातीयता, भाषावाद एंव क्षेत्रीयता दूर करने में शिक्षा ही सहायक हो सकती है | इस तरह, शिक्षा के द्वारा ही जन जागरूकता लाकर राष्ट्रीयता का विकास किया जा सकता है | मैं एक शिक्षा मंत्री के रूप में शिक्षा को राष्ट्रीय एकता का साधन बनाता |
सबके लिए शिक्षा उपलब्ध कराने हेतु शिक्षा के अधिकार में संशोधन एंव इसका उचित कार्यान्वयन– 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 4 अगस्त 2009 को लोकसभा में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया गया, जो 1 अप्रैल 2010 से पूरे देश में लागू हो गया | इस अधिनियम के अनुसार, भारत के 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को मुफ्त एवं आधारभूत शिक्षा उपलब्ध कराना अनिवार्य है तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बच्चों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा और न ही उन्हें शुल्क अथवा किसी खर्च की वजह से आधारभूत शिक्षा लेने से वंचित करने का प्रावधान है |
इस अधिनियम की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें 0-6 वर्ष आयु वर्ग और 14-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की बात नहीं की गई है | अन्तर्राष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 साल तक की उम्र तक के बच्चों को बच्चा माना गया है, जिसे भारत सहित 142 देशों ने स्वीकृति प्रदान की है फिर भी 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग की शिक्षा की बात इस अधिनियम में नहीं की गई है | मैं एक शिक्षा मंत्री के रूप में जन्म के बाद बालक की सही देखभाल हो सके, इसकी व्यवस्था करवाने के साथ ही उचित समय पर उसे विद्यालय में प्रवेश दिलाने को अनिवार्य करता तथा 14-18 वर्ष के बालकों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करवाता | इसके लिए आवश्यकता पड़ने पर पर्याप्त संख्या में विद्यालय खोलता तथा प्रत्येक 30 छात्रों के लिए एक शिक्षक के अनुपात को पूरा करने के लिए पर्याप्त संख्या में नए शिक्षकों को नियुक्त करता |
निजी शिक्षण संस्थाओं की मनमानी पर अंकुश– स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए अनुदान एंव सरकारी सहायता के फलस्वरुप भारत में निजी शिक्षण संस्थाओं की बाढ़-सी आ गई है | स्थिति अब ऐसी हो है कि इस पर जल्द रोक न लगाई गई, तो छात्रों को स्तरीय शिक्षा मिलना मुश्किल हो जाएगा | इसकी वजह यह है कि अधिकतर निजी शिक्षण-संस्थान धन कमाने का केंद्र बनते जा रहे हैं एवं इनके द्वारा छात्रों एवं अभिभावकों का शोषण हो रहा है | इसलिए एक शिक्षा मंत्री के रूप में मैं इस बात का पूरा ध्यान रखता कि निजी शिक्षण संस्थान अपनी मनमानी न कर पाए और शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने में भी योगदान दें |