
रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध Essay On Rabindranath Tagore In Hindi Language
मानव इतिहास में कुछ ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरे विश्व को आलोकित किया, रवीन्द्रनाथ टैगोर भी एक ऐसी ही प्रतिभा थे | उनका जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता शहर, जो उन दिनों भारत की राजधानी थी, के जोड़सांकों में हुआ था | उनके पिता का नाम महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर था |
रवीन्द्रनाथ ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने घर पर ही प्राप्त की | स्कूली शिक्षा के लिए पास के एक स्कूल में भेजा गया था पर स्कूल के वातावरण को वे सहन नहीं कर पाए जिसके बाद उनके पिता ने घर पर ही उनकी पढ़ाई की पूरी व्यवस्था कर दी | उनके घर पर देश के गणमान्य विद्वानों, साहित्यकारों और शिल्पकारों का आना-जाना लगा रहता था | यही कारण है कि औपचारिक रुप से स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाने के बावजूद उन्होंने अपने घर पर ही साहित्य, संगीत और शिल्प का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया | विद्वानों की संगीत के साथ-साथ 9 वर्ष की आयु से ही अपने पिता के साथ विभिन्न स्थलों के भ्रमण का प्रभाव उन पर कुछ इस तरह पड़ा कि मात्र 12 वर्ष की आयु से ही उन्होंने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया | बाद में अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे 17 वर्ष की आयु में लन्दन गए और लन्दन विश्वविद्यालय में उन्होंने एक वर्ष तक अध्ययन किया | इसके बाद उन्होंने कहीं औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की और साहित्य-सृजन में पूर्णतः रम गए |
रवीन्द्रनाथ ने 12 वर्ष की आयु से ही काव्य-सृजन शुरु कर दिया था, बाद में उन्होंने गद्य-साहित्य की रचना भी शुरू की और अपनी अधिकतर रचनाओं का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद भी किया | अपनी प्रसिद्ध काव्य पुस्तक ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी अनुवाद के लिए उन्हें 1913 ई. में साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और वे यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले केवल भारत ही नहीं बल्कि एशिया के भी प्रथम व्यक्ति बने | ‘गीतांजलि’ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक अमर काव्य कृति है | इसी के गीतों ने उन्हें ‘विश्वकवि’ के रूप में प्रतिष्ठित किया | कुछ लोगों का मानना है कि इसका अनुवाद किसी अंग्रेज कवि ने किया था, किन्तु अब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि यह अनुवाद किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही किया था | उन्होंने अपनी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद कैसे प्रारंभ किया ? इसके पीछे एक छोटी-सी कहानी है | प्रारंभ में वे केवल अपनी मातृभाषा बंगला में ही लिखते थे | जब वे लन्दन अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्राप्त करने गए थे, उस दौरान 17 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात अंग्रेजी के विश्व-विख्यात रोमांटिक कवियों एंव लेखकों के साथ हुई | उनमे से कई उनके अच्छे मित्र हो गए | अपने उन मित्रों के साथ आयोजित काव्य गोष्ठियों में अपनी बांग्ला कविताओं को सुनाने के दृष्टिकोण से वे उनका अनुवाद अंग्रेजी में किया करते थे | उन कवियों एंव लेखकों ने उनके काव्य की भूरी-भूरी प्रशंसा की | इसके बाद से उन्होंने अपनी अधिकतर रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद प्रारंभ कर दिया था | वे किसी एक विचारधारा के कवि नहीं थे, बल्कि उनके काव्य में पूरी मानवता का समावेश था | यही कारण है कि पूरी दुनिया के लोगों के कवि होने के कारण उन्हें विश्व-कवि की संज्ञा दी गई | कवि होने के साथ ही साथ वे कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार भी थे | विश्व की अनेक भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं | महात्मा गांधी ने उनकी प्रतिभा से अभिभूत होकर उन्हें ‘गुरुदेव’ की संज्ञा दी थी |
भारत के राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ और बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर ही हैं | उनका सपना था भारत में एक ऐसे शिक्षण-संस्थान की स्थापना करना जहां छात्र प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्राप्त कर सकें | उनका यह सपना तब साकार हुआ जब 1913 ई. में उन्हें नोबल पुरस्कार मिला, इस पुरस्कार के रुप में प्राप्त धनराशि की सहायता से उन्होंने पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के बोलपुर नामक इलाके में 1921 ई. में शांति निकेतन, विश्वभारती विश्वविद्यालय भी कहा जाता है, की स्थापना की | वर्ष 1951 ई. में भारत सरकार ने इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया | विदेशी दासता के चंगुल में फंसे देश की मुक्ति के लिए शिक्षा के क्षेत्र में जिस क्रांति की आवश्यकता थी, उस दृष्टि से यह उनका एक महानतम योगदान था |
रवीन्द्रनाथ के प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘चोखेर बाली’, ‘नौका डूबी’, ‘गोरा’, आदि उल्लेखनीय हैं | ‘राजा ओ रानी’, ‘विसर्जन’ तथा ‘चित्रांगदा’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं | इनमें उनकी नाट्य-प्रतिभा अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रकट हुई है | उनके द्वारा सृजित संगीत को आज रवीन्द्र संगीत के रूप में एक अलग शास्त्रीय संगीत का दर्जा प्राप्त है | अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने चित्र बनाना भी शुरू किया था और अपने बनाए चित्रों से उन्हें एक चित्रकार के रूप में भी विश्व-स्तरीय ख्याति मिली |
जब देश अपनी स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष कर रहा था, तब अपने सृजन से इस संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर दे रहे थे | यही कारण है कि जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई नाइट (सर) की उपाधि लौटा दी थी |
रवीन्द्रनाथ ने साहित्य, संगीत, शिल्प, शिक्षा हर क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया | उनकी मृत्यु 7 अगस्त 1941 ई. को हुई | उनके निधन पर महात्मा गांधी ने कहा था, आज भारत के रवि का अस्त हो गया | वास्तव में अपने जीवनकाल में उन्होंने साहित्य जगत को इतनी विशाल संपदा दी कि उस पर अधिकार और उसमें पारंगत होना सबके लिए संभव नहीं है | उनके गीतों में जीवन का अमर संदेश है, प्रेरणा है और ऐसी पूर्णता है, जो हृदय के सब अभावों को दूर करने में सक्षम है | वास्तव में रवीन्द्र के दर्शन में भारतीय-संस्कृति के विविध अंगों का समावेश है | उनके गीत मनुष्य की आत्मा को आवेशों की लहरों में डूबने के लिए नहीं छोड़ देते, बल्कि उसे उन लहरों से खेलते हुए पार उतर जाने की शक्ति देते हैं |