
Gajar (Carrot) Ki Kheti Kaise Kare – गाजर की खेती कैसे करें
गाजर एक मूल्यवान सब्जी है जिसका प्रयोग भारत के सभी प्रान्तों में होता है । गाजर का मूल स्थान पंजाब तथा कश्मीर है । इसकी जड़ को कच्चा, पकाकर तथा अचार बनाकर प्रयोग करते हैं । इसके अतिरिक्त हलुवा, रायता तथा जूस बनाकर प्रयोग करते हैं । गाजर के अन्दर कैरीटीन, थायेमिन, राईबोफिलेविन तथा विटामिन ‘ए’ की मात्रा अधिक पायी जाती है । हृदयरोग के लिए इसका मुरब्बा उपयुक्त रहता है ।
गाजर की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate For Carrot Kheti)
इसकी फसल को लगभग हर प्रकार की भूमि में उगाया जाता है लेकिन सबसे उपयुक्त बलुई दोमट भूमि होती है । मिट्टी उपजाऊ हो तथा जल-निकास का उचित प्रबन्ध हो |
गाजर ठन्डे मौसम की फसल है | पाला सहन करने की क्षमता रखती है । 15-20 डी० से० तापमान वृद्धि के लिए अच्छा रहता है । लेकिन अधिक तापमान से स्वाद बदल जाता है |
गाजर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Gajar Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
गाजर के खेत की जुताई खेत खाली होने पर गर्मियों में करें तथा जिससे मिटटी को तेज धूप लगे तत्पश्चात् 3-4 जुताई हैक्टर हैरो या कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए । बाद में देशी हल या ट्रैक्टर-ट्रिलर से करके पाटा चलायें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये । खेत तैयार होने पर छोटी-छोटी क्यारियां बनायें तथा बुवाई करें ।
बगीचों में भी 3-4 गहरी खुदाई करके देशी खाद मिलाकर क्षेत्र को तैयार करें तथा क्षेत्र खोदने के बाद में समतल करें |
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गाजर की उन्नतशील किस्में (Improved Varieties of Gajar)
गाजर की मुख्य किस्में हैं जिन्हें आसानी से उगाया जा सकता है-
- पूसा-केसर (Pusa-Kasher)- यह एक उन्नतशील एशियाई किस्म है जिसकी जड़ें लाल, नारंगी-सी होती है । जड़ें लम्बी, पतली व कम पत्तियां होती हैं । यह अगेती किस्म है जो अधिक तापमान को सहन कर लेती है ।
- पूसा-यमदिग्न (Pusa-Yamdigan)- यह किस्म अधिक उपज देती है । अन्य जड़ों से ‘कैरोटीन’ अधिक होती है । जड़ों का रंग हल्का नारंगी व केन्द्रक हल्का पीला रंग लिये होता है । गूदा खुशबू वाला, मुलायम व मीठा होता है ।
- पूसा-मेधाली (Pusa-Madhale)- भा. कृ. अनु. संस्थान पूसा, न. दि. के द्वारा शीघ्र ही विकसित की गयी है । यह किस्म भी अच्छे गुण वाली है ।
- नैन्टीस (Nantes)- यह किस्म एक योरोपियन किस्म है । यह ऊपर से मीठी होती है । लाल व नारंगी रंग की जड़ें होती है । जड़ें लम्बी, पतली गोलाकार तथा नीचे से पतली होती हैं । गूदा गहरे रंग का नारंगी व सुगन्धित होता है । पत्तियां अधिक होती हैं ।
- चांटनी (Chantne)- यह किस्म आकर्षित करने वाली है । जड़ें लाल, नारंगी होती हैं जो गोल, पतली, मीठी व अधिक पत्तियां होती हैं ।
बीज की मात्रा, बोने का समय एवं ढंग (Seeds Rate, Sowing Time and Method)
गाजर के बीज की मात्रा 6-7 किलो प्रति हैक्टर आवश्यकता पड़ती है । अधिक तापमान पर बोने के लिए बीज की मात्रा अधिक बोयें । अगेती किस्मों को सितम्बर-अक्टूबर तथा मध्यम व पिछेती किस्मों को नवम्बर के अन्तिम सप्ताह तक बोना चाहिए ।
बुवाई कतारों में मेंड़ बनाकर करें । इन मेडों की आपस की दूरी 40-45 सेमी. रखें या छोटी-छोटी क्यारियां-बना कर बोयें । पौधे से पौधे का अन्तर 6.8 सेमी. रखें । गहराई हल्का बीज होने से 1.5 सेमी. रखें । अधिक गहराई से बीज गल जाता है ।
बगीचों के लिए उचित बीज की मात्रा 10-12 ग्राम. 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये पर्याप्त होता है । बीजों को कतारों में बोयें । कतारों को 30 सेमी. पर रखें तथा बीज से बीज की दूरी 6.7 सेमी. रखें । बुवाई सितम्बर से नवम्बर तक करें ।
खाद व उर्वरकों की मात्रा (Quantity of Manure Fertilizers)
गाजर के लिये देशी गोबर की खाद 15-20 ट्रौली (एक ट्रौली 1 टन के बराबर) प्रति हैक्टर मिट्टी में मिलायें तथा नाइट्रोजन 60 किलो, फास्फोरस 40 किलो तथा पोटाश 80 किलो प्रति हैक्टर बुवाई से 15-20 दिन पहले मिट्टी में भली-भांति मिलायें । लेकिन नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बचाकर बोने के 35-40 दिन बाद छिड़कें जिससे जड़ें अच्छी वृद्धि कर सकें ।
बगीचों के लिये 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम डी.ए.पी. तथा 400 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में डालें । यूरिया की आधी मात्रा को 30-35 दिन के बाद छिड़कें । देशी खाद की आवश्यकता हो तो 5-6 टोकरी डाल कर मिट्टी में मिलायें ।
सिंचाई (Irrigation / Watering)
बुवाई के लिये पलेवा करें या नमी होने पर बोयें । बुवाई के 10-15 दिन के बाद नमी न होने पर हल्की सिंचाई करें । सिंचाई अधिक पैदावार लेने के लिए आवश्यक है । इसलिए हल्की-हल्की जल्दी सिंचाई करें ।
बगीचों में भी सिंचाई शीघ्र करें । कम पानी देने से जड़ें वृद्धि नहीं करती हैं । इसलिए पानी 2-3 दिन बाद देते रहें ।
खरपतवार नियन्त्रण (Weeds Control)
गाजरों की निकाई-गुड़ाई खरपतवारों को निकालने के लिये करें तथा पहली गड़ाई सिंचाई करने के 4-5 दिन बाद ही करें । घास को निकालकर बाहर फेंके तथा थीनिंग भी साथ-साथ करें । पौधों की दूरी 6-8 सेमी. पर रखें । फालतू पौधों को उखाड़ दें ।
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रोगों से गाजर के पौधों की सुरक्षा कैसे करें Rogon Se Gajar Ke Paudhon Ki Suraksha Kaise Kare
कीटों में अधिकतर पत्ती काटने वाला कीड़ा लगता है जो पत्तियों को काट कर क्षति पहुंचाता है । नियन्त्रण के लिये 2 ग्राम प्रति लीटर थापोडान दवा घोलकर छिड़कने से रोका जा सकता है तथा फसल को अगेती बोयें । गाजर की फसल में एक ‘पीलापन’ वाली बीमारी है जोकि पत्तियों को खराब करती है । ये विषाणु वाली बीमारी है जो लीफ होयर द्वारा फैलती है । नियन्त्रण के लिये बीजों को 0.1% मरक्यूरिक-क्लोराइड से उपचारित करके बोने पर बीमारी नहीं लगती है ।
खुदाई (Digging)
गाजर की खुदाई भी जड़ों के आकारानुसार करनी चाहिए । जब जड़ों की मोटाई व लम्बाई ठीक बाजार लायक हो जाये तो खुदाई करनी चाहिए । खुदाई के 2-3 दिन पहले सिंचाई करें तत्पश्चात् खुदाई करना आसान हो जाता है । खुदाई के समय ध्यान रहे कि जड़ों को क्षति न पहुंचे । जड़ों के कटने से बाजार मूल्य घट जाता है ।
उपज (Yield)
गाजर की फसल का ठीक प्रकार से ध्यान रखा जाये तो उपज भी 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है । उपज किस्मों पर अधिक निर्भर करती है ।
बगीचों में भी 15-20 किलो गाजर 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में प्राप्त हो जाती है जो कि समय-समय पर किचन में काम आती रहती है ।
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