
गंगोत्री मंदिर गंगोत्री धाम उत्तराखण्ड की सम्पूर्ण जानकारी All About Gangotri Dham Temple. Gangotri temple history in hindi
हिमालय के उत्तराखण्ड क्षेत्र में समुद्रतट से लगभग 3200 मीटर ऊंचाई पर स्थित है गंगोत्री। उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। भागीरथी नदी के किनारे बने इस मन्दिर को 18वीं शताब्दी में गोरखा रेजीमेन्ट के जनरल अमर सिंह थापा ने बनवाया था।
मन्दिर के आसपास अनेक आश्रम हैं। इनमें से कुछ में यात्रियों के ठहरने की भी पर्याप्त व्यवस्था रहती है। पास में ही गौरीकुण्ड व केदारकुण्ड हैं। यहां से अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गौमुख, जो भारत की पवित्रतम कही जाने वाली गंगा नदी का उद्गम स्थल है। यह हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में समुद्रतट से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसके आगे गंगोत्री व चतुरंगिणी हिमखण्डों के विशाल क्षेत्र हैं। यहां से शिवलिंग, भागीरथी, सुदर्शन, थेलू व केदारडोम की बर्फ से ढकी सुन्दर चोटियां दिखाई पड़ती हैं। यह वह स्थान है जहां गंगा सबसे पहले हिमखण्ड के गर्भ से बाहर निकलती है और आरम्भ करती है अपनी महायात्रा।
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गौमुख हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान भी है। विभिन्न पर्वतारोही दल भी प्रत्येक वर्ष यहां अपना पड़ाव डालते हैं। समुद्रतट से काफी ऊंचाई पर होने के कारण अक्टूबर के बाद यहां भारी हिमपात आरम्भ हो जाता है। जिसके बाद यहां आने-जाने के सभी मार्ग बन्द हो जाते हैं। चारों तरफ बर्फ के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं पड़ता। तापमान शून्य से भी काफी नीचे खिसक जाता है जिसके बाद यहां ठहर पाना लगभग असम्भव सा ही है।
गंगोत्री से गौमुख तक के अठारह किलोमीटर पैदल मार्ग का एक मुख्य पड़ाव है भोजवासा । यहां कभी भोजपत्रों का घना जंगल था। इसी कारण इस स्थान का नाम भोजवासा पड़ा। भोजवृक्ष काफी ऊंचाई पर उगने वाला पेड़ है। इसके तने व डालियों पर एक सफेद व महीन छाल चिपकी रहती है जिसे भोजपत्र कहते हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में भोजपत्रों का विशेष महत्व रहा है। आज से हजारों वर्ष पूर्व जब कागज का आविष्कार नहीं हुआ था, तब पाण्डुलिपियां भोजपत्रों पर ही तैयार की जाती थीं। हमारे अधिकतर प्राचीन ग्रंथ भोजपत्रों पर ही लिखे गए हैं। आज भी धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कहीं कहीं भोजपत्रों का प्रयोग किया जाता है। भोजपत्र कई तरह की औषधियों के निर्माण में भी काम आते हैं।
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प्रदूषण का भोजवृक्षों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। जहां कभी भोजपत्रों के हरे भरे जंगल थे वहां आजकल गिने चुने भोजपत्र ही दिखाई पड़ते हैं। यह एक चिन्ता की बात है।