
Garbhavastha Ke Tips In Hindi. गर्भावस्था स्त्री के लिए बहुत ही नाजुक और संवेदनशील अवस्था होती है। यही वह समय है जब उसे अपने स्वास्थ्य के प्रति सबसे अधिक सजग रहने की जरूरत है, क्योंकि जरा सी भी असावधानी जीवन के लिए खतरा बन जाती है। इन दिनों एक अनजाना सा भय भी बना रहता है और शिशु के आने की खुशी भी मन में होती है। इस गर्भावस्था का निडर होकर सामना करने के लिए कुछ उपयोगी सलाह हम यहाँ आपको बता रहें हैं –
गर्भावस्था के दौरान शुरुआती 2-3 महीनों में अधिकांश महिलाओं को गर्भावस्था में उल्टियां (Garbhavastha Me Ulti – Vomiting) होने लगती हैं, खाने से अरुचि हो जाती है, ऐसे में जो मन करे वही चीज खुश होकर खाने का प्रयास करना चाहिए। प्रसव के दौरान स्त्री को असहनीय पीड़ा होती है। इसलिए प्रसव सुगमता से हो, यह हर स्त्री का सपना होता है। जरूरत है प्रसव को प्राकृतिक क्रिया समझकर सकारात्मक दृष्टि से देखें, यह न सोचें कि मैं कैसे सब कुछ मैनेज करूंगी, न ही नाना प्रकार के विचार और परेशानियों को मन में बैठने दें।
नौ माह तक गर्भिणी के क्रिया-कलाप, खान-पान, सोच-विचार आदि पर गर्भिणी की सफलता निर्भर करती है। यदि उसने मनोमस्तिष्क में यह बात अच्छी तरह से बिठा ली है कि मां बनना दुनिया की सबसे बड़ी उपलब्धि है और मैं मां बनने जा रही हूँ, तो ये नौ माह बच्चे के प्रति शुभकामनायें प्रेषित करने में ही बीत जायेंगे।
यद्यपि गर्भ ठहरते ही गर्भवती महिला के स्वभाव में बदलाव आ ही जाता है। कुछ महिलाएं डरती हैं और कुछ तनाव में रहने लगती हैं। ऐसे में घर के बड़े बुजुर्ग या पति को चाहिए कि वे हर पल उसे गर्भावस्था जीवन के सुखद पलों का अनुभव करायें, समय-समय पर डॉक्टरी जांच करवाते रहें। इससे रक्तचाप, बच्चे के हृदय की धड़कन, वजन आदि का अंदाजा बना रहेगा तथा मां अपने स्वास्थ्य के प्रति भी सजग रहेगी।
रक्तचाप को बढऩे न दें। रक्तचाप के बढऩे पर बच्चे के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि मां पहले से ही रक्तचाप से ग्रस्त है, तो डॉक्टर द्वारा दी गयी आयरन व कुछ अन्य दवाइयां रोजाना ले तथा समय-समय पर जांच कराती रहे।
मन को शांत रखे। अच्छा सोचे। अच्छा संगीत सुने। अच्छी किताबें पढ़े। संत, महापुरुषों, राष्ट्रभक्तों के जीवन प्रसंगों से लगातार जुड़े रहें, क्योंकि इस चिंतन का बच्चे के संपूर्ण विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
पेशाब की जांच भी जरूरी है, ताकि एलब्यूमिन, शुगर आदि का पता चल सके, और समय से नियंत्रित किया जा सके।
खून की जांच भी जरूरी है। कई बार बच्चों में वंशानुगत कई रोग आ जाते हैं, जो बच्चे के मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी आदि को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में खून की जांच से उनका पता चल जाता है और रोकथाम के उपाय प्रयोग में आ जाते हैं।
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गर्भावस्था में क्या खाना चाहिए (Garbhavastha Me Kya Khana Chahiye)?
भोजन संतुलित और पौष्टिक लें और इस तरह से भोजन की व्यवस्था करें कि गर्भिणी का हर माह एक किलो वजन बढ़े। मानक के तहत गर्भवती महिला का वजन प्रसव के दौरान उसके सामान्य वजन से 10-12 किलो तक बढऩा उचित माना जाता है।
इस दौरान शाकाहारी भोजन सबसे उत्तम रहता है। बस इतना ध्यान रखें कि भोजन संतुलित रहे और वजन जरूरत से ज्यादा न बढ़े। गर्भावस्था में दूध और दूध से बने पदार्थों और ताजा नारियल पानी का सेवन कर सकते हैं। अंतिम महीनों में बढ़ते वजन के कारण रात को लेटने में दिक्कत आ सकती है, ऐसे में शाम के समय फलों का ही सेवन करें।
आसान प्रसव के लिए समुचित आहार बहुत ही जरूरी है। भोजन में ताजे फल, सब्जियां, दालें आदि का सही संतुलन होना चाहिए। साथ ही दूध, प्रोटीन, फाइबर युक्त पदार्थ, सोयाबीन, मूंग की दाल, आयरन युक्त चीजें-पालक, खजूर, किशमिश आदि अधिक ले सकते हैं।
पर भोजन में फैट वाली चीजें न हों। इससे कब्ज़ व बवासीर की शिकायत हो सकती है। इसलिए भोजन विटामिन, आयरन व कैल्सियम युक्त तथा पौष्टिकता से भरपूर होना चाहिए।
गर्भवती को खाने में अधिकांश लोग तरह-तरह की हिदायतें देते रहते हैं, जिससे भी गर्भवती तनाव ग्रस्त रहने लगती है। जबकि पपीता को छोड़कर तीन महीने तक गर्भवती अपनी पसंद का खाना आराम से खा सकती है, मनपसंद भोजन से सेहत भी ठीक रहती है।
गर्भावस्था में नशीले पदार्थों के सेवन से बचें। इनका गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ता है। चाय-काफी, ठंडे पेय का सेवन भी बंद या कम कर दें। तैलीय व मसालेदार भोजन के सेवन से बचें।
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दवाओं का सेवन एवं शारीरिक श्रम
सर्दी, खांसी या बुखार होने पर अपने आप कोई दवा न लें। सर्दी, जुक़ाम की दवाओं में कैफीन होता है, जो गर्भस्त शिशु के विकास को प्रभावित कर सकता है। गर्भावस्था में हीमोग्लोबिन और कैल्शियम की मात्रा संतुलित होनी चाहिए, क्योंकि इनके बेहतर संतुलन से प्रसव में परेशानी नहीं होती।
कभी-कभी गर्भवती को मूर्छा आने लगती है तो फौरन डॉक्टर से मिलें। यह स्थिति मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। जिन महिलाओं को बार-बार गर्भपात होने की समस्या हो, उन्हें व्यायाम नहीं करना चाहिए।
यदि गर्भवती को डायबिटीज है, तो प्रसव के समय अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि इस दौरान ब्लडप्रेशर बढ़ता है, तो बच्चे का वजन बढ़ जाता है और कठिनाई आती है। इन सब समस्याओं से बचने के लिए डायबिटिक गर्भवती को अपना ब्लडशुगर, इंसुलिन आदि समय-समय पर चेक करवाते रहना चाहिए।
हल्की सीढिय़ां चढऩा, चक्की चलाना, कुएं से पानी खींचना, भोजन बनाना, टहलना आदि हल्के व्यायाम व कुछ साधारण प्राणायाम व योगाभ्यास प्रतिदिन करने से प्रसव आसान हो जाता है। पर सामान्य से अधिक परिश्रम करने से बचें। अधिक वजन न उठाएं। वजन लेकर सीढिय़ों पर न चढें। इससे गर्भस्थ शिशु पर दबाव पड़ता है और वह नीचे की ओर खिसक सकता है।
गर्भावस्था में सहवास (Garbhavastha Me Sambhog) से दूर रहने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए।
गर्भधारण के प्रारंभ के चार महीनों में खाली पेट न रहें। उल्टियां आने पर भी खाना न छोड़ें। पानी अधिक पीएं।
गर्भावस्था के अंतिम महीनों में अक्सर महिलाएं भोजन नहीं कर पाती, ऐसे में उन्हें फल, दूध आदि का सेवन अधिक करना चाहिए, ताकि शरीर को भरपूर पोषक तत्व मिलते रहें।
ये गलतियां कदापि न करें
- पेट के बल लेटकर न सोएं।
- रात में अधिक देर तक न जागें।
- कठोर आसन व गलत मुद्रा में न बैठें।
- दिन में सिर्फ आराम करें, सोएं नहीं, पर अधिक आराम या बेडरेस्ट से बचें। अपना दैनिक कार्य करते रहें।
- पारा युक्त औषधियां न लें।
- दुर्बलता, पीलिया आदि की अवस्था में ये औषधियां और भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- शोक, क्रोध, भय, उपवास, लम्बी यात्रा, लम्बी दूरी तक पैदल चलना, झटके लगने वाली सवारी पर सफर करना, अधिक ऊंचाई से झांकना, दौड़कर चलना आदि से बचें।
- शराब, मांस, चटपटे पदार्थ न लें।
- एलोपैथिक दवाइयों का सेवन न के बराबर करें।
- इस दौरान गर्भवती के पेट में प्राय: खुजली होती है। इसे नाखूनों से न खुजलाएं बल्कि हाथों में कपड़ा लेकर हल्के से सहलाएं।
प्राकृति के साथ रहें
दिन भर में 4-5 बार प्राकृतिक एवं खुले स्थान पर लंबी-लंबी गहरी-गहरी सांस अवश्य लें। इसे कम से कम 10-15 बार करें। नियमित रूप से यह अभ्यास करने से प्रसव के दौरान पीड़ा कम होती है। बेडरूम में मनभावन, आकर्षक और खूबसूरत तस्वीर लटकाएं तथा उसे दिनभर में दो तीन बार देखें।
भरपूर नींद लें Garbhavastha Me Sona
दिन में 2-3 घंटे आराम करें तथा रात को 5-6 घंटे की गहरी नींद लें। मन पसंद या भक्तिमय संगीत सुनें। इनका मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
गर्भावस्था में सोने के पोजीशन का विशेष रूप से खयाल रखें। जब भी सोएं बायीं करवट सोएं, जिससे गर्भाशय पर दबाव न पड़े।
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आठ माह तक का सफ़र
छ: महीने तक महीने में एक बार व सातवें और आठवें महीने में 15 दिन में एक बार, नौवे महीने मे हर हफ्ते डॉक्टर को दिखायें ताकि गर्भस्थ शिशु में असामान्यता का पता चल सके।
सातवें माह में ब्रीदिंग एक्सरसाइज डॉक्टर की सलाह से करें।
आठवें या नौवे माह में ही चिकित्सक को मालूम हो जाता है कि नॉर्मल प्रसव होगा या सिजेरियन। अगर सिजेरियन है तो इसके लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएं। सीजेरियन डिलीवरी भी नार्मल डिलीवरी के अंतर्गत आती है, क्योंकि मां-बच्चे के स्वास्थ्य और हर पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उनके भले के लिए ही इस तरह की डिलीवरी की जाती है।
परिवारवालों और परिचितों का स्नेहपूर्ण व्यवहार जरूरी (Garbhavastha Me Dekhbhal)
प्रसव को आसान बनाने के लिए पति का स्नेह, सहयोग और प्यार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इससे उसे भावनात्मक सपोर्ट मिलता है, जो प्रसव को सुखद और आसान बना देता है।
प्रसव की अवधि में गर्भवती की मानसिक स्थिति भी काफी महत्वपूर्ण होती है। कई बार गर्भवती तनाव की शिकार हो जाती है और यही डिप्रेशन डिलिवरी को तकलीफदेह बना देता है। अक्सर एस्ट्रोजन की कमी के कारण इस तरह का डिप्रेशन आ जाता है। मनोचिकित्सक ऐसे में गर्भवती की मदद कर सकता है।
परफ्यूम, फिनायल, कीटनाशक आदि गंध से बचें। ये बच्चे के लिए भी नुकसानदायक हैं।
कुछ महिलाएं खाने में नमक की मात्रा अधिक इस्तेमाल करती हैं। जबकि गर्भावस्था में नमक के अत्यधिक सेवन से हाथ-पैर में सूजन आ सकती है, लेकिन ब्लडप्रेशर कम हो तो खाने में नमक की मात्रा अवश्य बढ़ायें।
यदि आप किसी रासायनिक संस्थान, एक्सरे संबंधी किसी कंपनी में काम करती हैं, जिनका धुंआ विषैला या जहरीला है तो आप इस काल में इन सबसे दूर रहें।
गर्भावस्था में भूख भी ज्यादा लगती है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बारबार भोजन लें। एक साथ बहुत सारा खाना खाने से हाजमा भी खराब हो सकता है। जो भी खाएं सही मात्रा में लें। पहले तीन महीनों में वसा युक्त भोजन से भी परहेज करें।
गर्भावस्था की अवधि में त्वचा रूखी, तैलीय व चिपचिपी भी हो सकती है। ऐसे में आप साबुन का प्रयोग न करें। अपनी त्वचा के अनुरूप किसी अच्छे मॉश्चराइजर का इस्तेमाल करें। अगर आपकी त्वचा काली पड़ जाए या चेहरे पर छोटे-छोटे दाने निकल आएं तो अधिक चिंतित न हों। गर्भावस्था में ये सब होना स्वाभाविक है। इस तरह के दाग-धब्बे शिशु के जन्म के बाद खुद ही समाप्त या कम हो जाते हैं।
उपर्युक्त इन थोड़ी सी सावधानियों को अपनाकर एवं पतंजलि निर्मित कुछ पोषणयुक्त आयुर्वेदिक औषधियां अपनाकर एक गर्भवती मां अपने को स्वस्थ-प्रसंनचित्त रख सकती है और सहज प्रसव का लाभ ले सकती है।
सोर्स : योग सन्देश
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