
गौर किशोर घोष का जीवन परिचय Gour Kishore Ghosh Ka Jeevan Parichay In Hindi
नाम : गौर किशोर घोष
जन्म : 20 जून 1923
जन्मस्थान : हाट गोपालपुर, जैसोर (पूर्वी बंगाल)
मृत्यु : 15 दिसम्बर 2000
उपलब्धियां : रमन मैग्सेसे (1981)
विकासशील देशों में ईमानदारी से प्रगतिवादी तथा प्रभावी लेखन कर पाना न केवल मुश्किल है बल्कि खतरनाक भी है | सरकारों के अलावा, दूसरी बहुत सी ऐसी व्यवस्थाएँ है जो अपनी स्थानीय तथा अन्तरराष्ट्रीय छवि बनाए रखने के लिए प्रकाशन और प्रसारण पर अपना अकुंश बनाए रखना चाहती हैं | ऐसे में गौर किशोर घोष ने अपने लम्बे संघर्षपूर्ण रचनात्मक लेखन तथा पत्रकारिता के जरिए अपनी बात को निर्भीकतापूर्वक आगे रखा और साथ ही नागरिकों तथा प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए जुझारू तेवर दिखाए । गौर किशोर घोष की मानवीय, दृष्टि, उनकी निर्भीकता तथा दबावों के खिलाफ अडिग पत्रकारिता के लिए उन्हें वर्ष 1981 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।
गौर किशोर घोष का जीवन परिचय Gour Kishore Ghosh Ka Jeevan Parichay In Hindi
गौर किशोर घोष का जन्म 20 जून 1923 को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के जैसोर जिले के हाट गोपालपुर गाँव में हुआ था । उनके पिता एक डॉक्टर थे और गौर किशोर उनकी छह सन्तानों में सबसे बड़े और एक मात्र पुत्र थे ।
किशोर की शिक्षा सिलहेर गाँव में शुरू हुई, जहाँ उनके पिता एक चाय बागान में डॉक्टर नियुक्त होकर गए थे । यह एक बीहड़ तथा घोर अविकसित गाँव था, जहाँ एक कमरे और एक मास्टर वाले स्कूल में किशोर की पढ़ाई शुरू हुई । यहाँ केवल बांग्ला पढ़ाए जाने की व्यवस्था थी । सिलहेर के बाद किशोर के पिता का तबादला नवाब दीप हो गया । नवाब दीप कलकत्ते से चालीस मील उत्तर में एक स्थान था, जहाँ किशोर ने हाई स्कूल से लेकर ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की ।
नवाब द्वीप में किशोर के पिता ने उनका नाम बकुलतला हाई इंग्लिश स्कूल में लिखवा दिया जहाँ उन्हें अंग्रेजी पढ़ने का मौका मिला । इसी नवाब दीप में किशोर को लाइब्रेरी में जाकर पढ़ने का चस्का लगा । उस समय इनका किसी विशेष विषय की पुस्तकों का चुनाव नहीं होता था, बस, जैसा कि इन्हें एक मित्र ने सुझाया था वह इस विश्वास से सब पढ़ते जाते थे कि इन्हें, सब कुछ पढ़ने भर से समझ में आने लगेगा ।
इसे भी पढ़ें- विनोबा भावे का जीवन परिचय
पन्द्रह वर्ष की आयु में किशोर कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया की छात्र शाखा के सदस्य बन गए । उस समय भारत में ब्रिटिश सरकार की ओर से यह एक प्रतिबन्धित राजनैतिक दल था और इस तरह वर्ष 1938 में यह किशोर की ओर से सत्ता की पहली अवहेलना की घटना थी ।
किशोर का शुरुआती जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा । इन्होंने जीवन यापन के लिए बहुत से काम किए । वह एक बिजली के मिस्त्री रहे, एक जगह फिटर का काम किया, परिस्थितिवश उनके जिम्मे परिवार के पालन पोषण का भार भी आ गया था जिसने उनसे रेस्तरां में बर्तन तक धुलवाए । उसी दौरान उनका लेखन भी शुरू हुआ । उनकी पहली कविता 1943 में कलकत्ते की पत्रिका ‘पूर्वाशा’ में छपी ।
किशोर के पत्रकारिता जीवन की शुरुआत 1947 में तब हुई, जब उन्हें एक नई साहित्यिक साप्ताहिक पत्रिका में प्रूफ रीडर का काम मिला । लेकिन यह पत्रिका साल भर में ही बन्द हो गई । किशोर को फिर उसी संघर्ष में उतरना पड़ा । तभी एक नए शुरू होने वाले अखबार ‘सत्ययुग’ ने किशोर को फिर प्रूफ रीडर बनाकर रख लिया । यह देश के बड़े प्रकाशन टाइम्स ऑफ इण्डिया का सहयोगी प्रकाशन था ।
गौर किशोर घोष की प्रतिभा का उदय तब सामने आया, जब वह कलकत्ता की सबसे बड़ी पत्रिका ‘देश’ के लिए एक नियमित स्तम्भ ‘रूपदर्शीरनक्श’ लिखने लगे । यह स्तम्भ 1950 से शुरू होकर 1953 तक चला । इस स्तम्भ में किशोर ने प्रतिदिन देखे जाने वाले ऐसे जनमानस की तस्वीर उजागर की, जो प्राय: अनदेखी कर दी जाती है । इस काम के जरिए किशोर का मकसद यह दिखाने का था कि साधारण से साधारण प्रसगं में एक सौन्दर्य छिपा होता है, और वह तभी नजर आता है, जब उसे मानवीय दृष्टि से देखा जाता है ।
इसी क्रम में किशोर की दूसरी रचनाएँ ‘सर्कस’ नाम से सामने आईं । इनकी भी भाषा बांग्ला थी और यह 1952 में पुस्तक रूप में प्रकाशित हुईं ।
1952 में ही किशोर आनन्द बाजार पत्रिका के रिपोर्टर के रूप में नियुक्त किए गए । आनन्द बाजार पत्रिका कलकत्ते में बांगला का सबसे बड़ा दैनिक अखबार है । किशोर की रचना ‘एई कोलकताई’ उन्हीं दिनों प्रकाशित हुई थी और उसने आनन्द बाजार पत्रिका के प्रकाशकों का ध्यान इस ओर खींचा था । आनन्द बाजार पत्रिका में आने के बाद भी इनका ‘देश’ के लिए लिखना जारी रहा था ।
1958 में किशोर तथा इसके महत्त्वपूर्ण पत्रकार अमिताभ चौधुरी ने एक स्वतन्त्र साप्ताहिक निकालने का विचार बनाया । किशोर कहते हैं कि विचार तो अच्छा था लेकिन उन्हें इसके लिए संसाधन कैसे जुटेंगे यह समझ में नहीं आ रहा था । इस समस्या को अमिताभ चौधुरी ने कैसे चुटकी बजाते हल किया यह किशोर के लिए हैरत की बात रही । ‘दर्पण’ नाम से यह साप्ताहिक निकाला गया, जिसमें चौधुरी ने किशोर से नियमित लिखने का आग्रह किया । 1956 में किशोर ने ‘सगीना महतो’ तथा पाँच दूसरी राजनैतिक परिवेश की कहानियाँ पुस्तक रूप में देकर अपना नाम जमा लिया था ।
इस नाते किशोर एक कुशल पत्रकार तथा लेखक के रूप में उभर रहे थे । ‘दर्पण’ के लिए किशोर डेढ़ साल तक लिखते रहे ।
‘दर्पण’ में किशोर ने अपना लोकप्रिय स्तम्भ ‘गोडानन्द कवि माने’ शीर्षक से शुरू किया जो आनन्द बाजार पत्रिका में छपने लगा । शुरू में यह स्तम्भ नियमित नहीं था लेकिन इसकी लोकप्रियता ने इसे 1970 से नियमित हो जाने दिया । 1974 में इस स्तम्भ की सामग्री पुस्तक रूप में प्रकाशित होकर सामने आई ।
आनन्द बाजार पत्रिका में किशोर तरक्की करते हुए वरिष्ठ सम्पादक के पद तक पहुँचे । किशोर की इस प्रगति के दौरान उन्हें बहुत से ऐसे अनुभव हुए जिन्हें भुला पाना उनके लिए कठिन था, लेकिन उन्होंने जिस तरह से उनका सामना किया उससे किशोर की छवि एक अदम्य साहसी तथा निर्भीक पत्रकार की बनती चली गई ।
किशोर मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित थे जरूर लेकिन जहाँ कुछ गलत देखते थे उसका विरोध करने से भी नहीं चूकते थे । इस दृष्टि से कोई भी प्रतिबद्धता उनके सच के रास्ते में बाधा नहीं बनी । इस सन्दर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ बताई जा सकती हैं ।
1969 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (एम.एल.) के प्रमुख चारु मजूमदार ने भूमिहीनों के हिमायती होने का दावा करते हुए, भूमि अधिकरण से बहुत अनाचार किया । इस बात के खिलाफ गौर किशोर घोष ने व्यंग्यात्मक आलेख लिखा जिसमें ‘चारु मजूमदार की भर्त्सना की गई थी । इस आलेख ने किशोर के लिए मुसीबत खड़ी कर दी । इसके पहले भी किशोर कम्युनिस्टों की दोहरी नीति के खिलाफ बहुत कुछ लिख चुके थे ।
4 जुलाई 1970 को उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया (एम.एल.) की जिला कमेटी की ओर से एक पत्र मिला जिसमें उन्हें चेतावनी दी गई कि वह एक महीने के भीतर माफी माँग लें अन्यथा उनकी हत्या कर दी जाएगी । किशोर के पास एक ऐसा ही और पत्र आया, जिसमें उन पर बहुत से आरोप लगाए गए थे ।
किशोर ने ये दोनों पत्र अपने उत्तर के साथ प्रकाशित कर दिए । अपने उत्तर में किशोर ने लिखा ।
‘मौत मनुष्य का एक स्वाभाविक अन्त है’ उन्होंने अपने पत्र के अन्त में महाभारत का उद्धरण दिया और लिखा :
मनुष्य कौन है…? प्राणी के अच्छे कर्मों की तरंग आकाश से धरती तक जाती है । और प्राणी अपने अच्छे कर्मों से ही मनुष्य कहलाता है…
किशोर ने मनुष्य होने के हवाले से अपनी चेतना का सन्दर्भ सामने रखा कि अपनी चेतना को झुठला कर मौत से बचने की कोशिश करने वाले वह नहीं हैं ।
इस प्रसंग के बाद भी किशोर की निर्भीक अभिव्यक्ति जारी रही ।
इसी तरह दूसरा प्रसंग 1975 का है जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने देश में आपात्काल लगा दिया था । तब किशोर ने इसका विरोध अपने ढंग से व्यक्त किया था, जिसकी गूँज दूर तक गई थी ।
घोष ने आपात्काल के प्रतिवाद में अपना सिर मुड़वाकर अपने तेरह वर्षीय बेटे को इस आशय का एक प्रतीकात्मक पत्र लिखा कि उसकी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की मृत्यु हो गई है इसलिए पारम्परिक रूप से वह मुंडन करवा रहें हैं ।
आपात्काल में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बंदिश लगी थी, इसके बावजूद किशोर का यह पत्र कलकत्ते के बांग्ला मासिक में छपा । किशोर को जेल हो गई । वहीं से गुपचुप यह पत्र आगे अनुवाद के बाद मराठी में ‘साधना’ तथा गुजराती में ‘भूमिपुत्र’ में प्रकाशित हुआ । इस पर ये अंक सरकार ने कब्जे में ले लिए लेकिन बाद में बम्बई तथा गुजरात के हाईकोर्ट ने इन अखबारों के पक्ष में फैसला दिया |
इसे भी पढ़ें- भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय
आपात्काल के बाद किशोर फिर आनन्द बाजार पत्रिका के वरिष्ठ सम्पादक के रूप में बहाल हुए । उन्होंने साथ के समान सोच वाले लोगों के साथ मिलकर ‘आजकल’ नाम के एक बांग्ला दैनिक का सम्पादन शुरू किया । उनके इस काम में उनकी पत्नी, दो बेटियों तथा एक बेटे ने हाथ बटाना शुरू किया |
15 दिसम्बर 2000 को किशोर ने इस संसार से विदा ली |
Tags : Gour Kishore Ghosh Biography In Hindi, Indians Who Have Won The Ramon Magsaysay Award, Indian Winners Of Ramon Magsaysay Award.