जीवन में अनुशासन के महत्व पर निबंध Importance Of Discipline In Our Life Essay In Hindi

जीवन में अनुशासन के महत्व पर निबंध Importance Of Discipline In Our Life Essay In Hindi Language

‘अनुशासन’ शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग के जुड़ने से बना है, इस तरह अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है- शासन के पीछे चलना | प्रायः माता-पिता एवं गुरुजनों के आदेशानुसार चलना ही अनुशासन कहलाता है, किन्तु यह अनुशासन के अर्थ को सीमित करने जैसा है | व्यापक रुप से देखा जाए तो स्वशासन अर्थात आवश्यकतानुरूप स्वयं को नियंत्रण में रखना भी अनुशासन ही है | अनुशासन के व्यापक अर्थ में, शासकीय कानून के पालन से लेकर सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक नियमों का पालन करना भी सम्मिलित है | इस तरह, सामान्य एवं व्यवहारिक रूप में, व्यक्ति जहां रहता है, वहां के नियम, कानून एवं सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करना ही अनुशासन कहलाता है |

जैसा कि प्रारंभ में बताया गया है, अनुशासन का अर्थ होता है शासन के पीछे चलना, इस अर्थ से देखा जाए तो जैसा शासन होगा, वैसा ही अनुशासन होगा | इस प्रकार, यदि कहीं अनुशासनहीनता व्याप्त है, तो कहीं न कहीं इसमें अच्छे शासन का अभाव भी जिम्मेदार होता है | यदि परिवार के मुखिया का शासन सही नहीं है तो परिवार में अव्यवस्था व्याप्त रहेगी ही | यदि किसी स्थान का प्रशासन सही नहीं है, तो वहां अपराध का ग्राफ स्वाभाविक रूप से ऊपर ही रहेगा | यदि राजनेता कानून का पालन नहीं करेंगे तो जनता से इसके पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती | यदि क्रिकेट के खेल के मैदान में कैप्टन स्वयं अनुशासित नहीं रहेगा, तो टीम के अन्य सदस्यों से अनुशासन की आशा करना व्यर्थ है | और, यदि टीम अनुशासित नहीं है तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता | इसी तरह, यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो तो उसकी सैन्य टुकड़ी कभी अनुशासित नहीं रह सकती, परिणामस्वरुप देश की सुरक्षा निश्चित रूप से खतरे में पड़ जाएगी |

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अनुशासन के बिना किसी भी समाज में अराजकता का माहौल व्याप्त होना स्वाभाविक है | इसी तरह एक परिवार के सदस्य यदि अनुशासित न हों, तो उस परिवार का अव्यवस्थित होना स्वाभाविक है | सरकारी कार्यालयों में यदि कर्मचारी अनुशासित न हों, तो वहां भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाएगा | इस तरह स्पष्ट है कि अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है, न कोई संस्था और न ही कोई राष्ट्र | अनुशासन किसी भी सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है | अनुशासन न केवल व्यक्तिगत हित बल्कि सामाजिक हित के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है | बच्चे का जीवन उसके परिवार से प्रारंभ होता है | यदि परिवार के सदस्य गलत आचरण करते हैं तो बच्चा भी उसी का अनुसरण करेगा | परिवार के बाद बच्चा अपने समाज एंव स्कूल से सीखते है | यदि उसके साथियों का आचरण खराब होगा, तो उससे उसके भी प्रभावित होने की पूरी संभावना बनी रहेगी | यदि शिक्षक का आचरण गलत है तो बच्चे कैसे सही हो सकते हैं ! इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अनुशासित हो, तो इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने आचरण में सुधार लाकर स्वयं अनुशासित रहते हुए बाल्यकाल से ही बच्चों में अनुशासित रहने की आदत डालें | वही व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रह सकता है, जिसे बाल्यकाल में ही अनुशासन की शिक्षा दी गई हो | बाल्यकाल में जिन बच्चों पर उनके माता-पिता लाड-प्यार के कारण नियंत्रण नहीं रख पाते, व्ही बच्चे आगे चलकर अपने जीवन में कभी सफल नहीं होते | अनुशासन के अभाव में कई प्रकार की बुराइयां समाज में अपनी जड़ें विकसित कर लेती हैं | नित्य-प्रति होने वाले छात्रों के विरोध-प्रदर्शन, परीक्षा में नकल, शिक्षकों से बदसलूकी अनुशासनहीनता के ही उदाहरण हैं | इसका खामियाजा उन्हें बाद में जीवन की असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है, किन्तु जब तक वे समझते हैं तब तक देर हो चुकी होती है |

यदि कोई संगीत में निपुण होना चाहता है, तो उसे नियमित रूप से इसका अभ्यास करना ही पड़ेगा | खिलाड़ी बनने के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करने के साथ-साथ अपने आहार-व्यवहार का भी ध्यान रखना पड़ता है | यदि मनुष्य अपने खान-पान का ख्याल न रखे तो उसका शरीर भी उसका साथ नहीं देता और अनेक प्रकार की बीमारियों के कारण उसे कई प्रकार के कष्टों को भोगना पड़ता है | विद्या अर्जित करने के लिए विद्यार्थियों को अपने शिक्षकों के निर्देशों का अनुसरण करना पड़ता है |

किसी मनुष्य की व्यक्तिगत सफलता में भी उसके अनुशासित जीवन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है | जो छात्र अपने प्रत्येक कार्य नियम एंव अनुशासन का पालन करते हुए संपन्न करते हैं, वे अपने अन्य साथियों से न केवल श्रेष्ठ माने जाते हैं, बल्कि सभी के प्रिय भी बन जाते हैं | महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, डॉ. भीम राव अंबेडकर, स्वामी दयानंद सरस्वती इत्यादि जैसे महापुरुषों का जीवन अनुशासन के कारण ही समाज के लिए उपयोगी हम सबके लिए प्रेरणा-स्त्रोत बन सका |

किसी भी राष्ट्र की प्रगति तब ही हो सकती है, जब उसके नागरिक अनुशासित हों | अतः यदि हम चाहते हैं कि हमारा समाज एंव राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर रहें, तो हमें अनुशासित रहना ही पड़ेगा, क्योंकि जब हम स्वयं अनुशासित रहेंगे, तब ही किसी दूसरे को अनुशासित रख सकेंगे | अनुशासन ही देश को महान बनाता है, यह कोई अतिश्योक्ति नहीं बल्कि वास्तविकता है | देश का नागरिक होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति का देश के प्रति कुछ कर्तव्य होता है, जिसका पालन उसे अवश्य करना चाहिए, क्योंकि जिस देश के नागरिक अनुशासित होते हैं, वही देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रह सकता है |

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