बांझपन कोई रोग नहीं है – इसका भी इलाज है – जाने यहाँ सबकुछ

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बांझपन कोई रोग नहीं है – इसका भी इलाज है – जाने यहाँ सबकुछ Infertility Causes, Meaning, Treatment In Hindi

हर दंपत्ति का यह सपना होता है कि उनके घर हंसता खेलता एक बच्चा हो. संतान को जन्म देना औरत का जन्मसिद्ध अधिकार है.

संतान न होने से दंपत्ति का मानसिक तनाव बढ़ जाता है. जीवन के रिश्ते फीके पड़ जाते हैं. टूटने के कगार पर आ जाते हैं और कई बार टूट भी जाते हैं.

हमारे समाज में संतान न होना महिला में बहुत बड़ा दोष माना जाता है, चाहे कई बार शारीरिक दोष पुरुष का ही निकले इसलिए जरूरी है कि संतान होने की कुदरती प्रणाली की जानकारी दंपत्ति को हो.

इलाज की कब जरुरत पड़ती है

जब दंपति अच्छे संबंधों के साथ रहते हो और कोई गर्भ निरोधक विधि प्रयोग न करते हो और विवाह के एक डेढ़ साल बाद भी अगर कोई उम्मीद नजर न आएं तो उनको किसी माहिर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

दस से पंद्रह फ़ीसदी विवाहित दंपत्तियों में बांझपन की समस्या होती है. पर यह मात्रा आज के भागदौड़ वाले युग में बढ़ रही है और प्रदूषण, खाने पीने वाली वस्तुओं में कीटनाशक दवाइओ के प्रयोग से शुगर रोग, हाई ब्लड प्रेशर और दिल के रोग आदि भी बढ़ रहे हैं. नशे का प्रयोग और शराब का सेवन भी बड़ा कारण है.

कैंसर और उसकी दवाइयां, गली मोहल्लों में जगह जगह एक्सरे की मशीनों का लगना भी आग पे तेल डालने का काम करता है. वह दिन दूर नहीं जिस दिन पता चलेगा की मोबाइल फोन और उसके टावरों से बाँझपन बढ़ गया है. इसकी खोज पूरे यतन के साथ चल रही है.

गोद में रखकर लैपटॉप का उपयोग तो पक्का पुरुष के लिए नुकसानदायक है. तेज आग में काम करना जैसे कारखानों की भट्टियों में काम करना भी पुरुष के लिए इस समस्या का कारण है.

निसंतान दंपत्ति में सेक्स संबंधी जानकारी की कमी

हमारे समाज में सेक्स संबंधी बातें खुलकर नहीं होती. जो कुछ जानकारी विवाह से पहले लड़की के पास होती हैं, वह ज्यादातर उसकी मां से प्राप्त होती है.

लड़कों के पास यह जानकारी कम होती है. समाचार पत्रों से गलत जानकारी मिलती हैं. बहुत कम पिता अपने बेटे से सेक्स संबंधी जानकारी के बारे में बात करते हैं.

इसलिए बहुत दंपति कम जानकारी के साथ ही विवाहित जीवन में पांव डालते हैं. विवाह से पहले सारी जानकारी लड़के-लड़की को देनी चाहिए और यह काम परिवार के निजी डॉक्टर और लेडी डॉक्टर अच्छी तरह कर सकते हैं, क्योंकि वे जो भी जानकारी या बातचीत लड़के लड़की से करेंगे, वह गुप्त रखी जाती हैं, जिससे लड़का-लड़की बिना किसी डर के जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

दंपत्ति को अगर यह नहीं पता कि संभोग, स्त्री की महावारी चक्र के बीच सिर्फ 3-4 दिन होते हैं, जो सबसे ज्यादा गर्भ होने वाले होते हैं. (Most Fertile दस) पहले या बाद में संभोग करने से गर्भ नहीं हो सकता, स्त्री के फर्टाइल डेज में अगर पति दूर है, तो भी बच्चा ठहरना मुश्किल है. कई बार यह छोटी सी जानकारी जब हम दंपति को देते हैं तो बच्चा हो जाता है.

हारमोंस का बढ़ना-घटना

हारमोंस मतलब शरीर में कुछ खास ग्रंथियों में पैदा होने वाली रेशा, हारमोंस का हमारे जीवन में बहुत महत्व है. हमारी चाल, ढाल, बोलना, चलना और चरित्र पर हारमोंस बहुत असर डालते हैं. महावारी आना, बच्चा होना, अंडा बनना यह सब भी हारमोंस पर निर्भर हैं.

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स्त्री संबंधी कुछ जानकारी

कुछ स्त्रियों में जन्म से बच्चेदानी छोटी होती हैं और कभी-कभी नहीं भी होती या बच्चेदानी के रास्ते की बनावट में नुक़्स होता है. स्त्री के श्रोणी (Pelvis) में अगर सूजन है तो उसको दूर करना जरूरी है. अंडकोष में पानी की थैलियां, जिसको पॉलीसिस्टिक ओवरीज (Poly-cystic Ovaries) कहते हैं और बच्चेदानियों में मांस की गांठे, जिसको फाइब्रॉइड (Fibroid) कहते हैं, अंडकोष और बच्चेदानी के बीच ट्यूबो के मुंह बंद होना या जुड़े होना बांझपन का बड़ा कारण है.

स्त्री के इलाज में सहायक तरीके व यंत्र

1. लैप्रोस्कोपी (दूरबीन द्वारा ऑपरेशन)

ऑपरेशन करने का सबसे नया और आसान तरीका यह है, इसके साथ पेट के अंदर छोटा सा छेद करके कैमरे के साथ जुड़े औजार भेजते हैं, जिसके कारण टी.वी. स्क्रीन पर अंदर के सारे दृश्य दिखाई देते हैं और टी.वी. में देख रेख कर हम ऑपरेशन करते हैं.

वे स्त्रियां जो बच्चे को जन्म दे चुकी हैं, किसी कारण उनकी बच्चेदानी को निकलने की जरूरत पड़ती हैं. (Hysterectomy) तो वे भी इस छोटे से ऑपरेशन के साथ संभव है. इस विधि के साथ खून भी कम निकलता है और अस्पताल में दाखिला भी एक या दो दिन का ही होता है.

मरीज को दवाइयां भी कम खानी पड़ती है और लंबे चीरे या टांकों की जरूरत नहीं पड़ती. ऑपरेशन की सारी सी. डी. साथ-साथ में तैयार होती रहती हैं और मरीज के रिश्तेदारों को दिखाई जाती है और बाद में रिकॉर्ड की हुई सी.डी. भी दे दी जाती है.

ऐसा करने से मरीज के मन में कोई शक नहीं रहता और सर्जन की पारदर्शता के कारण गलत रास्तों से बचा जा सकता है.

2. इंट्रा यूटराइन इन्सैमिनेसन

इंट्रा यूटेराइन इन्सैमिनेसन यानी आदमी के शुक्राणु को सीधे ट्यूब के द्वारा बच्चेदानी में डालना एक ऐसी विधि है, जो हमें कभी-कभी बांझपन दूर करने में सहायता करती हैं. अगर आदमी में शुक्राणु न हो तो हम शुक्राणु बैंक का सहारा लेते हैं, जिसे डोनर इन्सैमिनेसन कहा जाता है.

3. टैस्ट ट्यूब बेबी 

सब कुछ करने के बाद भी कई बार सफलता नहीं मिलती तो ‘आई वि एफ.’ का सहारा लेते हैं. इसमें स्त्री के अंडकोष से अंडे लेकर पुरुष के शुक्राणु के साथ टैस्ट ट्यूब में जोड़ते हैं और 3-4 दिनों में यह बढ़ने लगते हैं. फिर हम इसे स्त्री की बच्चेदानी में डाल देते हैं और गर्भ ठहर जाता है. इस तरह से जन्मे बच्चे को हम टैस्ट ट्यूब बेबी कहते हैं.

4. इलाज महंगा भी, सस्ता भी

दंपति की जांच और बीमारी की खोज करते करते अगर नुक्स जल्दी मिल जाए जैसे हारमोंस का कम या ज्यादा होना या ट्यूबों का बंद होना तो खर्चा कम होता है पर जैसे-जैसे हमें बड़े तरीकों की तरफ और बारीक ऑपरेशनों की तरफ जाते हैं या आई वी एफ (IVF) सहारा लेना पड़ता है तो खर्चा ज्यादा आता है. इन सारे कामों में समय भी चाहिए, पैसा भी और सब्र भी.

बेऔलाद बहनों को सलाह है कि वह उम्मीद ने छोड़े. दुनिया में यतन करने पर कोई ऐसी चीज नहीं जो ना मिल सके.