
जेम्स माइकल लिंगदोह का जीवन परिचय (James Michael Lyngdoh Biography In Hindi Language)
नाम : जेम्स माइकल लिंगदोह
जन्म : 8 फरवरी 1939
जन्मस्थान : मेघालय
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (2003)
भारत देश में अनेकताओं तथा वर्गभेदों के बावजूद लोकतन्त्र की जड़ें गहरी है और इसका श्रेय यहाँ के सविधान की सरंचना तथा प्रशासन को जाता है, जो इस कठिन कार्य को अपनी सूझबूझ से निभाते हैं । जेम्स माइकल लिंगदोह ने भी देश के चीफ इलेक्शन कमिश्नर के रूप में निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव सम्पन्न कराने की बेहद कठिन जिम्मेदारी को समय-समय पर दृढता तथा सयंम बरतते हुए निभाया । इस तरह से उन्होंने अनेक विभिन्नताओं वाले तथा मतभेदों से भरे देश में लोगों का विश्वास लोकतन्त्र के प्रति बनाए रखा | लिंगदोह के इस कठिन तथा सूझबूझ भरे काम के लिए इन्हें वर्ष 2003 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |
जेम्स माइकल लिंगदोह का जीवन परिचय (James Michael Lyngdoh Biography In Hindi)
जेम्स माइकल लिंगदोह का जन्म 8 फरवरी 1939 को उत्तरपूर्वी भारत के मेघालय राज्य में हुआ था और वह मूलरूप से खासी आदिवासी क्षेत्र से आए थे । इनके पिता डिस्ट्रिक्ट जज थे तथा इनकी पूरी शिक्षा दिल्ली में ही हुई । वर्ष 1961 में बाईस वर्ष की उम्र में वह भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के लिए चुन लिए गए । जल्दी ही इनकी छवि एक सख्त प्रशासक की बन गई, जो स्थानीय पैसे वाले लोगों तथा नेताओं के मुकाबले सामान्य नागरिकों के प्रति अपना झुकाव रखते थे ।
लिंगदोह ने शुरू में ही, अपने भूमि सुधार कार्यक्रमों से स्थानीय जमींदारों को नाराज कर दिया जिसके लिए उनका ट्रांसफर साल पूरा होने के पहले ही कर दिया गया । लेकिन इससे इनकी दृढ़ता पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वह उसी तरह काम करते रहे ।
उनके अपने अधिकारियों से, साथ के लोगों से, स्थानीय नेताओं और समाज के रुतबे-पैसे वाले लोगों से टकराव होते थे, लेकिन वह विनम्रतापूर्वक दृढ़ बने रहते । लिंगदोह ने इसका नुकसान भी उठाया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने तरक्की भी की ।
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वह सेक्रेटरी के पद पर पहुँचे, कैबिनेट सेक्रेटरी बनाए गए, और 1997 में राष्ट्रपति ने उन्हें तीन चुनाव आयुक्तों में से एक पद देकर चुनाव आयोग में भेज दिया । चुनाव आयोग में, 2001 में पदोन्नत हो कर लिंगदोह मुख्य चुनाव आयुक्त (चीफ एलेक्शन कमिश्नर) बना दिए गए ।
मुख्य चुनाव आयुक्त बनते ही, 2002 में उन्हें जम्मू कश्मीर में चुनाव सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी आ पड़ी । उस समय इस राज्य में भारत सरकार के सामने एक ओर पाकिस्तान का विरोधी रुख था और दूसरी ओर स्थानीय जन मानस का रुझान भी देश के अनुकूल नहीं था । एक ओर सीमा पार से गोलाबारी का खतरा था, तो दूसरी ओर चुनाव बहिष्कार का दबाव । दोनों ही स्थितियाँ अनुकूल नहीं थी ।
ऐसे में लिंगदोह ने सूझबूझ से काम लिया । उन्होंने सोचा कि चुनावों को स्थगित करना एक तरह से पलायन जैसा काम होगा । इससे समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा । उन्होंने साहसपूर्वक अपना कदम आगे बढ़ाया और काम शुरू कर दिया ।
जम्पू कश्मीर का यह चुनाव निश्चित रूप से लिंगदोह के सामने एक बड़ी चुनौती थी । लिंगदोह ने इसे निभाने के लिए कारगर कदम उठाए । उन्होंने मतदाता सूची का गम्भीर परीक्षण किया । चुनाव परिचय पत्र जारी किए, बहुत से नए मतदान केन्द्र स्थापित किए । सभी मतदान केन्द्रों के लिए तटस्थ और निष्पक्ष चुनाव अधिकारी नियुक्त किए । लिंगदोह ने सुरक्षा की दृष्टि से राज्य के बाहर की पुलिस तथा पैरा मिलेट्री सेवा की व्यवस्था की तथा उनको यह सख्त हिदायत दी कि उन्हें अनावश्यक हस्तक्षेप से अपनी उपस्थिति का एहसास नहीं कराना है |
उतनी कार्यवाही के बाद, लिंगदोह ने जम्मू कश्मीर की जनता से आह्वान किया कि वह निर्भीक होकर वोट दे । लिंगदोह की इस व्यवस्था का बेहद अनुकूल असर पड़ा । बयालिस प्रतिशत मतदान हुआ । लिंगदोह के आलोचकों तक ने यह माना कि चुनाव निष्पक्ष हुए हैं और इस तरह ‘बुलेट के सामने बैलेट’ की जीत हुई, और यह एक उदाहरण बन गया कि जम्मू कश्मीर में ऐसी कठिन परिस्थिति के बावजूद लोकतन्त्र की मर्यादा बनाए रखी जा सकती है ।
लिंगदोह ने चुनौती का दूसरा मुकाबला गुजरात में किया । फरवरी के अन्तिम दिनों में हुए हमले में अट्ठावन हिन्दू तीर्थ यात्रियों के मारे जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में हिन्दुओं ने जबरदस्त हत्याकांड शुरू कर दिया और सैकड़ों मुसलमान नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया । मुसलमानों की घर, सम्पत्ति लूटी तथा जलाई जाने लगी । ऐसे में बहुत से मुसलमान रातोंरात सुरक्षा की खोज में कहीं दूर भाग गए । उस समय वहाँ हिन्दूवादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और उसने इस हंगामे के दौरान विधानसभा भंग कर दी और चुनाव कराने की माँग की । गुजरात विधान सभा की अवधि पूरी होने में अभी कुछ समय बाकी था । लेकिन भारतीय जनता पार्टी को चुनाव के लिए यह माहौल ठीक लगा । जब राज्य में हिन्दू लहर तेज थी और मुसलमान भयभीत, बेघर होकर भाग चुके थे । यहाँ लिंगदोह ने फिर एक बार अपने लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष विवेक का परिचय देते हुए भारतीय जनता पार्टी के तत्काल चुनाव के प्रस्ताव को ठुकरा दिया ।
लिंगदोह के सामने चुनाव कराने का दायित्व स्पष्ट था । उन्होंने कुछ देर से, निष्पक्ष तथा ईमानदार चुनाव कराने की व्यवस्था शुरू कर दी ।
लिंगदोह ने इस क्रम में स्थानीय अधिकारियों तथा पुलिस दल को चुनाव के काम में न लगा कर उनका ट्रांसफर किया तथा बाहर से बड़े पैमाने पर सुरक्षा व्यवस्था जुटाई । उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान साम्प्रदायिक भावना भड़काने वाली गतिविधियों पर कड़ी पाबन्दी लगाई तथा बहुत से उन स्थानों पर नए मतदान केन्द्र स्थापित किए, जहाँ मुसलमान शरणार्थी बसे हुए थे । दिसम्बर माह में कड़ी सुरक्षा गुजरात में चुनाव कराए गए, जिनमें इकसठ प्रतिशत मतदान हुआ और लिंगदोह के आलोचकों तक ने इस बात को माना कि चुनाव व्यवस्था बहुत अच्छी रही तथा निष्पक्ष रूप से चुनाव सम्पन्न कराए गए ।
अपनी सख्त प्रशासक की छवि तथा अपने जन सरोकारों के कारण लिंगदोह ने सरकारी विभागों तथा मंत्रालयों में अपना अलग ही स्थान बनाया । वह कठोर भले ही कहे गए लेकिन उन पर कभी पक्षपात या तानाशाही व्यवहार के आरोप नहीं लगाए गए । लिंगदोह ने अपना काम सुचारू रूप से कर पाने के लिए दो नियम बनाए और उन्होंने इनका हमेशा पालन किया ।
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लिंगदोह का पहला नियम था कि सुर्खियों में आने से खुद को बचाए रखो । लिंगदोह ने कभी भी अपने प्रशंसकों या आलोचकों को अपने आसपास घिरने नहीं दिया । इसी तरह उन्होंने खुद को बयानबाजी से भी बचाया जो उन्हें सुर्खियों में ले जाने का रास्ता बने ।
इसी तरह लिंगदोह ने बतौर दूसरा नियम, खुद को राजनैतिक नेताओं तथा सांसद-मन्त्रियों से दूर रखा । अपने संयत व्यवहार के बावजूद वह ऐसी दूरी बनाए रहे कि ये लोग उनके बहुत नजदीक न पहुँच पाएँ । इस तरह लिंगदोह ने, अपने काम के रास्ते में राजनैतिक लोगों, प्रशासकों, आलोचकों तथा मीडिया का कोई दबाव नहीं आने दिया । लिंगदोह की इस नीति का लाभ उन्हें हमेशा ठीक मिला । जेम्स माइकल लिंगदोह, जैसा कि उनके बारे में कहा गया, कि वह एक अन्दरूनी ताकत से लड़ने वाले शान्त योद्धा थे ।
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