
जिम्मी जॉर्ज का जीवन परिचय (Jimmy George Biography In Hindi Language)
नाम : जिम्मी जॉर्ज
जन्म : 8 मार्च, 1955
जन्मस्थान : पेराबूर (केरल)
मृत्यु : 30 नवम्बर 1987
जिम्मी जॉर्ज का भारत ही नहीं, विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ वॉलीबॉल खिलाड़ियों में नाम लिया जाता है । वह भारत के प्रथम वॉलीबॉल खिलाडी रहे जिन्होंने इसे ‘प्रोफेशनल’ तौर पर अपनाया और यूरोप के एक प्रोफेशनल क्लब के लिए खेला | उन्हें केरल सरकार ने 1975 में सी.वी. राजा अवार्ड प्रदान किया । भारत सरकार ने 1976 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया ।
जिम्मी जॉर्ज का जीवन परिचय (Jimmy George Biography In Hindi)
केरल में जन्मे वॉलीबॉल खिलाड़ी जिम्मी जॉर्ज ने बहुत कम उम्र में ही सफलता प्राप्त की और अपना नाम देश के सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक खिलाड़ियों में दर्ज करा लिया । वह बहुत छोटा जीवन जी सके ।
जिम्मी जार्ज का जन्म केरल के कन्नूर जिले के पेरावूर नामक स्थान पर हुआ था । उनके पिता का नाम जॉर्ज जोसेफ तथा मां का नाम मेरी जॉर्ज था । उन्हें वॉलीबॉल की प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता ने दी । उन्हीं के साथ उनके अन्य भाइयों जोस जॉर्ज, सिबेस्टियन तथा फ्रांसिस बिजू जार्ज को भी उनके पिता ने वॉलीबॉल की शिक्षा दी । उनके पिता अपने समय में विश्वविद्यालय स्तर के खिलाड़ी थे ।
जिम्मी ने सेंट जोसेफ हाईस्कूल, पेराबूर के लिए खेलना आरम्भ किया । वह केवल 16 वर्ष के थे जब उन्हें 1971 में जमशेदपुर में होने वाली राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए राज्य की ओर से खेलने के लिए चुन लिया गया । परन्तु उनकी खेल प्रतिभा तब अधिक विकसित हो सकी जब वह कालीकट के देवगिरि कॉलेज में पढ़ने गए । उन्होंने अपने भाई जोस के साथ 1970 से 1972 तक कालीकट विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया ।
कालीकट विश्वविद्यालय की टीम का सदस्य बनने के पश्चात् वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए । उनके प्रोफेसर एम.टी. इमानुएल उनके लिए शक्ति व प्रेरणा-स्रोत थे । उनमें अपने कोच कलावूर गोपीनाथ के प्रति भी बहुत श्रद्धा थी ।
1973 में जिम्मी ने सेंट थॉमस कॉलेज, पलाई में एडमिशन ले लिया और केरल विश्वविद्यालय टीम के कैप्टन बन गए । उन्होंने कालीकट विश्वविद्यालय का तीन बार तथा केरल विश्वविद्यालय का चार बार प्रतिनिधित्व किया । जब वह तिरुअनन्तपुरम में मेडिकल कॉलेज में थे, तब भी उन्होंने केरल विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया । अत: इन चार वर्षों में 1973 से 1976 के बीच हुए अन्तरविश्वविद्यालय मुकाबलों में केरल विश्वविद्यालय ने चैंपियनशिप जीती । 1973 में उन्होंने केरल विश्वविद्यालय टीम की कप्तानी भी की । 1976 में जिम्मी ने अपनी मेडिकल पढ़ाई छोड़ दी और पुलिस में भर्ती हो गए । पहले वह सर्किल इंस्पेक्टर बने, फिर प्रोन्नति पाते-पाते असिस्टेंट कमांडेंट के पद तक पहुंचे ।
जिम्मी ने 16 वर्ष की आयु में केरल राज्य टीम की 1971 में सदस्यता ली और केरल का प्रतिनिधित्व 1979 (नौ वर्ष) तक किया । फिर 1979 में उन्होंने पुलिस की नौकरी के साथ-साथ केरल भी छोड़ दिया । वह खाड़ी के देश में खेलने के लिए ‘अबू धाबी स्पोर्ट्स क्लब’ में शामिल हो गए । उन्नति की ओर बढ़ते हुए जिम्मी ने 1982 में अबूधाबी भी छोड़ दिया और इटली के ट्रेविसो में कोलैटो क्लब के लिए खेलने चले गए । वहाँ वह एक वर्ष तक खेले और फिर सिस्टम इम्पियानी की ओर चले गए । उनके लिए वह 1983-84 में खेले ।
जिम्मी जॉर्ज बहुत महत्त्वाकांक्षी खिलाड़ी रहे और वॉलीबाल के प्रति पूर्णतः समर्पित रहे । अन्य देशों में खेलने के बाद वह भारत लौटे और पुन: खेल से जुड़ गए । उन्होंने केरल पुलिस में पुन: शामिल होने का निर्णय लिया और अपनी अन्तिम राष्ट्रीय चैंपियनशिप 1985 में कानपुर में खेले । वह पुन: इटली की अराइटल टीम में खेलने चले गए ।
1987-88 में जिम्मी ने यूरोस्टाइल यूरोस्लबा टीम के साथ ब्रेसिया के मोंटचियारी में एक खेल-कान्ट्रेक्ट किया था, लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु से यह पूरा नहीं हो सका । जिम्मी जॉर्ज ने भारत के लिए 1974 में तेहरान एशियाई खेलों में, 1978 में बैंकाक एशियाई खेलों में तथा 1986 में सियोल एशियाई खेलों में भारत को कांस्य पदक जीतने में मदद की ।
उन्होंने अनेक मैच भारत की ओर से विदेशी टीमों के साथ खेले । 1978 में उन्होंने भारतीय टीम में पेरिस से मुकाबला किया तथा 1985 में भारतीय टीम का कप्तान बनकर उन्होंने जापानी टीम से मुकाबला किया । उन्होंने 1985 में भारतीय टीम की कप्तानी सऊदी अरब में भी की जहाँ अन्तरराष्ट्रीय वॉलीबॉल चैंपियनशिप मुकाबले होने थे । 1986 में जिम्मी ने हैदराबाद में हुए अन्तरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारतीय टीम की कप्तानी करते हुए टीम को जिताया ।
उन्हें इतने सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हुए जितने कोई भारतीय खिलाड़ी कल्पना कर सकता है । ‘अर्जुन पुरस्कार’ से उन्हें 1976 में सम्मानित किया गया । यह पुरस्कार उन्हें मात्र 21 वर्ष की आयु में प्राप्त हुआ । जिम्मी जॉर्ज यह पुरस्कार पाने वाले वॉलीबॉल के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं ।
1975 में उन्हें ‘जी.वी. राजा सम्मान’ केरल सरकार की ओर से दिया गया । 1976 में उन्हें केरल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में ‘मनोरमा अवॉर्ड’ प्रदान किया गया । अबू धाबी स्पोर्ट्स क्लब से (1979-82) जुड़े रहने के कारण उन्हें खाड़ी क्षेत्र का ‘सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’ चुना गया । वह इटली से 1982 से 1984 तक तथा 1985 से 1987 तक विभिन्न प्रोफेशनल क्लब के माध्यम से जुड़े रहे तब उन्हें विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ आक्रामकों (अटैकर्स) में चुना गया ।
30 नवम्बर 1987 को मात्र 33 वर्ष की आयु में इटली में एक कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया । 1985 में उन्होंने विवाह किया था । उनका पुत्र जोसेफ जॉर्ज उनकी मृत्यु के दो माह पश्चात् पैदा हुआ । उनका एक सपना था कि ऑल इंडिया पुलिस चैंपियनशिप में केरल विजयी रहे, जो 1985 में पूर्ण हो गया । उनका एक अन्य स्वप्न था कि केरल राष्ट्रीय खिताब जीत सके, जिसे वह स्वयं पूरा नहीं कर सके, 1997 में केरल के खिलाड़ियों ने इसे पूरा किया ।
उनके असामयिक निधन पर उनके मित्रों व रिश्तेदारों ने पेरावूर और त्रिवेन्द्रम में जिम्मी जॉर्ज फाउंडेशन की स्थापना की । इस फाउंडेशन ने केरल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए ‘जिम्मी जॉर्ज अवॉर्ड’ की स्थापना की है । केरल सरकार ने एक इन्डोर स्टेडियम का नाम उनके नाम पर रखा है । उनके मित्रों व प्रशंसकों ने ब्रेसिया के मोंटि चियारी में एक स्टेडियम का नाम उनकी याद में समर्पित किया है । जिम्मी जॉर्ज फाउंडेशन अनेक टूर्नामेंट और कोचिंग कैम्प का आयोजन करता रहता है ।
उपलब्धियां
जिम्मी जॉर्ज ने वॉलीबॉल में सफलता की उन ऊँचाइयों को बहुत कम समय में छुआ, जिनकी कोई खिलाड़ी कल्पना करता है ।
वह प्रोफेशनल रूप से वॉलीबॉल खेलने वाले भारत के प्रथम खिलाड़ी थे |
वह विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में जाने जाते थे ।
उनकी कप्तानी में केरल विश्वविद्यालय टीम ने 1973 से 1976 तक चार बार अन्तरविश्वविद्यालय चैंपियनशिप जीती ।
वह अबूधाबी स्पोर्ट्स क्लब के लिए खेलते हुए खाड़ी क्षेत्र के ‘सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’ चुने गए ।
1975 में केरल सरकार ने उन्हें ‘जी.वी. राजा अवॉर्ड’ प्रदान किया ।
1976 में केरल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में उन्हें ‘मनोरमा अवॉर्ड’ प्रदान किया गया ।
1976 में जिम्मी को ‘अर्जुन अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया । वह 21 वर्ष की आयु में यह पुरस्कार पाने वाले वॉलीबॉल के सबसे कम आयु के खिलाड़ी थे |
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