
जूड़ो का शाब्दिक अर्थ है ‘सरल रास्ता’, लेकिन देखने में तो यह सरल नहीं लगता| इस रूप में सरल हो सकता है कि इसे अपने विरोधी को परास्त करने में अहिंसक रास्ता अपनाया जाता है| अहिंसक इस रूप में कि इसमे खून-खराबा नहीं होता| जूड़ो जुजुत्सु से उत्पन्न हुआ है| यदि जुजुत्सु के अक्षरो पर ध्यान दे, तो यह संस्कृत भाषा के ‘युयुत्सु’ से कुछ मिलता-जुलता है| ‘युयुत्सु’ का अर्थ है, लड़ने की इच्छा करने वाला| ये दोनों शब्द एक भी हो सकते है| कभी-कभी ‘य’ का उच्चारण ‘ज’ भी हो जाता है जैसे युग और जुग,योगी और जोगी आदि| चीन की कुश्ती कला भू जुजुत्सु के नाम से जानी जाती है|
जूड़ो का इतिहास History of Judo Game in Hindi
यह दांव-पेंच की ऐसी कला है, जिसमे दक्ष होकर एक शक्तिहीन व्यक्ति भी एक शक्तिशाली व्यक्ति को पराजित कर सकता है| इसकी शुरुआत किस देश से हुई, यह तो निर्विवाद रूप से नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इससे मिलती कला बौद्ध-भिक्षुक आत्मरक्षा के लिए प्रयोग में लाते थे| फिर तो निश्चय ही यह एक अहिंसक कला थी, जो किसी हिंसक व्यक्ति से अपनी रक्षा के लिए प्रयोग में लाई जाती थी| बौद्ध धर्म का प्रथम सिद्धांत ही अहिंसा पर आधारित है| अतः उनकी आत्मरक्षा की कला अहिंसा पर आधारित होना एक युक्ति-युक्त प्रमाण है| हालांकि इसमें सीमित हिंसा का समावेश रहता था, लेकिन वह हिंसा प्राणघातक नहीं होती थी|
सातवी शताब्दी के प्रारंभ मे जब भारत व भारत से बाहर बौद्ध-धर्म का प्रचार हो रहा था, उस समय भारत में आत्मरक्षा के लिए कई प्रकार की युद्ध-कलाए विकसित हो रही थी| अस्त्र-शास्त्रो से युद्ध करने में बौद्ध-धर्म की आत्मा अहिंसा का हनन होता था| अतः अस्त्र-शस्त्र रहित युद्ध कला के विकास में बौद्ध प्रचारको की रुचि जाग्रत हो रही थी| यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि बौद्ध भिक्षुओ के लिए युद्ध-कला सीखने का औचित्य क्या था, जबकि उनके प्रचार में अहिंसा एक महत्वपूर्ण विषय होता था? इसका औचित्य आत्मरक्षा तक सीमित था, क्योंकि जब वे प्रचार के लिए भारत से बाहर जाते थे, तो उनकी यात्राए कठिन हुआ करती थी| रास्ते में छोर-उचक्के और लुटेरों से उनका संघर्ष प्रायः होता ही रहता था| इसलिए उनसे अपनी सुरक्षा के लिए युद्ध की कलाए सीखनी पड़ती थी|
इन कलाओ का बौद्ध-धर्म के शिक्षा-सूत्रो में ‘एक्कीन सूत्र’ नामक एक अध्याय है, जिसमे इन युद्ध कलाओ का विस्तार से वर्णन किया गया है| जिस समय बौद्ध भिक्षु धर्म-प्रचार के लिए चीन जाते थे, तो वंहा पहुंचकर वे प्रसिद्ध मंदिर ‘शोरिन जी’ में ठहरा करते थे| उन डीनो इस मंदिर में आत्मरक्षा के लिए भिन्न-भिन्न युद्ध-कलाए सिखाई जाती थी| वंहा से यह कला रियोक्यू नामक द्वीप में पहुची, जंहा ‘आकोनावा’ के नाम से प्रसिद्ध हुई|
पंद्रहवी और सत्रहवी शताब्दी के मध्य रियोक्यू नामक इस द्वीप पर वंहा के सम्राट सोहाशी ने हथियारो पर प्रतिबंध लगा दिया था| हथियार के विकल्प के रूप में वंहा इस कलाओ का प्रचलन हो गया| जब वंहा से भिक्षु जापान गए, तो यह कला भी उनके साथ वंहा भी पहुँच गई| वंहा के धर्म गुरु विशेष रूप से इस कला की शिक्षा देने लगे| जापानी योद्धाओ ने भी इस कला के विकास में सहयोग दिया और यह कला वंहा धरोहर के रूप में संरक्षित हो गई| प्रारंभ में यह कला जुजुत्सु के रूप में विकसित हुई| यह इतनी लोकप्रिय हुई कि इसके लिए स्कूल खोले गए| अब यह युद्ध कि एक विधा के रूप में स्वीकार कर ली गई है| सामंती युग में ‘समुराई’ लोगों से लठैतों के रूप में काम लिया जाता था और ये लोग जुजुत्सु विधा में प्रवीण होते थे| 1603 से 1867 तक जुजुत्सु के अनेक स्कूल खोले गए| सन् 1867 के बाद इसे युद्ध विधा के साथ-साथ कराटे का रूप दिया गया और खेल की एक विधा के रूप में स्वीकार किया गया|
सन् 1867 में कराटे के संस्थापक गीचिन फुनाकोशी का जन्म हुआ था| सन् 1880 में डॉक्टर कानो जिगारों ने जुजुत्सु का अभ्यास किया और इसे जूड़ो का रूप प्रदान किया| सन् 1880 में ही डॉ. कानो जिगारोने ने अपना एक जूड़ो स्कूल खोला| जुजुत्सु और जूड़ो में काफी विभिन्नताएं थी| सन् 1886 में जापानी शिक्षा मंत्रालय द्वारा जुजुत्सु की प्रचलित विभिन्न पद्धतियों में से किसी एक पद्धति के चयन का निश्चय किया गया| जाने कराटे के नियम हिंदी में
शिक्षा मंत्रालय का उद्देश्य इसे खेल के रूप में पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना था| डॉ. कानो जिगारो की पद्धति इस चयन में स्वीकार कर ली गई और इस प्रकार से से शिक्षा मंत्रालय की मान्यता प्राप्त हो गई, फिर तो इसे सारे स्कूलों में लागू कर दिया गया| कानो जिगारो की इसके प्रसार-प्रचार में प्रभावी भूमिका रही| उन्होने खेल के रूप में इसे विश्व-भर में प्रचारित कर दिया| इसके बाद सभी स्कूलों में इसके प्रशिक्षण की व्यवस्था होने लगी| खेल के अतिरिक्त भी सैनिको और पुलिसकर्मियो को भी इसका प्रशिक्षण दिया जाने लगा|
जापानी सैनिक विशेष रूप में इस कला में इतने प्रवीण हो चुके थे कि विश्व के अन्य देशो के सैनिक उनसे भय खाने लगे थे| सन् 1942 में जारी विश्वयुद्ध में जापानी सैनिको से लड़ने वाले मित्र राष्ट्रो के सैनिको को विशेष रूप से इस बात के लिए सतर्क किया जाता था कि वे जापानी सैनिको के साथ आमने-सामने के युद्ध से बचे| जापान केई कई शौर्य कलाए जूड़ो के साथ विकसित हुई| सूमों, नगीनाता, कराटे व क्यूदों इनके प्रमुख थी| जापान की राजधानी टोक्यो में जूड़ो की एक केंद्रीय प्ररीक्षण संस्था है, जो कोडोनक नाम से जानी जाती है| दिव्तीय विश्वयुद्ध के बाद सन् 1945 में मित्र राष्ट्रो ने इस कला पर प्रतिबंध लगा दिया था| सन् 1951 में जाकर यह प्रतिबंध हटा था|
अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर जूड़ो की संस्था सन् 1951 में स्थापित हुई| सन् 1956 में प्रथम विश्व चैंपियनशिप हुई| जापानी इस कला में पहले से ही दक्ष थे, अतः उन्होने विश्व के सब खिलाड़ियो को पराजित कर दिया था| इसके उपरांत सन् 1958 की दूसरी चैंपियनशिप भी जापानियों ने ही जीती थी|ओलंपिक खेलो में सन् 1964 में जूड़ो को मान्यता मिली| ये खेल टोक्यो मे हुए थे|
आज यह खेल पूरे विश्व मे प्रचलित हो चुका है| भारत में भी यह तेजी से विकसित हुआ और यहाँ इसके लिए अनेक क्लब स्थापित हुए है| भारत में इस कला का उदय जापानी यात्रियो के माध्यम से हुआ| कलकत्ता के शांति निकेतन में जूड़ो एक प्रमुख आकर्षण था| भारत में जूड़ो संघ की स्थापना सन् 1964 में हुई| सन् 1966 में प्रथम जूड़ो चैंपियनशिप का आयोजन किया गया| 1986 के एशियाड़ खेलो में भाग लेकर 4 कांस्य पदक प्राप्त किए थे| ओलंपिक खेलो में भारत ने 1992 के ओलंपिक मे जूड़ो के मुकाबलों मे प्रथम बार भाग लिया|

जूडो रिंग (क्रीडा क्षेत्र) Measurement Size of Judo Ring
जूडो खेलने का क्रीडा क्षेत्र ‘सियाइओ’ कहलाता है| यह एक वर्गाकार प्लाटफार्म होता है, जो भूमि से कुछ ऊंचाई पर होता है| इसकी न्यूनतम लंबाई-चौड़ाई 8X8 मीटर और अधिकतम 10X10 मीटर होती है| प्लाटफार्म के बाहर 7 से.मी. चौड़ा असुरक्षित क्षेत्र होता है| यह क्षेत्र लाल रंग की पट्टी द्वारा दर्शाया जाता है|
खेल की प्रक्रिया How To Play Judo Game in Hindi
खेल शुरू होने से पहले दोनों खिलाड़ी रिंग में आकार दोनों जजों व रेफरी को अभिवादन करते है तथा उसके पश्चात् आपस में कुछ दूरी पर खड़े होकर एक-दूसरे को झुककर अभिवादन करते है| रेफरी द्वारा इशारा करने पर दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे को विभिन्न दांव-पेंचो का प्रयोग करते हुए और आगे-पीछे धकेलते हुए पछाड़ने का प्रयत्न करते है| इस संघर्ष में जब एक खिलाड़ी विपक्षी खिलाड़ी की पकड़ से अपने को मुक्त नहीं करा पाता और हार मान लेता है, तो उसे ‘मट्टा’ कहना पड़ता है| मट्टा का अर्थ-‘मैं हार गया हू’|
जूडो में समय सीमा 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक की होती है| खेल की परिस्थिति को देखकर यह सीमा बढ़ाई भी जा सकती है| समय समाप्त होने पर रेफरी घंटी बजाकर खेल की समाप्ति की घोषणा करता है| इसके साथ ही खेल समाप्त हो जाता है|
जूडो की विधियां Types of Judo Games
इस खेल में प्रायः दो विधिया प्रयोग में लाई जाती है| वे है- नागेवाजा तथा कटामेवाजा|
नागेवाजा – इस विधि से जब एक खिलाड़ी विपक्षी खिलाड़ी के सारे दांव-पेच विफल कर देता है तथा अपना दांव लगाकर विपक्षी खिलाड़ी को पीछे के बल चित्त कर देता है या फिर जब कोई खिलाड़ी अपने विपक्षी खिलाड़ी को अपने दांव के आधार पर अपने कंधो से ऊपर उठाकर जमीन पर पटक देता है|
कटामेवाजा – जब कोई खिलाड़ी अपने प्रतिव्दंव्दी खिलाड़ी को जमीन पर पटक कर अपने दांव में इस प्रकार फंसा लेता है और वह जमीन पर पड़ा हुआ, दो बार जमीन पर हाथ मारकर ‘मट्टा’, अर्थात ‘मैंहार गया हू’ कहता है या फिर एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को 30 सेकंड तक जमीन पर दबाए रखता है|
गर्दन पकड़ने की विधि या बांह पकड़े जाने की विधि से जब एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी पर हावी हो जाता है, तो विजेता खिलाड़ी को एक ‘इप्पोन’ अर्थात एक अंक दिया जाता है|
नागेवाजा विधि से जब कोई खिलाड़ी विपक्षी खिलाड़ी को उठाकर पटक देता है, परंतु गिरने वाला खिलाड़ी पूर्ण रूप से चित्त नहीं होता, तो विजयी खिलाड़ी को 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत अंको को विजय मिल जाती है| जब दोनों खिलाड़ी शुरू से लेकर अंत तक बराबर-बराबर अंक प्राप्त करते है, हार-जीत का निर्णय उनकी तकनीकी कुशलता को देखकर किया जाता है| जिस खिलाड़ी का प्रदर्शन अच्छा होता है, उसे ही विजयी घोषित किया जाता है|
जुड़ो खेल में अनुशासन Discipline in Judo Game in Hindi
संसार में शायद ही किसी खेल में इतना अधिक अनुशासन को महत्व दिया जाता हो, जितना इस खेल में दिया जाता है| यह अनुशासन, शिष्टाचार और बहुत ही नम्र व्यवहार से खेला जाने वाला खेल है| समस्त नियमों का ठीक ढंग से पालनकर्ता ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है| रेफरी के प्रत्येक निर्णय को सम्मान देना प्रत्येक खिलाड़ी का कर्तव्य होता है| रेफरी के निर्णय की आलोचना नहीं की जा सकती|
जुडो खेल में ड्रेस कैसी होती है Type of Dress in Judo Game
जूडो एक जापानी खेल है, अतः इस खेल में धारण की जाने वाली पोशाक भी जापानी शैली की होती है| इस पोशाक को एक विशेष नाम ‘जूडोगों’ दिया गया है| इसमे प्रायः तीन वस्तुएं मुख्य होती है- गाउन जैसा ढीला कुर्ता, पाजामा तथा बेल्ट, जिसे गाउन पहनकर कमर पर बांध लिया जाता है| पाजामा प्रायः प्रचलित लंबाई से थोड़ा छोटा होता है, ताकि पैरो में उलझ न सके| जूडो के खेल में किसी भी खिलाड़ी को चश्मा, कड़ा, माला, हैट धारण करने की अनुमति नहीं होती|
जुडो खेल के निर्णायक अधिकारी Referee & Judge of Judo Game
जूडो के खेल के लिए तीन निर्णायक नियुक्त किए जाते है- रेफरी तथा दो जज| मैच को रेफरी आयोजित करता है| जूडो का निर्णय दो तिहाई मत से होता है| यदि दो जज रेफरी के निर्णय से सहमत न हो, तो उसका यह निर्णय बदलने के लिए कह सकते है| दो तिहाई निर्णय में एक रेफरी तथा एक जज या फिर दोनों जजों का भी हो सकता है|
जूडो के महत्वपूर्ण संकेत Important Sign of Game
जूडो के संकेतो को जापान शब्दो मे अभिव्यक्त किया जाता है, जो निम्नलिखित प्रकार से है_
हाजीमे | इसका अर्थ होता है,’खेल शुरू करना’| |
मट्टा | इसका अर्थ होता है, ‘मै हार गया’| |
योशी | इसका अर्थ होता है,’ खेलना जारी रखो’| |
जिकाल | इसका अर्थ होता है,’खेल समाप्त’| |
युई | इसका अर्थ है, ‘केवल एक चेतावनी’| किसी भी प्रकार का नियम तोड़ने की स्थिति मे खिलाड़ी को एक चेतावनी दी जाती है| |
हिकी वाके | ‘खेल ड्रॉ’ अर्थात बराबर छूटने पर हिकी वाले कहकर बराबरी का संकेत दिया जाता है| |
सोगो-गोची | खेल समाप्त होने पर विजयी खिलाड़ी को विजयी घोषित करने की लिए सोगो-गोची कहकर संबोधित किया जाता है| |
सोनामाना | खिलाड़ियो को प्रतियोगिता क्षेत्र से बाहर चले जाने की स्थिति में रेफरी यह कहकर उन्हे बाहर जाने का संकेत देता है| |
जुडो गेम में फाउल माना जाता है When is Foul in Judo
1. | जमीन पर पीठ के बल लेटे हुए खिलाड़ी से दोबारा संघर्ष करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए| |
2. | विपक्षी खिलाड़ी के पेट,सिर, अथवा गरदन को नहीं दबाना चाहिए तथा गरदन को टाँगो में दबाकर नहीं मरोड़ना चाहिए| |
3. | जिस टांग पर विपक्षी खिलाड़ी खड़ा हो, उस पर कैंची नहीं मारनी चाहिए| |
4. | बिना किसी उचित कारण किसी खिलाड़ी को चीखना या चिल्लाना नहीं चाहिए| |
5. | बिना कारण किसी खिलाड़ी को प्रतियोगिता क्षेत्र से बाहर चले जाने अथवा विपक्षी खिलाड़ी को बाहर धकेलने को अनुचित माना जाता है| |
6. | किसी भी खिलाड़ी को रेफरी की आज्ञा बिना अपनी बेल्ट नहीं खोलनी चाहिए| |
7. | कोई भी खिलाड़ी संघर्ष के दौरान ऐसे दांव-पेंच नहीं चला सकता,जिससे विपक्षी खिलाड़ी की रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचे| |
8. | पीछे से चिपके हुए खिलाड़ी को जानबूझकर पीछे की ओर नहीं गिराना चाहिए| |
9. | विरोधी खिलाड़ी के कुर्ते के बाजुओ या पाजामे में उंगली डालकर उसे पकड़ने की कोशिश नहीं करना चाहिए| |
10. | जमीन पर लेटे खिलाड़ी को खड़े हुए खिलाड़ी की गरदन पर कैंची नहीं मारना चाहिए, उसकी पीठ व बंगलो को नहीं मरोड़ना चाहिए तथा जोड़ों को कोहनी के जोड़ के बना लॉक लगाने वाली तकनीक प्रयोग नहीं करना चाहिए| |
11. | विपक्षी खिलाड़ी के मुंह की ओर हाथ या पांव सीधे रूप से नहीं चलाना चाहिए| |
12. | विपक्षी खिलाड़ी की बेल्ट नहीं पकड़ना चाहिए| |
जुडो गेम में बेल्ट कैसी होती है ? Belt in Judo Game In Hindi
जूडो के खेल में प्रत्येक खिलाड़ी ग्रेड के अनुसार ही बेल्ट धारण करता है| नया खिलाड़ी लाल रंग की बेल्ट धारण करता है| सबसे छोटा ग्रेड क्यू कहलाता है| ग्रेड के अनुसार बेल्टों का रंग इस प्रकार होता है-
- छठा ग्रेड – सफ़ेद बेल्ट
- पांचवा ग्रेड – पीली बेल्ट
- चौथा ग्रेड – संतरी बेल्ट
- तीसरा ग्रेड – हरी बेल्ट
- दूसरा ग्रेड – नीली बेल्ट
- पहला ग्रेड – भूरी बेल्ट
- पहला ग्रेड करने पर खिलाड़ी उस्ताद डॉन की श्रेणी में आ जाता है, जिसमे बेल्टों का रंग इस प्रकार है-
- 1 से 5 तक – काली बेल्ट
- 6 से 8 तक – लाल या सफ़ेद पट्टेदार बेल्ट
- 9 से 11 तक – लाल बेल्ट
- 12 – सफ़ेद बेल्ट
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