
कैलाश मानसरोवर की यात्रा Kailash Mansarovar Yatra History Hindi Me
हिमालय में स्थित कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) का हिन्दू धर्म में अत्यन्त पवित्र और पूजनीय महत्व है। पुराणों, उपनिषदों, तंत्र ग्रंथों आदि में कैलाश की महिमा का खूब वर्णन किया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार कैलाश का स्मरणमात्र फलदायक होता है। कैलाश भगवान शिव का निवास स्थल है। जहां वे घोर तपस्या में बैठे सारी सृष्टि को चलाते हैं।
कैलाश–मानसरोवर (Kailash Mansarovar) का भारतीय संस्कृति से शुरुआती संबंध रहा है। कैलाश और मानसरोवर दोनों अलग-अलग हैं। दोनों हिमालय में ही स्थित हैं। मानसरोवर तिब्बत के पठार में स्थित एक सरोवर का नाम है। मान्यता के अनुसार इसी राक्षसताल में खड़े होकर रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। मानसरोवर शक्तिपीठ है। माता सती की दाहिनी हथेली इसी मानसरोवर तालाब में गिरी थी। कैलाश पर्वत मानसरोवर से लगभग 20 मील दूर स्थित है। कैलाश ही भगवान शिव और पार्वती का दिव्यधाम है । कैलाश की आकृति एक विशाल शिवलिंग जैसी है जिसे चारों ओर से पर्वतों ने घेर रखा है। श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करते हैं।
मानसरोवर का पानी बहुत ठंडा नहीं है। यात्री उसमें आराम से स्नान कर सकते हैं। एक कहावत प्रचलित है कि मानसरोवर में हंस बहुत होते हैं जो क्षीर-नीर (दूध और पानी) को अलग-अलग कर देते हैं। जबकि यात्री बताते हैं कि उन्होंने कोई हंस नहीं देखा। संभवत: प्राचीन समय में कभी यहां हंस रहते हों।
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फैलाश-मानसरोवर की यात्रा सबसे महंगी यात्रा मानी जाती है (Kailash Mansarovar Yatra Cost Is Very High)। यह पैसे और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हर किसी के वश की बात नहीं है। इस यात्रा को भारत सरकार और चीन सरकार मिलकर कराते हैं। क्योंकि सारा तिब्बत चीन के कब्जे में है इसलिए भारत की सीमा समाप्त होते ही यात्रियों की देख-रेख, सुरक्षा तथा सारा साजो-सामान चीन के कर्मचारियों के हाथ में चला जाता है। यात्रा के लिए प्रतिवर्ष चीन का नई दिल्ली स्थित दूतावास आवेदन स्वीकार करता है। तमाम शतों को पूरा करने के बाद बरसात में अलग-अलग टोलियों में यह यात्रा प्रारंभ होती है।
बरसात में आमतौर पर पहाड़ी रास्ते साफ होते हैं। दिल्ली से कुमायूं मंडल के पिथौरागढ़ जनपद के आखिरी छोर तिब्बत सीमा तक इस यात्रा को कुमायूं मंडल विकास निगम करवाता है। आगे की जिम्मेदारी चीन सरकार की होती है।
कैलाश से कड़ी चढ़ाई पार कर हिम राशि में सबसे ऊंची सीमा ‘डोलमा पास’ पड़ती है। यहीं गौरीकुंड नामक प्रसिद्ध सरोवर है। यह साक्षात श्री गौरी (पार्वती जी) की जलक्रीड़ा का स्थान है। यह चारों ओर से धवल हिमखण्डों से घिरा है। सरोवर की ऊपरी परत ठंड के कारण शीशे के समान कठोर हो जाती है।
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श्रीमद्भागवत में एक सरस श्लोक आया है, जिसमें कहा गया है कि अप्सराएं नग्न होकर मानसरोवर में स्नान किया करती थीं। ऐसे ही एक अवसर पर शुक सामने की ओर से तथा व्यास पीछे की ओर से मानसरोवर के किनारे से होकर ऊपर जा रहे थे। शुक यद्यपि नग्न थे तब भी उन्हें देखकर अप्सराएं लज्जित नहीं हुई। किन्तु व्यास नग्न नहीं थे तो भी उन्हें देख स्त्रियां लज्जित हो गई और उन्होंने जल्दी कपड़े पहन लिए। यह देख चकित व्यास मुनि ने इसका कारण पूछा तो देवांगनाओं ने उत्तर दिया कि आपके मन में अब भी स्त्री-पुरुष का भेद है, इसलिए हम लज्जित हो गई। किन्तु ब्रह्ममात्र की दृष्टि रखने वाले आपके पुत्र में किसी तरह का कोई भेद दिखाई नहीं पड़ता।
मानसरोवर की सुन्दरता अवर्णनीय है। 1907 में स्वीडन के एक विद्वान स्वेन हेडिन ने मानसरोवर के अद्भुत सौन्दर्य की देखकर ये उद्गार व्यक्त किए थे ‘प्रति क्षण नयी-नयी स्फूर्ति प्रदान करने वाले इस स्वर्गीय सरोवर के अनुपम दृश्य को कभी तृप्त न हुए बिना देख-देखकर मैं यहीं जीवन बिताना और मर जाना चाहता हूं।”
कभी यह केवल देवों या सिद्धों का क्षेत्र माना जाता था लेकिन समय के साथ-साथ कैलाश मानसरोवर की यात्रा अब सम्भव हो गई है।