कमलादेवी चट्टोपाध्याय की जीवनी Kamaladevi Chattopadhyay Biography In Hindi

Kamaladevi Chattopadhyay Biography In Hindi

कमलादेवी चट्टोपाध्याय की जीवनी Kamaladevi Chattopadhyay Biography In Hindi
Kamaladevi Chattopadhyay Biography In Hindi

नाम : कमला देवी चट्टोपाध्याय
पिता का नाम : अनन्त धारेश्वर
मां का नाम : गिरिजा
जन्म : 3 अप्रैल 1903
जन्मस्थान : मैंगलोर, कर्नाटक
मृत्यु : 29 अक्टूबर, 1988
उपलब्धियां : ‘पद्म भूषण’ (1955), ‘पद्म विभूषण’ (1987), ‘रमन मैग्सेसे’ (1966), ‘फेलोशिप और रत्न सदस्य’ संगीत नाटक अकादमी द्वारा, (1974) में इन्हें ‘लाइफटाइम अचिवेमेंट’ संगीत नाटक अकादमी के द्वारा. यूनेस्को ने इन्हें वर्ष (1977) में हेंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया था, शान्ति निकेतन ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘देसिकोट्टम’ से सम्मानित किया.

कमला देवी चट्टोपाध्याय का नाम उन स्त्रियों के साथ सम्मान तथा प्रशंसा से लिया जाता है, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में दकियानूसी विचारधारा तथा अंधविश्वास भरी परम्पराओं का विरोध अपने निजी जीवन में किया और उसे विचारधारा भी बनाया । इसके अतिरिक्त कमला देवी ने हस्तशिल्प के विकास में विशेष योगदान दिया और को-आपरेटिव बनाकर उनके विस्तार को गति दी । कमला देवी का सम्मान कला तथा थियेटर के साथ-साथ सक्रिय राजनीति में भी था । उनकी इसी सोच नेउन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलनों की ओर प्रेरित किया और उन्होंने जेल की सजा भी भुगती । कमला देवी के इस योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1966 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय की जीवनी Kamaladevi Chattopadhyay Ki Jeevani In Hindi

कमला देवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल 1903 को मैंगलोर में हुआ था । वह सारस्वत ब्राह्मण कुल में जन्मी थीं और अपने माता-पिता की चौथी और सबसे छोटी बेटी थीं । कमला देवी के पिता अनन्त धारेश्वर मैंगलोर के जिला कलेक्टर थे और उनकी माँ गिरिजा कर्नाटक के एक राजसी घराने की संतान थीं । कमला देवी का अपनी माँ से गहरा जुड़ाव शुरू से ही था ।

कमला देवी एक प्रतिभाशाली छात्रा थीं । उन्होंने संस्कृत की नाट्‌य परम्परा की शिक्षा नाट्‌याचार्य पद्यश्री मनी महादेव चाक्यार से उनके आश्रम में ही रहकर पाई थी । वह अभिनय कला के मर्मज्ञ थे तथा केरला-कुरियाड्‌डम परम्परा को अपनाए हुए थे । कमला देवी के परिवार में उस समय के अनेक स्वतन्त्रता सेनानी तथा प्रबुद्ध लोग आते रहते थे । उनमें महादेव गोविन्द रानाडे तथा गोपाल कृष्ण गोखले तो थे ही, महिलाओं में रामाबाई रानाडे तथा एनीबेसेंट भी थीं । इसलिए कमला देवी में राष्ट्रीय एवं स्वदेशी संस्कार बचपन से ही थे । उनका विद्रोही स्वभाव भी शुरू से दिखने लगा था । उन्होंने अपनी माँ की सम्पत्ति के बँटवारे में राजसी प्रवृत्तियों पर बचपन में ही प्रश्न उठाए थे । उन्हें अपने नौकरों और उनके बच्चों के साथ हिल-मिलकर खेलना तथा उनके जीवन को जानना अच्छा लगता था । एक महत्त्वपूर्ण घटना ने उनमें स्वाभिमान का भाव बचपन में ही भर दिया था । कमला देवी केवल सात वर्ष की थीं, जब उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई थी । इसमें एक त्रासदी यह भी थी कि वह मरने से पहले अपनी कोई वसीयत नहीं लिख गए थे, जिससे उनकी सारी सम्पत्ति उस समय के कानून के अनुसार उनके सौतेले बेटे को मिल गई थी और गिरिजादेवी को केवल मासिक भत्ते की स्वीकृति दी गई थी । कारण यही था कि गिरिजादेवी के अपने पति से केवल बेटियाँ थीं । इस मासिक भत्ते को गिरिजादेवी ने ठुकरा दिया था और निर्णय लिया था कि वह अपने दहेज में पिता के घर से प्राप्त सम्पत्ति से ही अपनी बेटियों का पालन-पोषण करेंगी ।

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1917 में उनका कृष्ण राव से विवाह हुआ । तब वह केवल चौदह वर्ष की थीं तथा स्कूल में पढ़ रही थीं । दो वर्ष बाद वह विधवा हो गईं । उस समय की परम्परा के अनुसार विधवाएँ शिक्षा के अधिकार से वंचित थीं । लेकिन कमला देवी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी । सेंट मेरी स्कूल चेन्नई से उन्होंने 1918 में हाई स्कूल पास किया । और उसके बाद क्वीन मेरी कॉलेज में आ गईं । वहाँ इनका परिचय सरोजिनी नायडू की छोटी बहन से हुआ जिसने कमला देवी का परिचय हरीन चट्टोपाध्याय से कराया जो कि एक जाने-माने नाटककार, कवि तथा अभिनेता थे ।

कमला देवी चट्टोपाध्याय जब बाईस वर्ष की हुईं तो उनका विवाह हरीन चट्टोपाध्याय से हो गया । इस विवाह का दकियानूसी समाज ने बहुत विरोध किया क्योंकि वह समय विधवा विवाह के पक्ष में नहीं था लेकिन यह एक रचनाकर्मियों की जोड़ी बनी थी, जिसने साथ-साथ मिलकर नाटक तथा नाटिकाओं के क्षेत्र में बहुत काम किया ।

कमला देवी ने बहुत-सी फिल्मों में अभिनय भी किया । उस समय स्त्रियों का नाटकों, फिल्मों में आना अच्छा नहीं समझा जाता था लेकिन कमला देवी ने इसकी परवाह नहीं की । शुरुआती दौर में इन्होंने दो मूक फिल्मों में अभिनय किया । कन्नड़ फिल्म उद्योग की पहली मूक फिल्म ‘मृच्छिकटिका’ 1931 में बनी । उसमें कमला देवी ने मोहन भवनानी के निर्देशन में नायिका की भूमिका निभाई । 943 में वह हिन्दी फिल्म ‘तानसेन’ में कुन्दन लाल सहगल तथा खुर्शीद के साथ आईं । उसके बाद 1943 में ही ‘शंकर पार्वती’ तथा 1946 में धन्ना भगत में उनका अभिनय सामने आया ।

कुछ ही समय बाद उनके पति हरीन लन्दन चले गए, जहाँ बाद में उन्होंने कमला देवी को भी बुला लिया । वहाँ पहुँचकर कमला देवी ने लन्दन यूनिवर्सिटी के बेडफोर्ड कॉलेज में प्रवेश लिया और समाजशास्त्र में डिप्लोमा प्राप्त किया ।

1923 में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन की पुकार पर कमला देवी भारत लौटीं और गाँधी संगठन के सेवादल की सदस्यता ले ली । यह दल सामाजिक उत्थान का काम करता था । जल्दी ही वह महिला विभाग की प्रमुख बना दी गईं । इस जिम्मेदारी में उनका काम सभी उम्र की महिलाओं, लड़कियों को दल में लेना, उन्हें प्रशिक्षित करना तथा इनको नियम में रखना था । दल की यह महिला सदस्य सेविकाएँ कहलाती थीं ।

1926 में उनकी भेंट ऑल इण्डिया वुमेन कॉफ्रेंस (AIWC) की संस्थापिका मार्गेट ई कौंसिन्स से हुई जिन्होंने इन्हें मद्रास प्राविंशियल लेजिस्लेटिव असेंबली में स्थान दिया । इस तरह वह भारत की पहली महिला बनीं जिन्हें सदन में लेजिस्लेटिव सीट (सवैधानिक सीट) मिली ।

1927 में उन्होंने आल इण्डिया वुमन कॉफ्रेंस का गठन किया और उसकी पहली आर्गनाइजिंग सेक्रेटरी बनीं । बाद में धीरे-धीरे विकसित होकर यह एक राष्ट्रीय संगठन बन गया जिसकी शाखाएँ देश भर में बन गई । अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने बहुत से यूरोपीय देशों की यात्रा की तथा सामुदायिक कल्याण के काम किए । उन्होंने बहुत सी शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित की जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए थीं तथा महिलाओं द्वारा ही चलाई जा रही थीं । दिल्ली में बना होम साईंस का लेडी इर्विन कॉलेज इसी प्रकार का एक महत्त्वपूर्ण संस्थान है । वर्ष 1938 में कमला देवी चट्टोपाध्याय ने गाँधी जी के साथ सक्रिय रूप से नमक आन्दोलन में हिस्सा लिया । उन्होंने बम्बई के समद्र तट पर नमक बनाया ।

गाँधी जी के सात सदस्यीय इस दल में कमला देवी के अतिरिक्त बस अवंतिका बाई गोखले ही थीं, जो महिला सदस्य के तौर पर उस सत्याग्रह से जुड़ी हुई थीं । अपनी इस हिमाकत के दौरान वह बम्बई स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिबन्धित नमक के साथ इस इरादे के साथ घुस गईं कि वह वहाँ नमक बेचेंगी । इस कदम पर वह गिरफ्तार करके जेल भेज दी गईं, जहाँ उन्हें करीब एक बरस कैद में रहना पड़ा । इस तरह उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में जेल जाने वाली पहली महिला के रूप में अपना नाम दर्ज कराया । 1936 में वह कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की प्रेसिडेंट बनाई गईं तथा उन्होंने जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया तथा मीनू मसानी के साथ काम किया । कमला देवी का विचार था कि ‘स्त्रीवाद’ को ‘समाजवाद’ से अलग नहीं किया जा सकता । ऐसे अलगाव करने वालों से उनका विरोध अपने दल में भी होता था । एक बार महात्मा गाँधी भी उनके विरोध का कारण बने थे | जब दांडी मार्च में गाँधीजी ने स्त्रियों को न रखने का विचार बनाया था । वह सोचते थे कि स्त्रियों पर अंग्रेज उसी तरह हाथ उठाने से बचेंगे, जैसे हिन्दू लोग गाय पर वार नहीं करते । कमला देवी ने इस का विरोध किया था ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कमला देवी कला तथा संस्कृति के काम की ओर लौटीं । पश्चिमी देशों की तर्ज पर उन्होंने बहुत से क्राफ्ट म्यूजियम बनाने का विचार सामने रखा । दिल्ली का थियेटर क्राफ्ट म्यूजियम इसी क्रम में बना ।

1962 में कमला देवी ने बंगलौर में नाट्‌य इन्टीट्यूट ऑफ कथक एण्ड कोरियोग्राफी शुरू किया ।

कमला देवी समय से आगे बढ्‌कर सोचने वाली महिला थीं इसी दृष्टि से उन्होंने आल इण्डिया हैण्डीक्राफ्ट बोर्ड तथा क्राफ्ट काउसिंल ऑफ इण्डिया की स्थापना की । वह एशिया पैसिफिक रीजन में, वर्ल्ड क्राफ्ट काउसिंल की पहली प्रेसिडेंट बनीं ।

उन्होंने नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तथा संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की तथा वह यूनेस्को की सदस्य नियुक्त हुईं ।

कमला देवी चट्टोपाध्याय के जीवन की कुछ घटनाएँ हमेशा याद रहने वाली हैं । 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान वह हाईकोर्ट में घुस गईं और वहाँ बैठे मैजिस्ट्रेट से उन्होंने निर्भीक होकर प्रश्न किया कि क्या वह स्वतन्त्रता का यह नमक खरीदना चाहेंगे…?

इसी तरह 1930 में ही 26 जनवरी को उन्होंने पूरे देश को आमन्त्रित करते हुए, एक मुठभेड़ के बीच तिरंगे झण्डे को बचाने का प्रयास किया और झण्डा समेटते हुए जूझ पड़ी ।

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हरीन नाथ चट्टोपाध्याय से उनका प्रेम विवाह हुआ था और उन दोनों ने मिलकर कला और संस्कृति के क्षेत्र में बहुत काम किया था । 1920 के करीब जब कमला देवी गाँधी आन्दोलन से जुड़ी तो उन्होंने अपने राष्ट्रीय दायित्व को देखते हुए अपने पति से बिना किसी विवाद के अलगाव कर लिया ताकि दोनों अपने-अपने रास्तों पर स्वतन्त्र रूप से चल सकें । इस इरादे को उन्होंने पति से बाकायदा तलाक लेकर पूरा किया, जबकि उस समय यह तलाक भी एक विरल घटना थी ।

कमला देवी को 1955 में पद्‌मभूषण तथा 1957 में पद्मविभूषण सम्मान प्रदान किया गया । उन्हें संगीत नाटक अकादमी की फैलोशिप तथा रत्न सदस्या के लिए 1974 में चुना गया । यूनेस्को ने उन्हें हस्तशिल्प के विकास कार्यक्रम के लिए 1977 में पुरस्कृत किया । शान्तिनिकेतन ने कमला देवी को अपने सर्वोच्च सम्मान दिसिकोत्तमा से अलंकृत किया । इन्टरनैशनल व पपैटरी आर्गेनाइजेशन ने भी उन्हें सम्मान सदस्यता प्रदान की ।

अठारह पुस्तकों की लेखिका कमला देवी की आत्मकथा 1986 में प्रकाशित तथा चर्चित हुई ।

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