
कर्णम मल्लेश्वरी का जीवन परिचय (Karnam Malleswari Biography In Hindi Language)
नाम : कर्णम मल्लेश्वरी
जन्म : 1 जून, 1975
जन्मस्थान : हैदराबाद (आंध्र प्रदेश)
सितम्बर 2000 में सिडनी में हुए ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 69 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच डाला | मल्लेश्वरी को 1995 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया । 1996 में उन्हें ‘राजीव गाधी खेल रत्न’ पुरस्कार तथा 1997 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया ।
कर्णम मल्लेश्वरी का जीवन परिचय (Karnam Malleswari Biography In Hindi)
जब सितम्बर 2000 में सिडनी ओलंपिक हुए तब कर्णम मल्लेश्वरी अचानक सुर्खियों में आ गईं । भारतीय समाचार-पत्र व पत्रिकाओं में मल्लेश्वरी के बारे में प्रमुखता से छापा गया । कारण यही था कि कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 69 किलो वर्ग में भारत के लिए कांस्य पदक जीतकर अपना नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा लिया । इससे पूर्व कोई भी भारतीय महिला ओलंपिक मैडल जीतने में कामयाब नहीं रही थी ।
कहा जा सकता है कि ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली प्रथम भारतीय महिला होने के जिस गौरवशाली सफर की शुरुआत मेरी लीला राव ने 1952 में की थी, उसे अंजाम तक लौह महिला कर्णम मल्लेश्वरी ने पहुंचाया और एक अरब भारतीयों में वह अकेली प्रथम महिला भारतीय ओलंपिक विजेता बन गई ।
लचकती छड़ के दोनों ओर लटके वजन को देखे बिना वह पूरे विश्वास के साथ खड़ी हुई, क्षण भर के लिए उसने आखें बन्द कीं और अपने हौंसले को मुंह में बुद-बुद कर एक झटके के साथ वजन को उठा दिया और तालियां गूंज उठीं । वजन के बोझ से भिंचे उसके जबड़ों में अपनी आकांक्षा को साकार करने का दमखम था । देश का मस्तक ऊंचा करने का फख्र उसकी आखों में था ।
टाइम एशिया के वेब कालम द्वारा मल्लेश्वरी को ”वर्ष की दक्षिण एशियाई” चुना गया । परन्तु 1997 में मल्लेश्वरी के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था ।
उस वर्ष यूं तो उसे ‘पद्मश्री’ मिला था । उसने विवाह भी किया था और खेलों से 12 महीने का विश्राम भी लिया था । परन्तु उसके बाद जब वह खेलों में लौटी तो उसकी परफार्मेंस बहुत धीमी हो चुकी थी । हाँलाकि 1998 के बैंकाक के एशियाई खेलों में उसने रजत पदक प्राप्त किया, लेकिन 1999 के एथेन्स चैंपियनशिप से वह बिना कोई पदक लिए लौटी ।
अगले वर्ष उसकी अक्षमता के बारे में कहा जाने लगा और कहा जाने लगा कि उसका वजन बढ़ गया है । इससे मल्लेश्वरी बहुत आहत महसूस कर रही थी और मन ही मन अपने आलोचकों को चुप कराने के बारे में सोच रही थी । उसने अपने प्रशिक्षक तारानेंको के साथ प्रशिक्षण आरम्भ कर दिया । उसके प्रशिक्षक को विश्वास था कि वह ओलंपिक पदक अवश्य जीतेगी ।
मल्लेश्वरी का जन्मस्थान अम्दलावलासा हैदराबाद से लगभग 800 किमी. उत्तर पूर्व में स्थित है । अम्दलावलासा एक छोटा सा शहर है । मल्लेश्वरी के पिता का नाम रामदास है जो रेलवे सुरक्षा बल (आर. पी. एफ.) में कांस्टेबल हैं । साधारण रेलवे हैड कांस्टेबल की चार बेटियों में से दूसरे नम्बर की मल्लेश्वरी का बचपन बहुत गरीबी में बीता । बहनें बहुत सुबह ही रेल की पटरियों पर कोयला बीनने निकल पड़ती थीं । आज मल्लेश्वरी के पास धन की कोई कमी नहीं है । मल्लेश्वरी जब केवल 9 वर्ष की थी तब वह अपनी बड़ी बहन नरसम्मा के साथ जिम जाती थी । तभी उसकी रुचि खेलों में जागृत हुई । वैसे 1989 में मानचेस्टर में विश्व चैंपियनशिप में तथा बीजिंग एशियन खेलों में वह भी 20 सदस्यी टीम के साथ भाग लेने गई थी । मल्लेवरी की छोटी बहन कृष्णा कुमारी भी राष्ट्रीय स्तर की भारोत्तोलक है ।
मल्लेश्वरी खेलों के क्षेत्र में 1989 में आई, जब वह केवल 14 वर्ष की थी । उदयपुर में उसकी शुरुआत बहुत धमाकेदार रही क्योंकि उसने 6 राष्ट्रीय अंकों तक अपनी पहचान बनाई और फिर धीरे-धीरे उसकी उन्नति होने लगी । थाईलैण्ड की एशियन चैंपियनशिप में उसे रजत पदक मिला और फिर 1993 में मेलबार्न की विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में उसे तीन कांस्य पदक प्राप्त हुए ।
हिरोशिमा एशियन खेलों में उसने जिन खेलों में भाग लिया, उसमें एक चीनी खिलाड़ी के बाद द्वितीय स्थान पाया | इसके बाद 1994 में इस्ताम्बूल में विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में उसने 2 स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीता । इस स्वर्ण पदक जीतने के वक्त वह एक चीनी खिलाड़ी के बाद दूसरे नम्बर पर आई थी । हालांकि उस खिलाड़ी ने उतना ही वजन उठाया था जितना मल्लेश्वरी ने, परन्तु मल्लेश्वरी का वजन अपनी प्रतिद्वन्द्वी से आधा किलो अधिक होने के कारण उसे स्वर्ण पदक से हाथ धोना पड़ा था पर उसके बाद चीनी खिलाड़ी डोप टैस्ट में फेल हो गई और मल्लेश्वरी को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया ।
पुणे में हुए राष्ट्रीय खेलों में मल्लेश्वरी ने विश्व-रिकार्ड तोड़ दिया । जर्मनी में हुए विश्व चैंपियनशिप में वह पांचवें स्थान पर रह गई । फिर अगले वर्ष बुलगारिया में हुई विश्व चैंपियनशिप में उसने अपना स्तर सुधार लिया । 1995 में चीन में हुई विश्व चैंपियनशिप में ‘जर्क’ में मल्लेश्वरी ने 54 किलो वर्ग में नया विश्व रिकार्ड बनाते हुए 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए । चीनी खिलाड़ी लांग यूलिप के 112.5 किलो के विश्व रिकार्ड को उसने 113 किलो से तोड़ दिया । चैंपियनशिप की शुरुआत में ही मल्लेश्वरी और कुंजारानी को संयुक्त रूप से विश्व में ‘नम्बर एक’ बताया गया था ।
1998 के बैंकाक एशियाई खेलों में रजत व 1999 एथेंस चैंपियनशिप में वह बिना पदक लिए लौटी । लेकिन मई 2000 में उसने ओसाका की विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता । इसके पश्चात् उसे ऐतिहासिक सफलता मिली जब सितम्बर 2000 में उसने सिडनी ओलंपिक में कड़े मुकाबले में कांस्य पदक प्राप्त किया ।
भारत की स्वतंत्रता के तब तक के इतिहास में वह केवल तीसरी भारतीय थी जिसे ओलंपिक पदक जीतने का गौरव प्राप्त हुआ । लेकिन वह प्रथम भारतीय महिला है जिसने ओलंपिक पदक जीता । इससे पूर्व भारतीय महिला एथलीट पी. टी. उषा सेंकंड के सौंवे हिस्से से कांस्य पदक पाने से चूक गई थी ।
मल्लेश्वरी की प्रतिभा को ‘अर्जुन पुरस्कार’ विजेता मुख्य राष्ट्रीय कोच श्यामलाल सालवान ने पहचाना, जब वह अपनी बड़ी बहन के साथ 1990 में बंगलौर कैम्प में गई थीं । प्रशिक्षक ने उसे भारोत्तोलन खेल अपनाने की सलाह दी । बस यहीं से उसका खेल प्रेम जाग उठा और वह पूरी तरह खेल में रम गई । उसकी मेहनत रंग लाई और मात्र एक वर्ष में भारतीय टीम की दावेदारी में आ गई । 1992 में वह विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक पाने में सफल रहीं । इसी उत्साह ने उसे 1994 व 1995 में विश्व चैंपियन बना दिया | उसके बाद मल्लेश्वरी सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई । लेकिन 2000 में जब सिडनी ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों का चयन हो रहा था, तब उसका नाम लिस्ट में शामिल किये जाने पर यह कह कर आलोचना की गई कि वह भारतीय सरकार के खर्चे पर टूरिस्ट बन कर जा रही हैं । जब कुंजारानी को हटाकर मल्लेवरी को टीम में चुना गया तब सभी ओर से उसकी आलोचना की गई ।
यही कारण था कि जब 19 सितम्बर, 2000 को 69 किलो वर्ग में मल्लेश्वरी का नाम विजेताओं में लिया गया और पुरस्कार दिया गया तब केवल 7 भारतीय वहां मौजूद थे । भारतीय खिलाड़ियों की बड़ी टीम में से तीन तथा उन 42 पत्रकारों में से, जो ओलंपिक खेलों को कवर करने गए थे, केवल 4 व्यक्ति उस विजय का आनन्द लेने के लिए उपस्थित थे ।
मल्लेश्वरी ने अपने दोनों हाथ रगड़ कर अपनी पकड़ मजबूत की और फिर अपने शरीर के भार से दोगुने वजन को झटके से उठा कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया । इस प्रकार भारतीय खेलों के इतिहास में वह प्रथम महिला बनी जो ओलंपिक मैडल जीत सकी । इस प्रकार उसने पदक जीतकर अपने सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया । जो लोग उसे ‘ओवर-वेट’ या बीते समय की खिलाड़ी कह कर उसकी हंसी उड़ा रहे थे, कुछ ही जादुई क्षणों में मल्लेवरी के प्रशंसक बन गए ।
भारत में मल्लेश्वरी के लिए अनेक नकद पुरस्कारों की घोषणा की गई । इस पर मल्लेश्वरी ने कहा- ”जब मुझे सिडनी ओलंपिक में पदक प्राप्त हुआ तो अनेकों नकद पुरस्कारों की घोषणा की गई । लेकिन जब मैं 1994 व 1995 में विश्व चैंपियन बनी थी तब इस प्रकार की एक भी घोषणा नहीं की गई ।”
मल्लेश्वरी के लिए पुरस्कारों की घोषणा आंध्र प्रदेश, हरियाणा व महाराष्ट्र की राज्य सरकारों की ओर से की गई । मल्लेश्वरी का विवाह हरियाणा के यमुना नगर के राजेश त्यागी से हुआ है । हरियाणा की बहू होने के कारण उसकी जीत पर हरियाणा में जश्न का माहौल रहा । मल्लेश्वरी ने 240 किलो वजन उठाया और हरियाणा सरकार ने उसे 25 लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया अर्थात् हर एक किलो पर 10 हजार रुपये । इस प्रकार सिडनी ओलंपिक में भारत का झण्डा लहराया, हरियाणा में बहू का और भारत में नारी शक्ति का । हरियाणा में दीपावली के एक माह पूर्व ही दीपावली के जश्न जैसा माहौल हो उठा । यमुनानगर के लोग दुकानें बन्द कर आतिशबाजी छोड़ने लगे । युवा लोग ढोल और नगाड़े बजाकर नाच कर अपनी खुशी व्यक्त करने लगे ।
मल्लेश्वरी को खेलों में आगे बढ़ाने में हिन्दुजा स्पोर्ट्स फाउंडेशन का बहुत बड़ा योगदान रहा । उन्होंने समय-समय पर उसे आर्थिक सहायता के अलावा दूसरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करायीं । वैसे मल्लेश्वरी की सफलता के पीछे उसकी बहन नरसिंहा का बहुत बड़ा योगदान है । नरसिंहा ने बताया कि घर बसाने के बाद जब उसे लगा कि अब वह अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन के लायक नहीं है तो उसने सारा ध्यान मल्लेश्वरी पर टिका दिया । मल्लेश्वरी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उसका शरीर बचपन से ही तकनीकी तौर पर भारोत्तोलन के अनुरूप था अर्थात् वह खूब मजबूत थी ।
मल्लेश्वरी के दृढ़संकल्प और साधना के परिणाम स्वरूप ही वह सफलता पाकर इस मुकाम पर पहुंची । उसे देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार ‘अर्जुन अवार्ड’ के अलावा ‘पद्मश्री, ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ और ‘के.के. बिरला अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है ।
मल्लेश्वरी को ‘अर्जुन पुरस्कार’ मिलने पर उसके विभाग भारतीय खाद्य निगम ने उसे तरक्की देकर डिप्टी मैनेजर बना दिया और लाल रंग की मारूति 800 का तोहफा भी दिया । जरा सोचिये जब मल्लेश्वरी आठवीं कक्षा में पड़ती थी तो विजाग पोर्ट ट्रस्ट ने उसे चतुर्थ श्रेणी की नौकरी की पेशकश की थी । इसी गरीबी में गुजारे बचपन ने मल्लेश्वरी के भीतर सुलग रही लगन की आग ने धधकते तांबे में बदल दिया ।
उन्हें 1996 में आंध्र प्रदेश सरकार ने 500 गज जमीन का एक टुकड़ा भी पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया लेकिन दुर्भाग्य स्वरूप उन्हें उस पर कब्जा वर्षों बाद तक भी नहीं मिल पाया । मल्लेश्वरी की विजय की खुशी आंध्र प्रदेश और हरियाणा में बहुत जोश-खरोश के साथ मनाई गई ।
मल्लेश्वरी का एक कांस्य पदक जीतना भी भारत के लिए बहुत बड़े गौरव की बात रही । अपनी अद्वितीय सफलता से भावुकता और खुशी के क्षणों में डूबी मल्लेश्वरी ने कहा-मेरा सपना पूरा हो गया । अब मुझे लगता है कि मैंने खुद को साबित कर दिया है ।
यह पूछे जाने पर कि ओलंपिक में पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला होने पर वह कैसा महसूस कर रही है, मल्लेश्वरी ने कहा-मुझे गर्व है कि मैंने भारत को गौरव प्रदान किया और नई सहस्त्राब्दी के पहले ओलंपिक में देश को पहला पदक दिलाया ।” उनके प्रशिक्षक लियोनिड तारानेंको और संधू इस अवसर पर खुशी से फूले नहीं समा रहे थे । उन्होंने कहा- ”हमें हमारे प्रयासों का फल मिल गया । यह दिन हम लंबे समय तक याद रखेंगे ।”
मल्लेश्वरी को कांस्य पदक जीतने पर 60 लाख से अधिक के नकद पुरस्कारों की घोषणा की गई थी । मल्लेश्वरी की उपलब्धि पर उनके पति राजेश त्यागी को गर्व है ।
मल्लेश्वरी की सफलता से यह साबित हो गया है कि भारतीय महिला खिलाड़ी किसी भी खेल में शिखर पर पहुंच सकती हैं चाहे वह ताकत का खेल हो या नजाकत का । यदि ओलंपिक के पहले मल्लेश्वरी को और बेहतर प्रशिक्षण दिया गया होता, तो वह निश्चित रूप से स्वर्ण पदक जीत सकती थी ।
2004 में होने वाले एंथेस ओलंपिक में भाग लेने के लिए मल्लेश्वरी को भारतीय ओलंपिक संघ तथा सैमसंग इंडिया द्वारा स्पांसर किया गया ताकि वह भरपूर तैयारी करके भारत को पदक दिला सके । इस स्पांसरशिप की घोषणा सितम्बर, 2003 में की गई ।
उपलब्धियां :
1990-91 में 52 किलो वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनी |
1992 से 98 तक 54 किलो (शारीरिक वजन) वर्ग में राष्ट्रीय चैंपियन बनी |
1994 के एशियाई चैंपियनशिप मुकाबलों में कोरिया में 3 स्वर्ण पदक जीते ।
इस्ताबूंल में 1994 के विश्वचैंपियनशिप में 2 स्वर्ण व एक रजत पदक जीता |
दक्षिण कोरिया में 1995 के एशियाई चैंपियनशिप के 54 किलो वर्ग में 3 स्वर्ण पदक जीते |
चीन में 1995 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते |
1996 में जापान में एशियाई प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक जीता |
1997 के एशियाई खेलों में 54 किलो वर्ग में रजत पदक जीता |
1998 के बैंकाक एशियाई खेलों में 63 किलो वर्ग में रजत पदक जीता ।
2000 में ओसका एशियाई चैंपियनशिप में 63 किलो वर्ग में मल्लेश्वरी ने स्वर्ण जीता, लेकिन अंततः कुल मिलाकर तृतीय स्थान पर रहकर संतोष करना पड़ा |
खेलों का सर्वोच्च पुरस्कार ‘अर्जुन पुरस्कार’ उसे प्रदान किया गया |
इसके अगले वर्ष मल्लेश्वरी को ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ दिया गया |
उसे ‘पद्मश्री पुरस्कार ‘ भी प्रदान किया गया ।
कर्णम मल्लेश्वरी से सभी भारतवासियों को एथेंस ओलंपिक 2004 में पदक जीतने की बड़ी आशा थी | इस बार मल्लेश्वरी ने 69 किलो वर्ग के स्थान पर 63 किलो वर्ग में भाग लिया था | लेकिन सभी की आशा के विपरीत मल्लेश्वरी वजन उठाने में नाकामयाब रही और पदक हासिल नहीं कर सकी |
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