कशाबा जाधव का जीवन परिचय Khashaba Jadhav Biography In Hindi

Khashaba Jadhav Biography In Hindi

कशाबा जाधव का जीवन परिचय (Khashaba Jadhav Biography In Hindi Language)

Khashaba Jadhav Biography In Hindi

नाम : कशाबा जाधव
जन्म : 15 जनवरी, 1926
जन्मस्थान : कराड़ (महाराष्ट्र)

कशाबा दादा साहेब जाधव का नाम भारतीय खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है | वह स्वतंत्र भारत के प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता हैं | 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलंपिक में कशाबा जाधव ने कुश्ती में कांस्य पदक जीता था | लेकिन उस समय उन्हें कोई राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय पुरस्कार प्रदान नही किया गया | उन्होंने पुलिस सेवा में जीवन व्यतीत किया |

कशाबा जाधव का जीवन परिचय (Khashaba Jadhav Biography In Hindi)

के.डी. जाधव का जन्म कराड (महाराष्ट्र) में हुआ था । उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कुश्ती की ही रही थी । जाधव को खेलों से बहुत लगाव था । उन्हें विशेषकर कुश्ती, कबड्डी, दौड़ना, तैरना जैसे खेलों में दिलचस्पी थी । उनके पिता दादा साहेब स्वयं एक कुश्तीबाज थे, उन्होंने के.डी. जाधव को कुश्ती के दांव-पेंच सिखाए थे । छोटी उम्र में कशाबा कुश्ती को ध्यान से देखते थे और अपने पिता के कंधों पर बैठ कर खेल का आनंद लेते थे । स्कूल में भी वह अच्छे विद्यार्थी थे । वह कराड़, महाराष्ट्र में तिलक हाई स्कूल में पढ़ते थे ।

वह जल्दी ही अपने क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ कुश्तीबाज कहे जाने लगे थे । इसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ कुश्ती खिलाड़ी के रूप में उभरे ।

उन्होंने राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर से ग्रेजुएशन किया । तब वह दक्षिण महाराष्ट्र में कुश्ती के लिए प्रसिद्धि पा चुके थे । 1945 में प्रोफेसर मानिक राव की उन पर नजर पड़ी जो राज्य में कुश्ती के बड़े शौकीन व पेट्रन थे ।

1948 में जाधव को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली जब उन्होंने लखनऊ में 1948 में तब के प्रसिद्ध राष्ट्रीय फ्लाइवेट चैंपियन बंगाल के निरंजनदास को हरा दिया । इसी कारण उन्हें अगले ओलंपिक के लिए चुन लिया गया । लंदन में हुए 1948 के ओलंपिक में खेलों के पूर्व भारतीय कुश्ती खिलाड़ियों को अमेरिका के पूर्व विश्व चैंपियन रीज गार्डनर द्वारा प्रशिक्षण दिया गया । यद्यपि जाधव लंदन ओलंपिक (फ्री स्टाइल/फ्लाईवेट) में छठे स्थान पर रहे, परन्तु 4 वर्ष बाद हेलसिंकी में मिली सफलता का श्रेय उन्होंने गार्डनर को ही दिया जिन्होंने उन्हें केवल एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया था |

हेलसिंकी ओलंपिक (1952) में जाधव बड़ी मुश्किल से जा सके क्योंकि मद्रास के राष्ट्रीय खेलों में उन्हें दूसरा स्थान दिया गया था । उनके लिए कराड़ के दुकानदारों तथा राजाराम कॉलेज के प्रधानाध्यापक ने मदद की । इस ओलंपिक में जाधव फ्लाईवेट (52 किलो) से बंटमवेट (57 किलो) में आ गए थे । शुरू के 5 राउंड में 5 मिनट से कम में वह आसानी से विजय प्राप्त कर सके । फिर छठे राउंड में जापान के शोहाची इशी से उनका कठिन मुकाबला हुआ जो 15 मिनट तक चला और जापानी खिलाड़ी विजयी रहा ।

इशी पहले जूडो का खिलाड़ी रहा था, बाद में कुश्ती में आया था, जब अमेरिकी शक्तियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जूडो पर बन्दिश लगा दी थी ।

पिछली कुश्ती के फौरन बाद जाधव को मैट पर आकर अपने प्रतिद्वन्द्वी सोवियत संघ के राशिद मामेद बेकोव से कुश्ती लड़ने की आज्ञा दे दी गई, जबकि नियमों के अनुसार खिलाड़ी को एक राउंड के बाद आधे घंटे का समय अवश्य दिया जाना था | लेकिन थके हुए जाधव की ओर से बात करने को कोई भारतीय अधिकारी उपस्थित न था । अत: सोवियत खिलाड़ी आसानी से फाइनल में पहुँच गया और के.डी. जाधव को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा ।

1988 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई । उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी पत्नी कुसुम को 25 हजार रुपये की सान्त्वना राशि प्रदान की गई ।

उपलब्धियां

के.डी. जाधव भारत के खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने वाले खिलाड़ी है | उन्होंने स्वतन्त्र भारत का प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीता था |
के.डी. जाधव ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक कुश्ती में कांस्य पदक जीता था |
वह अपने स्कूल तिलक हाईस्कूल, कराड़ (महाराष्ट्र) में कुश्ती, कबड्डी, दौड़ तैरने व जिमनास्टिक के अच्छे खिलाड़ी थे |
राजाराम कालेज, कोल्हापुर में ग्रेजुएशन करते-करते वह पूरे दक्षिण भारत में प्रसिद्धि पा चुके थे |
1948 में उन्होंने राष्ट्रीय फ़्लाइवेट चैंपियन बंगाल के निरंजन दास को लखनऊ में हरा दिया और राष्ट्रीय चैंपियन बन गए | इसी लिए उन्हें लंदन ओलंपिक (1948) के लिए चुना गया | वहां उन्होंने छठा स्थान प्राप्त किया |

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