लक्ष्मीनारायण रामदास का जीवन परिचय Laxminarayan Ramdas Biography In Hindi

Laxminarayan Ramdas Biography In Hindi

लक्ष्मीनारायण रामदास का जीवन परिचय (Laxminarayan Ramdas Biography In Hindi Language)

Laxminarayan Ramdas Biography In Hindi

नाम : लक्ष्मीनारायण रामदास
जन्म : 5 सितम्बर (1933)
जन्मस्थान : (मुम्बई)
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (2004) |

भारत की आजादी के बाद हुए देश के विभाजन ने भारत तथा नए बने देश पाकिस्तान के बीच वैमनस्य तथा अशान्ति का एक अटूट वातावरण बना दिया था । कश्मीर के मुद्दे ने भी इस स्थिति को और हवा दी और दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सह्य और सामान्य नहीं हो पाए | अशान्ति और आपसी वैर-भाव बढ़ता गया । बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने ने भी इस तनाव को और गहरा किया । इस तरह हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच कटु सम्बधों ने राजनैतिक रूप से दोनों देशों की शान्ति को प्रभावित किया । ऐसे में पाकिस्तान के अब्दुर्रहमान तथा भारत के लक्ष्मीनारायण रामदास ने संविद रुप से दोनों देशों के हित में  ‘पाकिस्तान इण्डिया फोरम फॉर पीस एण्ड डेमोक्रेसी’ का गठन किया और दोनों देशों के बीच राजनैतिक भेदभाव भूलकर शान्ति तथा लोकतन्त्र बनाने की दिशा में काम करने लगे | इन दोनों की इस साझा कोशिश के लिए, जो कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर शान्ति कायम करने का एक कदम था, इन दोनों को संयुक्त रूप से वर्ष 2004 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।

लक्ष्मीनारायण रामदास का जीवन परिचय (Laxminarayan Ramdas Biography In Hindi)

लक्ष्मीनारायण रामदास का जन्म 5 सितम्बर, 1933 में मुम्बई में हुआ था । भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय वह दिल्ली में थे । लक्ष्मीनारायण शिक्षा पूरी करने के बाद फौज की नौकरी के लिए ‘इण्डियन आर्म्ड फोर्स एकेडमी देहरादून’ द्वारा चुने गए और उन्हें रॉयल नेवल कॉलेज डार्टमाउथ इंग्लैण्ड में प्रशिक्षण के लिए भेज दिया गया । वहाँ से प्रशिक्षित होने के बाद लक्ष्मीनारायण ने कमीशंड अधिकारी के रूप में 1 सितम्बर 1953 को भारतीय नौसेना में कदम रखा ।

नौसेना में काम करते हुए लक्ष्मीनारायण कोच्चि, केरला की नेवल एकेडमी के प्रमुख भी रहे किन्तु इनके नौसेना के पूरे अनुभव काल में 1971 में हुए भारत पाक युद्ध का बहुत महत्त्व है । इस युद्ध में इनकी मुठभेड़ पाकिस्तान के एक युद्धपोत से हुई जो पूर्वी पाकिस्तान पर बमबारी के काम में बढ़ रहा था । उस युद्ध में पाकिस्तान एक देश-विभाजन की स्थिति से गुजरा था और उसका एक हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के नाम से एक स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया था । 1990 में लक्ष्मीनारायण रामदास, क्रमश: पदोन्नति पाते हुए नौसेना के प्रमुख के पद पर पहुँच गए थे । इन्हें यह सौभाग्य 30 नवम्बर 1990 को प्राप्त हुआ था ।

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वर्ष 1993 में लक्ष्मीनारायण रामदास नौसेना से पदमुक्त हुए तथा उन्होंने एक पाकिस्तानी नागरिक को अपने दामाद के रूप में चुना । इससे उनका जुड़ाव पाकिस्तान के परिदृश्य से हुआ । तभी, 1993 में ही, पाकिस्तान के एक पत्रकार अब्दुर्रहमान एक नए विचार के साथ उभरे । वह उस समय टाइम्स में काम कर रहे थे और सरकार की ओर से दबाव में थे क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान सरकार की आलोचना का साहस किया था । रहमान के नए विचार ने भारत तथा पाकिस्तान के एक जैसी सोच वाले लोगों से सम्पर्क किया और दोनों देशों के बीच शान्ति तथा सौहार्दता बनाने के लिए जन संवाद का कोई मंच बनाने का काम शुरू किया । इसी सिलसिले में उनका सम्पर्क लक्ष्मीनारायण रामदास से हुआ ।

लक्ष्मीनारायण रामदास भी इस दिशा में कुछ किए जाने की जरूरत महसूस कर रहे थे । रहमान तथा लक्ष्मीनारायण रामदास ने मिलकर ‘पाकिस्तान इण्डिया पीपुल्स फॉरम फॉर पीस एण्ड ड्रेमोकेसी’ की स्थापना की । इस संस्था के पाकिस्तान की ओर से रहमान, संस्थापक अध्यक्ष बने तथा उन्होंने लक्ष्मीनारायण रामदास को इसकी भारतीय शाखा का उपाध्यक्ष मनोनीत किया । इस तरह 1996 से इन दोनों की जोड़ी ने काम शुरू किया ।

इस संस्था का प्रमुख हथियार संवाद था, यानी, यह संस्था बातचीत को इतना प्रबल मानती थी, जिससे अशान्ति की दीवार टूट सकती थी । वर्ष 1995 से ही इस संस्था ने इस दिशा में अपनी कोशिश शुरू कर दी ।

सैकड़ों पाकिस्तानी तथा भारतीय लोगों ने मिलकर सेना के जमावड़ों को कम करने की कोशिश में अपनी आवाज उठाई । उनका जोर इस बात को लोगों तक पहुँचाने का तथा सरकारों तक ले जाने का रहा कि दोनों ओर से सशस्त्र सैनिकों का दबाव सीमा पर कम किया जाए, ताकि दहशत और शत्रुता का भाव स्वत: पैदा न हो । सेना के हाथों में संहारक हथियार न दिए जाएँ जिनसे आक्रामक भावना जाग्रत हो । सीमा से फौजों को पीछे हटाया जाए, जिससे युद्ध सिर पर रखा न प्रतीत हो । सीमाओं के आर-पार से एक-दूसरे को उकसाने वाली कार्यवाही बन्द हो, ताकि सैनिकों के भी दिमाग में शान्ति तथा सामंजस्यता का विचार उपज सके ।

परमाणु हथियारों के खौफ को कम करने की दिशा में भी इस संस्था ने पहल की तथा इसका सन्देश दोनों देशों की सरकारों तक भेजा गया । प्रयास सामने रखे गए कि इस से सम्बन्धित सन्धि का कोई ऐसा मसौदा बने, जिस पर दोनों देश सहमत हों तथा उस खतरे को समझें, जो इन हथियारों की भयावहता के चलते शांति के रास्ते बन्द करते हैं । इन कदमों के जरिए यह बात सामने लाई गई कि शान्तिपूर्ण तथा लोकतान्त्रिक ढंग से कश्मीर समस्या का हल निकालने की सम्भावना बनाई जाए ।

रहमान तथा लक्ष्मीनारायण के प्रयास से, भारत और पाकिस्तान, दोनों देश बारी-बारी से अपने-अपने देशों में सम्मेलन आयोजित करते रहे ताकि इस संस्था का जनाधार बड़े । दस वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा । ऐसे दूसरे मंचों का विस्तार हुआ, जो इसी उद्देश्य को लेकर चलना चाहते थे ।

इस संस्था के सरोकारों से पर्यावरण, मानव अधिकार, ट्रेड यूनियन, महिला अधिकार आदि क्षेत्रों के लोग जुड़ने लगे । इसके साथ कई अकादमी उद्योगपति तथा दूसरे कारोबारी भी अपना स्वर मिलाने लगे । स्पष्ट रूप से इस संस्था का जनाधार बढ़ने लगा ।

उन्हीं वर्षों में लक्ष्मीनारायण के तथा रहमान के प्रयास से इस संस्था ने अपने-अपने देशों में, अपने प्रतिनिधिमण्डलों के जरिए कानूनविदों से, कूटनीतिज्ञों से, सैनिकों, कलाकारों तथा छात्रों से आमने-सामने बातचीत तथा विचार विमर्श के कार्यक्रम बनाए और फिर भारत तथा पाकिस्तान के बीच इन लोगों का आपसी संवाद भी शुरू हो गया । इसका मकसद यह था कि दोनों देशों के लोग मिलकर राजनैतिक स्तर पर होने वाले उस दुष्प्रचार की खिलाफत करें, जो दोनों देशों के लोगों के बीच विषैली दूरियाँ पैदा करने के मकसद से किया जा रहा था । इस संस्था ने रहमान तथा लक्ष्मीनारायण की अगुवाई में इस अभियान को भी दोनों देशों में चलाया कि दोनों देशों के बीच आवागमन को बढ़ावा मिले । साथ ही इस बात की भी सतर्कता बरती जाने लगी कि पाठ्‌य-पुस्तकों से ऐसी सामग्री हटाई जाए, जो दोनों देशों के प्रति हिकारत कर भाव पैदा करे ।

दूसरे स्तर पर लक्ष्मीनारायण रामदास तथा रहमान, दोनों अपने-अपने देशों में, स्वयं जाकर अपनी-अपनी सरकारों के उच्चाधिकारियों से मिल कर उन्हें इस बात पर सहमत कराने लगे कि यह संस्था कोई आडम्बर भर नहीं है, यह सचमुच शान्ति तथा सौहार्द के लिए काम कर रही है । यह कहा गया, कि इतना ही काफी है कि दोनों देशों के लोग खुले दिल से एक दूसरे से मिल-जुल कर बातचीत कर सकें, इसका माहौल बने ।

इस सन्दर्भ में लक्ष्मीनारायण अपना अनुभव बताते हैं कि वह फौज में एक किराए के टट्टू की तरह घुसे और उसके माहौल से उत्तेजित हो गए, लेकिन समय के साथ उन्हें इस बात का पूरा एहसास हो गया कि राजनैतिक समस्याओं के हल की कोशिश में फौज कोई बहुत बड़ी और स्थायी मदद नहीं कर सकती । उनके इसी एहसास ने उन्हें संस्था के मकसद से पूरी तरह जोड़े रखा ।

लक्ष्मीनारायण रामदास के जीवन के दो अनुभव उनके लिए बहुत बड़ा सबक बने । वह बहुत संवेदनशील ढंग से उस प्रसंग को याद करते हैं, कि वह सिर्फ चौदह बरस के बालक थे, जब पाकिस्तान बना था और इनके परिवार वालों ने दिल्ली में कुछ मुसलमानों की हिफाजत के लिए उन्हें अपने घर में छिपा लिया था । लक्ष्मीनारायण बताते हैं कि उनके एक ओर वह शरणागत मुसलमान परिवार था, और दूसरी ओर उत्तेजित भीड़ का डर जो देश में मुसलमानों को खोज-खोज कर मारने की फिराक में थी । इस दृष्टांत ने उनके मन में इस वैमनस्य के प्रति खिलाफत के बीज बो दिए थे ।

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इसी तरह मई 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो उनका मन विरोध से भर उठा । जुलाई में ही उन्होंने सेवानिवृत्त लोगों के हस्ताक्षर कराते हुए अपनी ओर से एक प्रतिवाद जारी किया जिसका सन्देश था:

‘आणविक हथियार न केवल दक्षिण एशिया क्षेत्र से बल्कि पूरे विश्व से हमेशा के लिए प्रतिबन्धित कर देने चाहिए ।’ इसके साथ ही लक्ष्मीनारायण अपनी पत्नी ललिता के साथ मिलकर आणविक हथियारों के विरोध के अभियान में जुट गए । उन्होंने भारत तथा पाकिस्तान, दोनों ही देशों को इस गलत तन्त्र पर निर्भरता के विरुद्ध चेतावनी दी कि वह इस दम्भपूर्ण, बेहद हिंसक आणविक हथियारों के नशे की गिरफ्त से बाहर आएँ ।

लक्ष्मीनारायण रामदास का विश्वास है, कि इन देशों की जनता की समझ, इनकी सरकारों से बेहतर है, इसलिए उनके मन में इस बात का विश्वास है कि यह अभियान सफल होगा ।

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