एम एस स्वामीनाथन की जीवनी MS Swaminathan Detail Biography In Hindi

M. S. Swaminathan Details In Hindi

एम एस स्वामीनाथन MS Swaminathan Ka Jeevan Parichay In HIndi

M. S. Swaminathan Details In Hindi

नाम : एम एस स्वामीनाथन
जन्म : 7 अगस्त 1925
जन्मस्थान : कोम्बाकोनम, (तमिलनाडु)
उपलब्धियां : पद्‌मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), रमन मैग्सेसे  (1971), ‘एलबर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साईंस’ (1986), ‘फोर फ्रीडम’ अवार्ड |

वैज्ञानिक के रूप में मोनकोम्पू सांबासिवन स्वामीनाथन को ‘हरित ‘क्रान्ति’ का जनक कहा जाता है । उन्होने भारत में कृषि वैज्ञानिक के रूप में अधिक उपज वाली गेहूँ की किस्म पैदा की और दूसरी बहुत सी नई उपजों को पैदा किया । वह छात्रों तथा किसानों को विज्ञान सिखाने में भी अग्रणी रहे | एक प्रशासक के रूप में भी उन्होंने देश की सम्बन्धी क्षमता का पूरा उपयोग किया और इससे देश में आत्मविश्वास का संचार हुआ । स्वामीनाथन की इन विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें 1971 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |

एम एस स्वामीनाथन MS Swaminathan Ka Jeevan Parichay In Hindi

स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कोम्बाकोनम गाँव में हुआ था । उनका बचपन आनन्दपूर्वक बीता और दृढ़ नैतिक मूल्य उन्हें परिवार से संस्कार में मिले । पिता की मृत्यु के समय स्वामीनाथन केवल ग्यारह वर्ष के थे, बाद में उनका पालन-पोषण उनके चाचा के परिवार में हुआ, जो मद्रास यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक थे ।

स्वामीनाथन की शुरुआती शिक्षा ‘नेटिव हाई स्कूल’ में हुई लेकिन जल्दी ही वह लिटिल फ्लावर कैथोलिक हाई स्कूल में भर्ती हो गए, जो उनके गाँव कोम्बा में ही था । 1940 में स्वामीनाथन ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए वह अरनाकुलम के महाराजा कॉलेज में चले गए और वहाँ से उन्होंने जंतु विज्ञान में ग्रेजुएशन डिग्री हासिल की ।

स्वामीनाथन पर महात्मा गाँधी के स्वदेशी दर्शन तथा पूर्ण स्वराज की माँग का बहुत प्रभाव था । महायुद्ध के समय खाद्यान्न की कमी की जानकारी ने उन्हें प्रेरित किया था कि वह कृषि विज्ञान के क्षेत्र में जाएँ । इसलिए उन्होंने कोयंबटूर एग्रीकल्चर कॉलेज में प्रवेश लिया तथा कृषि विज्ञान में एक बार फिर से ग्रेजुएशन पूरा किया । यहाँ प्रयोगात्मक कार्य के दौरान स्वामीनाथन ने जाना कि जो लोग खेतों में खुद काम करते हैं, वह किसी भी वैज्ञानिक या विशेषज्ञ से ज्यादा जानते हैं । इसी आधार पर उन्होंने अपनी नीति बनाई, ‘किसानों की राय पर विश्वास करो ।’

देश के स्वतन्त्र होने के साल 1947 में स्वामीनाथन बतौर पोस्ट ग्रेजुएट छात्र दिल्ली के इण्डियन एग्रीकल्चर रिसर्च इन्टीट्यूट में आए और उन्होंने 1949 में जैविकी तथा पौधशिल्प में, ‘साइटो जिनेटिक्स’ में विशेष योग्यता लेते हुए पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री पाई । इसी के साथ स्वामीनाथन को यूनेस्को की फैलोशिप मिली । इस फैलोशिप के जरिए जो कि वैगेनिजन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के इन्टीट्यूट ऑफ जिनेटिक्स नीदरलैण्ड द्वारा दी गई थी, स्वामीनाथन को अपने उसी संस्थान (IARI) में आलू की जैविकी पर काम करने का मौका मिला । यहाँ इन्हें सफलता मिली ।

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इसी सफलता के आधार पर 1950 में स्वामीनाथन प्लांट ब्रीडिंग इन्टीट्यूट ऑफ कैंब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, पहुँच गए, जहाँ से इन्होंने 1952 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की । इस उपाधि के साथ स्वामीनाथन के पास प्रस्ताव आया कि वह डॉक्टरेट के बाद आगे की रिसर्च एसोशियेटशिप यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन में स्वीकार कर लें तथा वहाँ के जैविकी विभाग को आलू पर विशेष अनुसंधान के लिए अनुसंधान शाला स्थापित करने में सहायता करें । स्वामीनाथन ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और उसे सफलतापूर्वक पूरा भी किया । आगे उनके पास इस बात की पूरी सुविधा थी कि वह उसी विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक पद स्वीकार कर लें लेकिन स्वामीनाथन के मन में भारतीय कृषि के विकास का जुनून प्रबल था इसलिए उन्होंने उस प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक नकारा और 1954 में भारत लौट आए ।

स्वामीनाथन का इस कार्यक्षेत्र में कदम 1949 में रखा जा चुका था । इस दौरान उन्होंने 1955 तक आलू, गेहूं, धान तथा जूट की नई किस्मों के विकास के लिए शोध किया ।

1955 से 1972 के बीच स्वामीनाथन का एक विशेष महत्त्वपूर्ण शोध सामने आया । इसे ‘मैक्सिकन ड्‌वार्फ हवीट वैराइटी’ का नाम दिया गया । इसमें कठिन परिश्रम तथा गहरे अनुसंधान से स्वामीनाथन ने अपने साथियों के साथ मिलकर शरबती सोनारा किस्म के गेहूँ का विकास किया । जिसमें लाल दाने के गेहूँ की प्रजाति को बदला गया था क्योंकि इस किस्म का गेहूँ भारत में उपभोक्ताओं द्वारा स्वीकार नहीं किया जा रहा था । इस तरह अस्वीकृत किस्म के सोनारा 64 से शरबती सोनारा विकसित करने का काम एक ऐसा करिश्मा था जिसके बारे में, 1970 में नोबेल पुरस्कार लेते समय डॉक्टर नोरमन बोर्लाग्स ने स्वामीनाथन का नाम लेते हुए कहा कि यदि उन्होंने ‘मैक्सिकन ड्वार्फ’ पर शोध न किया होता तो एशिया में हरित क्रान्ति का होना असम्भव था ।

गेहूँ के अतिरिक्त, दूसरे बहुत जरूरी खाद्यान्नों, जैसे धान, मक्का, ज्वार, तिलहन आदि की फसलों की दिशा में भी स्वामीनाथन के शोध से न केवल उत्पादकता बढ़ी बल्कि इनकी गुणात्मकता में भी सुधार आया ।

अपने कार्यक्रम में स्वामीनाथन ने बहुत सी नई संस्थाओं की स्थापना की, नए विचारों की अवधारणा (कन्सेप्ट) देश को दी तथा बहुत से महत्त्वपूर्ण पद सँभाले । देश में ‘नैशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट, एनिमल एण्ड फिश जिनेटिक रिसोर्सेज ऑफ इण्डिया’ की स्थापना डी. स्वामीनाथन ने ही की थी ।

डी. स्वामीनाथन ने ‘इन्टरनैशनल प्लांट जिनेटिक रिसोर्सेज इन्टीट्यूट की स्थापना की जो वर्ष 2006 बायोवर्सिटी इन्टरनैशनल के रूप में विकसित हो गई । 1990 में स्वामीनाथन ने ‘इन्टरनैशनल सोसायटी फॉर मैनग्रूव इकोसिस्टम्स’ की स्थापना की और इसके अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी इन्होंने 1993 तक सम्भाली । डी. स्वामीनाथन ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों के अधिकारों की अवधारणा स्थापित की और उसका मसौदा इन्टरनैशनल अण्डरटेकिंग ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (IUPGR) संस्थान को सौंपा । वह वर्ष 1983 में इन्टरनैशनल कांग्रेस ऑफ जेनेटिक्स के अध्यक्ष रहे । संयुक्त राष्ट्रसंघ के पर्यावरण कार्यक्रम में डी. स्वामीनाथन को ‘द फादर ऑफ इकॉनामिक इकालॉजी’ बनाया गया ।

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वर्ष 1999 में ‘टाइम’ पत्रिका ने बीसवीं सदी के बीस एशियाई व्यक्तियों के नाम संकलित करके प्रकाशित किए थे । उनमें केवल तीन भारतीय थे । उन तीन भारतीय नामों में, गाँधी तथा टेगौर के साथ डी. स्वामीनाथन का नाम भी था ।

स्वामीनाथन लन्दन की रॉयल सोसायटी के फैलो हैं । वह यू.एस. नैशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के भी फैलो हैं । रूस, चीन, तथा इटली की भी विज्ञान अकादमियों ने डी. स्वामीनाथन को अपना फैलो बना कर सम्मानित किया है ।

अक्टूबर 1987 में डी. स्वामीनाथन को पहला वर्ल्ड फूड प्राइज मिला । उस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सेक्रेटरी जनरल ने डी. स्वामीनाथन को ‘लिविग लीजेंड’ बताया ।

विज्ञान अनुसंधान तथा प्रशासन के अतिरिक्त डी. स्वामीनाथन ने पुस्तकें भी लिखीं जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुईं ।

वर्ष 1951 में डी. स्वामीनाथन का विवाह मीना स्वामीनाथन से हुआ । वह तीन पुत्रियों के पिता तथा पाँच नौनिहालों के नाना बने ।

डी. स्वामीनाथन के पुरस्कारों और सम्मानों की सूची बहुत बड़ी है । उन्हें 1972 में पद्मभूषण तथा 1989 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया । उसके पहले 1967 में उन्होंने पद्‌मश्री सम्मान पाया था ।

अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों में उन्हें, प्रेसिडेन्ट कोराजोन के हाथों फिलीपींस का गोल्डन हार्ट प्रेसिडेंशियल अवार्ड मिला ।

1986 में स्वामीनाथन को वर्ल्ड कल्चर काउंसिल द्वारा ‘एलबर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साईंस’ अवार्ड दिया गया । यह मानव संसार की कल्याणकारी गतिविधियों के लिए दिया जाता है ।

स्वामीनाथन के पुरस्कारों में एक महत्त्वपूर्ण पुरस्कार ‘फोर फ्रीडम’ अवार्ड है । यह पुरस्कार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए, धर्म की स्वतन्त्रता के लिए याचना से स्वतन्त्रता के लिए तथा भय से मुक्ति के लिए दिया जाता है । यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य महत्त्वपूर्ण संस्थाओं से जुड़कर स्वामीनाथन अभी भी सक्रिय हैं ।

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