
मधुमेह रोग क्या होता है Madhumeh (Diabetes) Rog Kya Hota Hai Janiye Hindi Me
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के आंकड़ों के अनुसार सन 2030 तक भारत में अनुमानतः 87 करोड़ लोगों के मधुमेह बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना है | WHO एवं आई.सी.एम.आर के सन 2007 के एक सर्वे के अनुसार भारत में मधुमेह रोग कामन होता जा रहा है | महानगरों में 7.3 प्रतिशत, शहर, कस्बों में 3.2 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 3.1 प्रतीशत इसके रोगी हैं | विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकलन है कि इस सदी में विकासशील देश इसका कहर सबसे ज्यादा झेलेंगे | ताजा आंकड़ा बताता है कि मधुमेह के 70% मरीज निम्न व मध्य आय वर्ग के हैं | साथ ही दुनिया भर के कुल मधुमेह पीड़ितों में हर 5 में से एक भारतीय है |
इसी का जुड़वा भाई है उदक मेह (Diabetes insipidus) | यह रोग वैसोप्रीसीन (Vasopressin) हार्मोन की कमी से होता है | जो पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) के पश्चिम खण्ड (Posterior Lobe) से पैदा होता है तथा जिसमें मूत्रल विरोधी (Anti Diaunetie) तत्व पाए जाते हैं | वैसोप्रीसीन हार्मोन की कमी से इन तत्वों में कमी आने लगती है, जिससे अधिक मूत्र शरीर से बाहर आने लगता है | मूत्र का आपेक्षित गरुत्व (Specific Gravity) कम हो जाता है और धीरे-धीरे 10 से 25 लीटर तक मूत्र प्रतिदिन शरीर से बाहर आने लगता है | परिणाम स्वरुप शरीर में पानी की कमी (Dehydration) होने लगती है | जिससे अधिक प्यास और को भूख लगने लगती है और शरीर क्षीण होने लगता है |
यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होता है | यह रोग मस्तिष्क में प्रारंभिक अर्बुद (Primary Tumor), मस्तिष्क में चोट लगने से, मस्तिष्क आवरण शोथ (Meningitis), मूत्राशय में Hypertrophy with megaloureter होने से तथा मूत्र जनन संस्थान में सूजन (Inflammation) तथा जननांगों में Secondary Changes हो जाने से होता है |
यद्धपि अभी उदक-मेह रोग का विस्तार बहुत कम है |
मधुमेह है क्या (Madhumeh Rog Kya Hota Hai) ?
मधुमेह पूर्व काल (Pre Diabetic Period): मधुमेह के शुरुआती लक्षण दिखाने वाली अवस्था को प्री-डायबिटिक पीरियड कहते हैं | आमतौर पर प्री डायबिटिक पीरियड 5 से 10 वर्ष तक रहता है | जिसके लक्षण एपल शेप्ड (Apple Shape) बॉडी, ज्यादा मुंहासे निकलना, समय-समय पर फोड़े-फुन्सी का होना, धब्बेदार त्वचा तथा रक्तचाप बढने के रूप में देखने को मिलते हैं | अनुवांशिक कारण भी इसकी बड़ी वजह है, इन कारणों को समझकर जीवनशैली से जुड़ी इस मधु मेह की बीमारी को दूर रखने में कामयाबी मिल सकती है |
विशेषज्ञों की मान्यता अनुसार उचित शारीरिक परिश्रम की कमी मधुमेह की पहली शुरुआत है, खासतौर पर प्री-डायबिटिक काल की शुरुआत अस्वस्थ जीवनशैली से ही होती है |
शहरों में 20 से 22 वर्ष से ऊपर की उम्र के युवा अपना समय डेक्स जॉब, काम का अधिक दबाव, अनियमित खान-पान, जंक फूड का सेवन, रात में देर से सोना, प्रातः काल देर से जागना, व्यायाम न करना, देर रात्रि तक काम करना आदि विभिन्न दबावों में बिता रहे हैं | जिससे उनमें हार्मोनल असंतुलन और स्लीव-डिसार्डर जैसी समस्याएं देखने को मिल रही है | कम उम्र से ही युवाओं में वजन बढ़ने, शारीरिक मुद्रा में बदलाव आने, पाचन क्रिया प्रभावित होने के मामले देखने को मिल रहे हैं | लम्बे समय तक भूखा रहना और कम शारीरिक परिश्रम जैसे ये प्रीडायबिटिक लक्षण अंततः व्यक्ति को मधुमेह की ओर ले जाते हैं |
डायबिटिक रिस्क स्कोर (Diabetes Risk Score Assessment Tool Or Calculator)
मोटापा व वजन बढ़ना, स्त्रियों के मासिक धर्म चक्र का अनियमित होना, अधिक चिंता, तनाव, काम इच्छा में कमी आदि |
गर्दन, बगल, घुटने और हाथों के जोड़ों के आस-पास की त्वचा का ढीला पड़ना, त्वचा पर फोल्ड पड़ना जिसे एकैनथोसिस निगरि केस कहते हैं |
बार-बार फोड़े-फुन्सी व मुंहासों का होना, धब्बेदार त्वचा का होना, बार-बार कोई त्वचा संबंधी संक्रमण होना, दातों में संक्रमण होना, दांतों के बीच में गैद आना आदि | जिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है मधुमेह होने की संभावना कम रहती है | 35 वर्ष से 50 वर्ष के बीच मधुमेह होने की आशंका बढ़ जाती है | 50 वर्ष से ऊपर से मधुमेह होने की संभावना प्रबल होती है |
महिलाओं में कमर-पेट का साइज 80 से.मी. से कम तथा पुरुष की 90 सेंटीमीटर से कम है तो मधुमेह की संभावना कम रहती है, यदि महिलाओं में 80 से 90 से.मी. तथा पुरुषों में 100 से.मी. तक कमर-पेट का साइज होता है मधुमेह होने की आशंका रहती है | यदि महिलाओं में यह 90 से.मी. से ऊपर तथा पुरुषों में 100 से.मी. से ऊपर है तो मधुमेह होने की अधिक संभावना रहती है |
अनुवांशिक फैमिली हिस्ट्री, शारीरिक श्रम खान-पान व जीवन शैली पर भी निर्भर करता है कि किसे भविष्य में मधुमेह आसानी से हो सकता है | H.B.A.I.C. जांच तीन माह में बॉडी में शरीर द्वारा ग्लूकोज मैनेज करने की स्थिति बताती है | इससे यह पता चलता है कि आपकी जीवनशैली कितनी स्वस्थ है | अर्थात रक्त जांच की रिपोर्ट की रेंज 5.7 व 6.4 प्रतिशत से अधिक आना | इसका 6.5 प्रतिशत से अधिक होना मधुमेह होने की आशंका को प्रदर्शित करता है | ‘फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट’ के जरिए भी शरीर में ग्लूकोज की मात्रा का आंकलन किया जाता है | यदि आपका F.P.C.T. 100 से कम है, तो आप समझ लें कि आप स्वस्थ हैं, यदि आपका F.P.C.T. 100 से 125 के बीच है, तो सावधान हो जाय, क्योंकि आप प्री-डायबिटिक स्टेज पर हैं | यदि F.P.C.T. 125 से ऊपर है तो मधुमेह के खतरे की ओर इंगित करता है |
मधुमेह रोग के मुख्य लक्षण Madhumeh Ke Lakshan – Diabetes Symptoms In Hindi
मधुमेह रोग के मुख्य लक्षण है अधिक भूख लगना (Polyphagia), अधिक मात्रा में मूत्र त्याग होना (Polyuria), अधिक प्यास लगना (Polydipsia) तथा भार में कमी व अति दुबला शरीर होना आदि |
मधुमेह एंव प्राकृत परिवर्तन (Pathological Changes in Diabetes Mellitus)
शारीरिक रसायन
प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य जो भोजन करता है,उनमें से कार्बोज (CHO) आंत्र में ग्लूकोज के रूप में परिवर्तित होकर आंत्र द्वारा अवशोषित (Absorb) होता है | यह ग्लूकोज ग्लाइकोजन (Glycogen) बनाता है तथा यकृत व शरीर की मांसपेशियों में संचित होता है | पेशियां जब कार्य करती हैं, तब इन्स्यूलिन के प्रभाव से ग्लाइकोजन प्राण वायु (Oxygen) से मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा जल में परिवर्तित होता है | कार्बन डाइऑक्साइड का फेफड़ों (Lungs) से तथा जल का वृक्क (Kidney) द्वारा शरीर से बाहर परित्याग होता है | इस क्रिया में ताप व शक्ति (Energy) की उत्पत्ति होती है जो स्वस्थ शरीर को कार्य करने के लिए आवश्यक है |
ग्लुकोनियोजेनेसिस अवस्था Gluconeogenesis State
स्वास्थ अवस्था में रक्तशर्करा उपवास के समय (Fasting Blood Sugar) 80 से 120 मि.ग्रा. प्रति 100 सी.सी. में रहती हैं | यह मात्रा जब 180 मि.ग्रा. हो जाती है, तब मूत्र में शर्करा आने लगती है, इस मात्रा को वृक्क देहली (Renal Threshold) ही कहते हैं |
प्राकृतिक अवस्था में कार्बोज (CHO) प्रोटीन तथा वसा के Metabolism का आपस में घनिष्ट संबंध है | मधुमेह में शर्करा के Metabolism ठीक से न होने के कारण प्रोटीन तथा वसा का मेटाबोलिज्म भी विकृत हो जाता है | प्राकृत अवस्था में मनुष्य प्रधानतः शर्करा से शक्ति (Energy) प्राप्त करता है | कार्बोज (CHO) से शर्करा 100%, प्रोटीन से 60% तथा वसा से 10% मिलती है | मधुमेह हो जाने पर कार्बोज (CHO) का Metabolism न होने के कारण शरीर प्रोटीन तथा वसा से शर्करा प्राप्त करता है | इस प्रकार रोगी के शरीर में वसा तथा प्रोटीन की कमी होने लगती है और रोगी दुर्बल हो जाता है तथा मूत्र में शर्करा आती है | जिससे मूत्र का आपेक्षित घनत्व बढ़ जाता है |
भोजन द्वारा जो शर्करा मधुमेह रोगी लेता है, इन्स्यूलिन की कमी के कारण शर्करा शक्ति (Energy) उत्पन्न नहीं कर सकती, परिणाम स्वरुप शरीर यकृत से ग्लाइकोजन लेने लगता है और शरीर में कार्बोज की कमी होने लगती है | इन्स्यूलिन की कमी के कारण शरीर इस ग्लाइकोजन से भी शक्ति (Energy) नहीं ले पाता, परिणाम स्वरूप यह शरीर के प्रोटीन तथा वसा को शीघ्रता से नष्ट कर ग्लूकोज उत्पन्न करता है और उससे शक्ति पैदा करने का प्रयत्न करता है | परिणामत: रोगी पतला दुर्बल होता जाता है | यही अवस्था ग्लुकोनियोजेनेसिस कहलाती है |
कार्बोज (CHO) का Metabolism विकृत हो जाने पर कीटोन (Ketone) की जिस शीघ्रता से उत्पत्ति होती है, शरीर के धातु (Tissues) उतनी शीघ्रता से कीटोन का नाश नहीं कर पाते और कीटोन रक्त में संचय हो जाता है | रक्त में कीटोन शरीर के बायोकार्बोनेट (Bicarbonate) से मिलकर स्थाई लवण (Fixed Salts) की उत्पत्ति करता है | इस प्रकार शरीर में क्षार (Alkali) की कमी हो जाती है और अम्लोत्कर्ष (Acido-Ketosis) के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं | रक्त में संचित कीटोन क्षार से नहीं मिल पाता और मूत्र द्वारा कीटोन का परित्याग शरीर से बाहर होने लगता है |
कीटोन के मुख्यत: तीन प्रकार
(1)एसीटोन (Acetone)
(2) एसिटो ऐसिटिक एसिड (Acetoacetic Acid)
(3) बीटा हाइड्रोक्सी ब्यूटिरिक एसिड (Beta Hydroxybutyric Acid)
जब हम कुछ खाते है तो शरीर उसे ग्लूकोज (शर्करा) के रूप में तोड़कर रक्त मिला देता है | अग्नाशय द्वारा तैयार किया गया इन्स्यूलिन हार्मोन रक्त में मौजूद ग्लूकोज को रक्त के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचाता है, जिससे हमें ऊर्जा मिलती है | शरीर उतनी ही मात्रा में इन्स्यूलिन पैदा करता है, जितना कि हम भोजन करते है | जब शरीर की कोशिकाएं इन्स्यूलिन को रिसपांड करना बन्द कर देती हैं, तो इन्स्यूलिन प्रतिरोधी बन जाती हैं और ग्लूकोज कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता | इससे कोशिकाओं को जरूरत के मुताबिक ईधन नहीं मिल पाता और ग्लूकोज रक्त में ही रह जाता है | जिसे हाई ब्लड शुगर (High Blood Sugar) कहा जाता है | दीर्घकाल में उपरोक्त विकृतियों से किडनी, नर्ब्स, ह्रदय की बीमारियां, स्ट्रोक्स, बी.पी. और आंखों से संबंधित घातक बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं | इसीलिए कहा जाता है कि डायबटीज एक अकेली बीमारी नहीं है, अपितु यह बहुत सी बिमारियों का समूह है |
सोर्स: योग सन्देश
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