
महेश चन्दर मेहता का जीवन परिचय (Mahesh Chandra Mehta Biography In Hindi Language)
नाम : महेश चन्दर मेहता
जन्म : 12 अक्टूबर 1946
जन्मस्थान : राजौरी, जम्मू कश्मीर
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (1997) |
भारत का संविधान देश के सभी निवासियों को समान रूप से जीने का अधिकार देता है और इस से पर्यावरण को बचाने के कानून बहुत पहले से बनाकर लागू किए गए हैं | लेकिन इन कानूनों की जिस निर्भीकता से अनदेखी की जा रही है और लोग इसके प्रति सचेत नहीं है यह चिन्ता की बात है महेश चन्दर मेहता ने पर्यावरण की रक्षा के इन कानूनों की अवहेलना को अपना सरोकार बनाया और लड़ाई में अकेले ही जुट गए | उन्होंने ऐसी अवहेलनाओं के विरुद्ध दायर किए और अन्तत: उनमें विजय पाई । वह पर्यावरण को बचाने में सफल हुए । महेश चन्दर मेहता के इस सचेत सरोकार तथा प्रयत्न के लिए उन्हें 1997 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।
महेश चन्दर मेहता का जीवन परिचय (Mahesh Chandra Mehta Biography In Hindi)
12 अक्टूबर 1946 में महेश चन्दर मेहता का जन्म जम्मू कश्मीर राज्य के राजौरी गाँव में हुआ था । इनका पालन-पोषण पांचाल पर्वत श्रेणियों में बसे एक गाँव में हुआ जो कि कश्मीर घाटी से ज्यादा दूर नहीं थी और एक बेहद सुन्दर जगह थी । वहीं की बोली डोगरी तथा पाकरी थी ।
मेहता गाँव के जिस स्कूल में पढ़ें वह एक कमरे का छोटा सा स्कूल था लेकिन मेहता के पिता की व्यवस्था के कारण, वहाँ छात्रों के बैठने तथा पढ़ने की ठीक सुविधा थी । मेहता के पिता ग्राम पंचायत के प्रधान थे । उनकी भी चेतना में पर्यावरण की सुरक्षा एक जरूरी मुद्दा था ।
अठारह वर्ष की उम्र में महेश ने हाई स्कूल पास कर लिया । उनके माता-पिता उनकी शादी कर देना चाहते थे लेकिन वह जम्मू जाकर कॉलेज में पढ़ना चाहते थे । इस पर महेश ने तय किया कि वह परिवार पर निर्भर न रह कर स्वतन्त्र रूप से जो चाहेंगे वह करेंगे । अपने इस निर्णय में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे परिवार से उनके सम्बन्धों पर कोई अन्तर नहीं आएगा ।
इसे भी पढ़ें :- ईला रमेश भट्ट का जीवन परिचय
1974 में महेश ने कानून की डिग्री अर्जित की, लेकिन इसके साथ-साथ वह बहुत से दूसरे काम भी करते रहे । उन्होंने एक जूते के स्टोर में अकाउन्टेंट का काम किया । उनके साथियों ने प्रेरित करके उनसे एक कोचिंग सेंटर खुलवाया जिसमें रात को स्कूल के बच्चे पढ़ने आते थे । उस सेंटर में महेश ने खुद भी पढ़ाने का काम किया ।
1970 से ही महेश की रुचि सामाजिक कामों में होने लगी । उसी दौर में उन्होंने बहुत से ट्रेनिंग कैम्प तथा ग्राम सेवा जैसे कामों में भाग लिया । ये काम ‘सेवादल’ की ओर से किए जाते थे । 1971 में महेश चन्दर मेहता ने एक अंग्रेजी साप्ताहिक अखबार निकालना शुरू किया ।
1974 में लॉ की डिग्री मिलते ही महेश ने जम्मू में अपना ऑफिस खोल लिया । उनके इस ऑफिस में उनके तीन और साथी वकील थे । वह तीनों ही ईमानदार तथा सम्मानीय लोग थे तथा वकालत करते थे । महेश की दूसरी बहुत-सी सामाजिक गतिविधियाँ भी थीं । महेश इस सिलसिले में प्रतिदिन शाम को चार बजे से आठ बजे रात तक बैठकर केवल लोगों से मिलने-जुलने तथा उनकी समस्याएं सुनते थे तथा उन्हें कानूनी मशविरा देते थे । यह एक तरह से सामाजिक कार्य था ।
महेश चन्दर मेहता के जीवन की एक घटना महत्त्वपूर्ण है । एक बार प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह ने ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ के अपने सम्पादकीय में लिख दिया कि हिन्दुस्तान में वकील बस केवल पैसा कमाने में दिलचस्पी रखते हैं और उनका न्याय की रक्षा से कोई लेना-देना नहीं होता ।
इस टिप्पणी पर महेश चन्दर मेहता को बहुत गुस्सा आया । उन्हें खुशवन्त सिंह की यह ‘सब वकीलों’ के लिए कही गई बात आपत्तिजनक लगी और उन्होंने इस पर खुशवंत सिंह के खिलाफ, ‘मानहानि’ करने के लिए मुकदमा ठोंक दिया । खुशवंत सिंह उन दिनों बेहद मजबूत स्थिति में थे । उनके उस समय की प्रधानमन्त्री से नजदीकी रिश्ते थे तथा इमरजेंसी का जमाना था । यह सारी ही बातें न्याय तथा कानून के खिलाफ जाने वाली तथा महेश को कमजोर करने वाली थीं । लेकिन महेश डटे रहे और आखिर खुशवंत सिंह को अदालत में हाजिर होना पड़ा, उन्होंने जमानत दी, और जम्मू जाकर अखबार में माफी माँगने का पत्र लिख कर दिया । महेश की जीत हुई ।
1983 में महेश चन्दर मेहता का एक सामाजिक कार्यकर्ता तथा फ्रीलाँस लेखिका राधा से विवाह हुआ । उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर तय किया कि वह जम्मू का अपना दफ्तर तथा अखबार बन्द करके दिल्ली जाएंगे । दिल्ली आकर सीधे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे लेने लगे । उनकी इस कोशिश पर उनके साथी वकीलों ने उनकी हँसी उड़ाई । दिल्ली आते ही सीधे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की सोचना कठिन काम था, लेकिन महेश ने इस निर्णय को मजबूती से पकड़ा और उसे निभाया ।
पर्यावरण के प्रति महेश के सरोकार को लेकर एक मुकदमा महत्त्वपूर्ण है । एक बार प्रसिद्ध सांसद पीलू मोदी की स्मृति में आयोजित जनसभा में महेश उपस्थित थे । वहाँ उन्होंने एक व्यक्ति को उन पर लांछन लगाते सुना कि वकालत बस पैसा कमाने का धंधा है, कुछ भलाई का काम नहीं हो रहा है । इस पर महेश ने उस आदमी से उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा, तो उसने बताया कि आगरा में ताजमहल प्रदूषण से प्रभावित हो रहा है, लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है । उस आदमी की बात ने महेश को बहुत चौंकाया और उन्होंने इसे गम्भीरता पूर्वक लिया ।
महेश ने बहुत सलीके से सही दृष्टिकोण अपनाते हुए स्थिति की छानबीन की, सम्बन्धित दस्तावेज खोज कर पढ़े । फिर बाद में पत्नी राधा तथा पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर टी. शिवाजी राव को साथ लेकर ताजमहल देखने गए । उन्होंने इसके पहले कभी ताजमहल नहीं देखा था । महेश ने ताजमहल के अद्भुत सौन्दर्य को तो देखा ही, उसके क्षय को भी देखा । प्रदूषण खूबसूरत संगमरमर की सतह को पीला करते हुए उसे खोखला भी कर रहा था । यह देखकर उन्होंने मन-ही-मन अपना कदम तय कर लिया ।
1984 में उन्होंने पूरी तैयारी के साथ सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की । उस याचिका में ताजमहल, उसके परिसर में दूसरी ऐतिहासिक इमारतों, तथा आस-पास रहने वालों की तरफ से यह बताया गया था कि रिफाइनरी तथा दूसरे औद्योगिक कारखानों के कारण वहाँ का परिवेश इन सबके लिए गहरा खतरा है । उन्होंने संविधान की धारणा का हवाला दिया, जो नागरिक के जीने के अधिकार की रक्षा करता है, जिसमें स्वस्थ पर्यावरण की अनिवार्यता स्थापित होती है । इसके पहले भी महेश ने गंगा नदी के प्रदूषण को लेकर भी एक मुकदमा सुप्रीम कोर्ट से इसी तर्क पर जीता था ।
ताजमहल के ‘मार्बल कैंसर’ का यह मुकदमा लम्बा चला लेकिन अन्तत: 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने महेश की दलील के पक्ष में फैसला देते हुए बहुत से परिवर्तन कराए । कई औद्योगिक इकाइयाँ हटाई गईं । रिफाइनरी में पर्यावरण से प्रभावित मामलों के लिए एक अलग से अस्पताल बनाया गया, जिसमें पचास बिस्तरों की व्यवस्था रखी गई । बाईपास बना कर वाहनों के आने-जाने का रास्ता दूर हटाया गया तथा परिसर में कोयले का इस्तेमाल प्रतिबन्धित हुआ और बीस किलोमीटर की परिधि से सभी ईंटों के भट्टे हटा दिए गए । पर्यावरण के पक्ष में यह महेश मेहता की जीत दर्ज हुई । उसके बाद तो इन्होंने पर्यावरण की समस्याओं से सम्बन्धित कई मुकदमे दायर किए और अपनी चेतना स्थापित करते रहे । पश्चिमी दिल्ली में 1985 में एक खुले नाले से उठने वाली दुर्गन्ध से स्कूल से वापस लौटते हुए चालीस बच्चे प्रभावित हुए थे और ऐसा कहा जा रहा था कि यह श्रीराम फूड तथा फर्टिलाइजर कम्पनी में गैस के रिसाव का नतीजा है । महेश ने इस घटना के खिलाफ बच्चों के पक्ष में एक जनहित याचिका दायर कर दी । लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने इसे लेने से इंकार कर दिया । उनका कहना था कि यह मामला इतना महत्त्वपूर्ण और गम्भीर नहीं है । रजिस्ट्रार ने महेश को सलाह दी कि वह अपने निजी मुकदमों पर मेहनत करें जनहित याचिका पर समय न गवाएं । इस पर महेश निराश हो गए ।
तभी 4 दिसम्बर 1985 को यूनियन कार्बाइड का गैस लीक काण्ड भोपाल में हुआ जिसने सैकड़ों लोगों की जान ले ली और उसका शोर पूरे देश में मच गया । इस पर महेश मेहता ने तुरंत अपनी याचिका निकलवाई और उसे फिर से प्रस्तुत कर दिया । इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तुरन्त ध्यान दिया । महेश की रिपोर्ट इतनी मेहनत से तथा करीने से बनी थी कि सुप्रीम कोर्ट को उसे स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं हुई और श्रीराम फूड एवं फर्टिलाइजर कम्पनी को मुआवजा चुकाना पड़ा तथा ऐसे मामलों में ‘मेहता सिद्धान्त’ का नाम लिया जाने लगा ।
1985 में ही महेश मेहता ने गंगा प्रदूषण का मामला उठाया । इसमें बहुत सी औद्योगिक इकाइयां गंगा में अपना जहरीला कचरा तथा रासायनिक स्राव बहा रही थीं । हरिद्वार में इतना तक देखा गया कि गंगा में जलती हुई माचिस की तीली फेंके जाने पर पानी ने आग पकड़ ली क्योंकि गंगा की सतह पर ज्वलन-शील रसायन तैर रहे थे । इससे पूरी ढाई हजार किलोमीटर तक बहने वाली लम्बी नदी प्रभावित हो रही थी तथा उसके आसपास के लोग भी इस प्रदूषण से प्रभावित हो रहे थे ।
इसे भी पढ़ें :- महाकवि संत सूरदास की जीवनी
महेश की कोशिश से दो वर्ष बाद 1987 में सरकार ने उन इक्कीस चमड़े के काम करने वाली इकाइयों को बन्द कराया जो उत्तरप्रदेश में गंगा के किनारे बनी हुई थीं । इस पर उद्योगपतियों का हर्जाने का भी कोई दावा नहीं माना गया । महेश चन्दर मेहता पूरी लगन से पर्यावरण के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं । उनका कार्यक्षेत्र तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश से लेकर उड़ीसा तक सारे देश में है और उनके पास पूरी दृष्टि तथा सामर्थ्य से काम करने की क्षमता है ।
मेहता का सपना है कि उनका कानूनी काम एक आश्रम की तरह चलता रहे । उनकी पक्षधरता पर्यावरण तथा जनसाधारण के साथ है । उनका कहना है कि कानून के साथ लोगों के पक्ष में लड़ना एक भलाई का काम है ।
Tags : Mahesh Chandra Mehta Biography In Hindi, Mahesh Chandra Mehta Ka Jeevan Parichay, MC Mehta.