
मनीभाई देसाई का जीवन परिचय Manibhai Desai Ki Biography In Hindi Language
नाम : मनीभाई देसाई
पिता का नाम : भीमभाई फकीर भाई देसाई
जन्म : 27 अप्रैल 1920
जन्मस्थान : सूरत, गुजरात
मृत्यु : 1993
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (1982)
मनीभाई देसाई का जीवन परिचय Manibhai Desai Ka Jeevan Parichay In Hindi
मनीभाई देसाई उस पीढी के व्यक्ति थे जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी के साथ भी सक्रिय होकर काम किया और उसके बाद आजाद भारत में भी उन्हें काम करने का लम्बा अवसर मिला । देश के स्वतन्त्र होने के समय वह एक नौजवान व्यक्ति थे और स्वतन्त्र रूप से अपनी जीवन धारा चुन सकते थे लेकिन बहुत पहले मनीभाई देसाई ने महात्मा गांधी के सामने यह संकल्प लिया था कि वह आजीवन निर्धन गाँव वालों के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए काम करते रहेंगे । यह संकल्प उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ निभाया और उनके कार्यक्षेत्र में उनकी कर्मठता का प्रमाण स्पष्ट देखा गया । मनीभाई देसाई की इसी प्रतिबद्ध सेवा के लिए उन्हें 1982 का मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया ।
मनीभाई देसाई का जन्म 27 अप्रैल 1920 को सूरत, गुजरात में उनके गाँव कोस्मादा में हुआ था । उनके पिता भीमभाई फकीर भाई देसाई आसपास के 10-15 गाँवों के प्रतिष्ठित किसान थे । मनीभाई के चार भाई और एक बहन थी और हर सन्तान को उनकी माँ रानी बहन देसाई ने चतुर सयाना बनाया था ।
मनीभाई की स्कूली शिक्षा 1927 में उन्हीं के गाँव के स्कूल में शुरू हुई । उसी वर्ष उनके पिता का देहान्त हुआ था और उनकी माँ ने बच्चों की पूरी जिम्मेदारी संभाली थी । मनीभाई हमेशा कक्षा में प्रथम रहने वाले छात्र थे तथा उनका योगदान खेलकूद तथा स्काउट के रूप में भी खूब रहता था । उन्हीं दिनों मनीभाई महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आए । उन्होंने गाँधी जी के नमक आन्दोलन में हिस्सा लिया और सक्रियता से गैर कानूनी नमक को गाँव में जाकर बाँटा ।
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सादगी का भाव मनीभाई के भीतर बचपन से ही था । उनकी माँ इस बात के लिए बहुत चिन्तित रहती थीं कि कहीं उनका बेटा बिगड़ न जाए । इसके लिए उन्होंने मनीभाई को अपनी एक चचेरी बहन के पास पढ़ने के लिए सूरत भेज दिया । उनकी बहन के अपने पाँच-छह बच्चे थे तथा वह परिवार बहुत सम्पन्न भी नहीं था । ऐसे में वहाँ मनीभाई को बहुत सा घरेलू काम करना पड़ता था । उनकी माँ ने उन्हें एक गाय दी थी, ताकि उन्हें दूध की कमी न रहे । उस घर में गाय की सेवा आदि भी मनीभाई को ही करनी पड़ती थी । मनीभाई ने इस सब काम को बहुत मनोयोग से किया और कभी उनके मन में इसके प्रति विरोध नहीं उपजा लेकिन उनकी माँ को यह ठीक नहीं लगा । एक दिन जब वह अचानक बेटे के पास पहुँची, उन्होंने देखा कि मनीभाई मिट्टी के तेल वाली लालटेन का शीशा साफ कर रहे थे । बस उनकी माँ ने उन्हें वहाँ से उठाकर एक हॉस्टल में डाल दिया । अगले वर्ष उनका दाखिला अनविल आश्रम में कराया गया जहाँ से उन्होंने 1939 में हाई स्कूल पास किया । मनीभाई की आत्मनिर्भरता की नींव वहीं से पड़ी ।
हाई स्कूल के बाद मनीभाई देसाई एम.टी.बी. सार्वजनिक कॉलेज सूरत में आ गए । यह संस्थान बंबई यूनिवर्सिटी से संवृद्ध था । मनीभाई के बड़े भाई चाहते थे कि वह इन्जीनियर बनें इसलिए उन्होंने भौतिकशास्त्र तथा गणित विषयों से पढ़ाई शुरू की । 1942 में उन्होंने जूनियर बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की तथा कॉलेज के फाइनल में प्रवेश लिया । उस समय गाँधीजी का आन्दोलन अपने चरम पर था । 9 अगस्त 1942 को ब्रिटिश सरकार ने सारे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया । इसी दिन मनीभाई ने बिना परिवार से कोई इजाजत लिए कॉलेज छोड़ दिया और गाँधी जी के साथ आन्दोलन में कूद पड़े ।
1943 में मनीभाई गाँधी जी के साथ जेल में थे जहाँ उन्होंने गाँधीजी के साथ ग्राम विकास की आवश्यकता पर बातचीत भी की । 1944 में जब वह जेल से छूटे, उन्होंने तय किया कि वह इन्जीनियर बनने का इरादा बिकुल भूलकर गाँवों के विकास के लिए काम करेंगे । अप्रैल 1943 में मनीभाई ने अपने कॉलेज की परीक्षा का आखिरी पर्चा दिया और उसी शाम, गाड़ी पकड़कर गाँधी जी के पास उनके आश्रम में आ गए ।
आश्रम में गाँधी जी से उनकी भेंट बहुत महत्त्वपूर्ण रही तथा उसका प्रसंग रोचक भी है । गाँधी जी ने मनीभाई से कहा कि पहले गाँवों में जाओ और जो कुछ तुमने पढ़ा है, उसे भुला दो ।
इस पर वे प्रथम श्रेणी के भौतिक शास्त्र तथा गणित पढ़े मनीभाई हैरत में आ गए । उन्होंने पूछा, ”बापू…क्या आप शिक्षा के विरुद्ध हैं…?”
बापू ने उत्तर दिया, ”मैंने तुम्हारी शिक्षा को ध्यान में रखकर यह बात नहीं कही लेकिन वह साहबी रंगढंग जो कॉलेज तथा समाज शिक्षित व्यक्ति को देता है, उससे पीछा छुड़ाना होगा…”
इस पाठ के साथ देसाई अपने गाँव पहुँचे । कोस्माडा में उन्होंने गाँव वालों को सगंठित करना शुरू किया । चार महीने बाद देसाई को गाँधी जी का एक पत्र मिला ‘तुरन्त सेवाग्राम आकर मुझसे मिलो ।’
इस समाचार से गाँव वालों को धक्का लगा । उन्हें मनीभाई के काम से सुरक्षा का एहसास होने लगा था । मनीभाई के परिवार को भी धक्का लगा क्योंकि मनीभाई ने अपनी गाँधी से भेंट का कोई जिक्र परिवार से नहीं किया था । खैर, वह गाँव वालों को यह समझाकर रवाना हुए कि यदि गाँधी जी ने उन्हें याद किया है, तो यह सारे गाँव का गौरव है ।
18 अगस्त 1945 को मनीभाई देसाई वर्धा में, गाँधी जी के आश्रम सेवा ग्राम में थे । गाँधी जी महाराष्ट्र में पूरे ग्राम विकास की गतिविधियों का एक केन्द्र बनाना चाहते थे, जहाँ प्राकृतिक चिकित्सा तथा स्वास्थ्य कार्यक्रमों को गरीब मरीजों के लिए प्राकृतिक रूप से कम कीमत पर चलाया जाए । यह निर्णय लेने के पहले गाँधी ने एक बार मनीभाई की परीक्षा लेनी चाही, उन्होंने मनीभाई को शौचालय साफ करने का काम सौंपा और यह दायित्व भी दिया कि वह कूड़ा करकट तथा विष्ट से खाद बनाने का काम सीखें । देसाई ने डेढ़ महीने तक यह काम किया और उनकी निष्ठा तथा अनुशासन से सन्तुष्ट होकर गाँधी जी ने उन्हें आमन्त्रित करते हुए बतौर अपना निजी स्टॉफ स्वीकार कर लिया तथा हिसाब-किताब करने का काम सौंपा ।
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गाँधी जी के दिशा निर्देश पर देसाई ने उर्ली कंचन के गोशाला आश्रम में काम शुरू किया । यह आश्रम एक तरह से बड़े कामों का एक केन्द्र बनाया गया और यहाँ गाँव के गरीब लोगों के लिए प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवस्था हुई । इस केन्द्र के एक दूसरे कार्यक्रम में एक स्कूल की शुरुआत थी जो एक फार्म हाउस में तीस लड़कों को लेकर शुरू किया गया ताकि उन्हें भविष्य के उन्नतशील किसानों की तरह विकसित किया जा सके । गाँवों में महाजनी क्रूरता के शिकंजे को खत्म करने के लिए देसाई ने ऋण सहकारिता व्यवस्था का प्रबन्ध किया । नब्बे एकड़ की जमीन पर चरागाह बनाया और एक सहकारी खेती सोसाइटी बनाकर भूमिहीन किसानों को वर्ष भर की कमाई का अवसर प्रदान कराया । भारतीय एग्रो इन्डस्ट्रीज फाउन्डेशन देसाई ने 1967 में शुरू किया जिसमें ‘गोरक्षण’ के बापू के सिद्धान्त को कार्य रूप दिया गया । देसाई ने स्वयं 1950 में मरी हुई गायों की शल्य परीक्षा करके खुद को बर्बर पशु चिकित्सक प्रशिक्षित किया था । यहाँ मनीभाई देसाई ने कृत्रिम गर्भाधान से डेनमार्क और ब्रिटेन की नस्ल की गाय जैसे पशुओं की नई नस्ल तैयार की जो ज्यादा दूध दे सकने में समर्थ थीं । इसी तरह पशुओं को खुर तथा मुँह की बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन बनाया गया जिससे साल में सैकड़ों जानवरों को मरने से बचाया जाने लगा । भारतीय एग्रो इण्डस्ट्रीज फाउण्डेशन (BAIF) के जरिए इस तरह गाँवों में व्यवस्था तथा आधुनिकता के जरिए आर्थिक विकास होने लगा, जिसका विस्तार फिर पूरे देश में पहुँचा |
मनीभाई देसाई ने BAIF की पत्रिका में 1982 में लिखा कि BAIF में हमने कभी गाँव के लोगों को दयनीय या शोचनीय प्राणी नहीं माना । भारत के गाँवों के लोग मनुष्यों के बीच सबसे मजबूत और सुन्दर उदाहरण हैं ।
तिहत्तर वर्ष का कर्मठ जीवन बिताने के बाद 1993 में मनीभाई भीमबल देसाई ने इस धरती पर अन्तिम सांस ली ।
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