मथुरा वृन्दावन धाम यात्रा और दर्शनीय स्थल Mathura Vrindavan Dham Darshan

Mathura Vrindavan Dham Darshan Information Hindi Me

भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा हजारों वर्षों से हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ रहा है | यह उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा से 57 किलोमीटर तथा दिल्ली से 141 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जिस स्थान पर कभी भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, वहां आज एक भव्य मन्दिर है। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय है, कृष्ण जन्माष्टमी के समय,जब अन्य मंदिरों के साथ इस मंदिर को भी बहुत आकर्षक ढंग से सजाया जाता है और मंदिर के परिसर मे भगवान कृष्ण की रास लीला है | गोकुल, जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीता था, यहाँ से कुछ ही दूरी पर है| यह वही स्थान है जहां  कृष्ण चुरा – चुरा कर माखन खाया करते थे और माता यशोदा उनके पीछे-पीछे दौड़ा करती थीं|

मथुरा से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गोवधर्न | जब स्थानीय लोग कृष्ण को अपने आराध्य देव के रूप में मानने लगे तो इन्द्र के क्रोध की कोई सीमा न रही। उसने लोगों को सबक सिखाने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। जब वर्षा कई दिनों के बाद भी नहीं रुकी तो स्थानीय लोग घबरा गए और कृष्ण की शरण में गए। कृष्ण ने उन्हें बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर  उठा लिया। आखिरकार इन्द्र को हार माननी पड़ी |

मथुरा 47 किलोमीटर की दूरी पर है बरसाना। बरसाने की होली सारे विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां होली मनाने का एक अलग अंदाज है। स्थानीय औरतें रंग बिखेरते पुरुषों पर लाठी से प्रहार करती हैं और पुरुष गाते-नाचते अपने आप को बचाने का प्रयास करते हैं। इसीलिए यहां की होली को लठमार होली भी कहते हैं। इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों पर्यटक भी यहां आते हैं।

वृदांवन, मथुरा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वृदांवन में ही कृष्ण गोपियों के साथ रास रचाया करते थे। वे कभी माखन से भरी उनकी मटकियों को  फोड़ देते, तो कभी नहाती हुई गोपियों के कपड़े चुरा कर पेड़ पर चढ़ जाते। यहां सन् 1590 में बना भगवान कृष्ण का एक भव्य मन्दिर है। पुरातत्व की दृष्टि से भी इस मन्दिर की गणना विश्व के प्रसिद्ध मन्दिरों में की जाती है। इसके अतिरिक्त भी यहां देखने योग्य बहुत से दूसरे मन्दिर हैं जिनमें प्रमुख हैं- गोपीनाथ, जुगलकिशोर, राधा बल्लभ और मदनमोहन मन्दिर।

वृदावन के बारे में जानकारी और यात्रा

वृदावन प्रेम की धरती है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा, श्रीकृष्ण और गोपियों  के प्रेम ने इस धरती को सींचा है। कृष्ण यहां बंसी की मधुर तान छेड़ते थे और गोपियां उसकी आवाज पर खिंची आती थीं। आज भी सच्चे प्रेमी को वह आवाज सुनाई पड़ती है। भारतीय ही नहीं कई विदेशी युवक-युवतियां प्रेमरस में डूबकर आज भी कृष्ण की यहां के गली-कूचों, खेत-खलिहानों, कुंज लताओं और यमुना तट पर खोजते फिरते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, वृन्दा देवी ने भगवान श्रीहरि विष्णु की तपस्या की और यह वरदान मांगा कि उसका पति अमर रहे। कोई भी उसे न मार सके। वृन्दा का पति जलन्धर नामक एक राक्षस था। भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि जब तक तुम पतिव्रता धर्म का पालन करती रहोगी तुम्हारे पति को कोई नहीं मार सकेगा। जलन्धर ने अमर होते ही देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया और देवताओं को पराजित कर डाला। स्वयं भगवान विष्णु भी हार गए। छलपूर्वक विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया। मौका देखते ही भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। असलियत जानते ही वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप देकर सालिग्राम बना दिया। सारे भगवान परेशान हो उठे। अतः सभी देवताओं के अनुनय-विनय के बाद वृंदा ने विष्णु को श्रापमुक्त कर दिया। भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया  किं तुम्हारा अगला जन्म तुलसी का होगा और लोग तुम्हारी पूजा करेंगे। ऐसा विश्वास है कि इसी वृंदा देवी के नाम पर बाद में इसका नाम वृन्दावन पड़ गया।

एक दूसरा मत यह है कि राधा के सोलह नामों में से एक नाम बृंदा भी था | यह वृंदा (राधा) श्रीकृष्ण से मिलने यहाँ आया करती थी | शायद इसी कारण से इस स्थान का नाम वृन्दावन पड़ा हो |

वृन्दावन के प्राचीन मंदिरों की श्रंखला में प्रमुख बांकेबिहारी जी तथा राधा – माधव जी के मन्दिर प्रमुख हैं | यहाँ राधा – कृष्ण की प्राचीन मूर्तियाँ हैं | बांकेबिहारी मन्दिर को सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक व प्रसिद्द संगीतज्ञ स्वामी हरिदास ने बनवाया था | यह उनके वंशजों का निजी मन्दिर है | एक भव्य मन्दिर श्रीकृष्ण- बलराम मन्दिर के नाम से विदेशियों द्वारा बनवाया गया है | इसे लोग अंग्रेजों का मन्दिर भी कहते हैं | इसका परिसर, 20 एकड़ भू-भाग में है | जिसमें दस एकड़ में मन्दिर तथा दस एकड़ में आश्रम की जगह है | यहाँ श्रीकृष्ण – बलराम, श्रीकृष्ण – राधा आदि की सुन्दर मूर्तियाँ हैं | विदेशी युवक-युवतियां भाव विभोर होकर झूमते हुए प्रतिदिन इनकी पूजा – प्रार्थना करते हैं | इनके अलावा जानकी वल्लभ मन्दिर, श्री गोविन्द जी का मन्दिर, रंग जी का मन्दिर, कांच का मन्दिर, गोदा मन्दिर, राधा गोविन्द मन्दिर, राधा – श्याम मन्दिर, गोपेश्वर मन्दिर, युगल किशोर मन्दिर, मदन मोहन मन्दिर, मानस मन्दिर, अक्रूर मन्दिर, मीराबाई मन्दिर, रसिक बिहारी मन्दिर, गोरे दाउजी का मन्दिर, अष्ट सखी मन्दिर आदि दर्शनीय मन्दिर हैं |

वृन्दावन वनों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है | जिसमें अटल वन, गौचरण वन, निहार वन, कालिया वन, गोपाल वन, विहार वन, निकुंज वन, झूलन वन, आदि हैं | अन्य धार्मिक स्थानों में श्रृंगार वन, सेवा कुंज, चीर घाट, रास मंडल, वंशीवट, वेणुकूप, राधा बाग़, इमली तला, टटिया स्थान, निधि वन, ज्ञान कुदडी, द्वादश आदित्य टीला , काली देह, आदि हैं | ठहरने तथा खाने -पीने के लिए धर्मशाला व आश्रमों की अच्छी व्यवस्था है |