दूध शाकाहारी है या मांसाहारी, जानिए हिंदी में Milk Is Vegetarian Or Non-vegetarian

दूध शाकाहारी है या मांसाहारी

दूध शाकाहारी है या मांसाहारी, जानिए हिंदी में Milk Is Vegetarian Or Non-vegetarian, Know In Hindi

दूध शाकाहार की श्रेणी में है या मांसाहार की ये आधुनिक युग के लोगों का प्रश्न हो सकता है, परंतु यह अनादिकालीन शाश्वत् सिद्धांत है कि सही रीति से प्राप्त किया गया दूध मांसाहार नहीं है बल्कि शाकाहार की श्रेणी में आने वाला शुद्ध रसाहार है और वह स्तनधारी प्राणियों के जन्म से ही पोषण और तंदुरुस्ती के लिए प्रकृति प्रदत लाभदायक पेय पदार्थ है.

आज भौतिकवादी अर्थ प्रधान युग में दूध को पानी, तेल, यूरिया, साबुन मिलाकर बेचा जा रहा है या इंजेक्शन लगाकर निकाला जा रहा है, या बछड़े को दूध नहीं छोड़ा जा रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं कि दूध अभक्ष्य और मांसाहार हो गया. इस प्रकार की स्थिति से बचने के लिए घरों में गायों को पालकर न्याय नीति और विधि पूर्वक शुद्ध दूध प्राप्त किया जाना चाहिए, न कि भड़ाकाऊ, अश्रद्धा उत्पन्न करने वाले भाषण या आलेख लिखे जाए.

इसके बारे में ये जाने –

  1. दूध दर्द नहीं दवा है Doodh Dard Nahin Dava Hai
  2. दूध के गुण Doodh Ke Gun
  3. दूध रक्त नहीं शुद्ध रस है Doodh Rakt Nahin Shuddh Ras Hai
  4. दूध बनने की प्रक्रिया Doodh Banane Kee Prakriya
  5. चिकित्सा शास्त्र में दुग्ध निर्माण Milk Production In Medical Science
  6. सभी प्राणियों को दूध अनुकूल Sabhee Praaniyon Ko Doodh Anukool

1. दूध दर्द नहीं दवा है Doodh Dard Nahin Dava Hai :-

एक आलेख में पढ़ा था कि दूध तरल मांस है और उसके सेवन से एसिडिटी, कैल्शियम की कमी, कैंसर और गुर्दे खराब होते हैं. ऐसा कहना सरासर गलत है, क्योंकि दूध से एसिडिटी नहीं होती, बल्कि एसिडिटी कम होती है. इसका कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर प्रयोग करके देख सकता है, जिसे एसिडिटी के कारण खट्टी डकारें, पेट में जलन आदि हो रही हो वह दूध में आधा या एक चौथाई पानी और मीठा मिलाकर, उसे अच्छी तरह से उबालकर फिर ठंडा करके पिए तो एसिडिटी, मुंह और पेट के छाले समाप्त हो जाते हैं.

दूध अम्लीय होता है परंतु जब वह पेट में जाता है तब पाचक रसों के मिश्रण से दही बनकर उदासीन हो जाता है, वह हड्डियों से कैल्शियम का क्षय करकेउदासीन नहीं होता अतः शरीर की हड्डियों से कैल्शियम के क्षरण द्वारा दूध का उदासीन मानना गलत है. इस प्रकार दूर से हड्डियां कमजोर नहीं बल्कि मजबूत होती है.

परिणाम स्वरुप रीढ़ की हड्डियां (कशेरुकाए) कमजोर पड़ गई, उनका क्षरण होने लगा. ब्लड सीरम में कैल्शियम की मात्रा 11 प्रतिशत की जगह घट कर मात्र 6-7 प्रतिशत रह गई. मैंने पुनः दूध पीना शुरू किया तो अब एक वर्ष मे सब ठीक हो गया. इस बीच में मैंने यह जरूर देखा कि दूध के साथ दालों का प्रयोग करने से पाचन बिगड़ता है क्योंकि दूध और दाल दोनों के प्रोटीन भोजन में एक साथ लेने से डाइजेस्ट नहीं हो पाते. अतः दूध और दालों के सेवन से लगभग 5-6 घंटे का अंतर होना चाहिए.

जब पाचन तंत्र कमजोर हो और आवश्यकता से अधिक दूध, घी, तेज मिर्च, मसाला और दालों का सेवन किया जाता है तब उन्हें पचाने के लिए पाचन तंत्र और यकृत के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है, जो हड्डी यकृत और पाचन तंत्र आदि के लिए हानि पहुंचाता है, परंतु संतुलित मात्रा में यथाविधि ग्रहण किए गए दूध में उपस्थित प्रोटीन और खनिज आदि कमजोरी, थकान, तनाव और कैल्शियम आदि की कमी को दूर करते हैं. इसलिए दूध से नहीं बल्कि मिर्च-मसाला, मांस, मदिरा आदि और प्रकृति विरुद्ध या अधिक मात्रा में भोजन करने से पाचन तंत्र और गुर्दे आदि खराब होते हैं. इसलिए दूध से एसिडिटी, कैंसर और गुर्दे खराब होना इत्यादि मानना भ्रांति पूर्ण धारणा है.

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2. दूध के गुण Doodh Ke Gun :-

दूध मधुर, स्निग्ध, रुचिकर, स्वादिष्ट और वातपित्त नाशक होता है. वीर्य, बुद्धि और कफ वर्धक होता है, शीतलता, ओज, स्फूर्ति और स्वास्थ्य प्रदायक होता है, मां (स्त्री) और गाय का दूध गुण धर्म की दृष्टि से समान होता है और उसमें विटामिन ए और खनिज तत्व होते हैं जो रोगों से लड़ने की शक्ति (प्रतिरोधक क्षमता) प्रदान करते हैं और आंखों के तेज को बढ़ाते हैं.

3. दूध रक्त नहीं शुद्ध रस है Doodh Rakt Nahin Shuddh Ras Hai :-

दूध रक्त नहीं है इसका सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रमाण तो यह है कि दूध में जो केसीन नामक प्रोटीन उपस्थित रहता है वह खून और मांस में नहीं पाया जाता है और जो रक्त कणिकाये( डब्ल्यू.बी.सी., आर.बी.सी.) एवं प्लेटलेट्स खून में पाई जाती है वे दूध में नहीं पाई जाती है. यह बात वैज्ञानिकों ने दूध में बेजोइक टेस्ट (परिक्षण) करके बताई है. यह परिक्षण कोई भी पैथोलॉजी लैब में किसी भी डॉक्टर से करा कर देख सकता है. अतः दूर एनीमल प्रोडक्शन होने पर भी रक्त मांस से बिल्कुल भिन्न एक शुद्ध रस है.

वैज्ञानिकों का यह भी एक सार्वभौमिक सिद्धांत है कि मार्च में जंतु कोशिकायें और वनस्पतियों में पादप कोशिकायें होती है जबकि दूध में पादक (वनस्पति) कोशिकाओं के समान ही वैसीलस कोशिकायें होती है. उन दोनों के मध्य दीवार, रिक्तिकायें, सेट्रिओल, लवक और पोषण विधि समान होती है और वे दोनों जंतु कोशिकाओं से बिल्कुल भिन्न होती है. इसलिए दूध तरल मांस न होकर वनस्पति स्वरूप ही शुद्ध रस है.

यदि कोई कहे कि दूध में वे सभी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स और शर्करा आदि तत्व पाए जाते हैं जो खून में पाए जाते हैं अतः दोनों एक हैं. यदि यह तर्क सही है तो वो वे सभी तत्व हरे या भिगोये हुए सोया, गेहूं, चना आदि अनाज में भी पाए जाते हैं फिर उन्हें मांसाहार कहना पड़ेगा. परंतु नहीं कह सकते क्योंकि वह शुद्ध शाकाहारी पदार्थ ही है. अतः दूध शाकाहार की श्रेणी में आने वाला पदार्थ ही है.

यदि कोई तर्क करे कि नलिकाओं और उनकी झिल्लियों से होकर दुधारूप्राणी द्वारा खाए पदार्थों के रस से दूध बनता है, इसलिए वह रक्त मांस के समान है, तो ऐसा तर्क भी अनुचित है, क्योंकि ऐसा कहने पर हमारे शरीर के अंदर से रक्त, मांस और झिल्लियों से होकर पसीना और यूरिन आदि भी बाहर उत्सर्जित होता है फिर उसे भी रक्त मांस कहना पड़ेगा, लेकिन कोई अज्ञानी बालक भी ऐसा नहीं कह सकता. तो फिर क्या यूरिन, पसीना और भोजन से बचें अवशिष्ट पदार्थ भी भक्ष्य है? नहीं, क्योंकि वे मल है और मल द्वार से निष्कासित होते हैं. अतः वे पूर्णतः अभक्ष्य है. जबकि दूध मल न होकर रस है और दूध ग्रंथि मलद्वार न होकर एक पवित्र ग्रंथि है उस से निकाला गया दूध भक्ष्य है.

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4. दूध बनने की प्रक्रिया Doodh Banane Kee Prakriya

जब 400 से 500 किलोग्राम रक्त दुग्ध ग्रंथियों से होकर प्रवाहित होता है तब एक किलोग्राम दूध बनता है, इसका मतलब यह नहीं है कि दूध में रक्त मिलता है, बल्कि दुग्ध ग्रंथियों में बारीक बारीक रक्त नलिकाओं का जाल बिछा रहता है, उन दुग्ध ग्रंथियों और रक्त नलिकाओं के बीच एक झिल्ली होती है. यदि बीच में झिल्ली नहीं होती तो दूध और रक्त एक जैसा लाल हो जाता. अतः रक्त से दूध भिन्न है.

दूध बनने की प्रक्रिया में जो विचार किया है, वह उनका अपना हो सकता है, परंतु सत्य बात तो यह है कि दूध बने या न बने, परंतु समस्त प्राणियों के शरीर में रक्त प्रवाह होता ही रहता है. यदि परिवार रुक जाए तो प्राणियों का जीवन ही समाप्त हो जाएगा. मनुष्य के शरीर में हृदय द्वारा एक घंटे में लगभग 2 टन खून पंप किया जाता है, जो अंदर की रक्त नलिकाओं से प्रवाहित होकर बाहरी रक्त नलिकाओं से होकर हृदय तक पहुंचता है वे बारीक रक्त नलिकाऐ स्तनधारी प्राणियों की दुग्ध ग्रंथियों से होकर गुजरती है और लेक्टेटिंग हारमोंस से दूध का निर्माण होता है जो रस के रूप में दुग्ध ग्रंथि में संग्रहित हो जाता है.

अतः दूध का निर्माण रक्त से नहीं होता बल्कि स्तनधारी प्राणियों के गर्भधारण करने के उपरांत शाकाहारी की श्रेणी में आने वाले लेक्टेटिंग हार्मोन्स से होता है. वे हारमोंस रक्त से पूर्णतः अलग गुण धर्म वाले होते हैं. उनका एक निश्चित समयावधि में उत्पन्न होना प्रारंभ होता है. उन्हीं की उपस्थिति में दूध का निर्माण और निकलना (सिक्किर्येशन) होता है, न कि रक्त से. यदि रक्त से होता तो हमेशा ही सभी प्राणियों के होते रहना चाहिये, जबकि ऐसा नहीं होता है. इसलिए दूध रक्त मांस से अलग शुद्ध रस है.

5. चिकित्सा शास्त्र में दुग्ध निर्माण Milk Production In Medical Science  :-

आयुर्वेदिक आदि चिकित्सा शास्त्रों में लिखा है कि मनुष्य तिर्यकादि प्राणी जो आहार ग्रहण करते हैं वह सबसे पहले रस और मल (मलमूत्र) में परिवर्तित होता है फिर रस से रक्त, मांस से भेद, मेद से अस्थि से मज्जा, और मज्ज से शुक्र, क्रमशः इन सप्त धातुओं की उत्पत्ति होती है. इस प्रकार आहार से सर्वप्रथम रस बनता है और उस रस धातु से स्तन्य (दुग्ध) रूप, उपधातु की उत्पत्ति होती है इसलिए ग्रहण किए गए भोज्य पदार्थों की गंध दूध में आती है रक्त में नहीं. यदि रक्त से दूध बनता तो उसमें गंध नहीं आना चाहिए. अतः मूल धातु रक्त की कण्डराये एवं शिराये, मांस से वसा एवं त्वचा, मेद से स्नायु, अस्थि से दांत, मज्जा से केश, और शुक्र से ओज की उत्पत्ति होती है.

दूध के संग्रह के लिए शरीर में ग्रंथियां होती है. उन दुग्ध ग्रंथियों और नलियों से लगी हुई झिल्लियों की दीवारों में बहुत सी रक्त शिराओं का जाल बिछा रहता है. उन्हें शिराओं की दीवारों द्वारा जलीय अंश सोख लिया जाता है. वह वैसे ही सोख लिया जाता है जैसे कीचड़ से पेड़ की मूल शिरायें जलांश को सोख लिया करती है. यह दूध इस प्रकार एनीमल प्रोडक्ट होने मात्र से मांसाहारी, अपवित्र या अभक्ष्य नहीं हो जाता बल्कि शाश्वत शुद्ध रसाहार के रूप में ग्राह्रा है.

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6. सभी प्राणियों को दूध अनुकूल Sabhee Praaniyon Ko Doodh Anukool :-

यह सत्य है कि जैनेटिक ब्लू प्रिंट के अनुसार अपनी-अपनी प्रजाति की मां का दूध सर्वोत्तम होता है इसलिए गाय का बछड़ा गाय का दूध, बकरी का मेमना बकरी का दूध, बिल्ली का बच्चा बिल्ली का दूध और शेरनी का बच्चा शेरनी का दूध पीता है. इस प्रकार सभी स्तनधारी प्राणियों कि मां अपने बच्चों के पोषण और विकास के लिए दूध देती है. परंतु स्त्री, घोड़ी, बकरी, बिल्ली और शेरनी आदि न हो तो उनसे जन्मे शिशु को गाय के दूध से पाले जाते रहे हैं और आगे भी पाले जाते रहेंगे, यह सारी दुनिया जानती है. क्योंकि गाय का दूध सभी प्राणियों के अनुकूल पड़ता है और पर्याप्त मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है उसके अलावा अन्य प्राणियों का दूध प्रतिकूल और अपर्याप्त होने से सेवन नहीं किया जाता.

दूध मां का हो या गाय का उसके सेवन करने की एक निश्चित मात्रा होती है. यदि मात्रा से अधिक ग्रहण किया जाएगा तो लाभ की जगह हानि पहुंचाएगा. दूध ही क्यों अन्न, काजू, किसमिस, बादाम, आम, केला, गेहूं, चना और गुड़ तेल आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन मात्रा से अधिक करने पर लाभ की जगह हानि ही पहुंचाएगा. इसलिए “हितमित भुक्” अर्थात थोड़ा और हितकारी भोजन करने को कहा है क्योंकि अति हर चीज की बुरी होती है.

यदि दूध 6 से 8 घंटे पचता है ऐसा तर्क देकर दूध को असेवनीय (अभक्ष्य) कहा जाता है तो फिर शक्ति वर्धक बादाम, काजू, मूंगफली आदि लगभग 10-12 घंटे में पचते हैं. अतः जो जो पाचन संबंधी परेशानियां दूध के पाचन से आती है उससे कहीं अधिक परेशानियां फेटयुक्त ड्रायफ्रूट्स में आती है. अतः उन्हे भी अभक्ष्य कहना पड़ेगा, परंतु ऐसा कोई नहीं कह सकता.

यदि किसी के बेटे ने जन्म से दूध नहीं पिया और वह स्वस्थ 6 फीट का है तो यह भी देखना चाहिए कि वह खाता क्या-क्या है. क्या वह सब एक गरीब आदमी के बेटे को संभव है? जिस माँ ने बचपन से दूध नहीं पिलाया हो तो बड़े होने पर वह पचता भी नहीं, एसीडिटी होती है और गैस आदि की अनेक समस्याऐ उत्पन्न होती है, इसका मतलब यह नहीं कि सभी के लिए नहीं पचता और सभी के लिए अभक्ष्य हो. इसमें दूध का दोष नहीं बल्कि पीने वाले का दोष है.

मानव को दूध आवश्यक क्यों  Maanav Ko Doodh Aavashyak Kyon

शिशु अवस्था में लेक्टोस एंजाइम का पर्याप्त मात्रा में स्राव होता है. वे ही एंजाइम दूध को पचाते हैं, इसलिए बच्चों को वह पूर्ण आहार होता है, लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे लेक्टेस एंजाइम के स्राव की मात्रा घटती जाती है. फिर भी निरंतर दूध पीने वालों को वह पचता रहता है और दुग्ध एक पूर्ण आहार हैं क्योंकि आहार को पुष्ट और स्वस्थ रखने के लिए जितने प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्वों की आवश्यकता होती है वे सभी दूध में पाए जाते हैं.

जो वयस्क आदतन दूध और उससे बने उत्पादों का सेवन करते हैं, उनके लेक्टेस एंजाइम सक्रिय बने रहते हैं और दूध पचता रहता है, परंतु जो बाल्यावस्था के बाद दूध का सेवन बंद कर देते हैं उनके लेक्टेस एंजाइम का संश्लेषण बंद हो जाता है. ऐसे व्यक्तियों को डायरिया और पेट दर्द आदि बीमारी के लक्षण दूध पीने के बाद देखते हैं. दूध नहीं पचा सकने वाला व्यक्ति यदि (चावल रोटी आदि के साथ) थोड़ा थोड़ा बढ़ाते हुए क्रम से दूध का सेवन करता है, तो लेक्टेस एंजाइम की पर्याप्त मात्रा हो जाती है और परिणाम स्वरुप दूध पचने लगता है .

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