मदर टेरेसा का जीवन परिचय Mother Teresa Biography In Hindi

Mother Teresa Biography

मदर टेरेसा का जीवन परिचय Mother Teresa Biography In Hindi

Mother Teresa Biography

युगोस्लाविया में अल्बेनियाई माता-पिता की संतान मदर टेरेसा को, भारत में, भारतीय नागरिक की तरह पाना देश के लिये एक बड़ा गौरव है । 1948 में मदर टेरेसा भारतीय परिवेश में फैली भयंकर गरीबी तथा उन गरीबों की दशा से बहुत द्रवित हुईं, जो बेघर थे या केवल झुग्गियों में रह रहे थे । बारहवें पोप की अनुमति से मदर टेरेसा ने ‘मिश्नरी ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की जो पूरी तरह से गरीबों की सेवा के लिये समर्पित एक संस्था थी । मदर टेरेसा ने इस संस्था से जुड़ कर भारत की नागरिकता ली और पूरी तरह से अपने काम में जुट गईं । अमंग, विपन्न लोगों के साथ-साथ मदर टेरेसा की सेवा का केन्द्र वे कुष्ठ रोगी बने, जिन्हें समाज घृणा की दृष्टि से देखता था | मदर टेरेसा ने जिस अदम्य निस्वार्थ भाव से यह सेवा-कार्य निभाया और अपनी संस्था को एक बड़ा रूप देकर पूरे विश्व की सेवा का मार्ग दिखाया, उसके लिए उन्हें वर्ष 1962 का शाति तथा अतंरराष्ट्रीय समझ का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |

नाम : मदर टेरेसा
जन्म : 1910
मृत्यु : 5 सितंबर 1997
जन्मस्थान : युगोस्लाविया के एक गाँव में
उपलब्धियां : 1962 का मैग्सेसे पुरस्कार, 1979 नोबेल पुरस्कार, 1980 में भारत रत्न, 1971 में जॉन केनेडी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, 1971 पोप जॉन शांति पुरस्कार |

मदर टेरेसा का जीवन परिचय Mother Teresa Biography In Hindi

मदर टेरेसा का जन्म 1910 में युगोस्लाविया के एक गाँव में हुआ था । अठारह वर्ष की आयु में वह आयरलैण्ड में लारेटो नन्स के एक समारोह में सम्मिलित हुई थीं और 1929 में उन्हें इसी केन्द्र के एक कार्यक्रम में भारत आने का मौका मिला । वह कोलकाता आईं । भारत ने उन्हें प्रभावित किया और फिर 1946 में वह दोबारा कोलकाता पहुंचीं । उससे पहले बंगाल 1942 में भयंकर अकाल से गुजर चुका था । रेलगाड़ी से गुजरते हुए, वहाँ की गरीबी भरी जिन्दगी देखकर वह प्रभावित हुईं ।

मदर टेरेसा ने इस स्थिति के निवारण का मन बनाते हुए अपना काम शुरू किया । उन्होंने भारतीय नन्स का (मसीही महिलाएं) एक छोटा सा गुट बनाया और उन्हें ट्रेनिंग देकर क्लीनिकों और अन्य केन्द्रों पर लगा दिया, जहाँ वह लावारिस गरीब बच्चों की देखभाल कर सकें । उनके इस काम का बेहद अनुकूल प्रभाव हुआ और लोग इससे विश्वासपूर्वक जुड़ने लगे । इससे उत्साहित होकर मदर टेरेसा ने कोलकाता में एक अनोखा अस्पताल खोला-‘निर्मल हृदय’ जिसमें निराश्रित, असहाय लोगों के इलाज की व्यवस्था की । इसी क्रम में मदर टेरेसा ने विकलांग, निराश्रित, तथा तपेदिक से ग्रस्त बच्चों के लिये एक ‘शिशु भवन स्थापित किया ।

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इन दोनों अस्पतालों के साथ-साथ मदर टेरेसा के प्रयास से छह डिस्पेंसरियां भी चलाई जाने लगीं जिनमें स्वयंसेवी डॉक्टरों ने अपनी सेवाएं देनी शुरू की ।

पचास से ऊपर ‘राहत केन्द्र’ खोले गये, जिनमें खाद्य, दूध तथा कपड़े मिश्नरियों द्वारा इकठ्ठा करके लाए गये, जहाँ से समुचित वितरण की व्यवस्था शुरू हुई । इसके साथ-साथ, बेहद गरीब इलाकों में जगह-जगह मदर टेरेसा ने पेड़ों के निचे चटाई बिछा कर नियमित स्कूल शुरू किये जिनमें बच्चों को हिन्दी पढ़ना, लिखना तथा सामान्य अंकगणित का ज्ञान दिया जाने लगा ।

कुष्ठरोग उन दिनों जीवन का श्राप गिना जाता था, जबकि कुष्ठ रोगी देश में बढ़ते जा रहे थे और उनके उपचार की व्यवस्था बहुत कम थी । ऐसे में मदर टेरेसा का ध्यान इस ओर गया । उन्होंने ननों द्वारा संचालित मोबाइल क्लीनिक चलाए, जिनमें अस्पताल से विशेष रूप से कुष्ठ रोगियों के उपचार के लिये प्रशिक्षित स्टाफ का प्रबंध था ।

मदर टेरेसा ने ऐसी ही व्यवस्था दिल्ली में भी शुरू की, साथ ही दिल्ली में बिना मां-बाप के बच्चों तथा मानसिक रूप से रुग्ण बच्चों के लिये विशेष केन्द्रों की स्थापना की ।

मदर टेरेसा का ईसा में अदम्य विश्वास था और वह सेवा को ईश्वर की भक्ति का ही रूप मानकर स्वीकार करती थीं । उन्होंने जो भी सेवा-कार्य आजीवन किया, उसके लिये उनका कहना था कि यह उनको प्रभु का आदेश है, जो उन्हें अपनी अंतःप्रेरणा से मिला है ।

मदर टेरेसा को देश-विदेश में अनेकों सम्मान मिले । उन्हें अपने मिशन के लिये विश्वभर से अनुदान सहायता प्राप्त हुई, लेकिन उन्होंने सादा जीवन ही जिया । नीले बार्डर वाली उनकी सफेद साड़ी उनका प्रतीक बन गई ।

वर्ष 1979 में मदर टेरेसा को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया । 1980 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया । इसके पहले 1971 में उन्हें जॉन केनेडी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका था । इसी वर्ष मदर टेरेसा ने पोप जॉन शांति पुरस्कार भी पाया था ।

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इतने सब सम्मानों और पुरस्कारों के बावजूद मदर टेरेसा के लिये सेवा का संतोष ही सबसे बड़ा पुरस्कार रहा ।

5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा ने अंतिम सांस ली । अपनी मृत्यु के बाद वह अपने पीछे सेवा का आदर्श, चार हजार सिस्टर्स तथा एक लाख से ज्यादा स्वयंसेवी छोड़ गईं ।

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