
आइये जानते है माउंट आबू के धार्मिक दर्शनीय स्थल Religious Places To Visit in Mount Abu
खूबसूरत हिल स्टेशन होने के साथ-साथ माउंट आबू राजस्थान में हिन्दू व जैनियों का एक पवित्र पूजा स्थल भी है। जैन धर्म के पांच पवित्रतम स्थानों में से यह एक है।
प्राचीन काल में इसका नाम अबुर्दाचल या अबुर्दगिरि था। अब संक्षेप में आबू के नाम से जाना जाता है | माउंट आबू प्रजापिता ब्रहमकुमारी ईश्वरीय विश्वविधालय का हेड क्वार्टर भी है |
कहा जाता है की भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका जाते समय यहाँ ठहरे थे| यही वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था, जहां पर वे तपस्या करते थे। वहां एक बहुत बड़ा गड्ढा था।
एक दिन ऋषि की कामधेनु गाय इस गड्ढे में गिर गयी। ऋषि वशिष्ठ ने माता सरस्वती जी की आराधना की। माता सरस्वती ने प्रसन्न होकर उस गड्ढे को पवित्र जल से भर दिया, जिसमें से गाय तैरकर बाहर आ गयी।
इसके बाद वशिष्ठ ऋषि ने उस गड्ढे को पाटने के लिए भगवान शिव की स्तुति की। भगवान शिव ने वहां नन्दी को भेजकर कैलाश पर्वत की एक पर्वत श्रेणी उत्पन्न करवा दी। यह पर्वत श्रेणी अरावली पर्वत से अलग है।
एक 10-15 मील लम्बी घाटी इन दोनों को एक –दूसरे से प्रथक करती है| हालांकी इसे भी अरावली पर्वत के नाम से ही पुकारा जाता है।
कहते हैं कि नन्दी की अबुर्दा नामक सांप अपनी पीठ पर बैठाकर वशिष्ठ ऋषि के पास लाया था। इसलिए इसका नाम अबुर्दा नामक सांप के नाम पर अबुर्दा पड़ा। वशिष्ठ ऋषि ने अबुर्दा को वरदान दिया कि तुम 35 करोड़ देवताओं के साथ यहां निवास करोगे।
कुछ लोगों का यह भी विश्वास है कि दुर्गा अबुर्दा देवी के रूप में यहां प्रकट हुई थी, इसलिए इसका नाम अबुर्दा पड़ा | अबुर्दा देवी का यहां प्राचीन मंदिर है, जिसमें जाने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां पार करनी पड़ती हैं। अबुर्दा देवी का मंदिर एक गुफा में है। मंदिर के पास ही संत सरोवर है जो अब सूखा पड़ा है। मंदिर में नीलकंठ महादेव तथा हनुमान भी मंदिर हैं।
माउंट आबू, दिलवाड़ा जैन मंदिरों के लिए विख्यात है | यहां एक ही स्थान पर 5 मंदिर बनाए गए हैं। उच्चकोटि के संगमरमर से बने मंदिरों की दीवारों, छतों ओर स्तम्भो पर इतनी बारीक नक्काशी व पच्चीकारी का काम किया गया है कि दर्शन आश्चर्यचकित रह जाता है।
इनमें विमल शाह और तेजपाल के मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला के लिए पूरे संसार में अद्वितीय हैं। विमल शाह गुजरात के सेनापति थे। उनके द्वारा यह मंदिर सन् 1031 में बनवाया गया था। मंदिर के अंदर भी चारों तरफ तीर्थकर भगवान आदिनाथ की लगभग 50-60 मूर्तियां हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले ठीक सामने घोड़े पर सवार विमल शाह की मूर्ति है ओर उसके पीछे संगमरमर द्वारा निर्मित10 हाथियो के अग्रभाग है |
दिलवाड़ा जैन मंदिरों की श्रृंखला में दूसरा मंदिर लूणावासी मंदिर है। इसे गुजरात के दो मंत्रियों वास्तुपाल तथा तेजपाल ने 1331 ई. में बनवाया। वे दोनों सगे भाई थे। इस मंदिर में 23वें जैन तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की मूर्ति है। दोनों भाइयों ने इस मंदिर को अपने तीसरे स्वर्गीय भाई लूणावासी की याद में बनवाया था ।
तीसरा मंदिर पीतलहार मंदिर है। इस मंदिर में भगवान ऋषभ देव की 108 मन की पंचधातु की मूर्ति है। यह मंदिर भीमाशाह द्वास बनवाया गया।
चौथा मंदिर खतरवसी मंदिर कहलाता है। यह तीन मंजिला मंदिर है। इसमें भगवान चिन्तामणि पाश्र्वनाथ विराजमान है |
पांचवा मंदिर कुंवारी कन्या तथा रसिया बालम का है। यह मंदिर दो अमर प्रेमियों का मंदिर है, जिनका बलिदान बहुत मर्मस्पर्शी है।
माउंट आबू की सबसे ऊंची चोटी को गुरु शिखर कहते हैं। यहां एक गुफा में दत्तात्रेय का मंदिर है। उसके पास ही दत्तात्रेय की माताजी का तथा महासती अनुसुइया और अत्रि ऋषि की तपस्या करने की गुफाएं हैं।
एक गुफा में भगवान शंकर का मंदिर भी है जब वशिष्ठ ऋषि ने भगवान शिव को अराधना की तो भगवान शिव ने उन्हें अंचलेश्वर महादेव के रूप में दर्शन दिए थे, तब पृथ्वी अस्थिर होने लगी। इतने में पृथ्वी को अपने पांव माउर के अंगूठे से दबाकर स्थिर कर दिया। इसलिए यहां शिव अंचलेश्वर महादेव के रूप में पूजे जाते हैं और उनके लिंग की पूजा न होकर पांव के अंगूठे की पूजा होती है।
अचलेश्वर महादेव के निकष्ट अचलगढ़ का किला है। इसे राजा परमार ने सन 1900 में बनवाया था। यहां प्राचीन जैन मंदिर है। मंदिर में भगवान आदिश्वर की 1444 मन की पंचधातु की विशालकाय मूर्ति है।
इसके अलावा माउंट आबू में मंदाकिनी कुंड, भृगु आश्रम, भर्तृहरि की गुफा, मान सिंह की समाधि, श्वेती कुंड (सभी अचलेश्वर मंदिर के आस-पास) तथा नक्की झील, रघुनाथ मंदिर, राम गुफा कुंड दुलेश्वर महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर, महावीर स्तम्भ, गांधी स्तम्भ, चम्पा गुफा, व्यास तीर्थ, नाग तीर्थ, गौतम आश्रम, वशिष्ट आश्रम, यमद अग्नि आश्रम, गणेश मंदिर, अम्बिका मंदिर, शांति शिखर, अवतार चिन्ह जैसे अनेकों महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटन स्थल हैं।