
एन. कुंजारानी देवी का जीवन परिचय (N Kunjarani Devi Biography In Hindi Language)
नाम : एन. कुंजारानी देवी
जन्म : 01 मार्च, 1968
जन्मस्थान : इम्फाल (मणिपुर)
एन. कुंजारानी 1990 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्राप्त करने वाली देश की प्रथम महिला भारोत्तोलक बनी । उन्हें 1996 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ पाने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी होने का गौरव भी प्राप्त है । खेलों में शानदार प्रदर्शन के लिए कुंजारानी को ‘के.के. बिरला खेल आवार्ड’ (1996) भी प्राप्त हो चुका है |
एन. कुंजारानी देवी का जीवन परिचय (N Kunjarani Devi Biography In Hindi)
कुंजारानी, जिनका पूरा नाम नामीराक्पम कुंजारानी देवी है, एक ऐसी अन्तरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर (भारोत्तोलक) हैं जिन्होंने जिस प्रतियोगिता में भाग लिया है, उसमें पदक अवश्य जीता है । 1995 में नौरू में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में वह भारत की प्रथम स्वर्ण पदक विजेता बनी थीं और उन्हें उस वर्ष विश्व रैंकिंग में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था । यद्यपि बाद में वह फिसल कर तीसरे स्थान पर चली गई थीं ।
कुंजारानी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग 60 से अधिक पदक प्राप्त कप चुकी हैं । वह सेन्ट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स में असिस्टेंट कमांडेंट जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं । उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 1990 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 1995 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड’ तथा 1996 में ‘के.के. बिरला खेल अवार्ड’ प्रदान किया जा चुका है ।
वह अपने पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए अक्सर बताती हैं- “जब मैंने भारोत्तोलन शुरू किया तब मणिपुर में लोग मुझ पर ताने कसते थे । मेरा मजाक उड़ाते थे । लेकिन मेरा इरादा पक्का था कि मुझे अपना अलग मुकाम बनाना । है और देश के लिए अन्तरराष्ट्रीय खेल मंच पर गौरव अर्जित करना है ।”
कुंजारानी की खेलों के प्रति रुचि बचपन में ही जागृत हो गई थी जब वह इम्फाल के सिंदम सिंशांग रेजीडेंट हाईस्कूल में 1978 में पढ़ती थीं । उन्होंने, इम्फाल के महाराजा बोधचन्द्र कॉलेज से ग्रैजुएशन पूरा किया ।
कुंजारानी यदि भारोत्तोलक न होतीं तो हॉकी या फुटबाल की खिलाड़ी अवश्य होतीं । वह बचपन में इन दोनों ही खेलों को खेलती थीं । लेकिन जब थोड़ी बड़ी हुई तो उन्हें अहसास हुआ कि ये दोनों तो टीम खेल है और यदि इनके बजाय वह व्यक्तिगत स्पर्धा वाले खेल खेले तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि व्यक्तिगत स्पर्धा में आप अपनी मेहनत और लगन से सफलता का मुकाम हासिल कर सकते हैं । अत: उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना क्षेत्र चुना ।
लेकिन जब वेटलिफ्टिंग से उन्होंने नाता जोड़ा तो उन्हें अपने रिश्तेदारों और इम्फाल के अड़ोसी पड़ोसियों से कटु टिप्पणियां सुनने को मिलीं । लोग कहते- ”लड़की है और लड़कों का खेल खेलती है, ये तो मर जाएगी ।” ऐसी टिप्पणी सुनकर कुंजारानी का मन और अधिक कड़ी मेहनत करने के लिए उत्साहित हो उठता था । उनके अंदर अपने देश को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने की प्रेरणा और भी जीवंत हो उठती थी ।
केन्द्रीय रिजर्व बल (सी.आर.पी.एफ.) में शामिल होने के पश्चात् कुंजारानी ने पुलिस चैंपियनशिप में भी जोर आजमाइश की । वह असिस्टेंट कमाडेंट पद पर कार्यरत हैं । 1996 से 1998 तक उन्होंने भारतीय पुलिस टीम का नेतृत्व किया । भारत की इस लौह महिला कुंजारानी की आदर्श खिलाड़ी एथलीट पी.टी. उषा रही है । पी.टी. उषा ने अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अनेकों पदक जीते, कुंजारानी उसी से प्रभावित रहीं ।
कुंजारानी की प्रतिभा निखारने में बेलारूस के प्रशिक्षक लियोनिद तारानेंको की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है । कुंजारानी का स्वयं भी यही मानना है- ”मैंने जो कुछ भी भारोत्तोलन में पाया है, वह तारानेंको की ही देन है । ”
कुंजारानी को भार उठाते समय देखना वाकई आश्चर्यजनक है, यूं प्रतीत होता है कि वह कोई वजन न उठा कर गुड्डे-गुड़िया उठा रही हों । वेटलिफ्टिंग से जुड़े भारतीय व विदेशी महिला व पुरुष, देशी-विदेशी प्रशिक्षक सभी उनका उत्साह देख कर दांतों तले उंगली दबाते हैं । उनके सहयोगी यह तक कहते हैं- वे तो मशीन हैं, उन्हें थकान नहीं होती, दर्द नहीं होता, बस मशीन की तरह चलती जाती हैं ।” प्रतिभा कुमारी ने तो अपनी दीदी के बारे में यह तक कह डाला- ”वे तो मानव जाति की ही नहीं लगतीं, कभी थकती ही नहीं ।”
1985 में कुंजारानी ने अपनी खेल कैरियर की शुरुआत की और वह तब से लगातार मैडल जीतती रही हैं वह भी अधिकांशत: स्वर्ण मेडल । राष्ट्रीय वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 44 किलो वर्ग, 46 किलो वर्ग और 48 किलो वर्ग में वह लगातार पदक विजेता रही हैं । उनका लगातार निश्चित वजन 48 किलो है ।
1987 में उन्होंने त्रिवेन्द्रम में दो नए राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किए । फिर अपना वर्ग परिवर्तित करते हुए 46 किलो वर्ग में, 1994 में पुणे में स्वर्ण पदक प्राप्त किया । उसके चार वर्ष पश्चात् उन्होंने मणिपुर में 48 किलो वर्ग में अपना हाथ आजमाना चाहा और तब उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा ।
1990 में बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में कुंजारानी ने कांस्य पदक प्राप्त किया व 1994 में हिरोशिमा में भी वह कांस्य पदक प्राप्त कर सकीं । 1998 के बैंकाक एशियाई खेलों में वह पदक प्राप्त करने में असफल रहीं । 1989 के शंघाई खेलों में उन्होंने एक रजत व दो कांस्य पदक प्राप्त किए । 1991 में 44 किलो वर्ग में उन्होंने 3 रजत पदक प्राप्त किए । वह 1992 में थाईलैंड में और 1993 में चीन में अपना दूसरा स्थान बचाए रखने में सफल रहीं । इसके पश्चात् दक्षिण कोरिया में कुंजारानी का प्रदर्शन बेहद सफल रहा और वह 46 किलो वर्ग में दो स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं । 1996 में जापान में वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन दोहरा नहीं सकीं और रजत व एक कांस्य पदक ही जीत सकीं । नारू में 1995 में राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलो वर्ग में स्वर्ण जीतकर उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की प्रथम स्वर्ण विजेता का रिकार्ड भी अपने नाम कर लिया । इसी वष उन्हें नंबर वन की पोजीशन हासिल हुई ।
अगस्त 2002 के मानचेस्टर में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में कुंजारानी भारत की दिग्गज भारोत्तोलक के रूप मेँ सुर्खियों में छाई रहीं जब उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीते । उसके पूर्व 2001 में कुंजारानी पर डोपिंग का आरोप लगा और उन्हें 6 माह के लिए खेलों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया । लेकिन मानचेस्टर खेलों में कुंजारानी ने अपनी योग्यता साबितकर दिखाई और डोपिंग के आरोपों को धो डाला ।
मार्च 2006 में हुए मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में पुन: कुंजारानी ने शानदार प्रदर्शन किया और क्लीन एंड जर्क में नए रिकार्ड के साथ महिला 48 किलो वर्ग का स्वर्ण जीतकर भारत को 18वें राष्ट्रमंडल खेलों में पहला स्वर्ण पदक जिताया । इस वर्ष हर वर्ग में एक स्वर्ण रखा गया था, जिसे कुंजारानी ने जीत लिया । उन्होंने कुल 166 किलो वजन उठा कर खिताब जीता । 38 वर्ष की उम्र में कुंजारानी ने स्नैच में 72 किलो और क्लीन एंड जर्क में 94 किलो वजन उठाया और नया रिकार्ड कायम किया । हालांकि उनका रिकार्ड 167 किलो (स्नैच में 75 किलो) था, लेकिन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन न करने के बावजूद रिकार्ड बनाने में सफल रहीं ।
बढ़ती उम्र के बावजूद कुंजारानी देश की उदीयमान भारोत्तोलकों के लिए ऐसा आदर्श हैं जिनके जज़्बे की बराबरी करना उनके बस की बात नहीं । इसीलिए कुंजारानी को भारतीय भारोत्तोलन की ‘ग्रांड ओल्ड लेडी’ कहा जाता है । अन्तरराष्ट्री भारोत्तोलन संघ कुंजारानी को बीसवीं शताब्दी की एक श्रेष्ठतम भारोत्तोलक भी घोषित कर चुकी है । वह विश्व वरीयता में नंबर एक भी रह चुकी हैं ।
उनके स्वर्णिम कैरियर में एक बार काला धब्बा भी लगा जब 2001 में उन पर प्रतिबंधित शक्ति वर्धक दवा (डोपिगं) लेने का आरोप लगा और उन्हें छह माह के लिए प्रतिबंधित किया गया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने अगले स्वर्ण पदकों से उस धब्बे को धो डाला ।
उपलब्धियां :
1987 में उन्होंने नए राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किए ।
1989 में शंघाई में हुए खेलों में उन्होंने एक रजत व दो कांस्य पदक जीते |
1990 में बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में कांस्य पदक प्राप्त किया |
1990 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया |
1991 में 44 किलो वर्ग में उन्होंने 3 रजत पदक प्राप्त किए |
1992 में थाईलैंड में तथा 1993 में चीन में वह दूसरे स्थान पर रहीं |
1994 में हिरोशिमा में उन्होने कांस्य पदक जीता |
1994 में पुणे में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण प्राप्त किया |
दक्षिण कोरिया में 1994 में कुंजारानी दो स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं |
1995 में नौरु में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में प्रथम भारतीय स्वर्ण पदक विजेता होने का गौरव प्राप्त किया |
1995 में वह विश्व रैंकिंग में प्रथम स्थान पर पहुंची |
1995 में उन्हें ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ पुरस्कार प्रदान किया गया |
1996 में वह जापान में कांस्य पदक जीतने में सफल रही |
1996 में कुंजारानी को के.के. बिरला पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया |
2002 में मानचेस्टर में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीते |
2006 में मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करके 48 किलो वर्ग का ‘क्लीन एंड जर्क’ में नए रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त किया |
वह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर 60 से अधिक पदक जीत चुकी हैं ।
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