नैमिषारण्य सीतापुर उत्तर प्रदेश की यात्रा दर्शन Naimisharanya Temple History In Hindi
Naimisharanya is situated in Sitapur District , Uttar Pradesh
नैमिषारण्य तप और ज्ञान की पवित्र भूमि है। शास्त्रों में इसका उल्लेख अत्यन्त आदर के साथ आता है। शास्त्रों के अनुसार 84 हजार ऋषियों ने एक बार ब्रह्मा जी से पूछा कि पूरे भारत में तप-जप आदि के लिए सर्वोत्तम भूमि कौन सी है? उत्तर में ब्रह्मा जी ने अपना चक्र छोड़ा और कहा कि इसके पीछे-पीछे जाओ जहां यह चक्र स्थापित होगा वह स्थान अनुष्ठान आदि के लिए सबसे उपयुक्त होगा। वह चक्र चलते-चलते नैमिषारण्य में आकर स्थित हो गया। इसलिए नैमिषारण्य स्वयं ब्रह्मा जी के द्वारा घोषित तप-जप-यज्ञादि अनुष्ठानों के लिए सबसे पवित्र भूमि मानी गयी। नैमिष चक्र को कहा जाता है और अरण्य वन की। इसलिए इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा।
नैमिषारण्य (naimisharanya) एक छोटा सा स्टेशन है। यहां से बस्ती केवल एक मील दूर है। यहां चक्रतीर्थ नाम का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां एक पक्का कुंड है। इसका पानी काफी गहरा है। इसलिए लोहे की जाली लगा दी गई है ताकि स्नान के लिए सुरक्षा बनी रहे। कुंड के पास ही अनेक धर्मशालाएं बनी हैं। चक्रतीर्थ में पितरों का श्राद्ध करने का बहुत बड़ा महत्व है। मुख्य मंदिरों में भूतनाथ महादेव, सप्तऋषियों वेदव्यास का आश्रम, पांडव किला, ललिता देवी, विश्वनाथ अन्नपूर्णा जी आदि हैं।
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नैमिषारण्य (naimisharanya) से केवल पांच मील की दूरी पर मिश्रिक तीर्थ है। यहां पर बांके बिहारी मंदिर, सीता रसोई, सीता कूप, दधीचि कुंड आदि धार्मिक महत्व के स्थल हैं। दधीचि कुंड के बारे में कहावत है कि परशुराम अपना वज़बाण दधीचि ऋषि को देकर तपस्या करने उत्तराखण्ड चले गए। जाते समय परशुराम यह कह गए कि यदि मेरा वज़बाण खो गया तो तुम्हारा परम अनिष्ट होगा। जब लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी वे वापस नहीं आए तो दधीचि ने वज्रबाण घिसकर पी लिया। वज्रबाण के नाम से यह मिश्रिक तीर्थ कहलाया। इन्द्र को वृत्तासुर को मारने के लिए जब वज़ अस्त्र की जरूरत पड़ी तब इसी वज़बाण के प्रभाव के कारण वह ऋषि दधीचि से उनकी हड्डी मांगने आए। फलत: दधीचि की हड्डियों से वज़ अस्त्र बनाकर इन्द्र ने वृत्तासुर का संहार किया।
यह मन्दिर Naimisharanya temple sitapur, uttar pradesh में हैं जो कि लखनऊ से 80 किमी० की दूरी पर है |