
पण्डित रविशंकर का जीवन परिचय (Pandit Ravi Shankar Biography In Hindi Language)
नाम : पण्डित रविशंकर
जन्म : 7 अप्रैल 1920
जन्मस्थान : बनारस (वाराणसी)
मृत्यु : 11 दिसम्बर 2012
उपलब्धियां : लाइफ टाइम अचीवमेंट (2002), स्कोर टू गाँधी (1982), ‘भारतरत्न’ (1999), रमन मैग्सेसे (1992)
भारतीय संगीत की परम्परा में गायन तथा वाद्ध में रागों का विशेष स्थान है । अलग-अलग तरह के राग अलग-अलग समय और मौसम के अनुकूल बजाय जाते हैं तथा इनमें किसी भी मनोभाव को अभिव्यक्त करने की शक्ति होती है | इन रागों का प्रभाव जितना मनोरम है इन्हें ग्रहण करके प्रस्तुति कर पाना उतना ही कठिन है । पण्डित रविशंकर ने सितार के माध्यम से इन रागों को इनकी बारीकी से समझा और उन्हें अपने वादन से पूरे विश्व को सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया | पण्डित रविशंकर की इस अदूभुत संगीत प्रतिभा के लिए उन्हें वर्ष 1992 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया ।
पण्डित रविशंकर का जीवन परिचय (Pandit Ravi Shankar Biography In Hindi)
पण्डित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को बनारस (अब वाराणसी) में हुआ था । बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मे रविशंकर का जन्म स्थान पूर्वी बंगाल में था, जो विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में चला गया और अब बांग्लादेश का हिस्सा है ।
पण्डित रविशंकर के परिवार में संगीत का परिवेश पूरी तरह सघन था इसलिए उनकी संगीत की शिक्षा बहुत छोटी उम्र में ही शुरू हो गई थी । बाबा अलाउद्दीन खान उनके उस्ताद थे, जिन्हें हिन्दुस्तानी क्लासिक म्यूजिक के मैहर घराने का संस्थापक कहा जाता है । उनके बड़े भाई उदयशंकर एक नर्तक थे । इस नाते पं. रविशंकर ने भी शुरू में नृत्य साधना की । 1939 में उनका पहला कार्यक्रम मंच पर, दर्शकों के बीच आया । 1944 में उनकी संगीत शिक्षा विधिवत् पूरी हुई और उसके बाद वह बम्बई चले आए ।
1946 से पण्डित रविशंकर ने स्वतन्त्र रूप से संगीत की रचना शुरू कर दी तथा फिल्मों के लिए संगीत देने लगे । तब तक उनके संगीत की रेकार्डिंग एच.एम.वी. के भारतीय संगीत खण्ड के लिए हो चुकी थी । 1950 में पण्डित रविशंकर आल इण्डिया रेडियो के संगीत निर्देशक बन गए ।
जल्दी ही रविशंकर के सितार वादन की ख्याति विदेशों तक पहुँच गई और 1954 में इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम भूतपूर्व सोवियत यूनियन में दिया । उसके बाद 1956 में ही उन्हें पश्चिमी देशों में सितार वादन का मौका मिला । इस क्रम में रविशंकर ने मोन्टेरी पॉप फेस्टिवल तथा रॉयल फेस्टिवल हॉल में भी अपना सितारवादन प्रस्तुत किया ।
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1969 में केलीफोर्निया के वुडस्टाक फेस्टिवल में रविशंकर को सितारवादन के लिए आमन्त्रित किया गया । उनके साथ तबले पर उस्ताद अल्लारखा संगत कर रहे थे । 1971 में पं. रविशंकर की भेंट जॉर्ज हैरिसन से हुई । वह बांग्ला देश में एक संगीत सभा के संयोजकों में से थे । वहाँ रविशंकर ने हैरिसन के साथ मिलकर बांग्ला देश के लोगों की सहायतार्थ कार्यक्रम किया जो उन्हें 1974 में उत्तरी अमेरिका तक ले गया ।
1969 में पण्डित रविशंकर ने अंग्रेजी में आत्मकथा लिखी : ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ । इसमें उन्होंने अपने जीवन के बहुत से पक्ष उजागर किए ।
रविशंकर ने अठारह वर्ष की उम्र में अपने उस्ताद अलाउद्दीन खान की बेटी सुकन्या से विवाह किया था । बाद में एक अन्य विदेशी लड़की सूजोन्स से इनका विवाह हुआ ।
पण्डित रविशंकर रागों के पक्के अनुशासन में बँधने वाले संगीतकार थे फिर भी उसमें बँधे रहने के बावजूद उन्होंने बहुत सी नई संगीत लहरी को जन्म दिया ।
पण्डित रविशंकर के संगीत को अनेकों रेकॉर्ड डिस्क में संजोकर रखा गया और उनका महत्त्व पुस्तकों जैसा ही माना गया । 1956 में उनका ‘थ्री रागाज’ का एक एलबम आया । 1964 में ‘रागाज एण्ड ताल्स’ में उनके सितार की स्वर लहरी संचित हुई । उनके अलग-अलग महत्त्वपूर्ण सम्मेलनों के रिकॉर्ड तथा अपने चुने हुए रागों का संकलन, कुल मिलाकर उनके चालीस के आस-पास संकलन हैं । वर्ष 2007 में ‘फ्लावर्स ऑफ इण्डिया’, 2005 में ‘द मैन एण्ड हिज म्यूजिक’ तथा 1987 में ‘तन-मन’ ने पण्डित रविशंकर के संगीत का उत्कर्ष प्रस्तुत किया । फिल्मों में भी पण्डित रविशंकर का काम विश्वस्तरीय माना गया । बांग्ला के अतिरिक्त विदेशी फिल्मों में भी उनके संगीत का स्पर्श पहुँचा । 1966 में जोनाथन मिलर के निर्देशन में पण्डित रविशंकर ने ‘एलिस इन वन्डरलैण्ड’ के लिए संगीत तैयार किया । सत्यजित राय की ‘अ ट्रियोलॉजी’ के लिए पण्डित रविशंकर ने संगीत तैयार किया था । रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म ‘गाँधी’ में भी रविशंकर का संगीत था । हमारा इतना लोकप्रिय देशभक्ति गीत ‘सारे जहाँ से अच्छा’ भी पण्डित रविशंकर के संगीत की एक बानगी है जो कभी भी पुरानी नहीं हो सकती ।
पण्डित रविशंकर की संगीत रचना ने भक्ति संगीत में भी अपना स्थान बनाया है । इन्होंने भक्ति संगीत के रस में हैरिसन को भी सराबोर किया तथा वह भी इनके साथ भक्ति संगीत के दीवाने हो गए । 1997 में ‘चैन्ट्स ऑफ इण्डिया’ में रविशंकर तथा हैरिसन की प्रतिभाशाली कला देखी जा सकती है । भक्ति संगीत को रविशंकर भारतीय संस्कृति से जोड़ कर परखते थे ।
रविशंकर ने भारतीय संगीत को पश्चिम तक पहुँचाया लेकिन वह पश्चिम के भारत के प्रति किन्हीं व्यवहारों को लेकर अप्रसन्न भी थे । एक बार वह सैनफ्रैंसिस्को के ट्रिप पर मान्टेरी में सितारवादन देने के बाद हैट एशबरी में थे । वहाँ के अनुभव को लेकर रविशंकर ने लिखा- ‘ ‘मैं इस बात से बेहद क्षुब्ध हुआ हूँ कि भारत और उसकी महान संस्कृतियों को यहाँ इतने सतही ढंग से समझा जाता है । योग, तन्त्र-मन्त्र, कुण्डलिनी, गांजा, हशीश, कामसूत्र, बस सभी लोग इसी सब का जाप करते हुए भारत को याद करते दिखते हैं । रविशंकर ने इस बात को अपनी आत्मकथा, ‘माई लाइफ, माई म्यूजिक’ में दर्ज किया ।
संगीत में सितारवादन तथा निर्देशन के अतिरिक्त रविशंकर ने गुरुस्वरूप अपना ज्ञान बाँटा भी । भारतीय संगीत के कई जाने-माने नाम रविशंकर को अपना गुरु मानते हैं । कार्तिक कुमार, दीपक चौधुरी, हरिहर राव, अमियदास गुप्ता, समेत अनेक बहुत सारे लोग रविशंकर की संगीत शैली सीखकर विकसित हुए है ।
उनकी स्वयं की पुत्री अनुष्का शंकर ने आठ वर्ष की उम्र से उनसे सितार सीखना शुरू किया । वह रविशंकर के साथ देश-विदेश सभी जगह गई और अपनी सीखी हुई प्रतिभा से सबको मुग्ध कर दिया । दूसरी पत्नी सूजोन्ह से पुत्र नोरा जोन्स भी इनकी कला को उत्तराधिकार में आगे ले जाती हैं ।
पण्डित रविशंकर ने बहुत से पुरस्कार पाए । उन्हें चौदह विभिन्न संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । पद्मविभूषण तथा दिसिकोट्टम पुरस्कार उन्हें दिए गए । उन्हें तीन बार ग्रेमी पुरस्कार मिला । उन्होंने फुकुकोवा एशियन कल्चर ग्रैण्ड प्राइज हासिल किया जो जापान द्वारा दिया जाता है । उन्हें ‘ग्लोबल अम्बेसडर’ के खिताब से सम्मानित किया गया तथा दावोस का क्रिस्टल अवार्ड मिला ।
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1986 में वह राज्य सभा के सदस्य मनोनीत किए गए जहाँ वह छह बरस तक रहे । वर्ष 2002 में रविशंकर को इना गुरल इण्डिया चैम्बर ऑफ कामर्स लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला ।
1998 में रविशंकर ने रेचार्ल्स के साथ पोलर म्यूजिक प्राइज हासिल किया । उसके पहले 1982 में उन्हें जॉर्ज फेन्टोन के साथ ओरिजनल स्कोर टू गाँधी के लिए संयुक्त पुरस्कार मिल चुका था ।
वर्ष 1999 में पण्डित रविशंकर को ‘भारतरत्न’ सम्मान से अलंकृत किया गया । यह भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है ।
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