Parsley Ki Kheti Kaise Kare – पार्सले की खेती

Parsley Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

Parsley Ki Kheti Kaise Kare – पार्सले की उन्नत खेती कैसे करें

यह भी विशेष प्रकार की सब्जियों में से एक हैं । जिसका आकार मॉस ग्रास के गुच्छे के समान होता है । इसका उपयोग अधिकतर सब्जियां सुगंधित एवं सुशोभित करने व सलाद के रूप में किया जाता है | इसको सूप के रूप में भी प्रयोग में लाते हैं । यह सब्जी प्याज की दुर्गंध कम करने के काम भी आती है । इसकी पत्तियों का रंग गहरा हरा व आकार विचित्र होता है । इस सब्जी में विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, कैल्सियम, प्रोटीन व खनिज-लवण आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं । यह सब्जी भी 50-80 रुपये किलो या 10-16 रुपये की 200 ग्राम के भाव से मिलती है । लेकिन इसका उपयोग होटलों, रेस्टोरेन्ट तथा उच्च स्तर के शहरी लोगों में किया जाता है । ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कम पसन्द करते हैं ।

Parsley Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

पार्सले की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Parsley Kheti)

सर्वोत्तम भूमि दोमट या हल्की बलुई दोमट रहती है लेकिन हल्की व भारी सभी प्रकार की भूमि में उगायी जा सकती है ।

पार्सले ठन्डी जलवायु का पौधा है । जो शरद-ऋतु की फसल के साथ बोया जाता है । आर्द्रता कम तथा तापमान 20-25 डी०सेग्रेड पर आसानी से उगायी जाती है ।

पार्सले की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी (Parsley Ki Unnat Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)

खेत की जुताई देशी हल या ट्रैक्टर हैरो, कल्टीवेटर द्वारा 2-3 बार करें । यदि भारी मिट्‌टी हो, तो उसमें एक-दो जुताई अधिक करनी चाहिए । इस प्रकार से मिट्‌टी बारीक करके खेत को तैयार करना चाहिए । अन्तिम जुताई के समय ढेले, घास बिकुल भी न रहें ।

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पार्सले की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Parsley)

1. क्लर्ड लीयन 2. मास क्लर्ड 3. डबल क्लर्ड 4. चैपियन

उपरोक्त किस्में ही प्रमुख हैं जिन्हें उपयोग में लाया जाता है । इनकी पत्तियां डंठल सहित वृद्धि करती हैं |

बीज की मात्रा (Seeds Rate)

बीज की मात्रा प्रति हैक्टर 800-1000 ग्रा. की आवश्यकता होती है । चूंकि इसका बीज छोटा होता है अत: प्रति एकड़ 200-300 ग्राम पर्याप्त होता है । बीज बोने का उचित समय सितम्बर-अक्टूबर रहता है । इस समय बीज शत-प्रतिशत अंकुरित होते हैं व पहाड़ों पर अप्रैल-मई में होता है ।

बीज बोने की विधि एवं समय (Method of Sowing and Time)

बीज बोने की सावधानी रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि बीज छोटा होने से अंकुरण मुश्किल होता है । इसलिये बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर ही बोयें । बोने के लिये नर्सरी में ऊंची उठी हुई क्यारियां तैयार करें जो 10-15 सेमी. उठी हों । खाद को मिट्‌टी में भली-भांति मिलाकर बीज को पंक्तियों में बोयें तथा इन पंक्तियों की आपस की दूरी 6-8 सेमी. तथा बीजों को लगभग मिलाकर ही बोयें । अगस्त से अक्टूबर माह बोने के लिये उत्तम रहता है । बीज बोने के पश्चात् पंक्तियों के ऊपर बारीक पत्तियों की खाद की परत हल्की-सी ऊपर लगा दें । इस प्रकार से पानी समय पर देते रहें । पौधों को पौधशाला में 10-15 सेमी. ऊंचे होने पर रोपाई के लिये उपयोग में लाना चाहिए ।

पौधों की रोपाई व दूरी (Transplating and Distance)

पौधों को पौधशाला में तैयार या लगाने लायक हो जाने पर तैयार किये हुए खेत या क्यारियों में रोपना चाहिए । यह रोपाई शाम के समय 3-4 बजे करनी चाहिए जिससे पौधे मुरझाने न पायें । पौधे लगाने के तुरन्त बाद पानी दें । रात्रि को ठण्डा मौसम व ओस मिलने से सुबह को पौधे स्वस्थ सीधे खड़े मिलते हैं । पौधों को रोपते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी आपस में 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की आपस की दूरी 30 सेमी. रखनी चाहिए ।

खाद व उर्वरकों का प्रबन्ध (Management of Manure and Fertilizers)

पार्सले की खेती के लिये उर्वरक गोबर सड़ा हुआ 15 टन तथा नत्रजन 60 किलो, फास्फोरस 80 किलो तथा 60 किलो पोटाश दें । नत्रजन की पूर्ति किसान खाद (CAN) फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट तथा पोटाश को म्यूरेट आफ पोटाश से पूरा करें । नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देना फसल के लिये उत्तम रहता है तथा नत्रजन की आधी मात्रा कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN) को दो बार में पौधों को रोपाई के 25 दिन व 60 दिन में देना चाहिए । इस टोप-ड्रेसिग से फसल की उपज बढ़ती है ।

सिंचाई (Irrigation)

प्रथम सिंचाई हल्की तथा अन्य सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिए । 6-7 सिंचाई प्राप्ति होती है ।

निकाई-गुड़ाई एंव खरपतवार-नियन्त्रण (Hoeing and Weeds Control)

पौधों की रोपाई हो जाने पर तथा दो सिंचाई के पश्चात् जंगली घास हो जाती है जिन्हें निकालना जरूरी होता है । अत: दो-तीन निकाई खुरपी से करना चाहिए । तथा इस प्रकार से अनेक खरपतवार जैसे- घास, मोथा, व शरद ऋतु के जंगली पौधे निकल आते हैं जिन्हें खरपतवार कहते हैं । इनका नियन्त्रण करना उत्तम फसल के लिये अति आवश्यक है । अत: निकाई-गुड़ाई की कृषि-क्रिया आवश्यक है । इसी समय पौधों की जड़ के पास मिट्‌टी भी चढ़ा देना पौधों के लिये उत्तम रहता है ।

पौधों की कटाई (Harvesting)

पौधों में वृद्धि होने पर पहले बड़े पत्ते जो बाहर को फैले हुए हो उन्हें ही काटना चाहिए । ध्यान रहे कि अधिक पत्तियां परिपक्व ना होने दें । पत्तियों की कटाई तेज चाकू या कैंची से करनी चाहिए । आवश्यकतानुसार तैयार पत्तियों को काटते रहना चाहिए ।

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उपज (Yield)

पत्तियों की उपज प्रति पौधा लगभग 500-800 ग्राम तथा प्रति हैक्टर 150 क्विंटल तक उपज मिलती है |

कीट एवं बीमारियां (Insect and Diseases)

कीटों का अधिक प्रकोप नहीं होता लेकि.न एफिडस का प्रकोप कभी-कभी होता है जिसके नियन्त्रण के लिये रोगोर, मेटोसिस्टाक्स का 1% का घोल बनाकर स्प्रे करें ।

बीमारी भी देर से बोने वाली फसल में लगती है । पाउडरी मिलड्‌यू का प्रकोप होता है । जिसका नियन्त्रण बेवस्टिन का 1 ग्रा. प्रति लीटर के घोल का स्प्रे करने से हो जाता है ।

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