
आप कितने ही सफल दम्पति क्यों न हों, आपका दाम्पत्य जीवन बेशक कितना ही प्रेममयी क्यूँ न हो, लेकिन इस बात से आप भी इत्तफाक रखते होगें कि पति पत्नी के बीच नोकझोक जरूर होती है | जीवन में प्रेम बनाये रखने के लिए ये नोक झोक जरूरी भी हैं | लेकिन जब यही नोक झोक, धीरे-धीरे लड़ाई झगड़े का रूप ले लेती है, तो आप इस बात का खयाल बिलकुल नहीं रखते कि आप कहाँ है और आपके सामने कौन है? एक दुसरे को दोषी ठहराने के लिए आप बच्चो तक के सामने मरने – मारने पर उतारू हो जाते हैं, जिसका खामियाजा बच्चो को ही ज्यादा भुगतना पड़ता है |
पति – पत्नी के झगड़े से बचपन घुट जाता है
इस झगड़े के बाद आप तो सामान्य हो जाते हैं, लेकिन इस झगड़े का असर बच्चो पर कितना पड़ता है, यह बात 70 के दशक में बनी फिल्म “हरे राम हरे कृष्णा” में स्पष्ट दिखाई गयी थी | इस फिल्म में जीनातमान और देवानन्द के माता-पिता के आपसी झगड़े का असर जीनातमान पर इतना पड़ता है कि वह घर छोड़ कर भाग जाती है और बुरी सोहबत में पड़कर ड्रग्स लेने और नशा करने लगती है |
फिल्म के आखिर में, जब उसके माता-पिता उसे लेने पहुचते हैं तो वह खुद को कमरे में बंद कर लेती है और ड्रग्स का ओवरडोज़ लेकर आत्महत्या कर लेती है |
मनोचिकत्सक डाक्टर भास्कर कहते हैं कि “बच्चे इन झगड़ों से परेशान हो कर बुराई कि तरफ अग्रसर हो जातें हैं या फिर घर में रहकर ही वे रिश्तों के प्रति इतने अक्रोसित हो जाते हैं कि वे विद्रोह कर देते हैं या शादी न करने जैसे कदम भी उठा लेते हैं |”
एक अन्य उदाहरण में, सीमा और राजेश के लड़ाई झगड़ों से तंग आ कर उनका बेटा अभिजीत इतना सहम गया कि बाद में ना वो किसी से बात करता था, न ही पढाई में मन लगा पाता | बस, पूरे दिन खुद को कमरे में बंद रखता | वहीँ बेटी श्रुती इन झगड़ों में अपने पेरेंट्स का बीच बचाव करते-करते इतनी उद्दंड हो गयी कि वो किसी को भी उल्टा जवाब देने से नहीं चूकती | बड़ा हो या छोटा, सभी के सामने पलट कर जवाब देना उसकी फितरत बन गयी | उसके इस स्वभाव ने उसे विद्रोही बना दिया था |
दोनों बच्चो के मष्तिष्क पर इतना प्रतिकूल प्रभाव पड़ा कि उनके अन्दर अपने माता पिता के प्रति जो सम्मान और प्रेम की भावना थी, वह ख़त्म हो गयी | उनका अनकहा डर उनके भविष्य को अन्धकार मय कर गया | इसलिए यदि आप चाहते है कि बच्चे आपका सम्मान करें तो बच्चो के सामने ऐसा व्यवहार न करें जो असहज हो | अन्यथा झगड़े का दुष्प्रभाव बच्चो पर अवश्य पड़ेगें |
बच्चों पर पड़ता गलत प्रभाव
- कई बार ऐसे झगड़ों से परेशान हो कर बच्चे किशोर अवस्था में पहुँच कर ऐसा मन बना लेते हैं कि हम अपने जीवन में इससे सबक लेकर ऐसा कुछ नहीं करेगे | लेकिन जब असलियत सामने आती तो वो वैसा ही बर्ताव करते हैं जैसा उन्होंने अपने पेरेंटस को करते देखा था |
- कई माता पिता का यह मानना होता है कि झगड़े बच्चों के सामने ही हों तो अच्छा है | कम से कम बच्चो को माता या पिता की कमियों के बारे में पता होना चाहिए | लेकिन यह गलत है, इस तरह से बच्चे माता पिता के प्रति नेगेटिव इमेज बना लेते हैं और जिन्दगी भर उन्हें दोषी मानते हैं | इसलिए बच्चो के सामने एक दूसरे की बुराई करने से बचें |
- कई बार इस दोषारोपड़ का प्रभाव इतना पड़ता है कि बच्चा उस लिंग के प्रति इतना घृणा कर बैठता है कि या तो वो उसके संपर्क में ही नहीं आना चाहता या फिर आ जाता है तो घृणा के चलते वैसा ही व्यवहार करता है जैसा उसने देखा था |
- इस झगड़े का प्रभाव बच्चो पर यह भी पड़ता है कि वे खुद से नफरत करने लगते है और फिर बुरी आदतों जैसे धूम्रपान, नशा करना यहाँ तक कि आत्महत्या तक करने से नहीं चूकते |
- इन झगड़ों के कारण वो इतना डर जाते हैं कि अपने विचार भूल कर भी सामने नहीं रख पाते और अन्दर ही अन्दर घुटते रहते हैं , जिसका परिणाम यह होता है कि वे विद्रोही हो जाते हैं, और अपने भविष्य को अपने ही हाथो कुएं में धकेल देते हैं |
- इस तरह के माहौल में पलने के कारण बच्चों की प्रवृति अपराधिक हो जाती है और एक समय ऐसा आता है कि वे अपराध करने से भी नहीं डरते |
- इन झगड़ों की वजह से बच्चे रिश्तों के बीच दूरियां भी पैदा कर लेते हैं, जिसे पाटना असंभव हो जाता है |
ऐसी स्थिति से कैसे बचें
- दाम्पत्य जीवन में झगड़ा न हो, ये तो मुमकिन ही नहीं | लेकिन आप हर वक्त लड़ने के बजाय कोई ऐसा समय निश्चित कर ले जब झगड़े की सारी बातों को इकट्ठे बैठ कर हल भी कर सके और झगड़ भी सके | लेकिन तब ये जरूर देखे कि बच्चे घर पर न हों | इस तरह आप भी रोज-रोज की चिक-चिक से बच जायेंगे और बच्चे भी तनाव भरे माहौल में पलने से बच पाएंगे |
- अगर आप बच्चो के सामने झगड़ते हैं तो प्रेम भरी बातें या आपसी प्रेम भी सामने ही झल्काएं जिससे उन्हें ये झगड़े असहज न लगे और इसके दुष्प्रभाव से वे बच जाएँ | इससे उन्हें लगेगा कि प्रेम कि तरह लड़ाई झगडा भी सामान्य जीवन का ही एक हिस्सा है और वे इसे भी सहज रूप में स्वीकार करेगे |
- कई बार ऐसा होता है कि पेरेंट्स लड़ाई तो बच्चो के सामने ही करते हैं, लेकिन दोष स्वीकारते समय वह बंद कमरा या अकेलापन चाहते हैं | ऐसा कतई न करें | बल्कि एक दूसरे से माफ़ी बच्चो के सामने ही मांगे | इससे एक तो बच्चो के मन में उस लडाई झगडे का प्रभाव ख़त्म हो जायेगा, दूसरे,भविष्य में उन्हें अपनी गलती स्वीकार करने जैसा सबक भी मिल जायेगा |
- यदि आप में से कोई भी इस बात को समझे कि सामने वाला ज्यादा गुस्से में है तो अपने गुस्से में काबू करते हुए यह कह कर बात को टाल दें कि इस मैटर पर बाद में बात करतें हैं | इससे बच्चे उस भयंकर झगड़े से बच पाएंगे जो शुरू होते ही ख़त्म हो गया |
- अगर झगड़े किसी काम आदि को ले कर होतें हैं तो उन कामो की लिस्ट बना लें, जिससे झगड़े की जड़ ही ख़त्म हो जाय और घर का माहौल खुशनुमा बना रहे | बच्चे भी खुश रह सकें |
- झगड़ा करने से पहले एक बार यह जरूर सोच ले कि इसका प्रभाव बच्चो के कोमल मन पर किस तरह और क्या पड़ेगा |
- बच्चों का कोमल मन नाजुक फूल कि तरह होता है | इसलिए इस झगड़े का प्रभाव उनके इस फूल को मुर्झाने में कोई कसर नहीं छोड़ता |
- अगर किसी बात पर झगड़ा है भी तो उसका हल जरूर होता है, जिसे उसी समय निकल कर हल करने कि कोशिश करेगें, तो इससे बच्चों को भी ऐसी बातों से बाहर निकलने व उसका हल ढूढ़ने में मदद मिलेगी |
- लडाई झगड़े के तुरंतबाद उस बात के लिए एक दूसरे के सामने माफ़ी मांग कर और एक मुस्कुराहट के साथ बात को ख़त्म कर देना चाहिए, जिससे बच्चे इसको एक खेल समझ कर भूल जायें |
- यदि बच्चे के सामने लड़ते झगड़ते हैं, तो कभी-कभी प्रेम का इजहार जैसे “आई लव यू डार्लिंग”, “आई ऑलवेज मिस यू”, “हाय स्वीटहार्ट” आदि शब्दों का इस्तेमाल भी करें | किसिंग, हगिंग करने से भी परहेज ना करें | इससे बच्चों के दिमाग में यह बात बनी रहेगी कि अगर झगड़ते हैं तो आपस में प्यार भी है और उन्हें यह समझ आ जाएगा कि जहां प्रेम है, वहां लड़ाई झगड़े भी होते ही हैं |
अगर फिर भी आप ऐसा नहीं करते हैं तो अब यह फैसला खुद आपको करना है कि आप अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए लड़ रहे हैं या बिगाड़ने के लिए |