
प्रयाग राज का इतिहास और दर्शन Prayag Raj History In Hindi
संगम वह स्थान है जहां भारत की दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना का गिलन होता है। यहां जनवरी व फरवरी महीनों में प्रत्येक वर्ष एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले को माघ मेले के नाम से भी पुकारते हैं। इसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं और संगम पर डुबकी लगाकर अपने आप को धन्य समझते हैं। हर 12 सालों बाद लगने वाले कुंभ मेले में तो ऐसी भीड़ उमड़ती है कि बस दृश्य देखते ही बनता है।
कुंभ के समय इलाहाबाद में संगम के पास कुछ समय के लिए मेला लगता है मानो एक नया शहर ही बस गया हो। इस अवसर पर यात्रियों के लिए यहां हर प्रकार की सुविधा का इंन्तजाम होता है। कुंभ के समय उमड़ने वाली जबरदस्त भीड़ को देखते हुए पूरी सावधानी बरतना भी जरूरी है। खासकर जब आपके साथ बच्चे व वृद्ध लोग हों। भगदड़ मच जाने से हर कुंभ में अनेकों लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
देश के अन्य धार्मिक स्थानों की तरह यहां भी पण्डों की भरमार है। धन के लालची बहुत से पण्डे श्रद्धालुओं को बहुत परेशान करते हैं। इसलिए अच्छा तो यही है कि यात्री इनके चक्कर में ज्यादा न पड़ें।
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संगम वह स्थान है जहां गंगा, यमुना व सरस्वती नदियों का मिलन होता है। लेकिन सरस्वती नदी अब से हजारों वर्ष पहले ही लुप्त हो चुकी है। आर्यकाल में इसे प्रयाग के नाम से ही जाना जाता था। कहते हैं कि स्वयं ब्रह्मा ने यहां आकर बलि चढ़ाई थी।
प्रसिद्ध चीनी यात्री हृवेनसांग 634 ई0 में यहां आया था और उसने अपने संस्मरणों में यहां की काफी विस्तार से चर्चा की है। मुगलकाल में प्रयाग को इलाहाबाद के नाम से पुकारा जाने लगा। बाद में यह मराठों के हाथ में आ गया। 1801 में पठानों ने इसे अंग्रेजों के हाथों सौंप दिया। इलाहाबाद में ही ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने 1858 में औपचारिक रूप से शासन की बागडोर ब्रिटिश सरकार की सौंपी थी। तब भी इसे इसी नाम से जाना जाता था। प्रयाग में अशोक की एक मीनार भी है।