
राजेन्द्र सिंह का जीवन परिचय (Rajendra Singh Biography In Hindi Language)
नाम : राजेन्द्र सिंह
जन्म : 6 अगस्त 1959
जन्मस्थान : डौला, जिला-बागपत (उत्तर प्रदेश)
उपलब्धियां : मैग्सेसे पुरस्कार (2001)
राजस्थान का अलवर जिला शुरू से एक सूखा इलाका माना जाता रहा है जहाँ पानी एक दुर्लभ वस्तु मानी जाती थी | उस दौर में पानी के जलाशय बनाकर उनमें बारिश का पानी इकट्ठा करके उन्हें सुरक्षित रखना एक पारम्परिक तरीका था, जिससे पानी की कठिनाई को दूर किया जाता था । इन जलाशयों को जोहड़ कहा जाता था । विकास के दौर में खदानों और पहाड़ियों की तलहटी के जगंलों की कटाई के काम ने इन जोहडों को लगभग खत्म कर दिया । पुरुष ज्यादातर शहर भाग गए और इलाका पानी के गम्भीर सकंट में आ गया । राजेन्द्र सिंह ने इस सकंट की स्थिति को बुनियादी तौर पर समझकर उसे दूर करने की ठानी और तरुण भारत संघ की स्थापना की जिसमें स्वयंसेवी युवकों ने फिर से परम्परागत जोहडों, की वापसी की जिससे पानी की समस्या का काफी हद तक हल हो पाया । राजेन्द्र सिंह के इस काम के लिए उन्हें 2001 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया |
राजेन्द्र सिंह का जीवन परिचय (Rajendra Singh Biography In Hindi)
राजेन्द्र सिंह का जन्म 6 अगस्त 1959 को, उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गाँव में हुआ था । उनके पिता एक किसान थे और उनके पास एक एकड़ की जमीन पर खेती की व्यवस्था थी, जहाँ वह गन्ना, धान तथा गेहूँ आदि फसलें उगाते थे । राजेन्द्र का बचपन वहीं खेतों में पशुओं के साथ खेलने-कूदने में बीता । हाई स्कूल पास करने के बाद राजेन्द्र ने भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्विज्ञान में डिग्री हासिल की । उनका यह संस्थान बागपत उत्तरप्रदेश में स्थित था । उसके बाद राजेन्द्र सिंह ने जनता की सेवा के भाव से गाँव में प्रेक्टिस करने का इरादा किया । साथ ही उन्हें जयप्रकाश नारायण की पुकार पर राजनीति का जोश चढ़ा और वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए । छात्र बनने के लिए उन्होंने बड़ौत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक कॉलेज में एम.ए. हिन्दी में प्रवेश ले लिया ।
एम.ए. करते ही उनको 1980 में सरकारी नौकरी मिल गई, जिसने उन्हें नैशनल सर्विस वालिंटियर फॉर एजुकेशन बना कर जयपुर भेज दिया । वहाँ इन्हें राजस्थान के दौसा जिले में प्रौढ़ शिक्षा का प्रोजेक्ट दिया गया । इस बीच इनके पिता ने इनका विवाह भी कर दिया और मीना उनकी पत्नी बनकर उनके साथ आ गई ।
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राजेन्द्र जी को यह काम रास नहीं आया । और राजस्थान की स्थिति से वह धीरे-धीरे परेशान भी हो रहे थे, पानी का संकट उन्हें चुनौती दे रहा था । 1981 में ही, जब उनका विवाह हुए बस डेढ़ बरस हुआ था, उन्होंने नौकरी छोड़ी, घर का सारा सामान बेचा । कुल तेईस हजार रुपए की पूँजी लेकर अपने कार्यक्षेत्र में उतर गए । उन्होंने ठान लिया कि वह पानी की समस्या का कुछ हल निकलेंगे । आठ हजार रुपये बैंक में डालकर शेष पैसा उनके हाथ में इस काम के लिए था ।
राजेन्द्र सिंह के साथ चार और साथी आ जुटे थे, यह थे नरेन्द्र, सतेन्द्र, केदार तथा हनुमान । इन पाँचों लोगों ने तरुण भारत संघ के नाम से एक संस्था बनाई जिसे एक गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ) का रूप दिया । दरअसल यह संस्था 1978 में जयपुर यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई थी, लेकिन सो गई थी । राजेन्द्र सिंह ने उसी को जिन्दा किया और अपना लिया । इस तरह तरुण भारत संघ (TBS) उनकी संस्था हो गई ।
TBS का अभियान शुरू करने लिए 2 अक्टूबर 1985 को राजेन्द्र सिंह और उनके साथी अलवर जिले के किशोरपुर गाँव में आ गए, जो कि कस्बे थाना गाजी से बीस किलोमीटर दूर था ।
किशोरपुर में TBS ने ठिकाना तो बनाया लेकिन उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाना चाहिए । तभी राजेन्द्र सिंह ने एक नक्शा मँगवाकर पहाड़ी की तलहटी के किनारे पचपन किलोमीटर का क्षेत्र खोजा और पाया कि वह कहाँ हैं ।
यहाँ से TBS का दोहरा संघर्ष शुरू हुआ । एक तो उन्हें गाँव वालों का विश्वास जीतना था जिन्हें इस बात पर पूरा यकीन नहीं आ रहा था कि ये लोग अच्छी-भली नौकरी छोड्कर पागलों की तरह यहाँ चले आए हैं, दूसरे उन्हें अभी वह तय करना था कि क्या करने से समस्या का हल पाया जा सकता है । इन्हें जो कुछ भी सीखना था, इन्हीं अनपढ़ से दिखने वाले गाँव वालों से सीखना था । इसमें भी साथियों का थोड़ा अहं भाव आड़े आता था । लेकिन राजेन्द्र सिंह इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे कि वह कुछ-न-कुछ राह जरूर खोजेंगे ।
गाँव वालों से विमर्श करके तथा देश के अन्य इलाकों की स्थिति से जानकारी लेकर यह हल सामने आया कि कुएँ तथा जोहड़ों को फिर से जिन्दा किया जाए । पुराने जोहड़ मुद्दतों से सूखे पड़े थे और TBS के इन पाँच लोगों में से किसी को भी कुएँ की खुदाई के बारे में कुछ पता नहीं था । इस असमंजस में उन्हें एक वृद्ध गाँव वाले ने ज्ञान दिया । उसने कहा ”कुआँ खोदने के लिए कोई इन्नीनियर नहीं चाहिए, केवल हौसले की जरूरत है ।” इस काम में इन्होंने गाँव के मंगू लाल पटेल को साथी बनाया और काम की शुरुआत के लिए गोपालपुरा गाँव चुना गया ।
शुरुआती कदम के रूप में बरसात के पानी को धरती को सौंपने के लिए व्यवस्था करनी थी । बारिश का पानी जमीन से बह कर फैल न जाए इसके लिए बाड़ बनाकर जमीन पर पानी को रोका गया । पहला जोहड़ बनाने के लिए ठिकाना चुना गया मानोटा कोयाला । ग्राम सभा बुलाकर तय किया कि इस काम में पूरे गाँव की मदद लेनी होगी । इस में हर घर के लिए जिम्मेदारी तय की गई । यह भी समझाया गया कि जोहड़ बन जाने के बाद उसकी मरम्मत-सफाई कैसे करनी होगी, ताकि वह उपयोगी बनी रही ।
6 मार्च 1987 को मानोटा कोयाला जोहड़ का काम शुरू हुआ । और अपने उद्यम से गाँव वालों ने देखा कि जोहड़ में पानी आ गया । इसी काम के साथ-साथ दूसरे नए जोहड़ों के लिए जगह तय की गई ।
पहले जोहड़ के काम सफल होने से गाँव में उत्साह का संचार हुआ । उस गाँव में कभी अरवारी नदी हुआ करती थी । TBS ने कल्पना की कि वह नदी फिर से वहाँ बहने लगेगी । उसके पहले जरूरत इस बात की थी कि बारिश के पानी की एक-एक बूँद धरती के लिए भीतर जाए । इसके लिए बारिश के पानी को रोकने के लिए बाँध बनाने की व्यवस्था हुई । सबसे बड़ा बाँध 244 मीटर लम्बा तथा सात मीटर ऊँचा बनाया गया ताकि, पानी धरती के भीतर नीचे तक पहुँचने के पहले बह न जाए ।
1995 में एक-एक कदम की मेहनत तथा बूँद-बूँद पानी के बचाव से अरवारी नदी ने बहाव ले लिया । इसके बाद तो चार और ऐसी ही धाराएँ उस इलाके में फिर से जिन्दा होकर बहने लगीं ।
इस क्रान्ति का असर दूसरे दूर के गाँवों तक भी पहुँचा । हमीरपुर गाँव में जब्बर सागर की धारा अब बहती है और उसमें नावें चलती हैं तथा मछली पालन होता है ।
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जब राजेन्द्र सिंह तथा उनके साथी आज की प्रगति को देखते हैं तो उन्हें वह अविस्मरणीय दिन जरूर याद आता है । जब ये लोग पहले किशोरीपुर गाँव पहुँचे थे, तब गाँव वालों ने इन्हें आतंकवादी समझकर पकड़ लिया था । कुछ दिन पहले रेडियो से यह खबर आई थी कि कुछ आतंकवादी पंजाब से राजस्थान में घुसे हैं । पकड़े जाने पर इनका कोई विश्वास कैसे करता । बस इन्हें पहले तो एक मन्दिर में बन्द कर दिया गया । खैर किसी की पहचान पर ये छूटे लेकिन इनकी कुछ कर गुजरने की जिद नहीं छूटी । उसी जिद का नतीजा है कि आज राजस्थान सूखे से मुक्त हो कर नया जीवन जी रहा है ।
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